Mar ०४, २०१९ १४:१७ Asia/Kolkata

आपको अवश्य याद होगा कि पिछले कार्यक्रमों में हमने पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की जीवनी पर एक नज़र डाली और हम इस वास्तविकता से परिचित हुए कि सच्चे मार्गदर्शकों और ईश्वरीय दूतों ने अपने समय के हालात की ज़रूरतों के दृष्टिगत नीति अपनाई परंतु महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम को नई परिस्थितियों का सामना हुआ और महान ईश्वर ने उन्हें अज्ञात वास में रख लिया और वह लोगों की नज़रों से ओझल हो गये।

इमाम के लोगों की नज़रों से ओझल होने के समय को दो भागों में बांटा जा सकता है एक ग़ैबते सुग़रा और दूसरे ग़ैबते कुबरा। जब महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम कुछ सीमित समय के लिए लोगों की नज़रों से ओझल हुए थे और कुछ विशेष लोग इमाम और लोगों के मध्य संपर्क पुल की भूमिका निभा रहे थे तो उस काल को ग़ैबते सुग़रा कहते हैं और जब इमाम लंबे समय के लिए लोगों की नज़रों से ओझल हो गये हैं और उनका कोई विशेष प्रतिनिधि नहीं है तो इस काल को ग़ैबते कुबरा कहते हैं और इस अवधि में वे धर्मगुरू इमाम के प्रतिनिधि हैं जिनके अंदर विशेष शर्तें मौजूद हैं।

महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने फरमाया है” किन्तु घटनाओं में हमारी रवायतों के जानकारों से संपर्क करो। वे हमारी ओर से तुम पर प्रतिनिधि हैं और हम ईश्वर की ओर से उन पर प्रतिनिधि हैं।

इस और दूसरी रवायतों के आधार पर विलायते फ़कीह अर्थात धर्मशास्त्री की सरकार का उल्लेख शीया धर्मशास्त्र में किया गया है। इसी प्रकार इस रिवायत में बल देकर कहा गया है कि महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ओर से वह धर्मशात्री समाज का नेतृत्व करेगा जिसके अंदर विशेष शर्तें पायी जायेंगी। शीया धर्म के वरिष्ठ धर्मगुरू एवं विद्वान शैख कुलैनी और शैख सदूक़ ने विलायते फ़क़ीह के बारे में कुछ बातें लिखी हैं और उनके बाद शैख़ मुफीद ने भी इस संबंध में कुछ बातें लिखी हैं और उन्होंने इस बात को स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि इस्लामी समाज पर अत्याचारी शासन नहीं कर सकते और उनका मानना है कि इस्लामी समाज पर शासन करने का अधिकार उस धर्मगुरू को है जिसके अंदर विशेष शर्तें मौजूद हों। वह लिखते हैं न्याय करने वाले, अहले हक़ व सत्य, विशेषज्ञ, बुद्धिमान, और सदगुणों से सुसज्जित धर्मशास्त्री उन दायित्वों को संभालेंगे जिनका निर्वाह न्यायी शासक यानी इमाम मासूम करता है। शैख़ तूसी चौथी हिजरी शताब्दी के एक जाने माने विद्वान एवं धर्मशास्त्री हैं। वह इस संबंध में लिखते हैं “लोगों के मध्य केवल वे लोग ही न्याय कर सकते हैं जिन्हें इमाम मासूम ने इस कार्य की अनुमति दी हो। मासूमों ने भी इस कार्य को महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत के काल में शीया धर्मशास्त्रियों के हवाले कर दिया है।“

इब्ने इदरीस हलबी, ख़ाजा नसीरुद्दीन तूसी, मुहक्किके सानी और शैख बहाई जैसे विद्वानों ने भी विलायते फ़क़ीह का उल्लेख किया है। वर्तमान समय में ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने भी विलायते फ़कीह के विषय को पेश किया है। वह इस संबंध में कहते हैं” ईरान की इस्लामी क्रांति इमाम महदी अलैहिस्सलाम की अंतरराष्ट्रीय सरकार की भूमिका है।“

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैहि का यह बयान इस बात का सूचक है कि महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की प्रतीक्षा का काल कुफ्र और अनेकेश्वरवादियों से मुकाबले में अपनी ज़िम्मेदारियों से लापरवाह रहने, भेदभाव और अन्याय से मुकाबले में मौन धारण का काल नहीं है बल्कि पूरी क्षमता के साथ मैदान में डट कर लूट खसोट करने वालों का मुकाबला करना चाहिये और मानव समाज को अन्याय, भेदभाव, अपराध और विश्व वर्चस्ववादियों के अपराधों का मुकाबला करके महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की अंतरराष्ट्रीय सरकार के लिए भूमि प्रशस्त करनी चाहिये। इस आधार पर प्रतीक्षा का काल प्रतिरोध, प्रयास और काम करने का काल है। ठीक यही वजह से है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है” मेरी उम्मत व क़ौम का बेहतरीन कार्य प्रतीक्षा है यानी महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने की प्रतीक्षा करना बेहतरीन कार्य है।

