Apr १०, २०१९ १४:५२ Asia/Kolkata

प्राचीन समय से मानव समाज में लोगों के बीच संपर्क और विभिन्न शहरों व गावों के लोगों के एक दूसरे के यहां आने जाने की परंपरा चली आ रही है।

इसी वजह से देश सड़क, पुल और मुसाफ़िरों की सुविधा की चीज़ों का निर्माण करवाते रहे हैं। ईरान में भी व्यापारिक व वाणिज्यिक केन्द्रों के बीच काफ़िलों के निरंतर आने जाने की वजह से सराय वजूद में आयीं। ईरान में मोटर गाड़ी के आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय होने से पहले निर्धारित दूरी पर गावों व शहरों के बीच सराय बनायी जाती थीं। इन सरायों की संख्या या क्षेत्रफल, काफ़िलों और वस्तुओं की मात्रा पर निर्भर होते थे। जेम्ज़ डान सहित बहुत से इतिहासकारों ने इस बात का उल्लेख किया है कि पूरे ईरान में इतिहास के विभिन्न दौर में मार्गों के किनारे व्यापारिक व सैन्य लक्ष्यों के लिए सराय और क़िले बनाए गए। इन स्थलों में अब बहुत कम बचे हैं जिनकी मरम्मत हुयी है और कुछ मार्ग बदलने या प्राकृतिक घटनाओं की वजह से तबाह हो गए।

विभिन्न दौर में सराय, मुसाफ़िरख़ाने का रोल भी अदा करती रहीं और मुसाफ़िर कभी कभी कुछ दिन इनमें ठहरते थे ताकि दूसरे काफ़िले के साथ आगे का सफ़र जारी रख सकें।

कारवांसराय शब्द कारवां और सराय से मिल कर बना है। कारवां का अर्थ सामूहिक रूप से सफ़र करना और सरा का अर्थ घर व मकान है। ये दोनों ही पहलवी भाषा के शब्द हैं। सराय उस स्थान को कहते हैं जहां काफ़िले कुछ समय के लिए ठहरते थे। यह इस्लामी क्षेत्रों में सबसे बड़ी रहने की जगह समझी जाती है। इसे आम तौर पर चौकोर या आयताकार बनाया जाता था। कारवांसराय या सराय का प्रवेश द्वार बहुत बड़ा व ऊंचा होता था। प्रेवश द्वार और भीतर के आंगन के बीच एक ताक़नुमा दालान होता था। आंगन के चारों ओर ऊंचा चबूतरा होता था। उस पर बरामदे बने होते थे जहां काफ़िले वाले अस्थायी रूप से आराम करते थे। इन्हीं बरामदों के पीछे कमरे होते थे जहां कारवां वाले एक या कई रात रुकते थे। इन कमरों में ज़रूरत की चीज़े मौजूद रहती थीं।

दो मंज़िला सरायों में निचली मंज़िल में वस्तुएं रखी जातीं और ऊपरी मंज़िल मुसाफ़िरों के आराम के लिए होती थीं। इसी तरह सराय में घोड़े और दूसरे जानवरों को रखने के लिए भी विशेष जगह होती थी। सराय के द्वार के दोनों ओर चौकीदार के लिए कमरे बनाए जाते थे। प्रायः हर सराय में आंगन के बीचो बीच कूआं होता था ताकि मुसाफिरों को पानी के लिए आसानी रहे।    

ऐतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि ईरान में हख़ामनेशी शासन काल में सराय का निर्माण शुरु हुआ। मशहूर यूनानी इतिहासकार हेरोडट अपनी किताब में ऐसी शरणस्थलियों के बारे में लिखते हैं जो हख़ामनेशी शासकों द्वारा शूश और सार्दिस के बीच बनायी जाती थीं। इस इतिहासकार ने इस तरह की 111 इमारतों का उल्लेख किया है जो 2500 किलोमीटर के मार्ग में हख़ामनेशी शासन काल की राजधानी और सार्दिस शहर के बीच बनी थीं। इस मार्ग को तय करने में मुसाफ़िरों को 3 महीने का समय लगता था। मार्गों के बीच शरणस्थली की ज़रूरत, सुरक्षा, काफ़िले और डाक की ज़रूरत की वजह से सराय का निर्माण ज़रूरी था।

अश्कानी शासन काल में ईरान में काफ़िले वालों और मार्गों में विस्तार को बहुत अहमियत दी गयी और सिल्क रोड सहित अहम मार्गों पर अनेक सराय बनायी गयीं।

सासानी शासन काल में भी मार्गों का विस्तार हुआ। इस शासन काल में मुख्य मार्गों के किनारे सराय बनायी गयीं और इस शासन काल में बनायी गयीं सराय के कुछ नमूने अब भी बाक़ी हैं जैसे दैर गचीन सराय, रोबात अनूशीरवान सराय, दरवाज़े गच सराय और किनार सियाह सराय।            

दैर गचीन सराय तेहरान से कुछ दूरी पर स्थित है और यह राष्ट्रीय धरोहर में शामिल है। यह सराय लगभग 1800 साल पुरानी है। दैर गचीन सराय को ईरान में सराय की मां कहा जाता है क्योंकि इस सराय में मुसाफ़िरों की ज़रूरत की सारी सुविधा मौजूद थी। चक्की, पिछवाड़े का आंगन, शौचालय और हम्माम मौजूद थे। बाद में इसमें मस्जिद भी बनायी गयी।

