Jan ०६, २०१९ १७:२४ Asia/Kolkata

प्रोफ़ेसर Marvin Zonis मार्विन ज़ोनिस अमरीका के शिकागो विश्वविद्यालय में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर हैं।

उन्होंने तानाशाह रज़ा पहलवी के बारे में एक किताब लिखी है जिसमें इस डिक्टेटर के व्यक्तित्व के मनोवैज्ञानिक आयाम की गहन समीक्षा की है।  उन्होंने अपनी किताब "शाह की पराजय" में रज़ा पहलवी के बचपन से लेकर उसकी मृत्यु तक के काल का उल्लेख किया है।  मार्विन ने मुहम्मद रज़ा शाह के सत्ताकाल में एक अन्य किताब लिखी जिसका नाम था "ईरान के प्रमुख राजनेता"।  उनकी यह किताब ईरान के सामाजिक तानेबाने के बारे में है।

मार्विन ने मुहम्मद रज़ा शाह का चार बार इन्टरव्यू किया था।  वे उन विचारकों में से हैं जिन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति के कारणों की मनोवैज्ञानिक दृष्टि से समीक्षा की है।  हालांकि ईरान की इस्लामी क्रांति को समझने के लिए केवल मुहम्मद रज़ा शाह के व्यक्तित्व की मनोवैज्ञानिक दृष्टि से समीक्षा पर्याप्त नहीं है फिर भी हम उनके दृष्टिकोण की समीक्षा करेंगे।

ईरान की इस्लामी क्रांति के संदर्भ में जो दृष्टिकोण पेश किये जाते हैं उनमें जो बात संयुक्त रूप में कही जाती है वह यह है कि ईरान की जनता मूल रूप से धार्मिक प्रवृत्ति की है।  यही कारण है कि ईरान की इस्लामी क्रांति का मुख्य कारक धर्म है।  कुछ विचारक यह भी कहते हैं कि ईरानी राष्ट्र, अत्याचार के मुक़ाबले में धर्म का प्रयोग करता आया है।  मार्विन ज़ोनिस इस बिंदु की ओर संकेत करते हैं कि पहलवी शासन ने प्रयास किया था कि विभिन्न अवसरों पर ईरान में धर्म की भूमिका को प्रभावहीन दर्शाया जाए।

मार्विन ज़ोनिस अपनी किताब में लिखते हैं कि पहलवी परिवार के सत्ता में पहुंचने की पचासवीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में मुहम्मद रज़ा शाह ने किसी भी अवसर पर ईरानियों के जीवन में इस्लाम के प्रभाव का उल्लेख नहीं किया।  वह ईरान में इस्लाम के प्रचार एवं प्रसार के लिए किसी भी बात के लिए कटिबद्ध नहीं था।  मुहम्मद रज़ा शाह ने अपनी धर्म विरोधी सोच को सिद्ध करने के लिए ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता से तीन साल पहले 19 मार्च सन 1976 को पहलवी परिवार के सत्ता में पहुंचने की पचासवीं वर्षगांठ के अवसर पर ईरान के कैलेण्डर को बदल दिया था।  इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि वास्तव में मार्विन ज़ोनिस परोक्ष रूप में यह बताना चाहते हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति के आने मुख्य वाले कारकों में से एक, मुहम्मद रज़ा शाह की ओर से धर्म की अनेदखी भी है।

मार्विन का यह भी मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति के आने वाले कारकों में से एक कारण शाह के भीतर आत्मविश्वास की कमी थी।  वह दूसरों के समर्थन पर भरोसा करता था।  उनका कहना है कि बचपन और नौजवानी का काल महिलाओं के बीच में गुज़ारने और तानाशाह पिता की उपस्थिति के कारण मुहम्मद रज़ा शाह के भीतर आत्मविश्वास की बहुत कमी थी।  मार्विन कहते हैं कि जबतक उसके निकटवर्ती उसे आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए प्रेरित किया करते थे उस समय तक तो कोई समस्या नहीं थी और सबकुछ ठीक था किंतु इस्लामी क्रांति के कारण शाह को प्रेरणा देने वाले तत्व भाग खड़े हुए।  इन में से कुछ के नाम इस प्रकार हैं "असदुल्लाह अलम" अशरफ़ और अमरीकी समर्थन पर भरोसा।  मार्विन का कहना है कि यह वे तत्व थे जो रज़ा शाह को मानसिक रूप में मज़बूती दिया करते थे किंतु जब इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले की घटनाएं घटीं तो शाह को आत्मविश्वास देने वाले तत्व भाग खड़े हुए।  इन लोगों के भागने की स्थिति में मुहम्मद रज़ा शाह की वास्तविक स्थिति सबके सामने आई और उसकी अक्षमता सार्वजनिक हो गई।

