Apr १३, २०१९ १२:०५ Asia/Kolkata

प्राचीन काल से ही लंबी लंबी यात्राओं के दौरान मनुष्य को हमेशा से ही सुरक्षित शरण स्थली की आवश्यकता रही है।

ईरान में भी प्राचीन काल से ही रास्तों के बीच विश्राम स्थल और शरणस्थल बनाए जाते रहे हैं जिनमें से कुछ वास्तुकला की दृष्टि से अपने काल का शाहकार या अद्भुत नमूना समझे जाते रहे हैं।  इस्लामी काल में विभिन्न क्षेत्रों की ओर अधिक आने जाने की वजह से इस प्रकार की इमारतों के निर्माण में वृद्धि हुई। पर्वतीय क्षेत्रों और मरुस्थलीय रास्तों में इन इमारतों को व्यापक रूप से देखा जा सकता है।  

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कारवांसराए को उपलब्धियों की दृष्टि से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। शहर की कारवांसराए और शहर के बाहर की कारवां सराए।

शहर के भीतर मौजूद कारवांसराए को सरा, तीम या तीम्चे कहा जाता है जो वर्षों पहले ही छोटे बाज़ारों का रूप ले चुके हैं। ईरानी बाज़ारों की वास्तुकला के विषय पर चर्चा के दौरान हमने इशारा किया था कि यह कारवां सराए, विभिन्न शहरों से व्यापारिक सामान लाने व ले जाने का स्थान रहा है। समय बीतने के साथ साथ यह जगहें थोक माल बेचने या वस्तुओं के भंडारण का स्थान बन गयीं किन्तु शहरों के बाहर वाली कारवांसराए, मरुस्थलों में कारवां और क़ाफ़िलों के अस्थाई रूप से रुकने के लिए बनाए जाती थीं और इन जगहों पर यात्रियों के विश्राम, थकन उतारने तथा जानवरों को रखने के लिए विशेष स्थान बनाए जाते थे।  इसी प्रकार कारवांसराए में रहते समय कारवां में शामिल लोगों की सुरक्षा को महत्व प्राप्त रहा है और लुटेरों से बचाव की पूरी तैयारियां की जाती थीं।

यही कारण है कि कारवांसराए का प्रवेश द्वार एक दूसरे से भिन्न होता है। शहर से बाहर मौजूद कारवांसराए का बाहरी भाग कुछ ज़्यादा ही मज़बूत होता था और सामान्य रूप से केवल एक ही प्रवेश द्वार बनाया जाता है।  इस प्रकार से करवां और वस्तुओं का आना जाना, अधिकतर निरिक्षण में होता था। यह ऐसी स्थिति में है कि शहरों के भीतर मौजूद अधिकतर कारवांसराए में एक से अधिक प्रवेश द्वार हुआ करता था ताकि बेहतर ढंग से बाज़ार और आसपास के रास्तों तक पहुंच बनाई जा सके

बड़े बड़े या आलीशान कारवांसराए के प्रांगण में प्रसिद्ध और विख्यात यात्रियों के स्वागत के लिए कुछ सजे धजे कमरे बनाए जाते थे। प्रांगण या चारकोणीय हुआ करता था या गोल। अधिकतर प्रांगड़ के बीचो बीच हौज़ बना रहता था। ठंड इलाक़ों में प्रांगड़ के बजाए कारवां सराए के बीचो बीच गुबंद नुमा छत के साथ एक हाल बना होता था ताकि यात्रियों को ठंड न लगे। कारवांसराए के प्रांगण के आसपास जो बुर्ज बनाए जाते थे उनसे अधिकतर निगरानी करने का काम लिया जाता था। प्रांगण के आसपास बने कमरे में एक लकड़ी का दरवाज़ा होता था, इन कमरों में खिड़कियां नहीं होती थीं क्योंकि इन कमरों का केवल रात में सोने के लिए प्रयोग होता था।  छत का ऊपरी हिस्सा समतल होता था जहॉं और गर्मी की रातों में यात्री वहां सोया करते थे।

