Feb १९, २०१९ १३:५१ Asia/Kolkata

आज की कड़ी में हम ईरान में तीसरी शताब्दी हिजरी क़मरी के मशहूर सूफ़ी हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपने जीवन, अपनी बातों यहां तक कि अपनी मौत से दुनिया में बड़ी हलचल पैदा कर दी भी और शताब्दियों का समय बीत जाने के बावजूद आज भी ईरानी व पश्चिमी शोधकर्ता उनके बारे में लिख रहे हैं।

ईश्वर की याद में लीन रहने वाली इस हस्ती ने ईरान, भारत, तत्कालीन तुर्किस्तान, चीन और माचीन के शहरों में बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित किया।

प्राचीन फ़ारसी में मौजूदा चीन के सिन कियांग राज्य के अलावा क्षेत्रों को माचीन कहते थे।

पश्चिम एशिया के विशेषज्ञों सहित दूसरे विशेषज्ञों ने हुसैन बिन मंसूर हल्लाज को पहचनवाने के लिए काफी प्रयास किया परंतु उसके बावजूद अभी भी उनकी वास्तविक शख़्सियत बहुत से आयाम से स्पष्ट नहीं है।

हल्लाज का अस्ली नाम हुसैन और उनके पिता का नाम मंसूर था। प्राचीन किताबों व स्रोतों में हल्लाज की पैदाइश का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इस्लामी इनसाइक्लोपीडिया में उनके जन्म का साल 244 हिजरी क़मरी बराबर 858 ईसवी बताया गया है। फ़्रांस के तीन पूर्व विद लुई मासिन्यून ने अपनी किताब "हल्लाज की मुसीबतें" हेनरी कॉर्बिन ने इस्लामी दर्शनशास्त्र के इतिहास में और रोजे ऑर्नल्ड ने हल्लाज का मत नामक किताब में हल्लाज के जन्म का साल 244 या इसके आस- पास माना है परंतु इनमें से किसी भी किताब में इस दावे की सच्चाई में कोई दस्तावेज़ पेश नहीं किए गये हैं। ऐसा लगता है कि हल्लाज के जन्म का साल अनुमान पर आधारित है जिसके ज़रिए शोधकर्ताओं ने हल्लाज के जीवन की घटनाओं का अनुमान लगाया है। कुछ स्रोतों जैसे जामी की नफ़हातुल उन्स किताब और हल्लाज के बारे में की गयी शायरी में हल्लाज के जन्म का साल 248 हिजरी क़मरी बताया गया है।

                                                                          

हल्लाज का जन्म फ़ार्स प्रांत के बैज़ा शहर के उपनगरीय भाग में स्थित तूर नामक गांव में हुआ था। वह बचपन में ही अपने परिवार के साथ इराक़ के वासित नगर पलायन कर गए। हल्लाज शब्द का अर्थ रूई को बीज से अलग करने या रूई धुनने के हैं। शुरु में उनकी यही उपाधि थी और धीरे- धीरे उनका अस्ल नाम उनकी उपाधि के सामने दब गया।

हल्लाज ने ज्ञान अर्जित करने के लिए युवाकाल से ही यात्रा आरंभ की और सहल बिन अब्दुल्लाह तुस्तरी, अम्र बिन उसमान मक्की और प्रख्यात ईरानी परिज्ञानी जुनैद नेहावंदी जैसे अपने समय के बड़ी गुरूओं की शिष्यता ग्रहण की और उन सब के निकट एक होनहार शिष्य के रूप में विशेष स्थान प्राप्त किया। उनके बारे में कहा गया है कि वह जहां भी जाते थे बहुत अधिक लोग उनके अनुयाई हो जाते थे।

