Feb २०, २०१९ १४:०७ Asia/Kolkata

यूरोपीय संघ कुछ यूरोपीय देशों का एसा संघ है जिसका लक्ष्य आर्थिक, वित्तीय, सीमावर्ती, विदेश नीति और सुरक्षा जैसी नीतियों के बारे में परस्पर समन्वय बनाते हुए इस संघ को आगे बढ़ाना है। 

इसके 28 सदस्य थे किंतु मार्च 2019 में ब्रिटेन के इससे निकल जाने से इस संघ के सदस्यों की संख्या अब 27 रह जाएगी।  यूरोपीय संघ की जनसंख्या लगभग 511 मिलयन है।  सन 2017 में इसका सकल घरेलू उत्पाद 17 दश्मलव 2 ट्रिलियन डालर से भी अधिक था।  विश्व की अर्थव्यवस्था में यूरोपीय संघ की भागीदारी लगभग 27 दश्मलव 8 प्रतिशत हैं।  इसके कई देश नेटो के सदस्य हैं।  यूरोपीय संघ को हालिया वर्षों में विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा।  इन चुनौतियों से मुक़ाबले के बारे में क्या नीतियां अपनाई जाएं इसको लेकर यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच गंभीर मतभेद उत्पन्न हो गए जो आज भी जारी हैं। 

इटली में जबसे एक दक्षिणपंथी सरकार अस्तित्व में आई है, दक्षिणपंथी दलों के नेताओं ने विभिन्न अवसरों पर फ्रांस सहित यूरोपीय संघ के कई देशों के बारे में अलग प्रकार की नीतियां अपनाई हैं।  इन दक्षिणपंथी नेताओं ने यूरोप में मूलभूत परिवर्तनों की आवश्यकता पर बल दिया है।  पिछले कुछ महीनों के दौरान फ़्रांस में येलो जैकेट आन्दोलन का विस्तृत विरोध और इटली की दक्षिणपंथी सरकार के अधिकारियों की ओर से इसके समर्थन के कारण यूरोप के इन दो बड़े देशों के संबन्धों में तनाव पैदा हो गया है।  इसी संदर्भ में इटली की सरकार द्वारा येलो जैकेट आन्दोलन के समर्थन पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए फ़्रांस ने इटली से अपना राजदूत वापस बुला लिया।  अपने राजदूत को वापस बुलाने के संदर्भ में फ़्रांस के विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि इटली की ओर से फ्रांस के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया जा रहा है।  इस बयान में कहा गया है कि इटली की कार्यवाहियां, परिस्थितियों को जटिल बना रही हैं और इनसे फ़्रांस के बारे में इटली की नियत का अंदाज़ा होता है।

कुछ समय पहले फ़्रांस के विदेश मंत्रालय ने पेरिस में मौजूद इटली के दूत को इसलिए विदेश मंत्रालय तलब किया था कि इटली के उप प्रधानमंत्री ने यूरोपीय संघ से फ़्रांस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।  इन दोनो यूरोपीय देशों के बीच तनाव उस घटना के बाद अधिक बढ गया जब इटली के उप प्रधानमंत्री Luigi Di Maio ने येलो जैकेट आन्दोलन के दो नेताओं से भेंटवार्ता की।

फाइव स्टार आन्दोलन दल के प्रमुख लुईजी डिमाओ ने कहा है कि यूरोपीय संघ को चाहिए कि वह फ़्रांस सहित हर उस देश पर प्रतिबंध लगाए जो अफ़्रीका को ग़रीब बना रहे हैं और वहां के लोगों को पलायन के लिए विवश करते हैं।  उन्होंने कहा कि अफ्रीक़ियों का स्थान अफ्रीक़ा में है न कि मेडिट्रेनियन में।

सन 2019 की जनवरी के आरंभ में इटली के गृहमंत्री और दक्षिणपंथी दल Lega Nord के प्रमुख Metteo Salvini की ओर से फ़्रांस के पूंजीवाद विरोधी आन्दोलन के समर्थन और फ़्रांसीसी राष्ट्रपति से राष्ट्रपति पद छोड़ने की मांग के कारण फ़्रांसीसी अधिकारियों ने इसपर कड़ी प्रतिक्रियाएं दी थीं।  मेटो सालवीनी के अनुसार यूरोपीय संघ के देश भ्रष्ट पारंपरिक दलों की गिरफ़्त में हैं।