कारवांसराए की इमारत बनाने में प्रयोग होने वाले मसाले, पत्थर और ईंट से बने हुए थे। इन इमारतों में से बहुत सी इमारतें अपने काल की दूसरी इमारतों की भांति सुन्दर वास्तुकला और डिज़ाइनों से संपन्न थीं। कच्ची ईंटों का काम, टाइलों का काम, प्लास्टर ऑफ़ पेरिस का काम और पत्थरों का काम अभी भी कारवांसराए की इमारतों में देखा जा सकता है।  

ईरान की कारवांसराए अलग प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्र में स्थित होने के कारण, विभिन्न प्रकार के रंग व रूप में बनाए जाते हैं। इस प्रकार के कारवां सराए को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। पहला भाग वह कारवां सराए होती हैं जो पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित होती हैं और पूरी तरह से ढकी हुई होती हैं। इस प्रकार की कारवां सराए सड़कों के किनारे छोटे विश्रामस्थल से लेकर शाह अब्बास सफ़वी के काल में बनाई गयीं सरकारी इमारतें भी शामिल हैं । इन इमारतों के साधारण नमूनों में गुंबद नुमा छत के साथ केन्द्रीय प्रांगध और साथ में मिले हुए गुंबददार कमरे और उसकी लाइनों में कुछ अस्तबल इत्यादि होते थे। पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित कारवांसराए में कमरों को गर्म रखने के लिए दीवारों में हीटर बने होते थे और चूल्हे भी बने होते थे, यह इमारत हर ओर से ढकी हुई होती है ताकि कमरे में ठंडी हवाओं और बर्फ़ तथा ठंडक के असर को रोका जा सके।  इस प्रकार की कारवांसराए के नमूनों में आज़रबाइजान में शिब्ली कारवां सराए और गुदूक कारवां सराए की ओर संकेत किया जा सकता है।  

गुदूक कारवां सराए ईरान के उत्तर में स्थित सवादकूह शहर के निकट स्थित है और अतीत में शाह अब्बासी कारवां के नाम से प्रसिद्ध थी। इस कारवांसराए के विभिन्न कमरे प्लास्टर आफ़ पेरिस तथा टाइलों से सुन्दर ढंग से सजाए गया है।  इतिहास में मिलता है कि शाही कारवां इसमें रुकते थे।

ईरान के दक्षिण में फ़ार्स की खाड़ी के तटवर्ती क्षेत्र, प्राचीन काल से ही व्यापारियों के आने जाने और वस्तुओं के निर्यात व आयात के स्थान रहे हैं। यही कारण है कि इन क्षेत्रों में बहुत से कारवांसराए बनाई गयी हैं। यह कारवांसराए फ़ार्स खाड़ी की भौगोलिक और जलवायु की स्थिति को देखते हुए कि जो आर्द्र और गर्म है, विशेष रूप से बनाई गयी हैं।

इन कारवांसरायों में केन्द्रीय प्रांगण नहीं होता। यह इमारात आम तौर पर चारकोणीय होती हैं और इनमें एक बड़ा केन्द्रीय कमरा हुआ करता है जो प्लस के चिन्ह के रूप में बनाया जाता था। इस कमरे के आगे पत्थर की केन्द्रीय चौखट होती थी। यह चौखट केन्द्रीय हाल को पूरी तरह घेरे होती है। अतीत में सारे कमरों के दरवाज़े बाहर की ओर भी बने हुए होते थे जिससे तट की ठंडी हवाएं इमारत के भीतर आ सकें। इन कारवां सरायों को विभिन्न प्रकार से सजाया जाता था और इनकी सुन्दरता बहुत ही मनमोहक हुआ करती थी। इन सुन्दर और अद्भुत इमारतों के नमूनों में बंदर अब्बास के निकट पोहलू क़िले की कारवांसराए की ओर संकेत किया जा सकता है।