पवित्र नगर मक्का से बगदाद लौटने के बाद वर्ष 294 हिजरी कमरी में हल्लाज के भाषण और उनकी गतिविधियां आरंभ हुईं। हल्लाज ने पहली बार बगदाद में लोगों को उपदेश देना आरंभ किया और अपने काल के पाखंडी सूफियों को बेनकाब और अपमानित किया। सूफियों का वस्त्र अपने शरीर से उतार कर उन्होंने ज़मीन पर फेंक दिया ताकि अब वे सूफियों की भांति चुप न रह सकें। हुसैन बिन मंसूर हल्लाज पूरी निष्ठा से महान ईश्वर को याद करते थे, नमाज़ पढ़ते थे, रोज़ा रखते थे और पवित्र कुरआन की तिलावत करते थे और किसी प्रकार के भय व चिंता के बिना मौत की बात करते थे। लोगों के साथ खुलकर बात करते थे। सबसे अधिक लेखकों, व्यापारियों और सर्राफ़ियों से बात करते थे। इनमें से अधिकांश पढ़े- लिखे होते थे। कुछ ही दिनों में बहुत से लोग विशेषकर ईरानी उनके अनुयाई बन गये। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि इनमें से अधिकांश हल्लाज की बातों की गहराइयों को नहीं समझते थे परंतु वे हल्लाज की बातों को सुनकर उनके अनुयाई बन जाते थे। जो लोग सदैव अपने लिए एक सुधारक की खोज में रहते हैं उन्होंने हुसैन बिन मंसूर हल्लाज को सुधारक पाया। लोग हुसैन बिन मंसूर हल्लाज को पत्र लिखते थे, उनसे दुआ करवाते और अपनी मुश्किल का हल चाहते थे। काफी लोग उनके संपर्क में थे। यह संपर्क बगदाद के धर्मशास्त्रियों और शासकों के भय का कारण बना।

बहुत से लोग हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के दुश्मन भी थे और उनमें अधिकांश प्रभावशाली भी थे। बगदाद के धर्मशास्त्रियों को हुसैन बिन मंसूर हल्लाज की बातें और विचार स्वीकार्य नहीं थे और वे हल्लाज के विरोध में उठ खड़े हुए। बगदाद के कुछ सुन्नी सूफियों ने उन पर जादूगर और पाखंडी होने का आरोप लगाया जबकि बग़दाद के कुछ धर्मशास्त्रियों ने उन पर अल्लाह का दावा करने का आरोप लगाया। यही बातें इस बात का कारण बनीं कि अधिकांश लोग वास्तविकता से अनभिज्ञ रह गये।

इसी कारण वर्ष 297 हिजरी कमरी में जब मोहम्मद बिन दाऊद ज़ाहिरी नाम के धर्मशास्त्री ने हल्लाज की मौत और उनके काफिर होने का फतवा दिया तो बगदाद के लोगों को हल्लाज के बारे में सही से पता नहीं था जबकि कुछ लोगों का मानना था कि हल्लाज की दुआ कबूल होती थी और वह चमत्कार भी कर सकते थे। मोहम्मद बिन दाऊद ज़ाहिरी ने हल्लाज के खिलाफ जो फतवा दिया था उसका कुछ प्रभाव नहीं हुआ और हल्लाज ने उसके बाद वर्षो तक अपने विचारों व आस्थाओं का अहवाज़ और शूश में प्रचार- प्रसार किया।

बहुत से लोग हल्लाज से श्रृद्धा रखते थे और हल्लाज बगदाद सरकार की नीतियों में जो हस्तक्षेप करते थे लोग उसका समर्थन करते थे। यही कारण था कि हल्लाज ने बगदाद के मंत्रियों और धर्मशास्त्रियों के लिए एक मार्गदर्शन पुस्तिका लिखी और उसे हुसैन बिन हमदान नस्र व बिन ईसा को दे दिया।

वर्ष 298 हिजरी कमरी में सुन्नी मुसलमानों के एक गुट ने सुधार के नाम पर विद्रोह किया परंतु यह विद्रोह विफल रहा और खिलाफत की गद्दी अलमुकतदिर अब्बासी को मिली जो उस समय एक बच्चे से अधिक कुछ नहीं था और इब्ने फुरात नाम के दक्ष मंत्री ने कार्यभार संभाल लिया। इस मंत्री ने अमीर हुसैन बिन हमदान को गिरफ्तार करने का प्रयास किया। उस समय अमीर हुसैन बिन हमदान भागे हुए थे। इस मंत्री की खोज- बीन के परिणाम में हल्लाज मिल गये। हल्लाज, अमीर हुसैन बिन हमदान के सलाहकार और उसके बहुत निकटवर्ती थे। इब्ने फुरात ने सबसे पहले हल्लाज पर कड़ी नज़र रखने का आदेश दिया और कहा कि जहां भी हल्लाज के दोस्त मिल जायें उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाये। हल्लाज उस समय शूश नगर में छिपे हुए थे और इन्ने फुरात के आदमी तीन वर्षों तक उन्हें ढूंढ़ते रहे यहां तक कि उन लोगों ने हल्लाज के छिपने के स्थान का पता लगा लिया और जब हल्लाज ने अपनी पहचान से इंकार करने का प्रयास किया तो उनके एक विश्वासघाती अनुयाई के बता देने पर उनकी पहचान हो गयी और उन्हें गिरफ्तार करके बगदाद ले जाया गया।

 

