अल्लाह के ख़ास बन्दे- 64
हमने कहा था कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर हर समय से अधिक कड़ी नज़र रखी जाती थी और उन पर दबाव में अब्बासी शासकों ने किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लिया।
उसकी एक महत्वपूर्ण वजह यह थी कि उन लोगों ने सुन रखा था कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से एक बेटा पैदा होगा जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की भांति अत्याचारी सरकारों का अंत कर देगा, मानवता को वर्चस्ववाद एवं दासता की बेड़ी से मुक्ति दिलायेगा, दुनिया में एकेश्वरवाद की पताका लहरायेगा, न्याय स्थापित करेगा और महान ईश्वर की इच्छा से असत्य पर सत्य की विजय होगी। इसी कारण अत्याचारी अब्बासी शासकों ने फिरऔन के कारिन्दों की भांति आदेश दिया था कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की केवल राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों पर नज़र न रखें बल्कि उनके पारिवारिक संबंधों पर भी गहरी नज़र रखें और जैसे ही यह आभास करें कि इमाम की पत्नी गर्भवती हैं और उनके यहां बेटा पैदा हो गया है तो उसकी हत्या कर दें जबकि उन अत्याचारी शासकों की समझ में यह बात नहीं आई कि महान ईश्वर अपने इरादे से उनके षडयंत्रों को विफल बना देगा। जैसाकि ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे आले इमरान की 54वीं आयत में कहता हैः वे चाल चले तो अल्लाह ने भी उसका तोड़ किया और अल्लाह बेहतरीन तोड़ करने वाला है।"
ठीक यही कारण था कि अब्बासी शासकों के कारिन्दों के प्रयासों का कोई परिणाम नहीं निकला और जिस तरह से फिरऔन के कारिन्दों की कड़ी निगरानी के बावजूद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पैदा हुए उसी तरह अब्बासी शासकों के कारिन्दों की कड़ी निगरानी के बावजूद इमाम महदी अलैहिस्सलाम पैदा हुए। रोचक बात यह है कि जब हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पैदा हुए तो इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के निकटवर्ती लोगों को भी इस पर विश्वास नहीं हो रहा था।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने सबसे पहला और बुनियादी काम यह किया कि उन्होंने इस्लाम की शद्ध शिक्षाओं को पेश व बयान करना आरंभ किया और उसके बाद इमाम का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य यह था कि विरोधियों और तथाकथित धार्मिक विद्वानों की ओर से जो सवाल और प्रश्न किये जाते थे इमाम ने उनका उत्तर देना आरंभ किया। समस्त दबावों, खतरों और चुनौतियों के बावजूद इमाम ने राजनीतिक गतिविधियों के लिए कार्यक्रम बनाया और यह उनका तीसरा महत्वपूर्ण कार्य था और इमाम ने अपने अमल से सिद्ध कर दिया कि धर्म और राजनीति एक दूसरे से अलग नहीं हैं।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने एक अन्य कार्य यह किया कि उन्होंने अपने बेटे हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत अर्थात लोगों की नज़रों से ओझल होने के लिए आम जनमत विशेषकर शीयों के मध्य भूमि प्रशस्त की ताकि लोग कभी भी संदेह व असमंजस का शिकार न हों और उन्हें पूर्ण विश्वास हो जाये कि ईश्वरीय वादे का उल्लंघन नहीं होगा और वह व्यवहारिक होगा। जैसाकि सर्वसमर्थ ईश्वर ने पवित्र कुरआन में फरमाया है” और हम चाहते हैं कि उन लोगों पर उपकार करें जो ज़मीन पर कमज़ोर कर दिये गये हैं और उन्हें मार्गदर्शक और वारिस बनायें”
