Apr २४, २०१९ १४:३१ Asia/Kolkata

हम ने हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की और उनके जन्मस्थल और  नामकरण की वजह जन्म दिन के बारे में मतभेद के बारे में भी आप को बताया।

हल्लाज को ज्ञान से प्रेम था और इस प्रेम की वजह से उन्होंने खूब भ्रमण किया, कई देशों और क्षेत्रों की यात्रा की , विभिन्न मतों से संबंध रखने वाले धर्मगुरुओं से भेंट भी , भांति भांति के गुरुओं से शिक्षा दीक्षा ली और न जाने कितने लोगों को ज्ञान बांटा, उपदेश दिये, और उनका मार्गदर्शन किया। अपनी विद्रोही प्रवृत्ति के कारण उन्होंने अपने समय की कई परंपराओं को तोड़ा और जहां भी गये , हज़ारों लोग उनके अनुयाई बन गये, लोगों को लगता था कि , सब से अलग उनका रास्ता, सुधार का रास्ता है , कल्याण का मार्ग है , इसी लिए लोग उनके मार्ग पर चलने के लिए व्याकुल हो जाते और आम जनता की यह व्याकुलता, उस समय के धर्मगुरुओं और शासकों भी व्याकुल कर देती।

हुसैन बिन मंसूर हल्लाज को बेपनाह लोकप्रियता हासिल हुई और उसी की वजह से उन्हें असीम शत्रुता का भी सामना करना पड़ा। जिस तरह से उनके अनुयाई, विभिन्न वर्गों से संबंध रखते थे उसी तरह उनके दुश्मन भी , विभिन्न वर्गों के थे किंतु उनसे सब से अधिक परेशानी , बगदाद के धर्मगुरुओं को थी और उन्होंने बगदाद के शासक को हुसैन बिन मंसूर हल्लाज  के खिलाफ भड़काना आरंभ कर दिया जिसकी वजह से बगदाद के शासक ने उन्हें जेल में डाल दिया, आठ वर्षों तक वह जेल में रहे और फिर उन्हें मृत्युदंड दिया गया और आध्यात्म व सूफीवाद को नया अर्थ देने वाले हुसैन बिन मंसूर हल्लाज  को 24 ज़िलहिज्जा सन 309 हिजरी क़मरी में फांसी दे दी गयी।

 

हुसैन बिन मंसूर हल्लाज  ने अपने जीवन में बहुत सी किताबें लिखी, उनकी कई किताबों का उल्लेख , उनके खिलाफ मुक़द्दमे की कार्यवाही के दौरान भी किया गया लेकिन मृत्युदंड दिये जाने के बाद प्रकाशकों, किताब बेचने वालों को आदेश दिया गया कि वह न तो हुसैन बिन मंसूर हल्लाज की किताब खरीदेंगे और न ही बेचेंगे। अत्याधिक मूल्यवान किताब " अलफेहरिस्त" के लेखक इब्ने नदीम ने हुसैन बिन मंसूर हल्लाज की कुछ रचनाओं का अपनी किताब में उल्लेख किया है।  " अत्तासीनुल अज़ल वलजौहरुल अकबर, वश्शजरुतुलन्नूरिया, कु़ल होवल्लाहो अहद की व्याख्या, हम्लुन्नूर वलहयातो वलअरवाह, अलअद्लो वत्तौहीद और कविताओं का संकलन उन 49 किताबों में शामिल हैं जिनका उल्लेख इब्ने नदीम ने हुसैन बिन मंसूर हल्लाज  की रचनाओं के रूप में अपनी किताब अलफ़ेहरिस्त में किया है।

 

