अल्लाह के ख़ास बन्दे- 66
इस्लाम के सच्चे पथप्रदर्शकों व महापुरुषों ने आस्था के क्षेत्र में अनेकेश्वरवाद, नास्तिकता व पाखंड के प्रतीकों के ख़िलाफ़ पूरी क्षमता से संघर्ष किया और एकेश्वरवाद के ध्वज को लहराने की पूरी कोशिश की।
नैतिकता के क्षेत्र में भी उन्होंने शुद्ध इस्लामी व ईश्वरीय मूल्यों के प्रचार व प्रसार तथा उद्दंडता की ओर ले जाने वाले मूल्यों का डटकर मुक़ाबला किया। सामाजिक क्षेत्र में अपने सार्थिक उपदेशों से समाज के ढांचे में एकता व समरस्ता की भावना को जागृत करने और भेदभाव व पक्षपात को दूर करने की कोशिश की। इसी तरह उन्होंने व्यक्तिगत व सामाजिक संबंधों की मज़बूती को अपना उद्देश्य क़रार दिया। राजनैतिक क्षेत्र में उन्होंने अपने अपने दौर के उद्दंडी शासकों का मुक़ाबला किया, उनके अस्ली चेहरे का पर्दाफ़ाश किया, पीड़ितों का साथ दिया और उनके अधिकारों की रक्षा की, जनता के विद्रोह का समर्थन किया तो कभी जनता का नेतृत्व भी किया और व्यवहारिक रूप से धर्म और राजनीति के अटूट संबंध की आधारशिला रखी। आर्थिक क्षेत्र में विभिन्न वर्गों के बीच खाई, धन संचय, तड़क-भड़क, भोग विलास के ख़िलाफ़ संघर्ष किया, वास्तविक ज़रूरतमंदों व वंचितों की मदद की, अपने सादा जीवन से दूसरों के लिए पाठ व प्रेरणा का स्रोत बने और उसे आदर्श के तौर हमारे लिए यादगार छोड़ गए। सांस्कृतिक क्षेत्र में ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रेरित किया और समाज में धार्मिक व राजनैतिक जागरुकता का स्तर बढ़ाया।
यद्यपि इन महापुरुषों के उद्देश्य जिस तरह वे चाहते थे, किसी भी दौर में पूरे नहीं हुए लेकिन भविष्य में आशा के मद्देनज़र कभी भी निराश न हुए और उन्हें अपने उद्देश्य की ओर से कभी संदेह पैदा न हुआ। उन्होंने सत्य की असत्य पर जीत की ईश्वरीय वादे के मद्देनज़र मानव समाज के लिए उज्जवल भविष्य का चित्रण किया। वह भविष्य जो मानवता के अंतिम मोक्षदाता हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने और उनके आंदोलन से हासिल होगा और इस तरह सभी ईश्वरीय दूतों, पवित्र इमामों, महापुरुषों, अत्याचार के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वालों, सत्य की प्राप्ति व न्याय की स्थापना के इच्छुक लोगों और एकेश्वरवादियों के उद्देश्य व्यापक व संपूर्ण अर्थ में पूरे होंगे। सत्य के इच्छुक लोगों के मुंह शताब्दियों की कड़ुवाहट के बाद ईश्वर की कृपा से मीठे होंगे। इस दूरदर्शिता के साथ इस्लाम के सच्चे महापुरुषों व इमामों ने हज़रत इमाम महदी के बारे में बताया और उनके आंदोलन की सूचना दी।
जैसा कि अबू सईद ख़दरी की रिवायत है। वह कहते हैं कि एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम ने मिंबर पर फ़रमायाः "जान लो! मेहदी हमारे वंश से है। सारे युगों के बीतने के बाद अंतिम युग में आंदोलन चलाएंगे। आसमान अपनी सारी बर्कत न्योछावर करेगा और ज़मीन अपने भीतर छिपाए हुए सारे भंडार निकाल देगी। उस सयम वह ज़मीन को इस तरह न्याय से भर देंगे, जिस तरह से लोगों ने उसे अत्याचार से पीड़ित होंगे।"