हालांकि मार्विन की यह बात तो सही है कि मुहम्मद रज़ा शाह के भीतर आत्मविश्वास की बहुत कमी थी और वह पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर था किंतु यह बात सही नहीं है कि आत्मविश्वास में कमी के कारण इस्लामी क्रांति को रोकने के लिए उसने क्रांतिकारियों के विरुद्ध हिंसक कार्यवाहियां नहीं कीं।  उदाहरण स्वरूप सन 1342 से 1357 हिजरी शमसी की हिंसक घटनाएं है।  1342 में क़ुम के मदरसे फ़ैज़िया पर हमला, 15 ख़ुरदाद 1345 की घटना, इमाम ख़ुमैनी को निर्वासित करना, धार्मिक गुरूओं और क्रांतिकारियों की गिरफ़्तारी और उन्हें जेलों में डालना, 17 शहरीवर1357 की हिसंक कार्यवाही और 19 देई जैसी घटनाएं यह बताती हैं कि शाह ने अपने शासनकाल में कितनी तानाशाही की।

मार्विन ज़ोनिस कहती हैं कि शाह, अमरीका पर बहुत भरोसा करता था। वह अमरीका को अपना सबसे बड़ा समर्थक मानता था।  यही वजह है कि इस्लामी क्रांति के आंरभिक दिनों में उसने अपने एक सलाहकार से कहा था कि जबतक अमरीका मेरा समर्थन करता रहेगा उस समय तक मैं जो भी चाहूंगा करूंगा और कोई मुझको नहीं रोक सकता।  मुझको कोई भी मेरी जगह से हिला भी नहीं सकता।  यह एक वास्तविकता है कि शाह के काल में ईरान के भीतर विदेशियों विशेषकर अमरीकियों का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ चुका था।  उस काल में ईरान के भीतर बड़े पदों को लोगों के निर्धारण, सांसदों को हटाने, संसद में क़ानून पास करने या न करने तथा देश की नीतियों के निर्धारण में विदेशियों की भूमिका पूर्ण रूप से स्पष्ट थी।

मार्विन के अनुसार शाह के निकट संयुक्त राज्य अमरीका का स्थान पिता की भांति था।  हालांकि वे यह भी लिखते हैं कि शाह का अमरीका पर आवश्यकता से अधिक भरोसा ही उसके पतन का कारण बना।  मुहम्मद रज़ा शाह ने अमरीका पर भरोसे के कारण लोगों के समर्थन के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया।  यही कारण हुआ कि जनता में उसका कोई स्थान नहीं था और वह पूर्ण रूप से जनसमर्थन खो बैठा था।

शाह के संबन्ध में अमरीकी दृष्टिकोण के बारे में मार्विन लिखते हैं कि अमरीकियों ने शाह के बारे में दोहरा मानदंड अपना रखा था।  कुछ लोगों का यह मानना था कि शाह ऐसा मानसिक बीमार है जिसका उपचार अमरीका के हाथ में है।  हालांकि कुछ लोग यह भी कहते थे कि शाह बहुत ही शक्तिशाली है।  उनका लिखना है कि शाह के सत्ता काल में अमरीका ने स्वयं को ईरान में बहुत अधिक उलझा रखा था।  शाह को एक तानाशाह बनाने में अमरीका की प्रमुख भूमिका थी।  इसका कारण यह था कि उन्होंने उसको यह विश्वास दिला दिया था कि ईरान में तुमही सबकुछ हो।

मार्विन लिखते हैं कि अमरीका पर अत्यधिक भरोसे के कारण शाह, ईरानी जनती की मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं था।  वे शाह की शक्ति के समाप्त होने का मुख्य कारण यह बताती हैं कि वह ईरानी जनता की सांस्कृतिक और धार्मिक मांगों के पूरा करने में सफल नहीं रहा।  हालांकि इस मामले में इमाम ख़ुमैनी का जनता में बहुत अधिक प्रभाव था और वे ही जनता के वास्तविक नेता थे।  उनका कहना है कि संसार के विभिन्न समाजों के इतिहास में हमें एसे कई व्यक्तित्व मुहम्मद रज़ा शाह जैसे मिल जाएंगे जिनको क्रांतियां खा गईं।  इसका मुख्य कारण उनका दूसरों पर निर्भर होना और जनता से दूरी थी।  इसी के साथ कार्यक्रम का समय समाप्त होता है आपसे अनुमति चाहते हैं।

 

 

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