हुसैन बिन मंसूर हल्लाज  ने जो 49 रचनाएं लिखी हैं और इब्ने नदीम ने अपनी किताब अलफेहरिस्त में जिनका उल्लेख किया है उनमें से मात्र किताबें, लगभग 112 शेर, और उनके लगभग 340 आध्यात्मिक अनुभवों के अलावा हम तक और कुछ नहीं पहुंचा। अस्ल में जिस समय हुसैन बिन मंसूर हल्लाज  को जेल में रखा गया था और जिसके बाद उन्हें मृत्युदंड दिया गया , उसी दौरान उनकी किताबों को जलाने और खत्म करने का काम भी शुरु कर दिया गया  था जिसकी वजह से उनकी रचनाएं बच नहीं पायीं और आज हमारे हाथ में बस कुछ ही चीज़ें हल्लाज की यादगार के रूप में बची हैं। उस समय के महामंत्री, हामिद बिन अब्बास ने हुसैन बिन मंसूर हल्लाज  द्वारा बनाए गये नये आध्यात्मिक मत को पूरी तरह से मिटा देने के लिए न केवल यह कि हल्लाज के शिष्यों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की बल्कि हल्लाज की हस्तलिखित रचनाओं को भी नष्ट कर दिया। इतनी कड़ाई के बावजूद हल्लाज की कुछ रचनाएं सुरक्षित रह गयीं जिन्हें क़ासिम मीर आखोरी ने अनुवाद, संकलन और अध्धयन के बाद एक संग्रह के रूप में प्रकाशित किया है। इस किताब का नाम , हल्लाज की रचनाएं है।

 

हल्लाज की सब से क़ीमती बची हुए रचना का नाम, " तवासीन " है । इस  रचना को  फ्रांस के प्राच्यवादी  लुई मेसीन्यून ने इस्तांबूल और लंदन में इस किताब की दो प्रतियों की मदद से इस पर शोध किया और उसे सही किया तथा सन 1913 में पेरिस में उसे " तवासीस " के नाम से प्रकाशि किया। मेसीन्यून का कहना है कि यह किताब जेल से , हल्लाज के दोस्त और शिष्य, अहमद बिन अता अलअदमी द्वारा बाहर निकली और इस तरह से वह सुरक्षित रह गयी। क़ासिम मीर आख़ोरी, ने तवासीन के अरबी लेख का,  मेसीन्यून और इसी प्रकार " दीवानुल हल्लाज"  की मदद से जिस पर सअदी ज़नावी ने अध्ययन किया है, फारसी में अनुवाद किया है।

हल्लाज की तवासीन नामक यह किताब दस भागों पर आधारित है। तवासीन , तासीन का बहुवचन है। तासीन क़ुरआने मजीद के सूरए नम्ल का दूसरा नाम है। अरबी भाषा में चींटी को नम्ल कहा जाता है और कुरआने मजीद के इस सूरे में वास्तव में चींटियों के बारे में बात की गयी है और उनकी जीवन शैली के बारे में बताया गया है इस लिए इस सूरे को , नम्ल भी कहते हैं। यह सूरए चूंकि  " ता, सीन" नामक अरबी भाषा की वर्णमाला के दो शब्दों से आरंभ होता है और विदित रूप से इसका कोई अर्थ नहीं होता इस लिए इस सूरे का एक नाम " तासीन" भी है। कुरआने मजीद की व्याख्या करने वाले बहुत से विशेषज्ञों का कहना है कि सूरए नम्ल के आरंभ में " तासीन" वास्तव में ईश्वर के नाम की सौगंध है। मंसूर हल्लाज की किताब " तासीन " में हल्लाह के आध्यात्मिक अनुभवों का वर्णन किया गया है किंतु इसके लिए भाषा अत्यन्त गूढ़, जटिल और प्रतीकात्मक प्रयोग की गयी है।  हल्लाज की एक अन्य किताब का नाम " बुस्तानुलमारेफा" है इस किताब में हल्लाज ने " ईश्वर की पहचान" और उसकी विशेषताओं का उल्लेख किया है।

