शौर्य घाथा- 14
इराक ने ईरान पर जो आठ वर्षीय युद्ध थोपा था वह दौर ईरानी जनता की वीरता, त्याग और बलिदान से भरा पड़ा है।
इराक़ ने ईरान पर जो युद्ध थोपा था उसका पहला वर्ष बहुत कठिन था परंतु वह ईरानी जनता के बलिदान और परित्याग से भरा पड़ा है। शाह की अत्याचारी व तानाशाही सरकार के अंत के बाद ईरान की इस्लामी क्रांति सफल हुई थी और इस्लामी व्यवस्था अपनी स्थापना के पहले चरण में थी और उसे देश के भीतर और बाहर के दुश्मनों में सर्वोपरि अमेरिका के षडयंत्रों का सामना था। इसी कारण उसके अंदर इराक की अतिक्रमणकारी सेना से मुकाबले की तत्परता नहीं थी। केवल जनता का साहसिक प्रतिरोध था जिसमें ईरानी सेना और सुरक्षा बलों के साथ मिलकर सद्दाम की अतिक्रमणकारी सेना की बढ़त का रोका। दूसरे शब्दों में भारी हथियारों से लैस सद्दाम की अतिक्रमणकारी सेना से मुकाबले की स्ट्रैटेजी अव्यवस्थित प्रतिरोध था। सद्दाम की अतिक्रमणकारी सेना के मुकाबले में ईरानी सुरक्षा में समन्वय व एकजुटता का न होना केवल एक ईरान का कमज़ोर बिन्दु नहीं था। इराक के साथ ईरान की 1458 किलोमीटर की लंबी सीमा थी और ईरान के समस्त सीमावर्ती क्षेत्रों में इराक से मुकाबले के लिए समान विचार नहीं पाये जाते थे। सद्दाम की अतिक्रमण सेना से मुकाबले के लिए एकता व जुटता का न होना बहुत बड़ी कमज़ोरी थी। क्योंकि यह कमज़ोरी अतिक्रमणकारी सेना से मुकाबले के लिए अधिक से अधिक सेन्य संभावनाओं के प्रयोग को निष्किय बना रही थी।
अबुल हसन बनी सद्र ईरान का पहला राष्ट्रपति था जो राजनीतिक, सुरक्षा और सेन्य स्तर पर अधिकारियों के बीच फूट डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था। इस्लामी क्रांति के खिलाफ अमेरिका जो षडयंत्र रचा था बनी सद्र उसमें फंस चुका था। उस समय कुछ क्रांतिकारी थे जिन्होंने सद्दाम की अतिक्रमणकारी सेना और क्रांति के विरोधी गुटों से मुकाबले के लिए जनता को एकजुट करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी। जिन लोगों ने इस प्रकार की भूमिका निभाई थी उनमें से एक डाक्टर मुस्तफा चमरान थे। उन्होंने ईरान के अहवाज़ नगर और उसके आस- पास के क्षेत्रों में सद्दाम की अतिक्रमणकारी सेना से मुकाबले के लिए एक इकाई का गठन किया।
डाक्टर मुस्तफा चमरान एक क्रांतिकारी व संघर्षकर्ता व्यक्ति होने से पहले एक शैक्षिक हस्ती थे। शहीद चमरान स्कूल और विश्व विद्यालय की अपनी पढ़ाई के समस्त वर्षों में मेधावी और प्रतिभाशाली छात्र थे। डाक्टर मुस्तफा चमरान हाई स्कूल की पढ़ाई पूरा करने के बाद पालिटेकनिक कालेज में अपनी पढ़ाई जारी रखी और इलेक्ट्रोमैकेनिक के विषय में अपनी पढ़ाई पूरी की और उसके बाद स्कॉलरशीप वह आगे की पढ़ाई के लिए गए। वहां उन्होंने अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में प्रसिद्ध विश्व विद्यालय बरक्ले में पढ़ाई की और इलेक्ट्रांनिक और फिज़िक्स प्लाज़्मा में डॉक्ट्रेट की डिग्री प्राप्त की। उनके थीसेज़ का विषय भी फिज़िक्स प्लाज़्मा और मैगनेटरॉन था। यह वह विषय था जिसे उस समय पश्चिम में नया विषय समझा जाता था। शहीद मुस्तफा चमरान पढ़ाई- लिखाई के साथ राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय रूप से भाग लेते थे। दिवंगत धर्मगुरू तालेकानी तेहरान की “हिदायत मस्जिद” में पवित्र कुरआन की व्याख्या की जो शिक्षा देते थे उसमें डाक्टर