Jan २६, २०१९ १६:२४ Asia/Kolkata

"सईद अमीर अर्जमंद" ईरानी विचारक व बुद्धिजीवी हैं जिन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति के घटित होने के कारणों का अध्ययन किया है।

उनके पास स्नातकोत्तर और डाक्ट्रेड की डिग्री है। वे कैलोफोर्निया विश्व विद्यालय में इस्लामी ज्ञान शिकागो विश्व विद्यालय में थियॉलॉजी विभाग के सहायक प्रोफ़ेसर हैं। अर्जमंद वर्ष 1988 से अब तक न्यूयार्क के एस्टोनिया क्षेत्र के ब्रोक विश्व विद्यालय में प्रोफेसर हैं। समाजशास्त्र के संबंध में भी ईरानी विचारक "सईद अमीर अर्जमंद" ने अध्ययन किया है इस बात के दृष्टिगत उन्होंने समाजशास्त्र को आधार बनाते हुए ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में भी अध्ययन किया है। इस संबंध में उन्होंने "जामेअ शनासी इस्लामे शीई" नाम की एक किताब भी लिखी है। उन्होंने इस किताब के एक भाग में ईरान में इस्लामी क्रांति के आने और इस्लामी व्यवस्था के गठन में शीया धर्म के प्रभाव पर प्रकाश डाला है। ऐसा प्रतीत होता है कि ईरानी विचारक "सईद अमीर अर्जमंद" अपने अध्ययन में जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेबर के विचारों से प्रभावित हैं।

 

डाक्टर सईद अमीर अर्जमंद फार्सी भाषी समाज के अध्ययन संघ के अध्यक्ष भी हैं। ईरान में मौजूद शीया विषय और इस्लामी क्रांति के आने में धर्मगुरूओं की भूमिका पर ईरानी विचारक "सईद अमीर अर्जमंद" का विशेष रूप से ध्यान देना इस बात का सूचक है कि वह भी ईरान की इस्लामी क्रांति से प्रभावित हैं। यद्यपि उनके कुछ विचारों पर गम्भीर रूप से आपत्ति जताई जा सकती है। आज के कार्यक्रम में उनके इस प्रकार के कुछ विचारों की भी चर्चा करेंगे। सईद अमीर अर्जमंद का मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति विश्व की दूसरी क्रांतियों से भिन्न है और वह एक व्यापक आदर्श का अनुसरण कर रही थी। इसी तरह सईद अमीर अर्जमंद का मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति इस्लामी देशों की दूसरी क्रांतियों की तरह इब्ने ख़लदून के विचारों से प्रभावित नहीं है। वे कहते हैं कि इन्बे ख़लदून की क्रांतियों में मुख्य भूमिका कबाएल और बंजारे निभाते हैं जबकि ईरान की इस्लामी क्रांति में इस देश के समस्त शहरों में प्रदर्शन होते थे। इस्लामी क्रांति का मुख्य विषय नई सरकार के लिए था। उस समय शाह की सरकार थी जिसका वर्चस्व था और ईरान की इस्लामी क्रांति ने शाह की सरकार का अंत कर दिया।

