Jan १२, २०१९ १७:१४ Asia/Kolkata

हमने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के पावन जीवन के कुछ पहलुओं की समीक्षा और विश्लेषण किया था।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने इमामत के उच्च स्थान को उस वक्त भी सिद्ध किया जब मामून अब्बासी ने उन्हें मदीना से मर्व आने का आदेश दिया। इसी तरह इमाम ने हर समय इमामत के उच्च स्थान को बयान व सिद्ध किया। जैसे जब उसने इमाम को अपना उत्तराधिकारी बनने का प्रस्ताव दिया परंतु चूंकि इमाम उसकी पाखंडी व शैतानी चालों को बहुत अच्छी तरह समझते थे इसलिए उन्होंने उसके इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया। अंत में इमाम को जब उसने मजबूर कर दिया तब इमाम ने उसके प्रस्ताव को इस शर्त के साथ स्वीकार किया था कि वह न तो किसी को नियुक्त करेंगे और न ही किसी को पदमुक्त करेंगे। यानी मामून अब्बासी की सरकार के किसी भी काम में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। इसी तरह इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने इमामत के स्थान को उस समय भी बयान किया जब मामून अब्बासी ने इमाम से ईदे फित्र की नमाज़ पढ़ाने के लिए कहा था। इमाम ने इस शर्त के साथ ईद की नमाज़ पढ़ाने स्वीकार किया था कि वह पैग़म्बरे इस्लाम की परम्परा व शैली में नमाज़ पढ़ायेंगे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी दूरगामी सोच, समझदारी और होशियारी से मामून अब्बासी की समस्त धूर्ततापूर्ण चालों पर पानी फेर दिया था।  

जिस समय इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम मर्व में मौजूद थे लोगों का एक गुट नगर की जामेअ मस्जिद में इमामत के बारे में बहस कर रहा था और उनमें से हर एक अपना एक अलग दृष्टिकोण पेश कर रहा था और उनके मध्य इमामत को लेकर काफी मतभेद था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के एक निकट साथी व अनुयाई ने इस दृश्य को अपनी आंखों से देखा था। उसने इमाम की सेवा में पहुंच कर सारी बात बताई। वह कहता है मेरी बातें सुनकर इमाम मुस्कराये और कहा इन लोगों ने इमामत की वास्तविकता को नहीं समझा। वास्तव में ईश्वर ने अपने चुने हुए पैग़म्बर का प्राण नहीं लिया किन्तु यह कि जब उनके धर्म को परिपूर्ण कर दिया और कुरआन को नाज़िल कर दिया। पैग़म्बरे इस्लाम की अंतिम हज यात्रा में ईश्वर ने इस आयत को नाज़िल किया कि आज हमने तुम्हारे धर्म को परिपूर्ण कर दिया और अपनी अनुकंपाओं को पूरा कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम धर्म को पसंद किया।

इमामत का विषय धर्म की परिपूर्णता का विषय है और पैग़म्बरे इस्लाम इस दुनिया से नहीं गये किन्तु यह कि धार्मिक बातों को लोगों के लिए बयान कर दिया और लोगों के लिए रास्ता स्पष्ट कर दिया और सत्य का रास्ता तय करने के लिए उन्होंने लोगों से वचन लिया और अली को अपने बाद लोगों का पथप्रदर्शक बताया और जिस चीज़ की भी कौम को ज़रूरत थी उसे नहीं छोड़ा किन्तु यह कि उसे बयान कर दिया। तो जो यह सोचे कि ईश्वर ने अपना धर्म पूरा नहीं किया है निः संदेह उसने ईश्वर की किताब रद्द की है और जो ईश्वर की किताब को स्वीकार न करे तो उसने कुफ्र किया है।