आम और ख़ास मुसलमानों के लिए मार्ग और दिशा का तय कर देना इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का एक अन्य कार्य था। इसके लिए हम यहां पर दो नमूनों को बयान कर रहे हैं। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने एक निकट साथी अली बिन हुसैन बिन बाबवैह कुम्मी के नाम इस प्रकार पत्र लिखा था” मैं तुम्हें ईश्वर का तक़वा अर्थात ईश्वर से डरने और ज़कात अदा करने की सिफारिश करता हूं क्योंकि जो व्यक्ति ज़कात नहीं देता है उसकी नमाज़ कबूल नहीं होगी”
जो चीज़ इमाम की इस सिफारिश में ध्यान योग्य है और उसका स्रोत पवित्र कुरआन है वह नमाज़ और ज़कात का संबंध है और पवित्र कुरआन ने जहां भी नमाज़ की बात की है उसके तुरंत बाद ज़कात और ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करने की बात की है और इमाम बल देकर कहते हैं कि ज़कात के बिना नमाज़ स्वीकार नहीं है। दूसरे शब्दों में नमाज़ महान ईश्वर से संपर्क और ज़कात ईश्वर की सृष्टि से संपर्क की सूचक है और वास्तविक नमाज़ी अपना एक हाथ महान ईश्वर की ओर जबकि दूसरा हाथ उसकी सृष्टि की ओर बढ़ाता है। यह शैली समस्त पैग़म्बरों और इस्लाम के सच्चे मार्गदर्शकों की रही है।
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम इस नसीहत को जारी रखते हुए आगे फरमाते हैं” तुम्हें दूसरों की गलतियों को माफ कर देने, क्रोध को पी जाने, नाते- रिश्तेदारों के साथ संबंध स्थापित करने, धार्मिक भाइयों की सहायता करने, कठिनाई के समय उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्रयास करने और अज्ञानियों के मुकाबले में सहनशीलता से पेश आने की सिफारिश करता हूं।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अगर ये मूल्य व बातें समाज में व्यवहारिक हो जायें तो सामाजिक संबंध और मज़बूत होंगे, दिलों से द्वेष निकल जायेंगे और वातावरण प्रेम व निष्ठा से भर जायेगा परंतु जैसाकि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने फरमाया है” इन सबके व्यवहारिक होने के लिए धार्मिक पहचान का होना और पवित्र कुरआन की शिक्षाओं के प्रति कटिबद्ध होना ज़रूरी है। इसी तरह इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि आज इस्लामी जगत में मौजूद बहुत सी गुमराहियां, भ्रांतियां और समस्याएं धार्मिक पहचान न होने या पवित्र कुरआन की शिक्षाओं के प्रति कटिबद्ध न होने का परिणाम हैं। आज अगर मुसलमानों को धर्म की सही पहचान होती वे और पवित्र कुरआन की शिक्षाओं पर अमल करते तो उनके मध्य जो दूरी, मतभेद, युद्ध और हिंसा आदि है वह सब न होता और इन सबके स्थान पर हम मुसलमानों के मध्य एकता और इस्लामी जगत की मज़बूती के साक्षी होते।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम सामाजिक दायित्व की ओर संकेत करते हुए फरमाते हैं” में तुम्हें अच्छे व्यवहार करने, अच्छाई का आदेश देने और बुराइयों से दूर रहने की सिफारिश करता हूं” उसके बाद इमाम ने पवित्र कुरआन की सूरे निसा की आयत नंबर 114 की तिलावत की जिसमें महान ईश्वर कहता है” “उनकी अधिकतर काना - फूसियों में कोई भलाई नहीं होती, हां जो व्यक्ति सदका देने या भलाई करने या लोगों के बीच सुधार के लिए कुछ कहे तो उसकी बात और है और जो कोई ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए ऐसा करे तो हम निश्चय ही उसे बड़ा प्रतिदान प्रदान ” अंत में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” मैं तुम्हारा आह्वान करता हूं कि समस्त बुरे कार्यों से दूर रहो”
