Mar १८, २०१९ १६:५७ Asia/Kolkata

यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने (ब्रिग्ज़िट) का मामला इस देश के लोगों के सामने एक महत्वपूर्ण समस्या है और इसी तरह इस मामले को यूरोपीय संघ के लिए बुनियादी चिंता समझा जाता है।

                     

ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच अस्पष्ट स्थिति का जारी रहना और इसी तरह ब्रिग्ज़िट के बारे में ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बारे में कुछ मतभेदों का समाधान न होना इस स्थिति के जारी रहने और उसके ख़तरों के बारे में गम्भीर चिंता का कारण बना है।

नवंबर 2018 के अंत में लंदन और ब्रसल्ज़ के बीच ब्रिग्ज़िट के बारे में एक समझौता हुआ था। इस समझौते के बावजूद ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीज़ा में को 15 जनवरी 2019 को इस समझौते के संबंध में ब्रिटेन की संसद में होने वाले मतदान में भारी पराजय का सामना करना पड़ा। हाउस आफ कामंस में इस समझौते के पक्ष में 202 मत डाले गए जबकि इसके विरोध में 432 मत पड़े। इस प्रकार इस मतदान से ब्रिग्ज़िट को रद्द कर दिया गया। यूरोपीय आयोग के प्रमुख जान क्लाड यूंकर ने कहा कि ब्रिटेन की संसद में ब्रिग्ज़िट के संबंध में जो मतदान हुआ और इस समझौते से निकलने के खिलाफ जो मत पड़ा इससे ब्रिटेन के ब्रिग्ज़िट से निकलने के ख़तरे में वृद्धि हो गयी है। इसी प्रकार उन्होंने ट्वीट करके कहा है कि समय लगभग समाप्त हो गया है।“  

ब्रिटेन की प्रधानमंत्री को इस देश की संसद में जिस पराजय का सामना करना पड़ा उससे उनके खिलाफ अविश्वास मत का प्रस्ताव लाने और मध्यावधि चुनाव कराने की आवश्यक भूमिका प्रशस्त हो गयी। ब्रिटेन में मुख्य विपक्षी लेबर पार्टी के प्रमुख जेरमी कारबिन ने इस देश की संसद में अविश्वास मत का प्रस्ताव लाने से पहले कहा था कि प्रधान मंत्री प्रधानमंत्री टेरीज़ा में मे शैतानी सरकार का नेतृत्व कर रही हैं। जेरमी कारबिन के इस प्रकार के बयान के बावजूद थ्रेज़ा मे के खिलाफ अविश्वास मत का जो प्रस्ताव संसद में पेश किया गया सांसदों ने उसके पक्ष में वोट नहीं दिया। जारी वर्ष की 16 जनवरी को ब्रिटेन की संसद में थ्रेज़ा मे के खिलाफ अविश्वास मत पेश किया गया। इस मतदान में 306 वोट थ्रेज़ा मे के खिलाफ जबकि उनके पक्ष में 325 वोट पड़े। इस प्रकार उनके खिलाफ अविश्वास मत का जो प्रस्ताव पेश किया गया था वह विफल हो गया और वह यथावत ब्रिटेन की प्रधानमंत्री के पद पर बनी हुई हैं। संसद में विश्वास मत प्राप्त कर लेने के बाद टेरेज़ा मे ने बल देकर कहा है कि वह ब्रिग्ज़िट को लागू करने के संबंध में प्रयास जारी रखेंगी।

ब्रिटेन में एसी स्थिति में राजनीतिक संकट जारी है जब कानूनी दृष्टि से ब्रिटेन को 29 मार्च 2019 तक यूरोपीय संघ से निकल जाना चाहिये। इस समय ब्रिटेन में जो नई परिस्थिति है उसके दृष्टिगत इस देश की प्रधानमंत्री के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है कि वह दोबारा यूरोपीय संघ से संपर्क करें और उससे अधिक वार्ता करें। इसके साथ ही यूरोपीय संघ के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी लंदन को हर प्रकार की विशिष्टता देने का कड़ा विरोध किया है। इसी प्रकार यूरोपीय संघ के अधिकारियों ने ब्रिग्ज़िट के बारे में लंदन से दोबारा वार्ता करने का भी विरोध किया है।