अलबत्ता इस विषय के संबंध में कहना चाहिये कि महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबते सुग़रा अर्थात नज़रों से ओझल रहने के काल में समाज को उसके हाल पर छोड़ देना चाहिये और वर्चस्ववादी जो भी कर रहे हैं उस पर मौन धारण करना चाहिये या उनके अपराधों के मुकाबले में समस्त पैग़म्बरों, इमामों और सच्चे मार्गदर्शकों की भांति पूरी क्षमता के साथ डट जाना चाहिये? इस संबंध में इन दोनों हालतों पर ध्यान देना चाहिये और इस बात को भी नज़र में रखना चाहिये कि ग़ैबते कुबरा के काल में समाज के अधिकांश लोगों की महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम तक सीधी पहुंच नहीं है।

हज़रत नूह, हज़रत मूसा और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम जैसे पैग़म्बरों ने अपने समय के अत्याचारियों से मुकाबले में जो प्रतिरोध किया था उसे पवित्र क़ुरआन ने बयान किया है परंतु हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अत्याचारी शासक नमरूद के मुकाबले में जो प्रतिरोध किया था उसे विशेष रूप से बयान किया है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे मुमतहेना की चौथी आयत में कहता है” इब्राहीम तुम्हारे लिए बेहतरीन आदर्श हैं और वे लोग भी जो इब्राहीम के साथ हैं जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि हम तुमसे और उन चीज़ों से विरक्त व बेज़ार हैं जिनकी तुम ईश्वर के अलावा उपासना करते हो और हमारे और तुम्हारे बीच सदा के लिए दुश्मनी और क्रोध स्पष्ट हो गया है यहां तक कि तुम एक ईश्वर पर ईमान लाओ।“

पवित्र कुरआन की इस आयत के अनुसार यद्यपि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की जीवन शैली काफिरों और अनेकेश्वरवादियों के मुकाबले में एकेश्वरवादियों के लिए आदर्श है परंतु दूसरों से अधिक धर्मशास्त्री को इस आदर्श का अनुसरण करना और विश्व के काफिरों एवं वर्चस्ववादियों के मुकाबले में डट जाना चाहिये और उसे चाहिये कि वह एकेश्वरवाद पर आधारित आस्थाओं की रक्षा करे।

 

व्यक्तिगत और सामाजिक समस्त क्षेत्रों में इस्लामी आदेशों का लागू होना ज़रूरी है और यह वह तर्क है जो विलायते फ़कीह के प्रति कटिबद्ध रहने को आवश्यक बनाता है। क्या इस्लामी सरकार व व्यवस्था स्थापित हुए बिना इस्लामी आदेशों के लागू किये जाने की संभावना है? क्या कार्यक्रम बनाये बिना और शक्तिशाली सरकार के गठन के बिना ज़ोरज़बरदस्ती करने वाली शक्तियों से प्रतिरोध किया जा सकता है और इस्लाम एवं उसके उद्देश्यों की रक्षा की जा सकती है? इस्लाम के आरंभिक काल में भी रोज़ा, खुम्स, ज़कात, हज और जेहाद जैसे इस्लाम के अधिकांश आदेश पैग़म्बरे इस्लाम को उस समय दिये गये जब पवित्र नगर मदीना में उन्होंने इस्लामी सरकार का गठन कर लिया था। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी उस समय जमल समझौते का उल्लंघन करने वालों, खवारिज और उमवी सरकार के भ्रष्ट शासकों से मुकाबला और न्याय को लागू कर सके जब मुसलमानों ने उन्हें अपना ख़लीफा माना और इस्लामी सरकार की बागड़ोर उनमें हाथ में थी। इसी प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने गवर्नरों की नियुक्ति और उनके हटाये जाने का कार्य उसी समय किया जब सरकार उनके पास थी परंतु दूसरे इमामों के काल में यह महत्वपूर्ण चीज़ सामने नहीं आयी यानी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बाद किसी इमाम के हाथ में सरकार ही नहीं आयी परंतु समस्त इमामों ने सरकार गठन के लिए प्रयास किया ताकि वे अपने समय के अत्याचारियों से लोगों को मुक्ति दिलायें और दुनिया को न्याय से भर दें पर दुर्भाग्य से एसा न हो सका।

 