एक अन्य प्रकार की कारवांसराए ऐसी होती हैं जिनमें केन्द्रीय प्रांगण होते हैं जो ईरान की सुन्दरत व महत्वपूर्ण कारवांसराए समझे जाते हैं।  इन इमारतों को कुछ भागों में विभाजित किया जा सकता है। गोल कारवांसराएं, बहुकोणीय कारवांसराएं, दो हॉल वाली कारवां सराएं, स्तंभ वाले हॉल वाली कारवांसराएं, चार हॉल वाली कारवांसराए और विभिन्न डिज़ाइनों वाली कारवां सराएं।

इन कारवांसरायों की समस्त विशेषताएं, इसका केन्द्रीय प्रांगड़ है जिससे इनके निर्माणकर्ताओं के ईरान की प्राचीन व पारंपरिक वास्तुकलाओं से लगाव का पता चलता है। प्रवेश द्वारों, टॉवरों और इन कारवांसराएओं में अस्तबलों के क्रम का ब्योरा, ऐतिहासिक कालों के दृष्टिगत भिन्न होते हैं। इस मूल्यवान वास्तुकला शैली के नमूने क़ुम- काशान राजमार्ग पर स्थित पासन्गान कारवांसराए की ओर संकेत किया जा सकता है, यह कारवां सराए सफ़वी काल में बनी थी। इस कारवांसराए में मौजूद जलभंडार से कारवां के लोग लाभ उठाते थे। इसका प्रांगड़ चौकोर या वर्गाकार है तथा चारकोणीय हाल है जिसके चार कोने, चार स्तंभ में बने हुए हैं और प्रवेश द्वार पर बहुत ही सुन्दर ताक़ बने हुए हैं।

पासन्गान कारवांसराए में चौपायों की रक्षा के लिए छोटे कमरे बनाए जाते हैं जिनसे पता चलता है कि इसके वास्तुकारों ने एक कारवांसराए के निर्माण के लिए समस्त आवश्यक चीज़ों को दृष्टिगत रखा है। इन कारवांसराए की समस्त इमारतें, ईंटों से तथा मज़बूत और बड़े पत्थर के स्तंभों पर बनी हुई हैं। नदी से निकटता के कारण, इसका निचला तला ज़मीन से लगभग एक मीटर ऊचा होता है ताकि नमी इमारत के भीतर प्रविष्ट न हो सके।  तय यह है कि निकट भविष्य में पासन्गान कारवांसराए यात्रियों और पर्यटकों के ठहरने की जगह बन जाएगी।

 

शहर के बाहर वाली कारवांसराए को संस्थापकों और निर्माणकर्ताओं के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।  शाही कारवांसराए, विशेष या प्राइवेट कारवांसराए तथा कल्याणकारी कारवां सराए।

शाही कारवां सराए उस स्थान को कहा जाता था जिसके निर्माण का ख़र्चा देश के ख़ज़ाने से हुआ था। इस कारवांसराए से होने वाली आय का ख़र्चा, देश के पुनर्निमाण या देश के ख़ज़ाने को बढ़ाने के लिए प्रयोग होता था।  इस तरह की कारवांसराए की वास्तुकला बहुत ही सुन्दर होती थी और इसके निर्माण में विशेष शैलि होती थी।

दूसरी तरह की कारवां प्राइवेट हुआ करती थीं जिसकी आय उसका मालिक लेता है। तथा तीसरे प्रकार की कारवां सराए कल्याणकारी कारवांसराए हुआ करती थीं जिसमें यात्रियों से कोई पैसा नहीं लिया जाता। यह कारवां सराए कल्याणकारी और भलेकर्म करने वालों से संबंधित होती थी। यात्री और इसमें रहने वाले लोग इसमें रहने के दौरान इसकी बहुत अधिक सहायता करते हैं। (AK)

 

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