निश्चित रूप से इटली की दक्षिणपंथी सरकार के अधिकारियों की ओर से यह मांग, यूरोपीय देशों की परस्पर समन्वय की नीति के अनुरूप नहीं है बल्कि यह यूरोपीय देशों के बीच समस्याओं के बढ़ने के अर्थ में है।  यही कारण है कि फ़्रांस के यूरोपीय मामलों के मंत्री नथाले लोइसा ने इटली के अधिकारियों को संबोधित करते हुए ट्रवीट किया है कि उचित यह है कि आप अपने घर के बाहर झाड़ू दें।  दूसरे शब्दों में उन्होंने यह मांग की है कि इटली के अधिकारी यूरोपीय देशों की जनता को उनके कर्तव्य बताने के बजाए इटली की समस्याओं का समाधान करें और इस देश की जनता की मांगों पर ध्यान केन्द्रित करें।

फ़्रांस के एक अधिकारी रिचर्ड फेरांड ने अपने एक साक्षात्कार में अपने देश के बारे में इटली के कुछ अधिकारियों की बातों की आलोचना करते हुए कहा है कि यूरोपीय संघ की योग्यता इटली के अधिकारियों की अय्याशी से अधिक है।

राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में यूरोपीय संघ के लिए उत्पन्न चुनौतियों में से एक चुनौती यह है कि यूरोप में बहुत तेज़ी से राष्ट्रवाद उभर रहा है जो अपने साथ अतिवाद भी लिए हुए है।  इस विचारधारा के लोग और राजनैतिक दी हालिया कुछ वर्षों के दौरान कुछ यूरोपीय देशों की संसद तक पहुंच गए हैं।  इस विषय ने बहुत से लोगों को चिंता में डाल दिया है।  इसपर जर्मनी की चांस्लर एंग्ला मर्केल ने नकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।  उनकी नकारात्मक प्रतिक्रिया को इसलिए महत्व दिया जा रहा है क्योंकि जर्मनी, यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।  उन्होंने यूरोप में बढ़ते राष्ट्रवाद पर चिंता जताते हुए चेतावनी दी है और इस विध्वंसक सोच से मुक़ाबले के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहकारिता करने का आह्वान किया है।  मर्केल का कहना है कि जर्मनी सहित कुछ देशों में अतिवादी राष्ट्रवाद तेज़ी से बढ़ रहा है।

वास्तविकता यह है कि यूरोपीय संघ की मूल नीति अर्थात यूरोपियों के बीच सहकारिता को सुदृढ़ करने के बजाय वहां पर अतिवादी राष्ट्रवाद और दूसरों के विरुद्ध घृणा की भावना में तेज़ी देखने में आ रही है।  विशेष बात यह है कि हालिया कुछ वर्षों के दौरान यूरोपीय संघ के कुछ देशों जैसे जर्मनी, फ्रांस, इटली, आस्ट्रिया, पोलैण्ड, हंग्री और चेक गणराज्य जैसे देशों में अतिवादी दलों ने ज़ोर पकड़ा है और उनकी स्थिति बेहतर हुई है।  इस बात की संभावना व्यक्त की जा रही है कि मई 2019 के यूरोपीय संघ की संसद के चुनाव में एक तिहाई कुर्सियां, अतिवादी दक्षिणपंथी दलों के हाथों लग सकती हैं।  यूरोपीय देशों में राजनैतिक मंच पर इस प्रकार के दलों की उपस्थिति से यूरोप में जहां अतिवादी विचारधारा को बल मिला है वहीं इससे यूरोपीय संघ की परस्पर सहकारिता नीति ही प्रभावित हुई है।

यूरोपीय संघ के वरिष्ठ अधिकारी ने बढ़ते अतिवादी राष्ट्रवाद के ख़तरे के प्रति चेतावनी दी है।  यूरोपीय आयोग के प्रमुख जान क्लोड यूनकर ने अपने एक संबोधन में यूरोप में दिन प्रतिदिन बढ़ते राष्ट्रवाद के ख़तरे के बारे में कहा है कि अतिवादी राष्ट्रवाद ने अबतक किसी समस्या का समाधान नहीं किया है बल्कि इसके कारण कई नई समस्याएं सामने आई हैं।  उनका मानना है कि यूरोप में पोपुलिस्ट केवल दोषी की तलाश में हैं और वे एसे समाधान पेश कर रहे हैं जो यूरोपीय संघ की नीतियों के विरुद्ध हैं।  यूनकर के अनुसार बहुत से यूरोपीय देशों में पापुलिस्ट दलों का स्वागत जनता द्वारा किया जा रहा है।  अतिवादी राष्ट्रवादी दल जो नारे पेश कर रहे हैं उनके भीतर यूरोपीय जनता में आकर्षण पाया जाता है।

