शौर्यगाथा-2
हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि तानाशाह सद्दाम ने 22 सितंबर 1980 को क्यों और कैसे ईरान पर हमला किया था।
इस प्रश्न का उत्तर सरल नहीं है। सद्दाम ने युद्ध आरंभ करने के जो कारण बताए वे विदित रूप से तो सीमा संबन्धी विवाद था। लेकिन जब इस बारे में ग़ौर किया जाए तो पता चलेगा कि ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के 19 महीनों के बाद सद्दाम ने ईरान पर जो युद्ध थोपा था उसके बहुत से से अन्य कारण हैं जो सद्दाम के तर्क से मेल नहीं खाते। युद्ध थोपने का मुख्य कारण ईरान की नई इस्लामी शासन व्यवस्था को गिराना था।
इस्लामी गणतंत्र ईरान पर सद्दाम के हमले की समीक्षा तीन स्तर पर की जा सकती है। राष्ट्रीय स्तर, क्षेत्रीय स्तर और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहले हम राष्ट्रीय स्तर की समीक्षा करते हुए यह देखेंगे कि सद्दाम ने ईरान पर युद्ध थोपने के लिए जो तर्क पेश किया है उसमें कितनी जान है? इस बात को समझने के लिए संक्षिप्त रूप में ईरान तथा इराक़ के सीमा विवाद को गहराई से देखना होगा। यह विषय उस काल की ओर पलटता है जब इराक़, उस्मानी साम्राज्य के अधीन था। उस समय से लेकर सन 1932 में इराक़ की स्वतंत्रता के बाद भी सीमावर्ती मतभेद बाक़ी रहे। ईरान तथा इराक़ के सीमावर्ती मतभेदों में सबसे अहम मतभेद, "अरवंद रूद" नदी का स्वामित्व और उसमें नौकाओं का चलाया जाना था। इराक़ का कहना था कि अरवंद रूद नदी हमारी है अतः इसमें नौकाओं के चलाने के अधिकार भी केवल हमको ही है। सद्दाम इन बातों को युद्ध थोपने के तर्क के रूप में पेश करता है। यहां पर यह बताना रूचिकर होगा कि मुहम्मद रज़ा पहलवी के काल में ईरान, क्षेत्र में पश्चिम का सबसे महत्वपूर्ण घटक था। अमरीका की ओर से ईरान के खुलकर राजनैतिक तथा सैनिक समर्थन ने तेहरान को फार्स की खाड़ी के क्षेत्र की बड़ी शक्ति में बदल दिया था। एसी स्थिति में इराक़ में ईरान से टकराने की हिम्मत नहीं थी। उस समय अमरीका ने क्षेत्र में ईरान को अपने हितों का रक्षक बना रखा था। इन्ही परिस्थितियों के अन्तर्गत सन 1975 में इराक़ ने एक समझौता करके ईरान से अपने सीमा संबन्धी विवाद समाप्त कर लिए थे। इस समझौते का नाम "अलजज़ायर-1975" समझौता था। हालांकि इस समझौते को करने वाले सद्दाम इससे खुश नहीं थे और इसको तोड़ने के लिए हमेशा कोई न कोई बहाना ढूंढते रहते थे। जब ईरान में इस्लामी क्रांति आई और इसके कारण देश में उत्पन्न अशांति को देखकर सद्दाम के मन में यह खयाल आया कि अलजज़ायर समझौते को तोड़ने और ईरान पर हमला करने के लिए बहुत उपयुक्त समय है। इसी बात के दृष्टिगत 22 सितंबर 1980 में ईरान पर हमला कर दिया।