दैर गचीन सराय में 6 बुर्जियां हैं। इसे चार ऐवानों वाली वास्तुकला के आधार पर बनाया गया। ऐवान किसी इमारत के उस छतदार भाग को कहते हैं जो सामने से खुला होता है, उसमें दरवाज़ा और खिड़की नहीं होती और उसके सामने आंगन होता है। दैर गचीन सराय 12000 वर्गमीटर के क्षेत्रफल पर बनी है। अतीत में इसमें 43 कमरे, शहनशीन, 18 अस्तबल और 2 भंडार कक्ष मौजूद थे। यह सराय अपने ऐतिहासिक महत्व के मद्देनज़र आज देशी विदेशी पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थल बन चुकी है।               

इस्लामी शासन काल में सराय के निर्माण व विस्तार में बहुत से तत्वों का रोल रहा है। इसमें मुख्य कारक धार्मिक, सामरिक व आर्थिक थे। यात्रावृत्तांत, इतिहास और भूगोल की किताबों से हमें व्यापार, दर्शन, भ्रमण और सराय के बारे में बहुत कुछ पता चलता है। ईरानी शायर व लेखक नासिर ख़ुसरो अपने यात्रावृत्तांत के लिए मशहूर हैं। उन्होंने अपने यात्रावृत्तांत में अनेक सराय का उल्लेख किया है जिसमें वे सफ़र के दौरान ठहरते थे। मिसाल के तौर पर उन्होंने नाईन से तबस के सफ़र में जिसके बीच में पूरा मरुस्थलीय क्षेत्र है, लिखा हैः हम ज़ुबैदा सराय पहुंचे जहां पानी का बहुत बड़ा भंडार है। अगर यह सराय और इसमें मीठा पानी न होता तो मरुस्थल को पार करना मुमकिन न होता।

इस्लाम के आरंभिक दौर में शासक सराय जैसी आम लोगों के इस्तेमाल में आने वाली इमारतों का निर्माण करवाते थे। पांचवी हिजरी क़मरी बराबर 11वीं ईसवी इस्लामी कलाओं में वास्तुकला के निखरने का दौर है। ज़्यादातर मस्जिदें और सराय दो ऐवान या चार ऐवान पर आधारित होती थीं। यह प्रक्रिया मंगोलों के हमले तक जारी रही।

अधिक समय नहीं बीता कि मंगोल शासक की बाद की पीढ़ियां ईरानी संस्कृति से प्रभावित हुयीं और पूर्वजों के अनुभव से उन्होंने फ़ायदा उठाया। उन्होंने व्यापार, अर्थव्यवस्था और सराय के निर्माण पर ध्यान दिया और उनकी रक्षा के लिए विशेष बल नियुक्त किए। ख़ाजा रशीदुद्दीन फ़ज़्लुललाह अनेक सराय के निर्माण सहित आम लोगों के इस्तेमाल में आने वाली इमारतों के निर्माण के लिए दुनिया में मशहूर हैं। मार्कोपोलो के यात्रावृत्तांत में जो उन्होंने ईरान के बारे में यज़्द से किरमान जाने वाले मार्ग के बारे में लिखा हैः यज़्द बहुत बड़ा शहर है और इसके निवासी मुसलमान हैं। अगर वे यज़्द से किरमान जाना चाहें तो उन्हें 8 दिन सफ़र करना पड़ता और एक मरुस्थल से गुज़रना पड़ता है। लेकिन मार्ग में मुसाफ़िरों के ठहरने के लिए 3 सराय हैं जिनसे रास्ता आसान हो जाता है।

इस बात में शक नहीं कि ईरान में सराय निर्माण का स्वर्णिम काल सफ़वी शासन काल को माना जाता है। इस शासन काल में देशी व विदेशी व्यापार बहुत फला फूला और ईरान में तीर्थयात्रा के लिए सफ़र बढ़ा और विदेशी ईरान से होकर जाने लगे। मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का रौज़ा, कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और पवित्र नगर नजफ़ में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का रौज़ा और अनेक सराय बनायी गयीं जिनमें ज़्यादातर अभी भी बाक़ी हैं। सफ़वी शासन काल में चीन, भारत और योरोप को वस्तुओं का निर्यात और ईरान की सीमा से बाहर व्यापार फैला।

इस तरह ईरान में सराय के वजूद को शुरु हुए 25 शताब्दियां गुज़र रही हैं। अमरीकी ईरानविद प्रोफ़ेसर आर्थर पोप सहित शोधकर्ताओं का मानना है कि ईरान में सराय का वजूद ईरानी वास्तुकला की बहुत बड़ी सफलता है क्योंकि कहीं भी दुनिया में सराय वास्तुकला की वह उपयोगिता नहीं है जो ईरान में थी। इसके अलावा सराय सामाजिक दृष्टि से भी बहुत अहम है। उस समय विभिन्न इलाक़ों से सराय आने वाले मुसाफ़िर एक दूसरे के साथ लेन देन के अलावा एक दूसरे की रीति रवाज और आस्था से भी परिचित होते थे।      

फ़ारसी साहित्य में शायरों व साहित्यकारों ने सराय का बहुत वर्णन किया है। उन्होंने अपने शेरों में इंसान को सराय में ठहरने वाले मुसाफ़िर से उपमा दी है और इस दुनिया को सराय कहा है। इन शेरों में इंसान को इस दुनिया पर रिझने से मना किया गया है और नश्वर दुनिया में जीवन को सराय में ठहरने वाला मुसाफ़िर कहा गया है। जैसा कि फ़ारसी के मशहूर महाकवि सादी के एक शेर का अनुवाद हैः इस सराय से दिल क्यों लगाएं जबकि साथी जा चुके हैं और हम बीच मार्ग में हैं। या उनके एक और शेर का अनुवाद हैः हे मन इस सराय से नाता मत जोड़ क्योंकि घर बनाना काफ़िले वालों की परंपरा नहीं है।

 

 

 

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