विलायते फकीह अर्थात धर्मशास्त्री की सरकार के गठन के बारे में इतने सारे प्रमाणों के बावजूद बहाने की खोज में रहने वालों का कहना है कि अगर हम विलायते फकीह को स्वीकार भी कर लें तब भी यह सवाल अपने स्थान पर बना रहता है कि जो भी धर्मशास्त्री होगा वह मासूम नहीं होगा और जब वह मासूम नहीं होगा तो वह ग़लती और गुनाह से सुरक्षित भी नहीं होगा तो फिर उसे वह अधिकार कैसे प्राप्त होगें जो इमाम मासूम को प्राप्त हैं? इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैहि इस दृष्टिकोण को अस्विकार करते हुए कहते हैं” यह सोचना ग़लत है कि पैग़म्बरे इस्लाम की सरकार का अधिकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सरकार के अधिकार से अधिक था या हज़रत अलैहिस्सलाम की सरकार का अधिकार विलायते फ़कीह की सरकार से अधिक था। अलबत्ता पैग़म्बरे इस्लाम की विशेषता पूरी दुनिया में सबसे अधिक है और उनके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम हैं परंतु अधिक विशेषता इस बात की दलील नहीं है कि सरकार के अधिकार भी अधिक हैं और जो अधिकार पैग़म्बरे इस्लाम और दूसरे इमामों के थे जैसे सेना तैयार करना, गवर्नरों की नियुक्ति, टैक्स की वसूली और मुसलमानों के कल्याण के लिए खर्च करना, वही अधिकार वर्तमान सरकार को भी हासिल हैं किन्तु इसके लिए कोई विशेष व्यक्ति दृष्टिगत नहीं है और जिस चीज़ पर बल दिया गया है वह धर्मशास्त्री का विद्वान और न्याय करने वाला होना है।

 

विलायते फक़ीह के संबंध में जिस चीज़ पर ध्यान दिया जाना चाहिये वह यह है कि हर धर्मशास्त्री और धर्म की पहचान रखने वाला इस पद के योग्य नहीं है बल्कि जो धर्मशास्त्री दृ ष्टिगत है वह यह है कि उसे हर क्षेत्र में विशेष दक्षता से सम्पन्न होना चाहिये। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम इन विशेषताओं के बारे में फरमाते हैं” जो धर्मशास्त्री अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखे और अपने धर्म की सुरक्षा करे और अपनी आंतरिक इच्छाओं का विरोध करे और अपने स्वामी व ईश्वर के आदेशों का पालन करे सब पर उसकी तकलीद व अनुसरण अनिवार्य है”

पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की पहचान के संबंध में एक ध्यान योग्य बिन्दु और बुनियादी सवाल यह है कि दुनिया का अंत किस व्यवस्था के अनुसार होगा और यह वह विषय है जिसे पश्चिमी विचारक अपने हित में दर्शाने की चेष्टा करते हैं। इस सवाल के जवाब को ग़दीर के अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा दिये गये एतिहासिक भाषण में प्राप्त किया जा सकता है। पैग़म्बरे इस्लाम ने उस भाषण में फरमाया है” वह यानी महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम अत्याचार के समस्त महलों को ध्वस्त कर देगा और समस्त व्यवस्थाओं और धर्मों पर विजय प्राप्त करेगा। सचेह हो जाओ कोई भी उस पर विजय हासिल नहीं कर सकेगा” यानी ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने भी विलायते फ़कीह के विषय को पेश किया है। वह इस संबंध में कहते हैं” ईरान की इस्लामी क्रांति इमाम महदी अलैहिस्सलाम की अंतरराष्ट्रीय सरकार की भूमिका है।“

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैहि का यह बयान इस बात का सूचक है कि महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की प्रतीक्षा का काल कुफ्र और अनेकेश्वरवादियों से मुकाबले, अपनी ज़िम्मेदारियों से लापरवाह रहने, भेदभाव और अन्याय से मुकाबले में मौन धारण करने का काल नहीं है बल्कि पूरी क्षमता के साथ मैदान में डट कर लूट- खसोट करने वालों का मुकाबला करना चाहिये और मानव समाज को अन्याय, भेदभाव, अपराध और विश्व वर्चस्ववादियों के अपराधों का मुकाबला करके महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की अंतरराष्ट्रीय सरकार के लिए भूमि प्रशस्त करनी चाहिये। इस आधार पर प्रतीक्षा का काल प्रतिरोध, प्रयास और काम करने का काल है। ठीक इसी वजह से पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि मेरी उम्मत व क़ौम का बेहतरीन कार्य प्रतीक्षा है यानी महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की विजय निश्चित है वह दुनिया की हर शक्ति पर विजय की पताका लहरायेंगे और समूचे विश्व से अत्याचार का अंत करके दुनिया को न्याय और शांति से भर देंगे और यह महान ईश्वर का अटल वादा है जो पूरा होकर रहेगा। प्रिय श्रोताओ यह कार्यक्रम श्रृंखला यहीं समाप्त होती है और आशा करते हैं कि वह दिन शीघ्र आयेगा जब पूरी दुनिया से हिंसा, अत्याचार, अन्याय और भेदभाव का अंत हो जायेगा और पूरी दुनिया में हर ओर न्याय ही न्याय और शांति ही शांति होगी।

 

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