बेरूत में इराक़ के राजदूत ने "अन्नहार" समाचारपत्र को नवंबर 1979 में दिये साक्षात्कार में कहा था कि इराक़ और ईरान के संबन्धों को सुधारने के लिए "अलजज़ायर-1975" समझौते की पुनर्समीक्षा ज़रूरी है। सद्दाम ने अप्रैल 1980 में अपने एक संबोधन में ईरान पर थोपे गए युद्ध को रोकने की एक शर्त, अरवंद रूद पर इराक़ के पूर्ण नियंत्रण को बताया जो 1975 के अलजज़ायर समझौते से पहले की स्थिति थी। सद्दाम ने बड़ी दृढ़ता से यह बात कही थी कि इराक़, ईरान के साथ अपने सारे संबन्धों का समाधान बलपूर्ण कर सकता है।
सद्दाम ने ईरान पर युद्ध थोपने के आरंभिक दिनों में एक बयान जारी करके युद्धविराम के लिए कुछ शर्तों का एलान किया था। सद्दाम की ओर से जिन शर्तों का एलान किया गया था उनमें से एक ईरान की ओर से सद्दाम द्वारा निर्धारित इराक़ की सीमाओं को स्वीकार करना, इराक़ के मामलों में हस्तक्षेप न करना और फ़ार्स की खाड़ी में स्थित तीन द्वीपों तुंबे कूचक, तुंबे बुज़ुर्ग और अबूमूसा को अरब देशों को देना था। विशेष बात यह है कि सद्दाम ने इन तीन द्वीपों को अरब देशों को देने की बात एसी स्थिति में कही थी कि जब कई हज़ार पुराने इतिहास से यह सिद्ध होता है कि फ़ार्स की खाड़ी में स्थित तीनों द्वीप तुंबे कूचक, तुंबे बुज़ुर्ग और अबूमूसा ईरान से संबन्धित रहे हैं। बहुत पहले यह द्वीप ब्रिटिश सैनिकों के नियंत्रण में आ गए थे। सन 1971 में जब ब्रिटेन के सैनिक फ़ार्स की खाड़ी छोड़कर चले गए तो अपनी जगह को वे अमरीकियों को दे गए। यह द्वीप पुनः ईरान के नियंत्रण में आ गए। बाद में संयुक्त अरब इमारात ने इन तीन ईरानी द्वीपों पर अपना दावा करना शुरू कर दिया। ईरान से द्वेष रखने वाले अरब देशों ने संयुक्त अरब इमारात का समर्थन करना शुरू कर दिया। सद्दाम ने अरब शासकों का समर्थन प्राप्त करने के उद्देश्य से इन तीनो द्वीपों को अरब देशों को दिये जाने की शर्त को युद्धबंदी की शर्तों में रखा था।
ईरान पर सद्दाम के हमले का लक्ष्य केवल ईरान के कुछ भूभाग को हथियाना नहीं था बल्कि मुख्य उद्देश ईरान की नवगठित इस्लामी शासन व्यवस्था को गिराना था। इसी के साथ सद्दाम की हार्दिक इच्छा यह भी थी कि ईरान की इस्लामी क्रांति से पहले मध्यपूर्व में मुहम्मद रज़ा पहलवी के काल में ईरान की जो अहमियत अमरीका की दृष्टि में थी वह अब उस की हो जाए। इसके लिए सद्दाम ने हमलों में अत्यधिक बल का प्रयोग भी किया था। अपने इन कामों के बाद सद्दाम यह सोचने लगा था कि वर्तमान परिस्थितियों में वह क्षेत्र में ईरान का विकल्प बनकर उभरेगा और वह मुहम्मद रज़ा पहलवी का स्थान ले लेगा।

इस संबन्ध में अमरीकी पत्रिका न्यूज़वीक ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था कि सद्दाम का मुख्य लक्ष्य न केवल फ़ार्स की खाड़ी पर नियंत्रण स्थापित करना था बल्कि वह पूरे मध्यपूर्व का बादशाह बनने के सपने देख रहा था। उस समय की परिस्थितियां कुछ एसी थीं कि क्षेत्र के कुछ महत्वपूर्ण देश अलग-अलग तरह की समस्याओं में घिरे हुए थे। कैंप डेविड समझौता करने के कारण मिस्र, अलग-थलग पड़ चुका था। सीरिया को आंतरिक चुनौतियों का सामना था। ईरान जो एक समय में क्षेत्र का मुखिया माना जाता था इस समय अशांति से मुक़ाबला कर रहा था। एसे में सद्दाम का यह मानना था कि इस ख़ाली जगह की भरने के लिए इराक़ सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है। उस समय इराक़ की जनसंख्या तेरह मिलयन थी और उसके पास बड़ी संख्या में अत्याधुनिक हथियार थे। यह हथियार उसको पूर्व सोवियत संघ ने उपलब्ध कराए थे। एसे में सद्दाम इराक़ को क्षेत्र के लिए सबसे उचित विकल्प मानने लगा था।

सद्दाम के एक साक्षात्कार से पता चलता है कि ईरान पर हमला करने से उसका मुख्य उद्देश्य, ईरान में नव गठित इस्लामी व्यवस्था को गिराना था। 12 नवंबर सन 1980 के अपने एक साक्षात्कार में सद्दाम ने कहा था कि हम ईरान के विघटित होने या टुकड़ों में बदलने से चिंतित नहीं हैं। सद्दाम ने कहा कि मैं स्पष्ट शब्दों में एलान करता हूं कि हम ईरान के टुकड़ों में बंट जाने के पक्षधर हैं। युद्ध आरंभ होने के आठ महीनों के बाद इराक़ के विदेशमंत्री तारिक़ अज़ीज़ ने कहा था कि हमारे लिए एक ईरान के मुक़ाबले में पांच छोटे-छोटे ईरान अधिक उपयुक्त हैं। उन्होंने कहा कि हम ईरान में हर प्रकार के उपद्रव का समर्थन करते हैं। हम ईरान के विरुद्ध यथासंभव प्रयास करेंगे। सन 1360 हिजरी शमसी में सद्दाम ने युद्ध के मोर्चे पर जाने वाले सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा था कि हम ईरान के भीतर हर प्रकार के विरोधियों को हथियार देने और हर प्रकार की सहायता करने के लिए तैयार हैं। सद्दाम ने कहा कि ख़ुज़िस्तान के अरबों, कुर्दों, बलोचों तथा राष्ट्रवादियों की मदद करने हर तैयार हैं। हमको ईरान की एकता और अखण्डता में कोई भी दिलचस्पी नहीं है। सद्दाम ने कहा कि यह हमारी रणनीति है और इसपर हम कटिबद्ध हैं।