अल्लाह के ख़ास बन्दे-68
अबू हम्ज़ा सोमाली हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के हवाले से कहते हैं कि उन्होंने फ़रमायाः “हमारे क़ायम अर्थात इमाम महदी का प्रकट होना निश्चित है।
यह ईश्वर का अटल फ़ैसला है। जो मैं कह रहा हूं, उसके बारे में अगर किसी को शक है तो वह ईश्वर से इस स्थिति में मुलाक़ात करेगा कि नास्तिक होगा।” उसके बाद इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः मेरे मां बाप उन पर न्योछावर हो कि वह मेरी नस्ल से सातवां बेटा होगा। वह ज़मीन को न्याय से इस तरह भर देगा जिस तरह वह अत्याचार से भरी होगी। जो भी उनके प्रकट होने के समय उन पर ईमान लाएगा वह पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम पर ईमान लाने वालों जैसा होगा। इस स्थिति में उसका स्वर्ग में जाना निश्चित है और जो भी उस पर ईमान न लाए, उसके सामने नत्मस्तक न हो, ईश्वर स्वर्ग में उसका प्रवेश वर्जित कर देगा और उसक ठिकाना नरक होगा कि वह कितनी ही बुरी जगह है।
शियों की आस्था में पैग़म्बरे इस्लाम के बाद उनके 12 उत्तराधिकारियों पर आस्था अनिवार्य है। इसी वजह से इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि जो कोई हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने के काल में उन पर ईमान लाए और उनके आदेश के सामने नतमस्तक रहे वह पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी और हज़रत अली अलैहिस्लाम की इमामत पर ईमान लाने वालों की तरह होगा। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम इस दृष्टिकोण के ज़रिए इस मूल बिन्दु की ओर ध्यान ले जाना चाहते हैं कि जनता के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व हज़रत अली अलैहिस्सलाम से शुरु हुआ और इसकी अंतिम कड़ी इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर ख़त्म होगी।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने भी पैग़म्बरे इस्लाम के बारह उत्तराधिकारियों की व्याख्या करते हुए फ़रमाया हैः “जो कोई 11 इमामों को माने लेकिन महदी के वजूद का इंकार करे तो उसकी मिसाल उस व्यक्ति की है जो सारे ईश्वरीय दूत पर आस्था रखे लेकिन मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी का इंकार करे।” इन दोनों आयतों से जो अर्थ सामने आता है वह यह कि पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी और उनके बाद इमामत अर्थात जनता के मार्गदर्शन के विषय के बीच अटूट संबंध है और इमामत पैग़म्बरी के दौर को जारी रखने वाली और इस्लाम धर्म को संपूर्ण बनाने वाली कड़ी है। जिस तरह ईश्वर ने, 18 ज़िलहिज्जा को ग़दीर के मैदान में पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ईश्वर के आदेश से अपने उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त के बाद, मायदा सूरे की आयत भेजी जिसमें ईश्वर कह रहा हैः आज हमने धर्म को तुम्हारे लिए संपूर्ण किया और तुम पर अपनी नेमतें पूरी कीं और मैं इस बात से राज़ी हूं कि इस्लाम तुम्हारा धर्म हो।
इस आधार पर जिन लोगों ने इस्लाम के आरंभ में ग़दीर में ईश्वर के सीधे आदेश की अनदेखी की और हज़रत अली अलैहिस्सलाम मार्गदर्शक व उत्तराधिकारी नहीं बनने दिया और उनके बाद इमामत के क्रम को रोक दिया, वे रास्ते से भटक गए और आम लोगों के ख़्याल के विपरीत इस भटके हुए मत की बुनियाद रखने वालों ने पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली की अवज्ञा नहीं की बल्कि ईश्वर के आदेश की खुल्लम खुल्ला अवज्ञा की। जैसा कि इस विषय की व्याख्या अनाम नामक सूरे की आयत नंबर 33 से होती है जिसमें ईश्वर कह रहा हैः मैं जानता हूं कि जो कुछ वे तुमसे कहते हैं उससे तुम दुखी होते हो। वास्तव में वे तुम्हें नहीं झुटलाते बल्कि अत्याचारी मेरी भेजी हुयी निशानियों का इंकार कर मुझे झुटलाते हैं।