कुछ रिवायतों में इमाम महदी के दौर की क्रान्ति व बदलाव के वर्णन के साथ साथ उनकी विशेषताओं और शक्ल के बारे में भी वर्णन है ताकि किसी के मन में किसी तरह का संदेह न रहे। मिसाल के तौर पर पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया हैः "अंतिम दौर में मेरे वंश से एक पुरुष आंदोलन चलाएगा जो ख़ूबसूरत होगा, उसका माथा चौड़ा और नाक सुतवां होगी। वह ज़मीन पर इस तरह न्याय स्थापित करेगा जिस तरह वह अत्याचार से भरी होगी।"
हो सकता है किसी के मन में यह बात आए कि जब हज़रत महदी प्रकट होंगे तो दुनिया अत्याचार से भरी होगी, इसलिए हमें अत्याचार के संबंध में उदासीन रहना चाहिए ताकि दुनिया में अत्याचार फैल जाए। इस हालत में हमारे ऊपर कोई ज़िम्मेदारी नहीं है और जो क़दम इस मार्ग के ख़िलाफ़ उठाएंगे उसकी वजह से इमाम महदी अलैहिस्सलाम के आंदोलन के शुरु होने में विलंब होगा? इस बात में शक नहीं कि यह दृष्टिकोण क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की नज़र में पूरी तरह ग़लत है। इस तरह के दृष्टिकोण के ग़लत होने के संबंध में कुछ तर्क आपकी सेवा में पेश हैं।
ईश्वर पवित्र क़ुरआन के निसा नामक सूरे की आयत नंबर 75 में उन लोगों की निंदा में जो पीड़ितों पर अत्याचार के संबंध में किसी तरह की ज़िम्मेदारी महसूस नहीं करते, फ़रमाता हैः क्यों ईश्वर के मार्ग में पीड़ित पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष नहीं करते? वे लोग जो अत्याचारियों के अत्याचार से थक चुके हैं और निरंतर गुहार लगा रहे हैं कि पालनहार! इस शहर व बस्ती से अत्याचारियों को निकाल दे और अपनी ओर से हमारे लिए मार्गदर्शक व मददगार नियुक्त कर।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने यह भी फ़रमायाः जो व्यक्ति इस हालत में सुबह करे कि इस्लामी समाज की मुश्किलों को दूर करने की कोशिश न करे तो वह मुसलमान नहीं है। यहां तक कि पैग़म्बरे इस्लाम ने हर कर्तव्यपरायण व वचनबद्ध व्यक्ति की ज़िम्मेदारी के दायरे को बढ़ाते हुए फ़रमायाः "जो व्यक्ति किसी पीड़ित इंसान की गुहार सुने चाहे जिस ज़माने व स्थान में हो, और उसकी मदद न करे, वह मुसलमान नहीं है।"
निसा सूरे की आयत नंबर 75 में एक अहम बिन्दु यह है कि इस आयत में ईश्वर ने पीड़ित शब्द का इस्तेमाल किया है जिसमें इस्लामी संस्कृति में हर चीज़ से पहले इंसानियत को अहमियत दी गयी है। जो व्यक्ति दुनिया के जिस कोने में हो अगर वह अत्याचारी शासन के अधीन हो और वह मदद की गुहार लगाए तो हर कर्तव्यपरायण व्यक्ति के लिए ज़रूरी है कि वह उसे रिहाई दिलाने के लिए उठ खड़ा हो और अगर वह इस संबंध में उदासीन है तो उसमें इंसानियत नहीं है। पैग़म्बरे इस्लाम के उपदेश में ख़ास बिन्दु यह है कि अगर कोई व्यक्ति इस्लामी जगत की मुश्किलों व चुनौतियों को के हल करने के लिए क़दम न उठाए और या यह कि जो दुनिया के पीड़ितों की आवाज़ का जवाब न दे, वह मुसलमान नहीं है। क्योंकि यह मुमकिन नहीं है किसी व्यक्ति का इस्लाम के सिद्धांतों पर गहरी आस्था हो और वह पीड़ितों की गुहार पर उदासीन बना रहे या किसी तरह की ज़िम्मेदारी महसूस न करे।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में अपनी संतानों को वसीयत करते हुए फ़रमाया थाः "अत्याचारियों के दुश्मन और पीड़ितों के मददगार रहना।"