वियना विश्व विद्यालय के प्रोफेसर हेन्स गार्टनर ने जनवरी 2019 में एक साक्षात्कार में कहा है कि ब्रिग्ज़िट के बारे में यूरोपीय संघ दोबारा वार्ता नहीं करेगा। क्योंकि इस स्थिति में यूरोपीय संघ की छवि ख़राब हो जायेगी। साथ ही यूरोपीय संघ को 2020 तक ब्रिटेन को इस संघ से निकलने के लिए स्वयं को तैयार कर रहा है ताकि लंदन के साथ वार्ता के लिए अधिक समय रहे। फ्रांस और जर्मनी यूरोपीय संघ के दो महत्वपूर्ण देश हैं और उन्होंने ब्रिग्ज़िट की समयावधि में बढ़ाने पर सहमति जताई है। ब्रिग्ज़िट को आगे बढ़ाने में ब्रिटेन सरकार की अक्षमता के दृष्टिगत एक विकल्प ब्रिग्ज़िट को संसद में विभिन्न विपक्षी पार्टियों से मिलकर बनी कमेटी के हवाले कर देना था। साथ ही इस कमेटी या हर संसदीय कमेटी के सामने मुख्य चुनौती यूरोपीय संघ के पक्षधर सांसदों व प्रतिनिधियों की उपस्थिति है और उस स्थिति में यूरोपीय संघ के साथ नया समझौता करना और कठिन हो जायेगा। परिणाम यह हुआ कि व्यवहारिक रूप से कभी भी इस प्रकार की कमेटी का गठन नहीं हुआ। ब्रिग्ज़िट के बारे में दोबारा जनमत संग्रह कराया जाना एक अन्य विकल्प है परंतु ब्रिटेन के अधिकांश सांसद इसके पक्ष में नहीं हैं। जिन विकल्पों का उल्लेख किया गया अगर उनमें से किसी एक का परिणाम नहीं निकला तो ब्रिटेन किसी समझौते के बिना यूरोपीय संघ से निकलने के लिए बाध्य होगा और इस चीज़ से ब्रिटेन की अर्थ व्यवस्था को बड़ा झटका लगेगा। इस प्रकार लंदन को अभी तीन विकल्पों का सामना है एक समझौते के साथ ब्रिग्ज़िट, दूसरे बिना समझौते के ब्रिग्ज़िट और तीसरे ब्रिग्ज़िट को स्थिगित करना।

ब्रिग्ज़िट मामले को लेकर ब्रिटेन के विपक्षी सांसदों और इस देश की प्रधानमंत्री थ्रेज़ा मे के बीच जारी वर्ष के आरंभिक दो महीनों में विवाद जारी रहा। इस प्रकार से कि हाउस आफ कामन्स ने 29 जनवरी को एक बार फिर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री का आह्वान किया कि वह ब्रिग्ज़िट के बारे में यूरोपीय संघ से प्रयास करें। हाउस आफ कामन्स के सांसदों ने एक प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जिसके अनुसार ब्रिग्ज़िट समझौते में कुछ परिवर्तन किये जाते ताकि इस देश के सांसद उसे पारित करें। इस प्रस्ताव से ब्रिटेन की प्रधानमंत्री को एक बार फिर यह दायित्व सौंपा गया है कि वे ब्रिग्ज़िट के संबंध में यूरोपीय अधिकारियों ये वार्ता करें। ब्रिटेन के सांसदों ने थ्रेज़ा मे का आह्वान किया है कि वह उत्तरी आयरलैंड की सीमाओं से संबंधित अनुच्छेदों को नये समझौते में शामिल करें और यूरोपीय संघ से दोबारा वार्ता करें। ब्रिटेन के सांसद नये समझौते में उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड गणराज्य की सीमाओं के संबंध में परिवर्तन चाहते हैं। उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड गणराज्य की सीमाएं ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच एकमात्र ज़मीनी मार्ग हैं और यह विषय लंदन और ब्रसल्ज़ के बीच एक गम्भीर चुनौती है कि ब्रिटेन किस प्रकार यूरोपीय संघ से अलग होगा। ब्रिटेन के रहने वाले इस बात से चिंतित हैं कि इस प्रकार निकलने से इस देश की संप्रभुता और सुरक्षा को आघात पहुंचेगा।

