अल्लाह के ख़ास बन्दे- 67
हमने इमाम महदी अलैहिस्सलाम के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की कुछ हदीसों की समीक्षा की थी।
उन्होंने महदवियत के झूठे दावेदारों के धोखे से बचने के लिए एक दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम की तरफ़ इशारा करते हुए कहा था कि महदी इनकी संतान में से हैं। ईश्वर उसके माध्यम से झूठ और झूठों को पूरी तरह से जड़ से उखाड़ फेंकेगा, दुनिया की थका देने वाली कठिनाइयों को समाप्त कर देगा, अत्याचारपूर्ण शासनों की दासता की रस्सी को तुमसे दूर कर देगा और तुम्हें मुक्ति प्रदान करेगा। इस आधार पर एक इमाम से दूसरे इमाम तक और इसी प्रकार हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम तक हज़रत इमाम महदी का वंश पहुंचा और उन पर आकर समाप्त हो गया। यह एक अहम निशानी है जिसके माध्यम से इस्लामी समुदाय के मार्गदर्शक या महदी और झूठे दावेदारों को बड़ी सरलता से पहचाना जा सकता है।
एक अन्य ध्यान योग्य बिंदु यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते हैं कि ईश्वर इमाम महदी के आंदोलन की छाया में अनेकेश्वरवादी व्यवस्थाओं की दासता की रस्सी तोड़ देगा। यह वही वादा है जो ईश्वर ने सूरए नूर की 55वीं आयत में किया है। ईश्वर कहता हैः ईश्वर ने तुममें से उन लोगों से, जो ईमान लाए और जिन्होंने अच्छे कर्म किए, वादा किया है कि वह उन्हें धरती में अवश्य ही उत्तराधिकार प्रदान करेगा, जैसे उसने उनसे पहले वाले लोगों को उत्तराधिकार प्रदान किया था। और उनके लिए अवश्य ही उनके उस धर्म को सुदृढ़ बना देगा जिसे उसने उनके लिए पसन्द किया है। और निश्चय ही उनके वर्तमान भय के पश्चात उसे उनके लिए शान्ति और निश्चिन्तता में बदल देगा। वे मेरी बन्दगी करते हैं, किसी को मेरा समकक्ष नहीं ठहराते। और जो कोई इसके पश्चात इन्कार करे, तो ऐसे ही लोग अवज्ञाकारी (अर्थात धर्म से निकल जाने वाले) हैं।
वास्तव में सच्चे इस्लाम व एकेश्वरवादी व्यवस्था की स्थापना के बाद संसार में अनेकेश्वरवादी रुझानों का कोई चिन्ह बाक़ी नहीं बचेगा और सभी शासनों को लपेट दिए जाने के बाद मानवता को बड़ी शक्तियों की दासता व क़ैद से मुक्ति मिल जाएगी। फिर स्वतंत्रता और आज़ादी अपने सही अर्थों में सामने आएगी। इस प्रकार के प्रकाशमान दौर की स्थापना केवल मुसलमानों से विशेष नहीं है बल्कि सभी आसमानी धर्मों के अनुयायी ऐसे संसार की प्रतीक्षा में हैं और उनकी मनोकामना है कि उनका पैग़म्बर या देवदूत यथाशीघ्र प्रकट हो। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम इस वास्तविकता से पर्दा उठाते हुए कहते हैं कि महदी मेरे वंश से है और जब वह प्रकट होगा तो मरयम के पुत्र ईसा ईश्वर के आदेश से उनकी मदद के लिए आसमान से नीचे आएंगे और उन्हें आगे करके स्वयं उनके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे।
इस प्रकार की विशेषता के दृष्टिगत कहा जा सकता है कि इमाम महदी अलैहिस्सलाम हर प्रकार के संदेहों से परे निश्चित रूप से इस संसार में आ चुके हैं और वे बादलों के पीछे छिपे हुए सूरज की तरह मानव समाज को प्रकाश व गर्मी प्रदान कर रहे हैं और आशा व गतिशीलता पैदा कर रहे हैं। जब भी ईश्वर की इच्छा और उसका इरादा होगा, वे प्रकट होंगे और एकेश्वरवाद, न्याय तथा मानवताप्रेम से ओत-प्रोत वातावरण में नए जीवन का एक काल शुरू होगा।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अतिरिक्त, जिन्होंने कई हदीसों में इमाम महदी के प्रकट होने की शुभ सूचना दी है, उनका अनुसरण करते हुए सभी इमामों ने भी ईश्वर के अंतिम प्रतिनिधि की विशेषताओं के बारे में कुछ हदीसें बयान की हैं जिनमें से कुछ का हम उल्लेख कर रहे हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि अगर इस दुनिया का एक दिन भी बाक़ी बचा होगा तो ईश्वर उस दिन को इतना लम्बा कर देगा कि मेरे परिवार का एक मर्द प्रकट हो और संसार को न्याय से भर दे।