हुसैन बिन मंसूर  हल्लाज की एक अन्य किताब का नाम " रवायत " है। इस में 27 रवायतों या कथनों का उल्लेख किया गया है जिनको हल्लाज ने , अपनी साधना के दौरान उपजे विचारों के रूप में लिखा है। इन कथनों के लिए हल्लाज ने जो हवाले दिये हैं और जिन लोगों का नाम लिया है उनका क्रम, इस्लामी बुद्धिजीवियों में प्रचलित क्रम से भिन्न है और हल्लाज ने पैगम्बरे इस्लाम के कथनों का वर्णन करने का जो सिलसिला था  उसे महत्व नहीं दिया। पैगम्बरे इस्लाम की हदीसों और उनके कथनों को , पैगम्बरे इस्लाम के साथी, उनके अनुयाइयों और अनुयाइयों के अनुयाइयों के हवाले से लिखा और बताया जाता है, यह सभी इस्लामी धर्मगुरुओं की शैली है और इसी प्रकार से बयान की गयी हदीसों और कथनों को विश्वास योग्य समझा जाता है किंतु हल्लाज की शैली भिन्न थी। हल्लाज ने कुछ आयतों , हदीसों और रहस्यम व प्रतीकात्मक चीज़ों का अपने अंदाज़ में वर्णन किया है। हल्लाज का मानना है कि हदीस, पैगम्बरे इस्लाम के आदेश को नहीं बल्कि ईश्वरीय आदेश को को पहुंचाती है और उसका वर्णन करती है और पैगम्बरे इस्लाम के कथनों के लिए , उसका वर्णन करने वाले उनके साथियों , अनुयाइयों और अन्य लोगों की एक श्रंखला की कोई़ ज़रूरत नहीं है क्योंकि वह सब मर चुके हैं। हल्लाज की नज़र में , पैगम्बरे इस्लाम के कथनों को बताने वाली ऐसी रचनाएं हैं जिन्हें हरेक पहचान सकता है और इस समय भी उपस्थित हैं।  रवायत नामक इस किताब को रूज़बहानी की " शरहे शतहियात" किताब की मदद से सही किया गया है।

 

हल्लाज की एक अन्य कुरआने मजीद की व्याख्या पर आधारित है जिसका उल्लेख , अबू अब्दुर्रहमान सुल्लमी ने , हल्लाज के हवाले से अपनी किताब, हक़ाएक़ुत्तफसीर में किया है। लुई मेसीन्यून ने इसे  भी सन 1992 में सुधार व संशोधन के बाद पेरिस  में छपवाया है। इस किताब में हल्लाज ने कुरआने मजीद के किसी भी सूरे की एक या कई आयतों का चयन करते और फिर उनकी व्याख्या बयान करते।

 

हल्लाज की रचनाओं का अनुवाद और संकलन करने वाले क़ासिम मीर आख़ोरी ने अपनी किताब के चौथे भाग में हल्लाज के 340 उपदेशों व बयानों को लिखा है जो , बयानों, वसीयत, सिफारिशों और प्रार्थनाओं पर आधारित हैं। हल्लाज के 112 शेरों को इस किताब के पांचवे भाग में लिखा गया है। मीर आख़ोरी इन शेरों के बारे में कहते हैंः हमें अध्ययन के दौरान दो प्रकार के शेर नज़र आए, कुछ शेर एेसे थे जिनका हवाला स्वंय हल्लाज ने दिया है किंतु कुछ शेर एेसे भी हैं जो हल्लाज के कहे जाते हैं । मीर आख़ोरीे ने , इस बारे में मतभेद होने की वजह  से , अपने अध्ययन व शोध का आधार, लुई मेसीन्यून का दीवाने हल्लाज, मुस्तफा अश्शीबी  और सअदी ज़नावी के शोधों व अध्ययनों को बनाया है। हल्लाज के शेरों को , विभिन्न अवसर पर उनके शिष्यों ने संकलित किया है। मेसीन्यून ने हल्लाज की कविता संग्रह को संकलित किया है और सन 1931 ईसवी में पहली बार उन्हें एक एशियाई पत्रिका में छापा गया। उसके बाद इन शेरों पर अत्याधिक चर्चा व मतभेद के बाद सन 1955 में उसे दोबारा छापा गया।

 

हल्लाज की कविता और शेर, सरल , प्रवाहित और साधे हैं। उनके अधिकाशं शेर, ईश्वर के समक्ष प्रार्थना और दुआ हैं और उनमें सूफीवाद की झलक बहुत कम मिलेगी किंत उनकी कुछ कविताओं में वाद शास्त्र , इस्लामी नियमों व दर्शन शास्त्र की झलक मिलती है जो उस समय प्रचलित थे। हल्लाज की रचनाओं पर लिखी गयी किंताब का अंतिम भाग, हल्लाज के कथनों पर आधारित है। इस अध्याय में हल्लाज द्वारा कही गयी बातों की व्याख्या , की गयी है और मीर आख़ोरी ने इन शेरों का उल्लेख करके उनकी व्याख्या की है।