ईरानी संस्कृति और कला- 24
आपको याद होगा कि पिछले कार्यक्रम में हमने यह बताया कि ईरान में बाज़ार के वजूद का इतिहास हज़ारों साल पुराना है।
ईरान के प्राचीन शहरों में हमेशा पारंपरिक बाज़ारों का वजूद रहा है। आज भी उनमें से कुछ में अतीत की भांति लेन-देन व क्रय विक्रय होता है। ईरान में बाज़ार उस स्थान को कहते हैं जहां एक मार्ग पर दोनों ओर लाइन से दुकानें हों और वे आपस में छत से जुड़ी हों। शायद इस सादी सी परिभाषा से ईरानी बाज़ार का सौंदर्य अच्छी तरह चरितार्थ नहीं होता। बाज़ारों की सुंदर वास्तुकला, वहां मौजूद विविधतापूर्ण वस्तुएं और बाज़ार में प्रचलित विशेष शिष्टाचार ने इसे ईरान के दर्शनीय स्थल में बदल दिया है। अतीत में बहुत पहले से अब तक जिस पर्यटक या मुसाफ़िर ने ईरान का सफ़र किया है, उसने ईरानी बाज़ार का भ्रमण किया है।
आठवीं हिजरी क़मरी बराबर चौदहवीं ईसवी शताब्दी के मोरक्को के दुनिया भर में मशहूर पर्यटक व लेखक इबने बतूता ने अपने यात्रा वृत्तांत में ईरान के अपने सफ़र का उल्लेख किया है। उन्होंने अपने यात्रा वृत्तांत में ईरानी बाज़ार की रौनक़, वहां नेमतों की भरमार और ख़ास तौर पर बाज़ारों की इमारतों की सुदंर वास्तुकला का उल्लेख करते हुए उसे अद्वितीय बताया है। इबने बतूता ने इस बात को स्वीकार किया है कि ईरान के तबरीज़ शहर के बाज़ार को देख कर हथप्रभ रह गए थे। वह तबरीज़ के आभूषण बाज़ार का वर्णन करते हुए कहते हैं कि उसे क़ैसरिये कहते थे। इबने बतूता के यात्रा वृत्तांत में आया हैः "जब मैं तबरीज़ के आभूषण बाज़ार में गया तो नाना प्रकार के रत्न देख कर आंखे फटी की फटी रह गयीं। दुकानों पर नौकर शानदार कपड़े पहने खड़े हुए थे जो महिलाओं को रत्न दिखाते थे। तबरीज़ के बाज़ार की विभिन्न इकाइयां एक दूसरे से जुड़ी हुयी थीं। बाज़ार के बीचों बीच में बहुत बड़ा प्रांगणथ जिसके बीच बहुत से पुराने पेड़ लगे हुए थे। बाज़ार की इमारतें दो मंज़िला थीं जो प्रांगण के चारों ओर बनी हुयी थीं। उन इमारतों में आभूषण बनाने के कारख़ाने बने हुए थे।"
फ़्रांसीसी पर्यटक मैडम द्रूती ने वर्ष 1961 में तबरीज़ शहर का भ्रमण किया था। उन्होंने अपनी किताब पूरब की यादों में तबरीज़ के बाज़ार का इन शब्दों में वर्णन किया हैः "बाज़ार की इमारतों की छत ईंट की मेहराबी डीज़ाइन की थीं। ये मेहराबी डीज़ाइन थोड़ी थोड़ी दूरी पर बनी हुयी थीं। छतों में बड़े बड़े रौशनदान बने हुए थे यहां तक कि बदली के मौसम में भी बाज़ार के भीतर रौशनी रहती थी। जहां तक निगाह जाती दुकान ही दुकान नज़र आती थी। हम बाज़ार देखने के लिए चल पड़े। लगभग 50 दुकानें मर्दाना कोट पैंट और कपड़े की थीं। दसियों दुकानें जूते की थीं। इसके साथ ही घरेलू इस्तेमाल की चीज़ें भी बिकती थीं। बाज़ार में विभिन्न प्रकार के मसाले मुंह खुले थैले में रखे हुए थे जिसकी सुगंध हवा में फैली हुयी थी।"