इस आधार पर अगर पैग़म्बरे इस्लाम यह फ़रमाते थे कि मेरी संतान महदी अत्याचार से भरी दुनिया में आंदोलन शुरु करेंगे और दुनिया में न्याय भर देंगे, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि अपने दौर के उद्दंडी शासकों और अत्याचार व अपराधों के संबंध में ख़ामोशी से बैठे रहें, बल्कि इसके ख़िलाफ़ उठना चाहिए और इमाम महदी के प्रकट होने की पृष्ठिभूमि मुहैया करें। हालांकि यह मुमकिन है कि कुछ लोगों के मन में यह ख़्याल आए कि अगर हम अपने कर्तव्य के तहत अत्याचारियों के ख़िलाफ़ उठ खड़े हों, पीड़ितों की मदद करे, न्याय स्थापित करने की कोशिश करें तो इस हालत में हज़रत महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने का उद्देश्य पूरा हो जाएगा तो फिर उनके प्रकट होने की क्या ज़रूरत है? क्योंकि हज़रत महदी भी आंदोलन चलाएंगे। वह अत्याचारियों से लड़ेंगे और न्याय स्थापित करेंगे।
इसका जवाब यह है कि हम पर अत्याचारी शासन के ख़िलाफ़ ख़ामोश न रहने और पीड़ितों की मदद करने की ज़िम्मेदारी है, लेकिन इस बिन्दु पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि हमारे आंदोलन, संघर्ष और आपत्तियों का दायरा सीमित है और विशेष भौगोलिक क्षेत्र में इसका असर होता है, इससे पूरी तरह अत्याचार का सफ़ाया नहीं हो सकता, सभी पीड़ितों को अपराधी व अत्याचारी शासन के चंगुल से मुक्ति नहीं मिल सकती, पूरी दुनिया में न्याय क़ायम नहीं कर सकते। इसलिए हमारे प्रभाव का दायरा सापेक्ष है जबकि इमाम महदी अलैहिस्सलाम के दौर में पूरी दुनिया से अत्याचार का जड़ से सफ़ाया होगा, सभी पीड़ित न्याय का मज़ा चखेंगे और न्याय का ध्वज पूरी दुनिय पर फहराएगा। जैसा कि इस बात की शुभसूचना पवित्र क़ुरआन के तौबा नामक सूरे की आयत नंबर 33 में इस प्रकार की दी गयी हैः वह ऐसी हस्ती है जिसने अपने दूत को सच्चे धर्म के साथ मार्गदर्शन के लिए भेजा ताकि वह हर मत व धर्म पर छा जाए चाहे अनेकेश्वरवादी को यह बात अच्छी न लगे।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने हज़रत महदी होने के झूठे दावेदारों का रास्ता बंद करने और राष्ट्रों को भटकने से बचाने के लिए फ़रमाया हैः "महदी मेरे वंश से हैं। उनका नाम मेरा नाम, उनकी शक्ल मेरी तरह है।" उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने आगे फ़रमायाः "उनकी परंपरा मेरी परंपरा होगी, वह लोगों को मेरी शरीआ की ओर आमंत्रित करेंगे। उन्हें अनन्य ईश्वर की किताब की ओर बुलाएंगे।" उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने यह भी फ़रमायाः "जो कोई उनका अनुसरण करेगा, उसने मेरा अनुसरण किया और जो कोई उनकी अवज्ञा करेगा उसने मेरी नाफ़रमानी की और जो कोई उनका इंकार करेगा उसने मेरा इंकार किया।"
इस रवायत से पता चलता है कि मानवता के आख़िरी मोक्षदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की शैली व मार्ग पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण का क्रम है। वह भी पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण को जीवित करेंगे और समाज में क़ुरआन पर अमल को व्यवहारिक बनाएंगे। यही वजह है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत इमाम महदी के अनुसरण को अपने अनुसरण की उपमा दी और उनकी नाफ़रमानी व अवज्ञा को अपनी अवज्ञा के समान बताया और इससे भी अहम बात यह कि जो भी उनका इंकार करे उसने पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी का इंकार किया।