शेख़ कुलैनी - 2
हमने आपको शेख कुलैनी के बारे में बताया था।
हम बता चुके हैं कि "अबू जाफ़र मुहम्मद बिन याक़ूब बिन इस्हाक़ कुलैनी राज़ी" बहुत ही मश्हूर विद्वान थे। वे शेख कुलैनी के नाम से मश्हूर हुए। शेख कुलैनी तीसरी हिजरी शताब्दी के दूसरे भाग और चौथी हिजरी शताब्दी के पहले भाग के विख्यात विद्धान थे। उनकी सबसे मश्हूर किताब का नाम "काफ़ी" है। शेख कुलैनी को हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के पवित्र कथनों की गहरी जानकारी थी। कुलैनी का जन्म सन 258 हिजरी क़मरी में ईरान के एक प्राचीन नगर "रेय के कुलैन गांव" में हुआ था। जिस काल में कुलैनी का जन्म हुआ था वह ग्यारहवें इमाम, इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के काल का अन्तिम दौर था।
शेख कुलैनी का जन्म एक बहुत ही विख्यात और विद्धान घराने में हुआ था। उन्होंने आरंभिक शिक्षा अपने ही घर के लोगों से शुरू की थी। शेख कुलैनी के पिता और मामा अपने काल के जानेमाने धर्मगुरू थे। अपने पैतृक स्थल कुलैन में आरंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद शेख कुलैनी आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए रेय, क़ुम, कूफ़ा और बग़दाद गए। उन्होंने एसे कई लोगों से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के कथन सुनकर एकत्रित किये जिन्होंने यह कथन पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम हसन असकरी से सुने थे। कुलैनी ने अपने काल के बड़े-बड़े विद्वानों से ज्ञान अर्जित किया था। शेख कुलैनी ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों के कथनों को एकत्रित करने के लिए इस्लामी जगत के विभिन्न क्षेत्रों की लंबी यात्राएं कीं। शेख कुलैनी को "सेक़तुल इस्लाम" की उपाधि से सम्मानित किया गया। शाबान के महीने में सन 329 हिजरी क़मरी को "अबू जाफ़र मुहम्मद बिन याक़ूब बिन इस्हाक़ कुलैनी राज़ी" अर्थात "शेख कुलैनी" का स्वर्गवास हो गया। उनकी क़ब्र बग़दाद के बाबुल कूफ़ा में है। एक कथन के अनुसार कुलैनी का निधन सन 328 हिजरी क़मरी में हुआ था।

"अबू जाफ़र मुहम्मद बिन याक़ूब बिन इस्हाक़ कुलैनी राज़ी" जो शेख कुलैनी के नाम से प्रसिद्ध हुए, बहुत ही दूरदर्शी विद्वान थे। वे अपने काल के सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनैतिक शून्य से भलिभांति अवगत थे। जिस काल में शेख कुलैनी जीवन व्यतीत कर रहे थे उस काल में विभिन्न धर्म और विचारधाराएं प्रचलित थीं। यही कारण था कि शेख कुलैनी ने अपनी शिक्षा प्राप्ति के दौरान ही इस बारे में बहुत सी जानकारियां एकत्रित कर ली थीं। उनकी एक किताब "अर्रद्द अल्लक़रामेता" इसी बात की पुष्टि करती है कि वे तत्कालीन धर्मों और प्रचलित विचारधाराओं की भरपूर जानकारी रखते थे। कुलैनी के काल में क़रमितयान, ज़रतुश्तियों, मानोवियों और इस्लामी शिक्षाओं की एक मिश्रित विचारधारा प्रचलित हो गई थी। यह विचारधारा एक प्रकार से इस्लामी शिक्षाओं के मुक़ाबले में आन खड़ी हुई थी। इस भ्रष्ट विचारधारा का मुक़ाबला करने के लिए ही कुलैनी ने यह किताब लिखी थी। क़ुलैनी की इस किताब ने उक्त भ्रष्ट विचारधारा से मुक़ाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

