Feb ०३, २०१९ १७:३८ Asia/Kolkata

जैसा कि आप जानते हैं कि हमारी चर्चा इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के विचार, नीति और व्यवहार पर केन्द्रित है और हमने यह बताया कि इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की इमामत के काल में 3 अब्बासी शासकों ने शासन किया।

हमने आपको अब्बासी शासक मोतज़ और महदी अब्बासी की नीतियों के कुछ आयामों से अवगत कराया जिन्में बताया कि इन दोनों शासकों की नीति दबाव व धमकी पर आधारित थी। इन दोनों अब्बासी शासकों के शासन काल के बाद मोतमिद का अवैध शासन काल शुरु किया। मोतज़ और महदी अब्बासी इमाम की भविष्यवाणी के अनुसार, तुर्कों के एक गुट के विद्रोह में मारे गए। मोतमिद भी अपने पूर्ववर्तियों की तरह भोग विलास व अत्याचार में डूबा हुआ था। इस बीच अलवियों के एक गुट को बहुत ही बुरी तरह शहीद किया गया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, मोतमिद के शासन काल में जंग, भय व आतंक का बाज़ार इतना गर्म था कि इसके शासन काल में लगभग 5 लाख लोग मारे गए।

इस घुटन, दमन व हत्या से भरे माहौल के बावजूद सत्य के खोजी लोग पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से श्रद्धा रखने वाले अत्याचारी शासकों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध करते और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से अपनी श्रद्धा ज़ाहिर करते थे। अब्बासी शासकों के इस बात की चिंता रहती थी कि कहीं इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के नेतृत्व में आम लोग विद्रोह न कर दें। अब्बासी शासक विभिन्न शैतानी चालों से इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों के मार्ग में रुकावटें खड़ी करने में लगे रहते। इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शख़सियत इतनी आकर्षक थी कि न सिर्फ़ दोस्त बल्कि दुश्मन भी उनकी शख़सियत से प्रभावित होते थे।

एक बार महदी अब्बासी के दौर में इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को जेल में क़ैद कर दिया गया और 2 लोगों को इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को यातना देने के लिए नियुक्त किया गया लेकिन ज़्यादा समय नहीं बीता था कि वे दोनों भी इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की आध्यात्मिक शख़सियत से प्रभावित हो गए।

दूसरी बार इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को नुहैरिर बिन अब्दुल्लाह जैसे दुष्ट आदमी के हवाले किया गया कि वह इमाम को तकलीफ़ दे। वह इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को बहुत यातना देता। उसके बस में जितना मुमकिन था उनकी यातना देता था। वह इतनी ज़्यादा इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को यातना देता था कि उसके यातना देने की ख़बर उसकी बीवी तक पहुंची। उसकी बीवी की अंतरात्मा का दिया अभी बुझा नहीं था। उसने अपने पति की आलोचना की और उसे बुरे अंजाम से डराया। एक दिन नुहैरिर की बीवी ने उससे कहाः "हे व्यक्ति! ईश्वर से डरो! क्या तुम्हें नहीं मालूम तुमने किस महान हस्ती को जेल में बंद किया है।" यह सुनकर नुहैरिर ने अपनी बीवी से इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की नैतिक व आध्यात्मिक शख़सियत का वर्णन किया। यह सुनकर उसकी बीवी ने कहा कि तुम इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के साथ जो दुर्व्यवहार कर रहे हो, उसके अंजाम की ओर से मुझे चिंता है। लेकिन नुहैरिर ने जिसमें मानवता नाम को भी न थी कहाः ईश्वर की सौगंद, उन्हें फाड़ खाने वाले जानवरों के आगे डाल दूंगा ताकि उनका कोई निशान बाक़ी न रहे। इतनी निर्ममता के बावजूद कुछ समय बाद नुहैरिर भी इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शख़सियत से प्रभावित हो गया। संगीत

मोतमिद अब्बासी ने अपने शासन काल में इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को जेल में क़ैद किया और  निरंतर उनके व्यवहार व स्थिति के बारे में पूछता रहता था ताकि अपने विचार में यह जान सके कि इमाम के सैद्धांतिक दृष्टिकोण में बदलाव आया या नहीं। लेकिन जब भी वह अपने किराए के टट्टुओं से इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के बारे में पूछता वे यही कहते थे कि इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं आया है। वे अपना दिन रोज़े में और रात नमाज़ व उपासना में बिताते हैं। अंततः मोतमिद ने जनमत को धोखा देने के लिए इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को रिहा कर दिया। वास्तव में इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के अटल दृष्टिकोण के पीछे पवित्र क़ुरआन के बक़रा सूरे की आयत नंबर 153 थी जिसमें ईश्वर कहता हैः "हे ईमान लाने वालो! धैर्य और नमाज़ के ज़रिए मदद हासिल करो। जान लो कि ईश्वर धैर्यवान लोगों का मददगार है।"

इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम पर दबाव और धमकी सिर्फ़ क़ैद तक सीमित नहीं थी बल्कि उनकी सभी गतिविधियों और लोगों के साथ उनके संपर्क पर भी नज़र रखी जाती थी, इसी वजह से इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के वफ़ादार साथी उनसे आसानी से संपर्क नहीं बना पाते थे इसलिए वे ऐसे मार्ग से इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम से संपर्क बनाने पर मजबूर थे कि अब्बासी शासन का गुप्तचर तंत्र उन पर शक न करे।

इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी है कि इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के दौर के लोगों के दृष्टिकोण भी सभी दौर के लोगों की तरह एक जैसे नहीं थे। जैसा कि इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने कहा है कि लोगों के कई गुट होते है। आप फ़रमाते थेः "लोगों का एक गुट वह जो जागरुक और सीधे मार्ग पर चलता है ताकि सत्य तक पहुंच जाए और धर्म के मौलिक सिद्धांतों पर अमल करे। इस गुट को अपने मार्ग को लेकर किसी तरह का संदेह नहीं होता और वे हमारे सिवा किसी और को अपने लिए आश्रय नहीं समझते। दूसरा गुट उन लोगों का है जो सत्य उन लोगों से नहीं लेते जो सत्य को पहचानते हैं। वे ऐसे लोग हैं जो समुद्र में सफ़र करते हैं और वे समुद्र में तूफ़ान आने के समय चिंतित व बेचैन हो जाते हैं और वे सिर्फ़ समुद्र में तूफ़ान थमने में ही सुकून महसूस करते हैं। तीसरा गुट उन लोगों का है जिन पर शैतान पूरी तरह हावी है। वे लोग द्वेष व अज्ञानता की वजह से सत्य के मार्ग पर चलने वालों का विरोध करते हैं और सत्य के ख़िलाफ़ असत्य के मोर्चे का साथ देते हैं।"

 

उसके बाद इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः "इस बात में शक नहीं कि जिसके हाथ में जनता के मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी है, वह फ़ैसला लेने, आदेश देने और समाज के मार्गदर्शन की रूपरेखा बनाने के लिए अधिक योग्य है।"

इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का एक साथी कहता है कि मैंने इमाम को ख़त लिखा और अपनी ग़रीबी का रोना रोया। बाद में सोचने लगा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया था कि हमारे साथ ग़रीबी में, दूसरों के साथ विपुलता से बेहतर, हमारे साथ शहीद होना, हमारे दुश्मनों के साथ ज़िन्दा रहने से बेहतर है। इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने ख़त के जवाब में लिखाः "जब हमारे दोस्त ग़लती से कोई पाप कर बैठते हैं, तो महान ईश्वर उन्हें उनकी निर्धनता की वजह से माफ़ और बुराइयों से पाक कर देता और अपनी कृपा की छत्रछाया में क़रार देता है।" उसके बाद इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने फ़मराया कि जिस तरह तुमने अपने आपसे कहा कि हमारे साथ निर्धनता, दुश्मनों के साथ विपुलता से बेहतर है। हम उन लोगों के लिए मज़बूत शरणस्थली हैं जो हमारे यहां शरण लेते हैं और उनके लिए प्रकाश हैं जो हमसे अध्यात्म चाहते हैं। जो हमारी मज़बूत रस्सी को पकड़ते हैं, उन्हें मुक्ति दिलाते हैं। जो हमे दोस्त रखता है वह हमारे साथ ईश्वरीय सामिप्य के शिखर पर होता है। जो हमारे मार्ग से हट जाए, वह पथभ्रष्ट होकर नरक में जाएगा।

इस बात में शक नहीं कि राष्ट्रों व इंसानों की तबाही व भ्रष्ट होने की एक वजह धन दौलत और शक्ति का आकर्षण है। यह वह चीज़ है जो इंसान को सत्य से असत्य, पुरुषार्थ से नीचता, सम्मान से अपमान की ओर ले जाती है। यही वह चीज़ है जिससे हमारे दौर की कुछ सरकारें व राष्ट्र ग्रस्त हैं। वे जब यह देखते हैं कि सत्ताधारी व धन दौलत से संपन्न वर्ग की छत्रछाया में रहने वाले, अधिक आराम में रहते हैं और वे राष्ट्र व सरकारें जो मानवीय व धार्मिक नियमों के पालन पर बल देती हैं, वे पाबंदियों व सीमित्ताओं की वजह से निर्धनता व अशांति में रहती हैं, तो उनकी यह सतही सोच उन्हें शक्तिशाली वर्ग के अनुसरण की ओर ले जाती है। लेकिन इस्लाम के सच्चे महापुरुष इस तरह के विचारों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए पूरी इंसानियत से यह मांग करते हैं कि वे इज़्ज़त की ज़िन्दगी को अपमानजनक जीवन पर वरीयता दें। यही वजह है कि इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के निर्देश के क्रम को आगे बढ़ाते हुए यह कहाः "हमारे साथ निर्धनता दुश्मनों के साथ विपुलता भरे जीवन से बेहतर है।"

जो चीज़ इंसानों और राष्ट्रों को सम्मान भरे इस मार्ग के चयन में रोक सकती है, जब जान पर पड़ती है। अर्थात जब शक्ति व धन दौलत के प्रतीक प्रतिरोध की शक्ति को तोड़ने के लिए सैन्य शक्ति को हथकंडे के तौर पर इस्तेमाल करते हुए जनसंहार करते है ताकि अपने वर्चस्ववादी लक्ष्य साध सके। इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने दुश्मन को निहत्था बनाने और आज़ादी के इच्छुक सभी दौर के लोगों को प्रेरित करने के लिए फ़रमाया करते थेः "सम्मानजनक आकांक्षाओं व उद्देश्य की प्राप्ति में मारा जाना, हमारे दुश्मन के साथ लज्जाजनक जीवन बिताने से बेहतर है।"

इस दृष्टिकोण का स्रोत पवित्र क़ुरआन के निसा नामक सूरे की आयत नंबर 139 है जिसमें ईश्वर कहता हैः "जो लोग नास्तिकों को मित्र बनाते और ईमानदारों पर उन्हें वरीयता देते हैं, क्या वे नास्तिकता भरे शासन की शरण में सम्मान चाहते हैं। जबकि सर्वसमर्थ ईश्वर ही हर तरह के सम्मान के योग्य है।"

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