बाज़ार में दुकान के लिए एक शब्द हुजरा का इस्तेमाल होता है। दुकान यूं तो दिखने में सबसे सादी और छोटी नज़र आती है लेकिन यह बाज़ार का सबसे अहम तत्व होती है। आम तौर पर दुकान का क्षेत्रफल एक जैसा नहीं होता। औसतन दुकानें 10 से 20 वर्गमीटर के क्षेत्रफल पर बनी हुयी थीं। ग्राउंड फ़्लोर पर दुकानों से ग्राहकों को वस्तुएं बेची जाती थीं जबकि पहले मंज़िले पर बने कमरे वर्कशॉप या गोदाम के रूप में इस्तेमाल होती थीं।
कारवांसराय को ईरानी बाज़ारों की वास्तुकला की डीज़ाइन का सबसे अहम भाग समझना चाहिए। कारवांसराय संभवता बाज़ार में दुकानों की लंबाई में स्थिति सीमित होने की वजह से वजूद में आयीं। आज अगर किसी सड़क पर बहुत अधिक व्यापार होता है तो धीरे धीरे दुकानों के पीछे कई मंज़िला शॉपिंग सेंटर खुल जाते हैं जिससे सड़क की व्यापारिक क्षमता बढ़ जाती है। अतीत में अगर किसी शहर के मुख्य बाज़ार का दायरा बढ़ाया जाता था तो मुख्य मार्ग के पीछे कुछ कारवांसराय बनायी जाती थीं।
बीसवीं शताब्दी के मध्य से जब खुली चौपहिया गाड़ी, घोड़ागाड़ी तथा कारवां, परिवहन के सिस्टम से ख़त्म होने लगे तो इन जगहों को सरा कहा जाने लगा। सरा ऐसे व्यापारिक स्थल को कहते थे जहां एक केन्द्रीय प्रांगण होता और उसके चारों ओर दुकानें बनती थीं। ईरानी बाज़ार की शब्दावली में इस तरह की जगह के लि तीमचे नामक शब्द भी इस्तेमाल होता था और आज भी यह शब्द इस्तेमाल होता है। इन जगहों के सुरक्षित होने की वजह से क़ालीन जैसी क़ीमती वस्तु को बाज़ार में लाने का काम आसान हो जाता था। काशान का अमीनुद्दोले तीमचा, तेहरान का हाजिबुस सुल्मान तीमचे और क़ज़वीन का हाज रज़ा तीमचे इस तरह के बाज़ार के मशहूर व सुंदर नमूने हैं जिन्हें पारंपरिक ईरानी वास्तुकला के अनुसार बनाया गया है।
ईरानी बाज़ार को कई प्रकार में बांटा जा सकता है। तेहरान का बाज़ार लंबे समय में वजूद में आया इसलिए इसका कोई विशेष नक़्शा और डिज़ाईन नहीं है जबकि इसके विपरीत ऐसे भी बाज़ार हैं जिन्हें किसी विशेष दौर में बनाया गया और उनका नक़्शा व डिज़ाईन भी बहुत सुव्यवस्थित है। शीराज़ का बाज़ारे वकील और किरमान का बाज़ारे गंजअली बाज़ार इस तरह के बाज़ार के नमूने हैं।
तेहरान का बाज़ार उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में फ़त्हअली शाह के शासन काल में पुराने तेहरान के केन्द्र में बनाया गया। तेहरान के बाज़ार को तत्कालीन संगलज और ऊदलाजान मोहल्लों के बीच में बनाया गया जिसकी रौनक़ में शासक नासिरुद्दीन शाह के दौर में चांर चांद लगे।
बाज़ार की इमारत अभी भी अपनी उसी वास्तुकला के साथ सुरक्षित है जिसमें घुमावदार गलियारे, मेहराबी छतें और वेन्टिलेशन का प्राचीन सिस्टम मौजूद है। तेहरान का बाज़ार अपने वजूद के आरंभ में ऐसा नहीं था। समय गुज़रने के साथ इसमें विस्तार हुआ। समय के साथ इसमें सराय, एक के भीतर एक व एक दूसरे से जुड़े हुए बाज़ार वजूद में आते रहे। इसी तरह तेहरान के बाज़ार में चाय का होटल, पारंपरिक व्यायामशाला, हम्माम, इमामबाड़ा और लोगों के पानी पीने के लिए विशेष सक़्क़ाख़ाने नामक स्थान बने। हर भाग में विशेष व्यवसाय के साथ ही मस्जिद, हम्माम और इमामबाड़ा भी होता था जहां विशेष धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठान आयोजित होते थे।
