IRGC पर प्रतिबंध- 1
ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से अमरीका ने इस देश में स्थापित इस्लामी शासन व्यवस्था को गिराने के उद्देश्य से शत्रुतापूर्ण व्यवहार अपना रखा है।
अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों और सरकारों की ही भांति ईरान के विरुद्ध अपनी शत्रुता को जारी रखा है। ट्रम्प ने अबतक ईरान के विरुद्ध शाब्दिक युद्ध का तो बेड़ा ही उठा रखा है। परमाणु समझौते से एकपक्षीय ढंग से निकल जाने के बाद उनके इस कात में तेज़ी आ गई है। ट्रम्प ने खुल्लमखुल्ला तौर पर ईरान की इस्लामी व्यवस्था को कमज़ोर करने या फिर उसे गिराने के काम को अपनी कार्यशैली में शामिल कर रखा है। ट्रम्प ने परमाणु समझौते से निकलने की घोषणा करके ईरान के विरुद्ध प्रतिबंध लगाए। इस प्रकार उन्होंने ईरान के भीतर निर्धन्ता में वृद्धि करते हुए वहां अशांति उत्पन्न करने के लिए तेहरान के विरुद्ध आर्थिक युद्ध छेड़ दिया है। ईरान के विरुद्ध प्रतिबंध को अगस्त तथा नवंबर 2018 में दो चरणों में लगाया गया। अमरीका की ओर से ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध एकपक्षीय हैं जो संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव क्रमांक 2231 सहित अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध हैं।
ईरान के विरुद्ध अमरीकी क्रियाकलाप पूरी तरह से धौंस और धमकियों पर आधारित हैं। एसा लगता है कि ईरान के संदर्भ में ट्रम्प का फैसला, वाइट हाउस में आंतिरक सुरक्षा से संबन्धित कुछ गिनेचुने लोगों की ही देन है जिसमें ट्रम्प के अतिरिक्त माइक पेन्स, जान बोल्टन और माइक पोम्पियो आदि के नाम लिये जा सकते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प से अपने मतभेदों के साथ अमरीका के पूर्व रक्षामंत्री जेम्स मैटिस के त्यागपत्र के बाद अब यह ज़िम्मेदारी पैट्रिक शनहान निभा रहे हैं जिनकी इस मंत्रालय के फैसलों में कोई भूमिका नहीं है। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि अमरीका में राष्ट्रीय सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उस गुट के हाथ में है जो लंबे समय से ईरान विरोधी रहे हैं। इस गुट के सदस्यों का ईरान विरोधी इतिहास बहुत पुराना है। अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा के सलाहकार जान बोल्टन ने ईरान में आने वाली भीषण बाढ़ के बाद अपने ट्वीट में लिखा था कि जबतक तेहरान, उन्हीं के कथनानुसार अस्वीकारीय व्यवहार को बदल नहीं देता उस समय तक हम ईरान पर अधिक से अधिक दबाव बनाए रखेंगे।
ट्रम्प सरकार ने 2017 की राष्ट्रीय नीति के परिप्रेक्ष्य में ईरान को नियंत्रित करने के लिए अपनी नीतियों को परिवर्तित करने के उद्देश्य से मध्यपूर्व के स्तर पर क्षेत्रीय घठजोड़ बनाने के लिए व्यापक प्रयास किया था। वाशिग्टन ने, उसी के कथनानुसार, ईरान की धमकियों का मुक़ाबला करने के लिए मध्यपूर्व में सैनिकीकरण किया, जिसके अन्तर्गत सीरिया और इराक़ में अपने सैनिकों को स्थापित किया। ट्रम्प प्रशासन का दावा है कि क्षेत्रीय स्तर पर ईरान की नीतियां ख़तरनाक हैं। जान बोल्टन ने अपने एक अन्य ट्वीट में लिखा कि ईरान, क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए झड़पों और अस्थिरता को बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने लिखा है कि वह बहुत कम ख़र्च में अपने पड़ोसियों को धमकाता रहता है।
तेहरान के विरुद्ध वाशिग्टन के ग़ैर क़ानूनी प्रतिबंधों का एक आधार ईरान की आर्थिक स्रोतों तक पहुंच को सीमित करना है ताकि वह अपनी नीतियों को लागू न कर सके। अमरीका के इन प्रयासों के बावजूद मध्यपूर्व में ईरान के स्ट्रैटेजिक महत्व तथा क्षेत्रीय स्तर पर ईरान को प्राप्त जन समर्थन के कारण ईरान के प्रभाव को कम या समाप्त करना संभव नहीं है। अमरीका यह सोचता है कि ईरान के विरुद्ध प्रचारिक युद्ध, अभूतपूर्व प्रतिबंधों और उसके विरुद्ध दबाव बढ़ाकर तेहरान को अपनी इच्छाओं के सामने झुकाया जा सकता है।
