क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-717
क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-717
وَهُوَ اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ لَهُ الْحَمْدُ فِي الْأُولَى وَالْآَخِرَةِ وَلَهُ الْحُكْمُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ (70)
और वही अल्लाह है जिसके सिवा कोई पूज्य नहीं। लोक-परलोक सारी प्रशंसा उसी के लिए है और शासन का अधिकार भी उसी को है और तुम उसी की ओर पलटाए जाओगे। (28:70)
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ جَعَلَ اللَّهُ عَلَيْكُمُ اللَّيْلَ سَرْمَدًا إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَنْ إِلَهٌ غَيْرُ اللَّهِ يَأْتِيكُمْ بِضِيَاءٍ أَفَلَا تَسْمَعُونَ (71) قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ جَعَلَ اللَّهُ عَلَيْكُمُ النَّهَارَ سَرْمَدًا إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَنْ إِلَهٌ غَيْرُ اللَّهِ يَأْتِيكُمْ بِلَيْلٍ تَسْكُنُونَ فِيهِ أَفَلَا تُبْصِرُونَ (72) وَمِنْ رَحْمَتِهِ جَعَلَ لَكُمُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ لِتَسْكُنُوا فِيهِ وَلِتَبْتَغُوا مِنْ فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ (73)
(हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि क्या तुमने (कभी) सोचा है कि यदि ईश्वर प्रलय के दिन तक सदा के लिए तुम्हारे लिए रात ठहरा दे तो अल्लाह के सिवा कौन पूज्य है जो तुम्हारे लिए कोई प्रकाश ले आए? तो क्या तुम सुनते नहीं? (28:71) (हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि क्या तुमने (कभी यह भी) सोचा है कि अगर ईश्वर प्रलय के दिन तक सदा के लिए तुम्हारे लिए दिन ठहरा दे तो अल्लाह के सिवा कौन पूज्य है जो तुम्हारे लिए कोई रात ले आए कि जिसमें तुम आराम कर सको? तो क्या तुम देखते नहीं? (28:72) और यह उसकी दया व कृपा है कि उसने तुम्हारे लिए रात और दिन बनाए ताकि तुम उसमें (रात में) आराम पाओ और (दिन में) उसकी कृपा से (रोज़ी) तलाश करो, शायद तुम कृतज्ञ हो जाओ। (28:73)
وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَائِيَ الَّذِينَ كُنْتُمْ تَزْعُمُونَ (74) وَنَزَعْنَا مِنْ كُلِّ أُمَّةٍ شَهِيدًا فَقُلْنَا هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ فَعَلِمُوا أَنَّ الْحَقَّ لِلَّهِ وَضَلَّ عَنْهُمْ مَا كَانُوا يَفْتَرُونَ (75)
और (हे पैग़म्बर!) याद कीजिए उस दिन को जब ईश्वर उन्हें पुकारेगा और कहेगा, कहाँ है मेरे वे मेरे साझीदार, जिनका तुम्हें दावा था? (28:74) और हम हर समुदाय में से एक (ज्ञानी व न्यायप्रेमी) गवाह निकालेंगे और (अनेकेश्वरवादियों से) कहेंगेः (अनेकेश्वरवाद के लिए) अपना तर्क लाओ। तब वे जान लेंगे कि सत्य ईश्वर की ओर से है और जो कुछ वे गढ़ते थे, वह सब उनसे गुम होकर रह जाएगा। (28:75)