सईद अमीर अर्जमंद का मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति को समझने के लिए दो चीज़ों को समझना ज़रूरी है। पहला शीयों का वरिष्ठत नेतृत्व और दूसरे मॉडर्न सरकार का ईरानी समाज पर प्रभाव। ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता में इन दोनों चीज़ों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। सईद अमीर अर्जमंद ने यद्यपि अपनी रचना में ईरान की इस्लामी क्रांति के आने में सामाजिक और आर्थिक कारणों पर लघु दष्टि डाली है। उनका मानना है कि इस क्रांति की एक विशेषता इस्लामी मूल्यों की रक्षा थी। सईद अमीर अर्जमंद का मानना है कि क्रांतियों के मुकाबले में जो तानाशाही व राजशाही सरकारें होती हैं वे दूसरी सरकारों की अपेक्षा अधिक प्रभावित होती हैं। क्योंकि इस प्रकार की सरकारों में लोगों का ध्यान एक व्यक्ति पर केन्द्रित होता है और ईरान की इस्लामी क्रांति में इस बात को देखा जा सकता है। उनका मानना है कि ईरानी समाज में जो तेज़ी से परिवर्तन हुए उसकी वजह से सामाजिक अव्यवस्था उत्पन्न हो गयी थी और शाह की सरकार उत्पन्न हुई सामाजिक अव्यवस्था गुटों व लोगों के मध्य समन्वय उत्पन्न नहीं कर सकी और लोगों ने यह समझा कि शीया धर्म उन्हें शरण दे सकता है। वास्तव में सईद अमीर अर्जमंद के विचार में लोगों और गुटों को समन्वित न कर पाने में शाह की अक्षमता से लोग तंग आकर शीया धर्म की शरण में गये। अलत्ता सईद अमीर अर्जमंद के इस विचार पर आपत्ति जताई जा सकती है। यद्यपि शाह के शासन काल में ईरानी समाज में शीघ्र परिवर्तन हुए परंतु यह परिवर्तन नहीं थे जिसकी वजह से लोग धर्म की शरण में गये बल्कि उसकी वजह यह थी कि जो परिवर्तन हुए थे वे धार्मिक मूल्यों के खिलाफ थे और इसी वजह से लोगों ने उसका विरोध करना आरंभ किया जिसके परिणाम स्वरूप शाह की सरकार का अंत हो गया।

सईद अमीर अर्जमंद ने “इन्क़ेलाबे इस्लामी दर मंज़री ततबीकी” शीर्षक के अंतर्गत एक लेख लिखा है। इस लेख में वह दो चीज़ों के मध्य अंतर मानते और उस पर ध्यान देते हैं। पहला यह कि ईरान में तेज़ी से सामाजिक परिवर्तन आये जिसकी वजह से शाही सरकार का अंत हो गया और दूसरे वह आइडियालोजी थी जिसका आधार शीया धर्म था। इस संबंध में सईद अमीर अर्जमंद कहते हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति, शाही सरकार के पतन को बयान करती है और इस क्रांति की जो आइडियालोजी थी उसका क्रांति में पहला स्थान था। इसी प्रकार सईद अमीर अर्जमंद का मानना है कि ईरान में शाह की सरकार का अंत दो चीज़ों का परिणाम था। एक शाह की सरकार की कमज़ोरियां और दूसरे सामाजिक गुटों एवं लोगों के मध्य खींचतान।

जहां सईद अमीर अर्जमंद ईरान की इस्लामी क्रांति के कारणों और उससे पहले की स्थिति को बयान करते हैं वहां वह महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर संकेत भी करते हैं। जैसे राजशाही सरकार का अंत, ईरानी समाज में शीया धर्मगुरूओं का बोलबाला तथा, उन सामाजिक आंदोलनों का बोलबाला जो मूल्यों के प्रति कटिबद्ध होने पर बल देते थे। इसी प्रकार क्रांति के राजनीतिक एवं नैतिक समर्थकों का अधिक हो जाना। इसी प्रकार ईरान की इस्लामी क्रांति में एसे लोगों की संख्या का बहुत कम होना था जो अपने निजी स्वार्थों के लिए क्रांति में शामिल हुए थे। वास्तव में सईद अमीर अर्जमंद का मानना है कि शीया धर्मगुरूओं ने दूसरे बलों के साथ मिलकर ईरान की इस्लामी क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्होंने क्रांति से पहले की सरकार के अंत में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। सईद अमीर अर्जमंद धर्मगुरूओं और परिश्रम वर्ग के मध्य होने वाले गठबंधन पर भी बल देते हैं। साथ ही वह जिस बिन्दु पर बल देते थे वह यह है कि ईरान की इस्लामी क्रांति के समर्थकों के मध्य एसे लोगों व वर्गों को नहीं देखा गया जो अपने हितों के लिए क्रांति में शामिल हो गये हों। दूसरे शब्दों में क्रांतिकारी और क्रांति के समर्थक लोगों की दृष्टि भौतिक हितों पर नहीं थी बल्कि इस संबंध में उनकी दृष्टि इस्लामी मूल्यों पर थी और यह चीज़ क्रांतिकारियों के एकजुट होने और उनके मध्य विवाद न होने का कारण बनी और शाही सरकार भी क्रांतिकारियों के मध्य फूट न डाल सकी। यही चीज़ क्रांति के सफल होने का महत्वपूर्ण कारण थी। इसी प्रकार सईद अमीर अर्जमंद का मानना है कि इस प्रक्रिया में धर्मगुरूओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