ईरान के संदर्भ में अमरीका के शत्रुतापूर्ण व्यवहार के दृष्टिगत डोनाल्ड ट्रम्प ने अगस्त 2017 में कांग्रेस में Countring Americas Adversery through Sanction Act अर्थात "कास्ता" क़ानून पारित कराया जिसे 8 अप्रैल 2019 को वाइट हाउस के घोषणापत्र के साथ प्रकाशित करवाया गया। इसके अन्तर्गत ईरान के आईआरजीसी या इस्लामी क्रांति के संरक्षक बलों को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित किया गया। एक बयान में ट्रम्प ने कहा कि यह फैसला, अमरीकी विदेश मंत्रालय के निर्देशन से लिया गया है। ट्रम्प का कहना था कि इस वास्तविकता को स्वीकार किया गया है कि ईरान की सरकार न केवल आतंकवाद की समर्थक है बल्कि उसके बजट की आपूर्ति में आईआरजीसी की भूमिका है और यह आतंकवाद को हथकण्डे के रूप में प्रयोग करती है।
यह पहली बार है कि अमरीका ने किसी देश के आधिकारिक सुरक्षाबलों को आतंकवादी गुट की सूचि में शामिल किया है। उन्होंने आशा जताई है कि IRGC या सिपाहे पासदारान को आतंकवादी गुटों की सूचि में शामिल करने से ईरान पर दबाव बढ़ेगा। इस बयान पर अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि आईआरजीसी या सिपाहे पासदारान को आतंकवादी गुटों की सूचि में शामिल करने से यह बात सबके लिए स्पष्ट हो जानी चाहिए कि आईआरजीसी के किसी भी प्रकार से समर्थन ख़तरनाक हो सकता है। जान बोल्टन का कहना था कि ईरान, संयुक्त राज्य अमरीका और उसके घटकों को लक्ष्य बनाने के लिए आतंकवाद का सहारा लेता है।
ट्रम्प की ओर से एलान करने के बाद अमरीकी विदेशमंत्री माइक पोम्पियो ने एक संवाददाता सम्मेलन में ईरानी संस्थाओं के विरुद्ध शत्रुतापूर्ण नीति अपनाते हुए आईआरजीसी या सिपाहे पासदारान को आतंकवादी गुट बताया। उन्होंने कहा कि आईआरजीसी और ईरान की सरकार संसार में आतंकवादी कार्यवाहियां करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि क़ुद्स फ़ोर्स के कमांडर क़ासिम सुलैमानी ईरान की इस्लामी क्रांति का निर्यात करना चाहते हैं। अमरीकी विदेशमंत्री ने परमाणु समझौते से एकपक्षीय रुप में ट्रम्प के निकलने और ट्रम्प द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय समझौते के हनन की ओर संकेत किया बिना कहा कि वाइट हाउस का मुख्य लक्ष्य यह है कि ईरान, वार्ता की मेज़ पर आए। अमरीकी विदेशमंत्रालय में ईरानी मामलों के प्रभारी ब्रायन हुक ने भी अमरीकी विदेशमंत्री के साथ संवाददाता सम्मेलने में कहा कि यह ईरान के आर्थिक स्रोतों को समाप्त करने के लिए अधिक दबाव बनाने के उद्देश्य से उठाए गए क़दमों में से एक है।
अमरीकी क़ानून के अनुसार वाइट हाउस से जारी किये गए नए क़ानून को स्वीकार करने या उसे रद्द करने के लिए अमरीकी कांग्रेस के पास एक सप्ताह का समय है। अगर अमरीकी कांग्रेस इस फैसले का विरोध न करे तो उसे व्यवहारिक बनाया जाएगा। अमरीका की ओर से ईरान के IRGC को आतंकवादी गुटों की सूचि में शामिल करने का समय भी विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह निर्णय पासदार दिवस और इस्राईल के संसदीय चुनाव से एक दिन पहले लिया गया है।
अमरीका की ओर से आईआरजीसी को आतंकवादी गुटों की सूचि में डालने से पहले पेंटागन और सीआईए ने सरकार के इस निर्णय का विरोध करते हुए अमरीका के विरुद्ध ईरानी बलों की कार्यवाहियों के प्रति चेतावनी दी थी। अमरीका के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा था कि डोनाल्ड ट्रम्प का सदैव यही इरादा रहा है कि सिपाहे पासदारान या आईआरजीसी को एक आतंकवादी संगठन के रूप में ही पहचाना जाए। वाल स्ट्रीट जरनल की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका की संयुक्त सेना कमान के प्रमुख ने अमरीकी सैनिकों की सुरक्षा के प्रति चिंता व्यक्त की है। उन्होंने अमरीकी अधिकारियों को इस बात के प्रति चेतावनी दी है कि आईआरजीसी को आतंकवादी संगठन घोषित करने के कारण ईरान पर आर्थिक दृष्टि से दुष्प्रभाव के बजाए पश्चिम एशिया में अमरीकी सैनिकों के विरुद्ध हिंसा में वृद्धि हो सकती है।