इसके बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी बात जारी रखते हुए उस गुट पर आपत्ति जताई जो ज्ञान के बिना इमामत के बारे में बहस कर रहा था। इमाम ने फरमाया” क्या ये लोग इमामत और क़ौम के मध्य उसके उच्च स्थान को जानते हैं, क्या उन्हें इमाम चुनने का अधिकार है? सच में इमामत का स्थान इससे बहुत ऊंचा है कि लोग अपनी सीमित बुद्धि से उसे समझ सकें या अपने विचारों व दृष्टिकोणों से उसकी वास्तविकता को पहचान सकें या अपने अधिकार से किसी को इमाम नियुक्त कर सकें। उसके बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उस बात की ओर संकेत किया जिसमें महान ईश्वर पैग़म्बरी के बाद इमामत का उच्च स्थान हज़रत इब्राहीम को प्रदान करता है। इमाम फरमाते हैं कि जब हज़रत इब्राहीम को इमामत दी जाती है तो वह खुश होते हैं और ईश्वर से कहते हैं कि क्या यह पद हमारी संतान को भी मिलेगा? तो आसमान से आवाज़ आई कि इमामत मेरा पद है और यह पद अत्याचारियों तक नहीं पहुंचेगा। उसके बाद इमाम ने फरमाया कि महान ईश्वर ने इस आयत के माध्यम से प्रलय के दिन तक के लिए हर अत्याचारी की इमामत को ग़लत करार दे दिया और इमामत ईश्वर के चुने हुए बंदों से विशेष है। उसके पश्चात इमाम ने फरमाया कुरआन कहता है कि इब्राहीम के निकट सबसे योग्य उनके अनुयाई और उन पर ईमान लाने वाले हैं और ईश्वर ईमान लाने वालों का अभिभावक है।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने पवित्र कुरआन की यह आयत बयान करने के बाद फरमाया" पैग़म्बरे इस्लाम ने ईश्वर के आदेश से हज़रत अली को इमाम नियुक्त किया और जो कुछ ईश्वर ने पैग़म्बर पर अनिवार्य किया था उन सब की महा ज़िम्मेदारी ज़िम्मेदारी हज़रत अली पर आ गयी और उसके बाद उनकी चुनी हुई संतान के मध्य इमामत को जारी किया। संक्षेप में इमामत प्रलय के दिन तक हज़रत अली की संतान के मध्य रहेगी। क्योंकि पैगम्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद ईश्वर की ओर से कोई दूसरा पैग़म्बर नहीं आया है। उसके बाद इमाम ने मर्व की जामेअ मस्जिद में बैठकर इमामत के बारे में बहस करने वाले अज्ञानी गुट की याद दिलाई और फरमाया तो ये अज्ञानी किस तर्क के आधार पर इमाम चुनते हैं? सच में इमामत, पैग़म्बरों और उनके उत्तराधिकारियों का स्थान है। इमामत ईश्वरीय पद और पैग़म्बरे इस्लाम की खिलाफत और अली का स्थान है और इमाम हसन और इमाम हुसैन की मिरास है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपने इन मूल्यवान बयानों के माध्यम से धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समस्त क्षेत्रों में इमामत की निर्णायक भूमिका को बयान कर दिया और फरमाया इमामत धार्मिक मामलों की ज़िम्मेदार, मुसलमानों के कार्यों को सुव्यवस्थित करने वाली, लोक -परलोक में भलाई और मोमिनों की शक्त का कारण है। बेशक इमामत इस्लाम का आधार व बुनियाद है। इमामत के प्रकाश में नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज और जेहाद व्यवहारिक होंगे और युद्ध में प्राप्त होने वाली चीज़ें एवं दान अधिक होंगे और ईश्वरीय आदेश लागू होंगे और इस्लामी व्यवस्था दूसरों के अतिक्रमण से सुरक्षित रहेगी। ईश्वरीय हराम व हलाल और इस्लामी सीमा यानी सज़ा के इस्लामी कानून इमामत की वजह से लागू होगें और धर्म की रक्षा की जायेगी और अच्छी नसीहतों के माध्यम से लोगों को उनके पालनहार की ओर आमंत्रित किया जायेगा।