अब तक की बात से आपको यह अंदाज़ा हो गया होगा कि हज़रत इमाम महदी पैग़म्बरे इस्लाम के वंश से हैं जो अत्याचार की समाप्ति और न्याय की स्थापना के लिए आंदोलन चलाएंगे। वह सभी ईश्वरीय दूतों, एकेश्वरवादियों, शहीदों, सच्चों और सदाचारियों की आकांक्षा व उद्देश्य को पूरा करेंगे। इसलिए हमें उनके प्रकट होने के इंतेज़ार करना चाहिए और इस बात को भी समझना चाहिए कि इस दौर में जबकि इमाम महदी प्रकट नहीं हैं तो हमारी क्या ज़िम्मेदारी बनती है? सातवें इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम इमाम महदी के प्रकट न होने के काल की अहम ज़िम्मेदारी का इन शब्दों में उल्लेख करते हैः “धन्य हो हमारे शियों का जो हमारे क़ायम अर्थात इमाम महदी के प्रकट न होने के काल में हमारी इमामत पर बाक़ी रहें और हमारे दुश्मनों से पूरी दृढ़ता से दूरी बनाए रखें। वे दृष्टिकोण के लेहाज़ से हमारी तरह हैं और हम भी उनकी तरह हैं। वे हमारी इमामत से राज़ी व प्रसन्न हैं और हम इस बात से ख़ुश हैं कि कि वे हमारे शिया व अनुसरणकर्ता हैं। शुभसूचना है उनके लिए। ईश्वर की सौगंध कल प्रलय में वह हमारे दर्जें में साथ होंगे और हम एक स्थिति में होंगे।”
जैसा कि अभी इस बात का उल्लेख किया कि इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट न होने के काल में हमारी भी कुछ ज़िम्मेदारी है। हमे हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रहना चाहिए। इस दौर में किसी भी दौर की तुलना में अधिक ज़िम्मेदारी बनती है, क्योंकि आज के दौर में सैकड़ों की संख्या में भ्रष्ट मत वजूद में आए गए हैं और हर कोई किसी न किसी हथकंडे से विश्व जनमत को अपनी ओर मोड़ने की कोशिश में लगा है। इसी बात के मद्देनज़र इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने शियों के लिए रणनीति तय की और उनसे कहा कि वे सड़ी हुयी रस्सी के समान भ्रष्ट मतों से कोई संपर्क न बनाएं बल्कि इमामत पर ईमान लाएं ताकि शैतान के चंगुल में न फंसे। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम आगे फ़रमाते हैः हमारे शियों के लिए ख़ुशख़बरी है जो इमाम महदी के अप्रकट रहने के काल में हमारे दुश्मनों से दूरी बनाए रहें।
इस संबंध में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने भी इमाम महदी अलैहिस्सलाम के बारे में कुछ बिन्दुओं का उल्लेख किया है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अबू अली रय्यार बिन सलत के सवाल के जवाब में जिन्होंने इमाम से पूछा था कि क्या आप ही साहेबुल अम्र हैं? तो इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः “वह साहेबुल अम्र जिनके आने के बारे में बताया गया है, वह मैं नहीं हूं, क्योंकि मैं राजनैतिक स्थिति और शारीरिक क्षमता की दृष्टि पर्याप्त शक्ति नहीं रखता। हमारा क़ायम वह होगा जो जवान प्रकट होगा और विशेष स्थिति से संपन्न तथा बहुत ही शक्तिशाली होगा। इस तरह शक्तिशाली होगा कि अगर सबसे बड़े पेड़ की तरफ़ हाथ बढ़ाएगा तो वह जड़ से उखड़ जाएगा। अगर पहाड़ों के बीच ऊंची आवाज़ में बोलेगा तो चट्टानें ढह जाएंगी। उसके हाथ में मूसा की लाठी और हज़रत सुलैमान की अंगूठी होगी। वह मेरी नस्ल से चौथा बेटा होगा। ईश्वर उन्हें ख़तरों से बचाएगा ताकि उनके प्रकट होने के अनुकूल हालत बनें, लोगों की नज़रों से ओझल रखेगा। उसके बाद उसे जब दुनिया वाले उनकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे, प्रकट करेगा ताकि दुनिया को न्याय से भर दे, उसी तरह जिस तरह वह अत्याचार से भरी होगी।”