एक चीज़ नमाज़ है जो जीवन के समस्त उतार- चढ़ाव में आधार- भूत भूमिका निभाती है और इंसान को बुराइयों से रोकती और उसका दिशा -निर्देशन भलाइयों की ओर करती है। अनिवार्य नमाज़ के साथ नमाज़े शब अर्थात रात को पढ़ी जाने वाली भी नमाज़ है जिसकी बहुत सिफारिश की गयी है। नमाज़े शब पैग़म्बरे इस्लाम के लिए अनिवार्य थी इसकी गणना इस्लामी समाज को सुधारने वाले कारकों में होती है। नमाज़े शब जहां इंसान का आत्म निर्माण करती है वहीं उसे यह सिखाती है कि अकेले में उसे किस प्रकार अपने पालनहार के साथ वार्ता करनी चाहिये। आम तौर पर यह नमाज़ वे मुसलमान पढ़ते हैं जो रातों को मीठी नींद का बिस्तर छोड़कर अपने पालनहार से संपर्क करते हैं। इस संबंध में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” तुम्हें नमाज़े शब पढ़ने की सिफारिश करता हूं जैसाकि पैग़म्बरे इस्लाम ने तीन बार हज़रत अली अलैहिस्सलाम से फरमाया था कि नमाज़े शब क़ायेम करो और जो व्यक्ति नमाज़े शब को हल्का समझे वह हममें से नहीं है इस आधार पर तुम भी मेरी वसीयत पर ध्यान दो और उस पर अमल करो”
इस संबंध में एक बहुत गूढ़ बिन्दु यह है कि इमाम अपनी नसीहत के अंत में कहते हैं” मैंने जो कुछ तुमसे कहा उसे मेरे सच्चे शीयों तक पहुंचा दो ताकि वे भी इस पर अमल करें”
एक अन्य चीज़ पवित्र कुरआन की शिक्षाओं पर अमल करना है और धार्मिक शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार में बड़ी प्रभावी व निर्णायक भूमिका निभाती है। चूंकि कोई भी चीज़ इंसान के अमल की भांति प्रभावी नहीं है इसलिए हर प्रकार के दावे और नारे से हटकर इंसान को पवित्र कुरआन की शिक्षाओं पर अमल करना चाहिये। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम इस संबंध में भी ध्यान योग्य सिफारिश करते हैं जिनमें से हम कुछ की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अपने सच्चे शीयों व अनुयाइयों को संबोधित करते हुए कहते हैं” तुम्हें ईश्वर से डरने और धर्म में सदाचारिता और ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए प्रयास करने की सिफारिश करता हूं। सच बोलो, जिसने तुम्हें अमीन समझा व बनाया है उसकी अमानत को वापस करो जिसकी अमानत तुम्हारे पास है चाहे वह अच्छा व भला इंसान हो या कोई विशेष अच्छा इंसान न हो। नमाज़ के समय सज्दे को लंबा करो यानी देर तक सज्दे में रहो और पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करो। यह समस्त चीज़ें पैग़म्बरे इस्लाम की शैली हैं। इसके अलावा अपने निकट संबंधियों और नाते- रिश्तेदारों के साथ भलाई करो और उनकी शव यात्रा में भाग लो उनके बीमारों का हाल- चाल पूछो और उनके अधिकारों को अदा करो। होशियार रहो और जान लो कि अगर तुममें से एक धर्म में, तकवे में और बात करने में सच्चा, अमानतदार, सुशील और सुव्यवहार करने वाला होगा तो दूसरे कहेंगे कि यह शीया है और इससे हमें खुशी होगी और ईश्वर से डरो। हमारे लिए शोभा बनो, हमारे लिए कलंक न बनो। लोगों के दिलों को हमारे प्रेम की तरफ बुलाओ और बुराइयों को हमसे दूर करो। ईश्वर की किताब में हमारे अधिकार हैं और हमारा पैग़म्बरे इस्लाम से निकट संबंध है ईश्वर ने हमें हर प्रकार की गन्दगी व अपवित्रता से दूर किया है और वह चीज़ किसी को भी नहीं दी है जो हमें प्रदान की है और अगर इस प्रकार का दावा कोई दूसरा करता है तो वह झूठ बोल रहा है। मौत की सोच में रहो और ईश्वर को याद करो कुरआन की अधिक तिलावत करो और पैग़म्बरे इस्लाम पर दुरूद और सलाम भेजो कि हर दुरूद दस नेकी है और उसका अच्छा प्रतिदान होगा।“