ईरानी विचारक सईद अमीर अर्जमंद के इस्लामी क्रांति के बारे में कुछ विचार हैं जिन पर आपत्ति जताई जा सकती है। जैसे उनका मानना है कि इस्लामी क्रांति जिन मूल्यों के लिए प्रयास का परिणाम है उससे कहीं अधिक वह शाह की सरकार की वैधता की समाप्ति का नतीजा है। सईद अमीर अर्जमंद का यह दृष्टिकोण एक आयाम से सही है और दूसरे आयाम से सही नहीं है। सही इस आयाम से है कि शाह की सरकार की वैधता समाप्त हो गयी थी और यही चीज़ क्रांतिकारी भावना के फैलने यहां तक कि ईरान में क्रांति आने का कारण बनी किन्तु सईद अमीर अर्जमंद का यह दृष्टिकोण दूसरे आयाम से सही नहीं है क्योंकि धार्मिक मूल्यों की अनदेखी करने के कारण शाह की सरकार की वैधता समाप्त हो गयी थी। सईद अमीर अर्जमंद के दृष्टिकोण के गलत होने को समझने के लिए श्रीमती लैला इश्की के दृष्टिकोण की ओर संकेत किया जा सकता है। लैला इश्क़ी ने एक किताब लिखी है जिसका नाम “ज़मानी ग़ैर ज़मानहा, इमाम, शीया और ईरान” है। इस किताब में वह स्पष्ट करती हैं कि इस क्रांति में कर्बला और उसके संदेशों का प्रभाव है। वह कहती हैं कि कर्बला के आंदोलन और ईरान की इस्लामी क्रांति के मध्य गहरा संबंध है। वह लिखती हैं” ईरान की इस्लामी क्रांति धार्मिक चिन्हों एवं प्रतीकों से भरी पड़ी है और उनमें सबसे महत्वपूर्ण कर्बला है। ईरान के लोगों ने शाह के मुकाबले में आंदोलन व प्रतिरोध की प्रेरणा कर्बला से ली थी। शाह ने लोगों की पहचान को पैरों तले रौंद डाला था और सब शाह की सरकार से मुक्ति पाने के लिए शहादत की कामना करते थे। शाह यह सोचता था कि वह लोगों को आज़ादी देकर या कोई दूसरी कार्यवाही करके क्रांति के रुख को मोड़ सकता है जबकि क्रांतिकारियों का मानना था कि जो लोग मारे जा चुके हैं उन्होंने हुसैनी कार्य अंजाम दिया है और जो रह गये हैं उन्हें चाहिये कि हज़रत ज़ैनब का कार्य अंजाम दें। श्रीमती लैला इश्की लिखती हैं” क्रांति व आंदोलन का जो स्रोत था शाह ने उसे ग़लत समझा। लोग कर्बला और आशूरा से प्रेरणा लिये हुए थे जबकि शाह प्राचीन ईरान को जीवित करने की चेष्टा में था।

सईद अमीर अर्जमंद के एक अन्य दृष्टिकोण पर आपत्ति जताई जा सकती है और वह यह है कि वह अपनी रचना में धर्मगुरूओं और श्रमवर्ग के लोगों के मध्य गठबंधन को मूल्यहीन समझते हैं जबकि धर्मगुरूओं विशेषकर स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने ईरान की इस्लामी क्रांति के आने, उसके नेतृत्व और उसकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और श्रम वर्ग के लोगों ने स्वर्गीय इमाम खुमैनी के आदेशों का पालन करके क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। श्रमवर्ग के लोगों ने इस्लामी क्रांति के लिए बहुत से लोगों की जानों को न्यौछावर कर दिया। 15 खुर्दाद 1342 हिजरी शमसी या 17 शहरीवर 1357 को होने वाले आंदोलन को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।

टैग्स