यूरोप में अतिवादी राष्ट्रवाद की ओर झुकाव, यूरोपीय संघ के कुछ समझौतों के लिए ख़तरा सिद्ध हो सकता है जैसे शेन्गेन समझौता।  दूसरी ओर यह प्रक्रिया और इसका प्रचार हिंसक झड़पों और हिंसक कार्यवाहियों का कारण बना है।  इस विचारधारा के समर्थक पलायनकर्ताओं और मुसलमानों तथा उनके धार्मिक केन्द्रों पर हमले करते रहते हैं।  इस प्रकार की हिंसक कार्यवाहियां, यूरोपीय सरकारों और वहां की जनता के लिए ख़तरे की घंटी हैं अतः इस प्रक्रिया को फैलने से रोकने के लिए जितना जल्दी हो सके प्रभावशाली क़दम उठाए जाएं।

एक अन्य विषय जो यूरोपीय संघ के अस्तित्व के लिए गंभीर ख़तरा बना हुआ है, पुराने और नए यूरोपियों के बीच बढ़ती खाई है।  पुराना यूरोप, वास्तव में बड़े एवं मध्यम यूरोपीय देशों पर आधारित है जो यूरोप के पश्चिम में स्थित हैं।  नया यूरोप केन्द्रीय और पूर्वी यूरोपीय देशों पर आधारित है जो सन 2000 के बाद से यूरोपीय संघ के सदस्य बने हैं।  वर्तमान समय में कुछ विषयों को लेकर नए और पुराने यूरोप में गंभीर मतभेद बढ़ते जा रहे हैं जैसे पलायनकर्ताओं का संकट, आर्थिक संकट और यूरोप में अमरीका की भूमिका को लेकर परस्पर मतभेद आदि।  इसके अतिरिक्त भी निर्धन तथा धनवान यूरोपीय देशों के बीच भी नाना प्रकार के मतभेद पाए जाते हैं।  यूरोप के धनवान देश अधिक्तर यूरोप के पश्चिम और उत्तर में स्थित हैं जबकि निर्धन देश यूरोप के पूर्व और दक्षिण में हैं।

एक राजनीति टीकाकार सैयद अफ़क़ही के अनुसार अमरीका, नए और पुराने यूरोप के बीच एक व्यवस्था स्थापित करना चाहता है।  पुराने यूरोप से अमरीका का तातपर्य ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी और स्पेन हैं जबकि नए यूरोप से उसका तातपर्य पूर्वी यूरोप के देश हैं।  वे कहते हैं कि यह अमरीका के हित में होगा कि वह पूर्वी और पश्चिमी यूरोप के छोटे देशों तथा रूस के साथ इन देशों के बीच मतभेद पैदा करके मज़बूत यूरोप के गठन को रोक सके।  इस प्रकार से अमरीका यूरोप में सरलता से अपने हितों को साध सकता है।

जर्मनी और फ्रांस जैसे बड़े एवं मज़बूत यूरोपीय देश इस निष्कर्श पर पहुंचे हैं कि यूरोपीय संघ में पाई जाने वाली संभावनाओं के दृष्टिग यह सोचना अनुचित है कि निर्धन और अमीर दोनों ही प्रकार के यूरोपीय देश एक साथ मिलकर यूरोपीय संघ के विकास के लिए मिलकर काम करेंगे।  यही कारण है कि बड़े यूरोपीय देश यह चाहते हैं कि यूरोपीय संघ के दृष्टिगत योजनाओं तथा परियोजनाओं में सारे ही यूरोपीय देश भाग न लें बल्कि सशक्त देश ही इसमें हिस्सा लें।

जर्मनी और फ़्रांस जैसे यूरोपीय संघ के देश यह चाहते हैं कि सदस्य देशों की भागीदारी से यह संघ, एक शक्तिशाली संघ के रूप में उभरे।  एसा लगता है कि यूरोपीय संध का शीर्ष नेतृत्व इस बात से लगभग अंजान था कि सन 2000 में बहुत सी शर्तों को अनदेखा करते हुए पूर्वी एवं केन्द्रीय यूरोप के देशों को यूरोपीय संघ की सदस्यता प्रदान करने से कई प्रकार की एसी समस्याएं उत्पन्न होंगी जिनका समाधान शायद असंभ हो।  जैसाकि हम देखते हैं कि यूरोपीय संघ के सामने आने वाले संकटों के समाधान में उत्तरी और दक्षिणी यूरोप के देशों के बीच गंभीर मतभेद पाए जाते हैं।  उदाहरण स्वरूप सन 2008 के आर्थिक संकट के बाद ख़र्चों में कटौती, आर्थिक पैकेज, शरणार्थी संकट और इस जैसे कई संकटों के संबन्ध में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के दृष्टिकोणों में खुले हुए मतभेद दिखाई देते हैं।  इन मतभेदों में एक मतभेद यह है कि यूरोपीय संघ की मूल नीति के विपरीत नया यूरोप, यूरोपी मामलों में अमरीका के अधिक से अधिक व्यवहारिक हस्तक्षेप का पक्षधर है जबकि यूरोपीय संघ चाहता है कि वह उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के बिना स्वतंत्र रूप में काम करे।

 

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