ट्रम्प के इस फैसले का अमरीका के क्षेत्रीय घटकों विशेषकर इस्राईल, सऊदी अरब और बहरैन ने स्वागत किया है। ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री नेतनयाहू ने ट्रम्प के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय हमारे देश और क्षेत्रीय देशों के हित में है। नेतनयाहू ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने मेरा एक और महत्वपूर्ण अनुरोध मान लिया है। उन्होंने लिखा है कि हम एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हुए ईरान के विरुद्ध अपने प्रयासों को जारी रखेंगे। इसके मुक़ाबले में सीरिया, इराक़, हिज़बुल्लाह और हमास ने ट्रम्प के फैसले का विरोध किया है। सीरिया सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह फैसला, ईरान की संप्रभुता का खुला उल्लंघन है।
6 अप्रैल 2019 से ही इस बात की सुगबुगाहट थी कि ट्रम्प, आईआरजीसी के विरुद्ध कोई निर्णय लेने जा रहे हैं। इसी विषय के दृष्टिगत ईरान के अधिकारियों ने इस बारे में अपना निर्णय ले लिया था। सिपाहे पासदारान के प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल जाफ़री ने इस संस्था के विरुद्ध ट्रम्प के निर्णय पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि अब पश्चिमी एशिया में अमरीकी सैनिक चैन से नहीं रह पाएंगे। उन्होंने कहा कि अगर अमरीकी इस प्रकार का कोई मूर्खतापूर्ण काम करके हमारी राष्ट्री सुरक्षा को ख़तरे में डालते हैं तो फिर इस्लामी गणतंत्र ईरान की नीतियों के अनुसार ही काम किया जाएगा। यही कारण है कि ट्रम्प के शत्रुतापूर्व निर्णय के तुरंत बाद ईरान ने अपनी प्रतिक्रिया दी। ईरान के विदेशमंत्री मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने राष्ट्रपति डा. हसन रूहानी और राष्ट्रीय सुरक्षा की उच्च परिषद के प्रमुख को भेजे पत्र के माध्यम से अनुरोध किया है कि अमरीकी संन्ट्रल कमान्ड अर्थात पश्चिम एशिया में मौजूद अमरीकी सैनिकों को आतंकवादी गुट की सूचि में शामिल किया जाए।
अमरीका की ओर से इस्लामी क्रांति के संरक्षक बलों को आतंकवादी गुटों की सूचि में डाले जाने पर ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा की उच्च परिषद ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए एक बयान जारी किया है। इस बयान में संयुक्त राज्य अमरीका को आतंकवाद का समर्थक और अमरीकी सेना की केन्द्रीय कमान से संबन्धित सैनिकों को आतंकवादी गुट बताया गया है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया में आईआरजीसी के खिलाफ अमरीकियों की शत्रुता की वजह देश और क्रांति की रक्षा में अग्रणी होना बताया। वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने आईआरजीसी के कुछ अधिकारियों और उनके परिजनों से भेंट में, आईआरजीसी को एक महत्वपूर्ण संस्था और विभिन्न क्षेत्रों में दुश्मन से मुक़ाबले में अग्रणी बताया। उन्होंने कहा कि आईआरजीसी, सीमा पर दुश्मनों से मुक़ाबले के मोर्चे पर ही नहीं बल्कि हज़ारों किलोमीटर दूर हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के हरम के आसपास भी सक्रिय में अग्रणी होने के साथ ही साथ, दुश्मन से राजनीतिक संघर्ष में भी अगुवा रहा है। उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति के संरक्षक बलों से द्वेष का यही मुख्य कारण है।
डाक्टर हसन रूहानी ने इस बारे में कहा है कि 200 से अधिक सांसदों ने एक प्रस्ताव पारित करके पश्चिमी एशिया में मौजूद अमरीकी सैनिकों को आतंकवादी घोषित किया है। इसके अनुसार पश्चिम एशिया में अमरीकी सुरक्षाबलों के साथ मुक़ाबला किया जाएगा और उनके गिरफ़्तार किये जाने की स्थति में उन्हें ईरान के हवाले किया जाए गा।