बाज़ार की वास्तुकला इस तरह की है कि बाज़ार की इमारत ठंडक के मौसम गर्म और गर्मी के मौसम में ठंडी रहती है। इसलिए अतीत में बहुत अधिक दूर नहीं, बाज़ार लोगों के एक दूसरे से मिलने का वातानुकूलित स्थान था। लोग बाज़ार में मिलते और एक दूसरे के हालात से अवगत होते थे। सामाजिक व राजनैतिक ख़बरें उन्हें बाज़ार में मिलती थी। इस तरह तेहरान के केन्द्र में बाज़ार एक शोरग़ुल वाले शहर की तरह उनके दिल की धड़कन बन गया।
तेहरान के बाज़ार में अनेक कारवांसराय हैं। इनकी इमारतें एक दूसरे से मिलती जुलती हैं। तेहरान के बाज़ार में एक चौकोर प्रांगण है जिसके बीच में एक बड़ा सा हौज़ है। इस बीच नासिरुद्दीन शाह के शासन काल में बनने वाली हाजिबुद्दोला नामक कारवांसराय सबसे ज़्यादा दर्शनीय है। यह एक बहुत बड़ी कारवांसराय है। इसके द्वार सात रंग की टाइलों से सुसज्जित हैं। इस बाज़ार में सुबह से शाम तक सजावट व आरामदायक चीज़ों में रुचि रखने वालों का तांता बंधा रहता है। इस बाज़ार के एक भाग में आपको विदेशी ग्राहक भी दिखेंगे जो ईरान की एंटीक चीज़ों में रूचि रखते हैं। इतिहास की किताबों में इस कारवांसराय का इन शब्दों में वर्णन हुआ हैः "कहीं अपनी वस्तुओं का प्रचार करने वाले विक्रेताओं की आवाज़ सुनाई देती हैं तो कहीं चबूतरे पर खड़े होकर शायर अपना शेर पढ़ता दिखाई देता है तो कहीं नई नई चीज़ों की ख़रीदारी में व्यस्त महिलाओं की आवाज़ें सुनायी देती है। सूरज डूबने के बाद, दुकानों के दरवाज़े एक एक करके बंद होने लगते हैं और उन पर ताले लटकने लगते हैं। रौशनी के साए में लोग बाज़ार से जाने लगते हैं और एक घंटा भी नहीं गुज़रता कि पूरा बाज़ार सायं सांय करने लगता है। सिर्फ़ बाज़ार और उसकी सुंदर वास्तुकला देखने वाले को अपनी ओर सम्मोहित करती है।"
विशेष धार्मिक संस्कार भी बाज़ार की गतिविधियों का हिस्सा होते थे। मोहर्रम में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शोकसभाएं आयोजित होती थीं। हर व्यवसाय से जुड़े लोगों के अपने अपने विशेष दस्ते होते थे। इसलिए हर गलियारे में एक मस्जिद और इमामबाड़ा बनाया जाता था। इसकी एक मिसाल तेहरान के विशाल बाज़ार में सरकार द्वारा बनाया गया इमामबाड़ा था। यह इमामबाड़ा क़ाजारी शासन काल में बनाया गया। जिसकी इमारत छत की दृष्टि से सबसे बड़ी इमारत थी। इस इमामबाड़े में मोहर्रम में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत की घटना को अभिनय के ज़रिए दर्शाया जाता था जिसे फ़ारसी में ताज़िया कहते हैं। शीराज़ का बाज़ारे वकील, बाज़ारे किरमान या बाज़ारे इस्फ़हान इनमें से हर एक में मस्जिद और इमामबाड़े मौजूद हैं। इन बाज़ारों में काम करने वाले आम तौर पर इन शोक सभाओं का आयोजन करते हैं। इस तरह व्यापारियों की बोलियों, धार्मिक संस्कारों और नैतिकता के बीच एक मज़बूत संबंध दिखायी देता है। ज़रूरतमंद लोगों की मदद, लोगों के साथ उदारता से पेश आने और लेन-देन में न्याय धार्मिक आदेशों का पालन, वे चीज़ें हैं जो प्राचीन ईरानी बाज़ार की संस्कृति का भाग थीं और अभी भी बाक़ी हैं।