हाउस आफ कामन्स में प्रस्ताव बहुमत से एसी स्थिति में पारित हो गया जब ब्रिटेन की प्रधानमंत्री ने संसद को चेतावनी दी थी और कहा था कि उसे यूरोपीय संघ से निकलने के संबंध में तीन विकल्पों में से किसी एक का चयन करना होगा परंतु इस समय संसद के वोट ने काम को बहुत कठिन बना दिया है। विशेषकर इसलिए कि यूरोपीय संघ ने घोषणा की है कि वह ब्रिग्जिट के बारे में दोबारा वार्ता नहीं करेगा। यूरोपीय परिषद के प्रमुख डोनाल्ड टास्क ने 29 जनवरी को ब्रिग्जिट के बारे में हर प्रकार की वार्ता को रद्द कर दिया और कहा था कि उत्तरी आयरलैंड की सीमाएं समझौते का एक भाग थीं और उस पर पुनर्विचार नहीं होगा।

ब्रिग्ज़िट के संबंध में होने वाले हालिया परिवर्तन में हाउस आफ कामन्स के सांसदों ने एक विधेयक के पक्ष में मत दिया कि अगर यूरोपीय संघ से निकलने के लिए जो समझौता लंदन के दृष्टिगत है वह संसद में पारित नहीं होता है तो ब्रिग्जिट को विलंबित कर दिया जायेगा। इस विधेयक पर 27 फरवरी को मतदान हुआ था। इसके पक्ष में 502 जबकि विरोध में मात्र 20 मत पड़े थे। इस प्रकार यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने की कानूनी अवधि समाप्त हो जाने के बाद इस संबंध में दोबारा वार्ता होने की संभावना अधिक हो गयी है। यह एसा विषय है जिसके प्रति जर्मनी और फ्रांस के नेताओं ने भी सांकेतिक रूप से अपनी सहमति की घोषणा कर दी है। फ्रांस के राष्ट्रपति एमुनोएल मैक्रां ने इसके बारे में कड़ा दृष्टिकोण अपनाया है और घोषणा की है कि वह इस सुझाव व प्रस्ताव के प्रति केवल उस स्थिति में सहमति जतायेंगे जब ब्रिटेन समझौते के संबंध में स्पष्ट प्रस्ताव पेश करे। यह एसी स्थिति में है जब ब्रिटेन के साथ समझौते में परिवर्तन के लिए यूरोपीय संघ के अन्य 27 सदस्य देशों के समर्थन की आवश्यकता है।

ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने मतदान के परिणामों की घोषणा के बाद कहा है कि वह यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने के संबंध में जनमत संग्रह कराये जाने के विधेयक को दोबारा संसद में पेश करेगी। जेरमी कारबिन ने कहा है कि ब्रिटेन में बच्चों की निर्धनता में वृद्धि हो गयी है, सेवानिवृत्ति लोगों की निर्धनता में वृद्धि हो गयी है, बेघर होने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है, उद्योग में मंदी का सामना है, सरकार की ओर से जो सहायता मिलती थी उसके बंद होने की नीति समाप्त नहीं हो रही है, वंचित वर्ग अधिक वंचित व गरीब होता जा रहा है किन्तु पैसे वाले अधिक पैसे वाले होते जा रहे हैं और ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से निकल जाने से परिस्थिति और बदतर हो जायेगी। लेबर पार्टी के प्रमुख ने बारमबार थ्रेज़ा मे विशेषकर यूरोपीय संघ से अलग होने की नीतियों की आलोचना की है। उन्होंने एक बार फिर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री पर समय नष्ट करने का आरोप लगाया और उनका आह्वान किया है कि वह संसद को संतोष व विश्वास दिलायें कि ब्रिटेन समझौते के बिना यूरोपीय संसद से नहीं निकलेगा। थ्रेज़ा मे ने जेरमी कोरबिन के इन वक्तव्यों की प्रतिक्रिया में कहा है कि उद्योग को मंदी का सामना नहीं है, ग़रीब व निर्धन लोगों की आमदनी हालिया 20 वर्षों के दौरान सबसे अधिक हो गयी है, कम आमदनी वाले लोगों से लिये जाने वाले कर को कम कर दिया गया है। ईंधन की कीमतों को अधिक नहीं किया गया है और हमेशा निचले वर्ग के लोगों ने लेबर पार्टी की नीतियों का खर्च दिया है”