इस हदीस में जो मूल बिंदु है वह इमाम महदी अलैहिस्सलाम की वैश्विक क्रांति के निश्चित होने पर बल है और हज़रत अली अलैहिस्सलाम यह आशाजनक संदेश दे रहे हैं कि अगर संसार की नज़रों से ओझल रहने का इमाम महदी का काल बहुत अधिक लम्बा भी हो जाए तब भी उसमें शक नहीं करना चाहिए बल्कि हमें संसार में न्याय फैलाने वाले के आंदोलन की प्रतीक्षा में रहना चाहिए और इस बात पर विश्वास रखना चाहिए कि इमाम महदी अलैहिस्सलाम ईश्वर के अटल वादे के आधार पर अवश्य प्रकट होंगे।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने अपने पुत्र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से कहाः जब तुमने जन्म लिया तो पिता पैग़म्बरे इस्लाम मेरे पास आए और उन्होंने तुम्हें गोद में लेकर कहाः हे फ़ातेमा! जान लो कि यह नौ इमामों का पिता है और इसके वंश से जो इमाम पैदा होंगे, उनमें से अंतिम क़ायम होगा। इमाम हसन अलैहिस्सलाम भी पैग़म्बर की गोद में पले थे, इस विषय पर बल देते थे और कहते थे कि मेरे नाना पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के बाद ईश्वर की ओर से चुने गए इमाम बारह हैं जिनमें से नौ मेरे भाई हुसैन के वंश से हैं और इस समुदाय का महदी अर्थात मार्गदर्शक भी उन्हीं में से है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इमाम महदी अलैहिस्सलाम के काल की विशेषताओं और संसार से उनके ओझल रहने के समय में लोगों के बीच आने वाले उतार चढ़ाव के बारे में कहा है कि ईश्वर मेरे पुत्र क़ायम की बरकत से मरी हुई ज़मीन को जीवित व आबाद करेगा, सत्य धर्म को सभी धर्मों पर विजय प्रदान करेगा, चाहे अनेकेश्वरवादियों को बुरा ही क्यों न लगे और महदी एक समय तक नज़रों से ओझल रहेगा और इस दौरान एक गुट धर्म से निकल जाएगा लेकिन दूसरा गुट जो धर्म को गहराई से समझता है, डटा रहेगा तथा उस गुट को दुश्मनों की ओर से यातनाएं सहन करनी पड़ेंगी, उसे बुरा भला कहा जाएगा और यह कहा जाएगा कि अगर तुम्हारी आस्था सच्ची है तो जिस इमाम और उसके आंदोलन की तुम प्रतीक्षा कर रहे हो, वह कब प्रकट होगा? इसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहाः जो भी महदी के संसार की नज़रों से ओझल रहने के काल में दुश्मनों की यातनाओं को सहन करे और अपनी आस्था पर डटा रहे, वह उस व्यक्ति की तरह है जिसने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के संग तलवार लेकर ईश्वर के मार्ग में युद्ध किया हो।
मनुष्यों का किसी आंदोलन, किसी विचारधारा या किसी मत से जुड़ना और फिर साथ छोड़ देना इतिहास में हमेशा से रहा है और इमाम महदी अलैहिस्सलाम के संसार की नज़रों से ओझल रहने के काल में भी यह बात देखी जा सकती है। क़ुरआने मजीद ने भी इस बात की ओर इशारा किया है। वह सूरए माएदा की आयत क्रमांक 54 में कहता है। हे ईमान वालो! तुममें से जो कोई अपने धर्म से फिरेगा (वह जान ले कि इससे ईश्वर को कोई हानि नहीं होगी क्योंकि) भविष्य में ईश्वर ऐसे लोगों को लाएगा जिन्हें वह पसंद करता होगा और वे भी ईश्वर को पसंद करते होंगे। वे ईमान वालों के समक्ष नर्म और काफ़िरों के समक्ष कड़े होंगे। वे हमेशा ईश्वर के मार्ग में जेहाद और संघर्ष करेंगे तथा किसी धिक्कार करने वाले की धिक्कार से नहीं डरेंगे। यह ईश्वर की कृपा है जिसे वह जिसको चाहता है प्रदान करता है और ईश्वर अत्यंत व्यापक ज्ञान वाला (और) जानकार है।