अध्ययनकर्ता ज़र्रीनकूब ने ईरानी इतिहासकारों के हवाले से लिखा है कि रबीउल अव्वल 301 हिजरी कमरी को मुकद्दमा चलाने के लिए जब हल्लाज को बगदाद लाया गया तो उन्हें एक ऊंट पर बिठाया गया और एक आदमी आवाज़ देता था कि क़रतमियों का एक जासूस सामने नौकर आए और उन्हें पहचाने।

हल्लाज के दुश्मनों ने उन पर भारी आरोप लगाये और कहा कि हल्लाज ने अहवाज़ और बगदाद में खुदाई का दावा किया है। इसी प्रकार हल्लाज के दुश्मनों ने उन पर आरोप लगाया कि हल्लाज ने अपने दोस्तों एवं अनुयाइयों को जो पत्र लिखा है उसमें अपने अंदर ईश्वर के समा जाने का दावा किया है परंतु हल्लाज ने कहा कि उनका अपराध एक ईश्वर पर उनकी आस्था है जिसे हमारे दुश्मन न तो समझ सकें हैं और न ही सहन कर सकते हैं।

कहा जाता है कि जब किसी ने हल्लाज से पूछा कि उन्हें किस अपराध में पकड़ा गया है तो उसके जवाब में एक शेर पढ़ा जिसका अनुवाद यह है कि पांच अक्षरों के अपराध में मुझे गिरफ्तार किया गया है और उनमें से तीनों अक्षरों पर बिन्दु नहीं है जबकि दो पर बिन्दु है बस यही। हल्लाज ने अपने शेर में तौहीद शब्द का प्रयोग किया है जिसका अर्थ एकईश्वर है। हल्लाज का कहना था कि धर्मशास्त्रियों ने उनके खिलाफ जो फतवा दिया है उसका कारण ईश्वर के बारे में उनका विश्वास है।

मंत्री अली बिन ईसा और धर्मशास्त्रियों की मौजूदगी में हल्लाज पर मुकद्दमा चलाया गया और हल्लाज के विरोधियों ने दावा किया कि वह कुरआन और उसकी शिक्षाओं से अनभिज्ञ हैं। इसी प्रकार हल्लाज के दुश्मनों और विरोधियों ने इस मुकद्दमें में उन पर दूसरे बहुत सारे आरोप लगाये। इस मुकद्दमें में हल्लाज का काफिर और अधर्मी होना सिद्ध न हो सका परंतु मंत्री अली बिन ईसा ने हल्लाज की दाढ़ी मूंड देने का आदेश दिया और कहा कि हल्लाज को एक दिन पुल के पूर्वी हिस्से पर और दूसरे दिन पुल के पश्चिमी हिस्से पर ज़िन्दा सलिब पर लटकाया जाये। एक आदमी ने आवाज़ भी लगाई कि एक क़रमती व अधर्मी आ रहा है उसे पहचाओ।

दो दिन के बाद हल्लाज को सलीब से खोला गया और जांच- पड़ताल को जारी रखने के लिए उन्हें कारावास ले जाया गया जो आठ वर्षों तक लंबा खिंचा। हल्लाज के साथ कारावास में उनका सेवक और उनका साला भी था उन सबको भी हल्लाज के साथ एक कारावास से दूसरे कारावास स्थानांतरित किया जाता था। अलबत्ता हल्लाज को कारावास में बंदियों के मध्य अपने विचार व आस्था के प्रचार- प्रसार की अनुमति दी गयी। इन्हीं कारावासों से वह शासक तक पहुंच गये जिसे ख़लीफ़ा कहा जाता था।

बताया जाता है कि 303 हिजरी कमरी में शासक को भारी बुखार आ गया और लोग हल्लाज को कारावास से निकालने पर बाध्य हो गये ताकि वह शासक का उपचार कर सकें। हल्लाज ने शासक का उपचार किया और वह ठीक हो गया। इसी प्रकार हल्लाज ने 305 हिजरी कमरी में युवराज तूती अमानी का भी उपचार किया और वह भी ठीक हो गया। ये चीज़ें उनसे ईर्ष्या करने वालों की संख्या में वृद्धि हो जाने का कारण बनीं। इसी प्रकार ये चीज़ें उनके खिलाफ़ नगर और शासक के दरबार में बहुत सी अफवाहों के फैलने का भी कारण बनीं। 304 से 306 हिजरी क़मरी के बीच मंत्रालय का कार्यभार दोबारा इब्ने फुरात के हाथ में आ गया किन्तु इब्ने फुरात दोबारा हल्लाज पर मुकद्दमा चलाने का साहस न कर सका क्योंकि शासक की मां हल्लाज के अनुयाइयों में थी।