शेख कुलैनी के काल में लोग पैग़म्बरे इस्लाम (स) के कथनों से बहुत दूर हो चुके थे। उनका जन्म ग्यारहवें इमाम के अन्तिम काल में हुआ था। उस काल में बहुत से लोग झूठी हदीसे गढ़ने लगे थे। इमाम मेहदी की ग़ैबत अर्थात अद्रश्य होने के कारण बहुत से लोग हदीसों में फेर-बदल करके अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में लग गए थे। एसे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र कथनों में पूरी तरह से फेर-बदल का भय लगा हुआ था। इस बात का भय पाया जाता था कि कहीं पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों को पूरी तरह से बदल न दिया जाए जिसके कारण बाद वाली पीढ़ियां उनसे वंचित रह जाएं। इन परिस्थितियों के कारण मुसलमान धर्मगुरूओं ने हदीसों अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों को सुरक्षित करने के लिए प्रयास आरंभ कर दिये। हदीसों की सुरक्षा के लिए यह प्रयास इतने अधिक विस्तृत एवं व्यापक थे कि उस काल को "अस्रे हदीस" कहा जाने लगा था। इस कार्य के उद्देश्य से मुसलमान विद्धानों ने अलग-अलग शहरों और बस्तियों तथा क्षेत्रों की यात्राएं कीं।
इस काल में सुन्नी मुसलमानों के प्रयास इतने अधिक उल्लेखनीय हैं कि यह कहा जा सकता है कि उनके पास आज जो कुछ भी है वह इसी काल से संबन्धित है। यही वह काल है जो सुन्नी मुसलमानों की महत्वपूर्ण पुस्तकों के लिखे जाने का काल है। सुन्नी मुसलमानों की महत्वपूर्ण पुस्तकों को को "सहाए सित्ता" कहा जाता है। उन्होंने जिस समय से पैग़म्बरे इस्लाम की हदीसों को लिखने या संकलित करने का काम आरंभ किया उस समय हदीस के मुख्य स्रोत अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम (स) से लगभग 300 वर्षों का फासला हो चुका था। शिया मुसलमानों ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास के फौरन बाद उनके पवित्र परिजनों से हदीसें हासिल करना शुरू कर दी थीं। हज़रत मुहम्मद (स) के स्वर्गवास के बाद से यह काल लगभग 250 वर्षों तक जारी रहा।
शेख कुलैनी ने जिस काल में हदीसें संकलित करने का काम शुरू किया था वह काल ग़ैबते सुगत का था। यह एसा काल था जब इमाम मेहदी के विशेष प्रतिनिधियों के माध्यम से उनसे संपर्क की संभावना पाई जाती थी। उसी काल में एसे मुहद्दिस अर्थात हदीसों को बयान करने वाले भी मौजूद थे जिन्होंने सीधे तौर पर इमाम हादी और इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम से हदीसें सुनी थीं। यही वह दौर था जिसमें आखिरी इमाम के विशेष प्रतिनिधि पाए जाते थे जो इमाम तथा जनता के बीच संपर्क का विश्वसनीय माध्यम थे। इस प्रकार शेख कुलैनी के पास इमाम से संपर्क की संभावना मौजूद थी।
शोध कर्ताओं का कहना है कि शेख कुलैनी, "ग़ैबते सुग़रा" जैसे अति संवेदनशील काल में जीवन व्यतीत कर रहे थे। वे अपने काल की आवश्यकताओं से भलिभांति अवगत थे। उन्होंने अपने समय में धर्म के भीतर फेरबदल को समझ लिया था इसलिए हदीसों को एकत्रित करने का काम उन्होंने बहुत ही गंभीरता से शुरू कर दिया था। शेख कुलैनी का मुख्य उद्देश्य यह था कि लोग पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सही कथनों से अवगत होकर उचित मार्ग का चयन करें और उसपर आगे बढ़ते रहें। हदीसों को एकत्रित करने के लिए शेख कुलैनी ने बहुत से क्षेत्रों की यात्राएं कीं। उनको जहां भी सही हदीस मिलने की संभावना होती थी वे उस स्थान की यात्रा के लिए निकल पड़ते थे। हालांकि कुलैनी के काल में यात्रा करना बहुत कठिन काम था क्योंकि उस काल में संसाधनों की बहुत कमी थी। फिर भी सही हदीसों की तलाश में कुलैनी अलग-अलग स्थानों की यात्राएं करते थे।
शेख कुलैनी के काल में न केवल धर्मगुरू और विद्धान कठिनाइयों में थे बल्कि आम लोग भी समस्याओं में घिरे हुए थे। इसका मुख्य कारण यह था कि उस काल में कोई भी मासूम नहीं था जिसके माध्यम से सही जानकारी हासिल की जा सके। बाद में शेख कुलैनी की हदीसों का संकलन, "काफ़ी" के नाम से उपल्बध हुआ। एक हज़ार साल गुज़रने के बाद भी आज लोग इससे लाभान्वित हो रहे हैं। काफ़ी लिखने में शेख कुलैनी ने 20 वर्षों का समय व्यतीत किया। काफ़ी की गणना शिया मुसलमानों की फ़िक़्ह हदीस की अति विश्वसनीय पुस्तकों में होती है। हदीसों की यह बहुत ही विश्वसनीय पुस्तक हैं।