क़ुरआन मजीद की आयतों के बहुत से समीक्षकों ने इस आयत को बारहवें इमाम, इमाम महदी के अनुयाइयों से संबंधित बताया है अर्थात उनका कहना है कि इस आयत में उनकी ओर संकेत किया गया है जो इमाम महदी अलैहिस्सलाम के अज्ञातवास काल में सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में अनगिनत चुनौतियों के बावजूद, धार्मिक सिद्धान्तों और शिक्षाओं के प्रति कटिबद्ध रहते हैं और इमाम के प्रकट होने के समय भी, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के युग की भांति, इमाम महदी अलैहिस्सलाम के साथ विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष करेंगे और अन्याय के खिलाफ उनके युद्ध में उनका साथ देंगे। शायद कुछ लोगों के मन में यह सवाल हो कि इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम को "क़ायम" अर्थात आंदोलनकारी क्यों कहा जाता है? तो क्या अन्य इमामों ने आंदोलन नहीं किया? क्या अन्य इमामों ने इस्लाम की रक्षा और अन्याय के अंत के लिए आंदोलन नहीं चलाया? अगर उन्होंने यह सब किया तो फिर अंतिम इमाम को ही आंदोलन कारी क्यों कहा जाता है और उनकी ही उपाधि "क़ायम" क्यों है? इस सवाल के जवाब में कहना चाहिए कि निश्चित रूप से सभी इस्लामी मार्गदर्शकों ने सत्य की विजय और असत्य के अंत के लिए संघर्ष किया और आंदोलन चलाया लेकिन सत्ता पर अवैध रूप से क़ब्ज़ा करने वाले शासकों तथा वफादार अनुयाइयों की कमी की वजह से उनके पवित्र लक्ष्यों की पूर्ति नहीं हो पायी और अन्ततः यह सारे इमाम, अत्याधिक दुखदायी परिस्थितियों में शहीद करा दिये गये लेकिन ईश्वर की इच्छा से इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम इस अधूरे मिशन को पूरा करेंगे और सभी ईश्वरीय दूतों, भले दासों, सत्यवादियों, शहीदों, इमामों, सत्यप्रेमियों, सभी पीड़ियों और सत्य की विजय की प्रतीक्षा करने वाले सभी लोगों की आकांक्षाओं और उद्देश्यों की पूर्ति करेंगे।
इमाम महदी अलैहिस्सलाम के आंदोलनकारी या "क़ायम" होने के बारे में दूसरी जो बात कही जा सकती है वह यह है कि सभी इस्लामी मार्गदर्शकों के सारे काम एक राजनीतिक व भौगोलिक दायरे के भीतर होते थे लेकिन इमाम महदी अलैहिस्सलाम का आंदोलन, विश्व व्यापी है और इस आंदोलन के लिए राजनैतिक अथवा भौगोलिक सीमाओं का कोई अर्थ नहीं है। इस आधार पर इमाम महदी अलैहिस्सलाम के आंदोलन की कोई सीमा नहीं होगी और वह पूरी दुनिया में सही और व्यापक अर्थ में आंदोलन की अगुवाई करेंगे और ईश्वरीय मार्ग में आने वाली हर बाधा को ख़त्म करेंगे और उनकी राह में कोई भी रुकावट पैदा नहीं कर पाएगा। इमाम महदी अलैहिस्सलाम के आंदोलन का परिणाम यह होगा कि पूरी दुनिया में सत्य की आवाज़ गूंजेगी और असत्य व सत्य के मध्य जारी संघर्ष में अन्ततः सत्य के विजय की घोषणा की जाएगी और क़ुरआने मजीद की इस बात का व्यवहारिक अर्थ पेश किया जाएगा कि "(हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि सत्य आया, असत्य चला गया और निश्चित रूप से असत्य तो जाने वाला ही था।" (HN)