जून 2016 को यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने के बारे में जो जनमत संग्रह हुआ था यद्यपि ब्रिटेन के अधिकांश लोगों ने उसके पक्ष में मत दिया था परंतु ब्रिटेन किस तरह यूरोपीय संघ से निकलेगा इस बारे में ब्रितानी सांसदों के मध्य मतभेद है और ब्रिटेन की लेबर पार्टी इस परिणाम पर पहुंच गयी है कि ब्रिग्जिट के बारे में दोबारा जनमत संग्रह कराया जाना चाहिये जबकि प्रधानमंत्री थ्रेज़ा मे इस कदम को लोगों के मतों से विश्वासघात और इसे डेमोक्रेसी के खिलाफ मानती हैं। वह ब्रिग्जिट समझौते के मसौदे पर दूसरी बार जारी महीने में मतदान कराना चाहती हैं। अगर इस मसौदे को मत नहीं मिला तो उसके एक दिन बाद समझौते के बिना ब्रिग्जिट विधेयक को पेश करेंगी। अगर इन दोनों को मत नहीं मिला तो सीमित समय के लिए ब्रिग्जिट की अवधि में वृद्धि के विधेयक को पेश करेंगी ताकि इस अवधि में वह यूरोपीय संघ के साथ अंतिम समझौते के लिए प्रयास कर सकें। घोषित कार्यक्रम के अनुसार ब्रिटेन जारी महीने की 29 तारीख़ को यूरोपीय संघ से निकल जायेगा परंतु यूरोपीय संघ से किस तरह निकलेगा इस बारे में अभी तक मान्य समाधान तक नहीं पहुंचा है।

ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से निकलना                                                                         आरंभ में आसान प्रतीत हो रहा था परंतु दिन प्रतिदिन उसकी कठिनाइयां व जटिलताएं स्पष्ट होती जा रही हैं। ब्रिग्जिट के संबंध में ढ़ाई वर्ष पहले जो जनमत संग्रह हुआ था उसमें लगभग 52 प्रतिशत लोगों ने ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के पक्ष में मत दिया था पर अब तक ब्रिटेन की सरकार इस संबंध में सर्वमान्य समाधान तक  नहीं पहुंच सकी है और ब्रिग्जिट का मामला पहले से अधिक जटिल हो गया है। आर्थिक रिपोर्टें इस बात की सूचक हैं कि ब्रिग्जिट की वजह से अब तक 17 अरब पाउंड का नुकसान ब्रिटेन की अर्थ व्यवस्था को पहुंच चुका है और बहुत से अर्थशास्त्री ब्रिटेन में निर्धनता के अधिक हो जाने से चिंतित हैं। दूसरी ओर सुरक्षा भी एक बड़ी चिंता है। समाचार पत्र इन्डिपेन्डेन्ट ने 28 जनवरी को यूरोपीय संघ की खुफिया एजेन्सियों की रिपोर्टों के आधार पर लिखा था कि ब्रिग्जिट दशकों तक ब्रिटेन में हिंसा, विवाद और लड़ाई का कारण बनेगा और स्काटलैंड और उत्तरी आयरलैंड में स्वाधीनता के संबंध में जनमत संग्रह कराये जाने की मांग उठने कारण बनेगा।

ब्रिटेन के हाथ से बहुत तेज़ी से समय निकलता जा रहा है एसी स्थिति में यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने के लिए कानूनी समय समाप्त होने वाला है और ब्रिग्जिट का भविष्य अस्पष्ट है।

बहरहाल ब्रिटेन अगर यूरोपीय संघ से समझौते के बिना निकलता है तो उसकी अर्थ व्यवस्था और वहां के लोगों के जीवन पर भारी प्रभाव पड़ेगा। प्रतीत यह हो रहा है कि थ्रेज़ा मे को बहुत कठिन व जटिल स्थिति का सामना है और अभी तक उसके समाधान का कोई मार्ग सामने नहीं आ सका है। MM

 

टैग्स