इस रवायत में अन्य रवायतों की तरह कुछ बिन्दुओं का उल्लेख है। जैसे यह कि इमाम महदी उस समय प्रकट होंगे जब हालात अनुकूल होंगे और इमाम महदी भी पर्याप्त शक्ति से संपन्न होंगे, क्योंकि इमाम महदी का आंदोलन विश्व व्यापी होगा। अर्थात सभी राष्ट्र उनका स्वागत करने के लिए तय्यार हों, उनके वैश्विक नारे का जवाब दें और शक्तियों से निपटने के लिए ज़रूरी शक्ति से संपन्न भी हों। इसी वजह से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि वह इतने शक्ति शाली होंगे कि अगर अपना हाथ सबसे बड़े पेड़ की ओर बढ़ाएंगे तो वह जड़ से उखड़ जाएगा और वह सख़्त से सख़्त पहाड़ों के बीच ऊंची आवाज़ से बोलेंगे तो चट्टान ढह जाएगी।
इस बात में शक नहीं कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने इस मिसाले से हज़रत इमाम महदी की शक्ति का वर्णन किया है कि ईश्वर उन्हें इतनी शक्ति देगा कि वह जो निर्णय लेना चाहेंगे ले सकेंगे और उनके इरादे के रास्ते में कोई चीज़ रुकावट नहीं बनेगी। विदित शक्ति के साथ साथ इमाम महदी अन्य ईश्वरीय दूतों की तरह ईश्वरीय मदद से संपन्न होंगे। शायद आठवें इमाम के यह कहने का कि उनके हाथ में मूसा की लाठी और हज़रत सुलैमान की अंगूठी होगी, यही तात्पर्य होगा। जिस तरह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फ़िरऔन जैसे शक्तिशाली के मुक़ाबले में डट गए तो इसके पीछे ईश्वरीय मदद थी जिसका जलवा उनके पास मौजूद लाठी में प्रकट हुआ और उसके ज़रिए हज़रत मूसा ने फ़िरऔन झूठी शान को मिट्टी में मिला दिया और उसकी चालों को नाकाम बना दिया। हज़रत सुलैमान की अंगूठी भी उनके अद्वितीय शासन को दर्शाती है कि जिसके दौरान इंसान और जिन्नात उनके क़ब्ज़े में थे यहां तक कि पक्षी भी हज़रत सुलैमान के आदेश का पालन करते थे और किसी में हज़रत सुलैमान का मुक़ाबला करने का साहस न था। क्या वह ईश्वर जिसने अपने इन दो दूतों की इस तरह मदद की ताकि वे अपने अपने दौर में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करें और ईश्वरीय व मानवीय लक्ष्यों को व्यवहारिक बनाएं, वह हज़रत महदी की मदद नहीं करेगा जिन पर पूरी दुनिया की ज़िम्मेदारी होगी। क्या ईश्वर उन्हें इतनी ताक़त नहीं देगा कि वह दुनिया के नास्तिक शासनों का दमन कर न्याय क़ायम करें और अत्याचार का कहीं भी कोई निशान बाक़ी न रहे।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के लिए मानव संसाधन को संगठित करने की शक्ति से संपन्नता को ज़रूरी बताते हुए फ़रमाते हैः “उनके लिए मार्ग समतल होगा, मुश्किलें आसान हो जाएंगी और बद्र नामक इस्लामी जंग के सिपाहियों की संख्या जिसमें 313 मददगार दुनिया के सुदूर क्षेत्रों से उनके पास इकट्ठा होंगे और यह वही बात है जिसका ईश्वर ने बक़रह सूरे की आयत नंबर 33 में उल्लेख किया है कि जहां भी होगे ईश्वर तुम लोगों को इकट्ठा कर देगा कि वह हर चीज़ की शक्ति रखता है।” जब इतने लोग हज़रत इमाम महदी के पास इकट्ठा होंगे तब वह अपना आंदोलन शुरु करेंगे। वह अपने वफ़ादार साथियों के साथ अत्याचारियों के ख़िलाफ़ लड़ाई शुरु करेंगे और इतना लड़ेंगे कि ईश्वर उनसे प्रसन्न हो जाए।