इमाम की एक विशेषता मासूम होना है। यानी वह छोटे बड़े हर प्रकार के पाप से दूर होता है। यह वह विशेषता है जिसकी मार्गदर्शन और लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी आधार पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” इमाम समस्त पापों से पवित्र और अवगुणों से दूर होता है। इमाम की एक विशेषता यह है कि वह महान ईश्वर की ओर से ज्ञान से सुसज्जित होता है। दूसरे शब्दों में इमाम के ज्ञान का स्रोत महान ईश्वर होता है इसलिए उसके ज्ञान की तुलना किसी से नहीं की जा सकती। यही नहीं इमाम ज्ञान शिष्टाचार व अच्छे व्यवहार का प्रतीक होता है और वह उसकी शोभा होता है। इस संबंध में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” इमाम विशेष ज्ञान का स्वामी होता है और वह संयंमी होता है। इमाम को चाहिये कि वह धर्म और इस्लामी समाज की रक्षा करे। काफिर और मित्थ्याचारी धर्म और धार्मिक लोगों को आघात पहुंचाने के लिए सदैव घात में बैठे हैं। इस आधार पर इमाम को चाहिये वह इन सबका मुकाबला करे।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इस संबंध में फरमाते हैं” व्यवस्था की रक्षा और धार्मिक कार्यों को बेहतर बनाना, मुसलमानों को प्रतिष्ठित बनाना, मित्थ्याचारियों से युद्ध और कुफ्र करने वालों का अंत कर देना इमाम की ज़िम्मेदारी है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इसी प्रकार अपनी मूल्यवान बात को जारी रखते हुए यह सवाल करते हैं कि कौन है जो इमामत के स्थान को पहचान सके या कौन है जिसे इमाम के चयन की शक्ति व अधिकार है? इमाम का महान स्थान इन सबसे उच्च है। समस्त बुद्धियां इस वादी व घाटी में बेबस और समस्त नेत्र प्रकाशहीन हो गये हैं और समस्त महान हस्तियां छोटी हो चुकी हैं और समस्त शायर इनकी सराहना व प्रशंसा करने से अक्षम हैं और इनमें से कोई भी इमाम की एक विशेषता भी नहीं बयान कर सकता और सबने अपनी अक्षमता को स्वीकार किया है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इमाम के स्थान, महत्व और उसकी भूमिका को बयान करते रहते हैं परंतु चूंकि समय कम है इसलिए आज हम इस संबंध में इतना ही बयान करेंगे और आपका ध्यान कुछ बिन्दुओं की ओर आकृष्ट करना चाहेंगे। जिन बिन्दुओं को हम बयान करना चाहते हैं उनमें से एक यह है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने इमाम की विशेषता उस स्थिति में बयान की है जब मामून अब्बासी शासक है और वह भी मर्व की आमेअ मस्जिद में बयान किया है जो उसके शासन की राजधानी है। इमाम ने किसी प्रकार के भय के बिना इमाम की इन विशेषताओं को स्पष्ट शब्दों में बयान किया है। दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि समस्त इस्लामी संप्रदायों के दृष्टिकोणों के खिलाफ इमामत की बुनियाद पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन काल में ही पड़ गयी थी और पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने जीवन की अंतिम हज यात्रा में इस बात की घोषणा कर दी थी कि जिस-­ जिस का मैं मौला व स्वामी हूं उस- उस के अली मौला हैं।

एक अन्य बिन्दु, जिस पर इमाम ने ध्यान दिया, इमाम का महान स्थान है और प्रलय तक कोई भी अत्याचारी इस पद का पात्र नहीं होगा। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने इसी प्रकार अब्बासी शासकों की खिलाफत को न केवल ग़लत व अवैध करार दे दिया बल्कि उस पर प्रश्न चिन्ह भी लगा दिया।

एक अन्य बिन्दु, जिसकी ओर ध्यान देना ज़रूरी है, यह है कि इमामत ईश्वरीय पद है। यह पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी का पद है। इमामत, इमाम हसन और इमाम हुसैन की मिरास है। इस आधार पर खिलाफत केवल पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से विशेष है। इस बारे में अंतिम बिन्दु यह है कि इमाम के ही शासन काल में इस्लाम की समस्त शिक्षाएं एवं दंडनात्मक आदेश क्रियान्वित किये जायेंगे। केवल इमाम मासूम हैं जो ज़मीन पर ईश्वरीय प्रतिनिधि हैं।

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