मुस्तफा चमरान नौजवानी में भाग लेते थे और तेहरान विश्व विद्यालय के इस्लामी छात्रों की जो यूनियन थी उसके वह पहले सदस्य थे। डाक्टर मुस्तफा चमरान जब अमेरिका में थे तब उन्हें अपनी पढ़ाई के दौरान काफी समस्याओं व कठिनाइयों का सामना था किन्तु इन सबके बावजूद वह न केवल राजनीतिक संघर्ष से पीछे नहीं हटे बल्कि उन्होंने स्वयं अमेरिका में बहुत से ईरानी छात्रों की इस्लामी यूनियनों की बुनियाद रखी। डाक्टर मुस्तफा चमरान की जब पढ़ाई पूरी हो गयी तो वह नासा से संबंधित बेल नामक प्रयोगशाला में सेटेलाइट, गाइडेड मिसाइल और राडार के बारे में शोधकार्य करने लगे। रोचक बात यह है कि कई जगहों से उनके पास शिक्षक के रूप में पढ़ाने के लिए आवेदन पत्र आये थे फिर भी उन्होंने अध्ययन व शोधकार्य को प्राथमिकता दी।
राजनीतिक संघर्ष करने के कारण डॉक्टर मुस्तफा चमरान पर ईरान की शाही सरकार का भारी दबाव था। पॉलटेकनिक कालेज की ओर से उन्हें जो स्कॉलरशीप मिलती थी उसे बंद कर दिया गया था। अंततः उन्होंने ईरान की तानाशाही सरकार से मुकाबले के लिए अपना अध्ययन व शोधकार्य छोड़ दिया और मिस्र चले गये। वह वर्ष 1963 में मिस्र गये थे जहां उस समय जमाल अब्दुन्नासिर सत्ता में थे और वहां उन्होंने दो वर्षों तक छापामार लड़ाई का प्रशिक्षण लिया और उसके बाद वर्ष 1965 में लेबनान चले गये और वहां वह इमाम मूसा सद्र और लेबनानी शीयों की सहायता में लग गये और उन्होंने अतिक्रमणकारी जायोनी शासन से मुकाबले के लिए “जुंबिशे महरूमान” और “अमल”नामक आंदोलनों की बुनियाद रखी।
डाक्टर मुस्तफा चमरान के जीवन का तीसरा चरण ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद आरंभ हुआ। वह इस्लामी क्रांति की सफलता के 10 दिनों के बाद और 21 वर्षों तक ईरान से दूर रहने के बाद स्वदेश लौट आये और उनके पास जो भी अनुभव थे उसे उन्होंने इस्लामी क्रांति की सेवा में लगा दिया। डाक्टर मुस्तफा चमरान ने अपना सारा प्रयास इस्लामी क्रांति के संरक्षक बल सिपाहे पासदारान के पहले दल के प्रशिक्षण पर लगा दिया और क्रांति के मामलों में प्रधानमंत्री के सहायक व सलाहकार के रूप में कुर्दिस्तान में क्रांति विरोधी षडयंत्रों से मुकाबले में जुट गये। कुर्दिस्तान प्रांत ईरान के पश्चिम में स्थित है। उसके एक नगर का नाम पावे है। पावे वह नगर है जो इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद क्रांति के विरोधी तत्वों की गतिविधियों का गढ़ बन गया था। वहां क्रांति के समर्थक और विरोधी तत्वों के मध्य भीषण लड़ाई हुई थी। ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने डॉक्टर मुस्तफा चमरान को जो काम सौंपा था उसमें से एक सेना और जनसेना को पावे नगर में क्रांति के विरोधी तत्वों के परिवेष्टन से बाहर निकालना था। डाक्टर मुस्तफा चमरान की रणनीति और जनसेना के प्रतिरोध के परिणाम में अंततः पावे नगर क्रांति विरोधी तत्वों के परिवेष्टन से आज़ाद हो गया।
पावे घटना के बाद स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने डाक्टर मुस्तफा चमरान को रक्षामंत्री के पद पर नियुक्त कर दिया। इस पद पर भी उन्होंने ईरानी सेना को संगठित और मज़बूत बनाने के लिए बड़े पैमाने पर कार्य किये। डॉक्टर मुस्तफा चमरान सत्ता, शक्ति, धन- दौलत और प्रसिद्धि बिल्कुल नहीं चाहते थे। इसी कारण उनको जो भी पद दिया जाता है उन सब पर वे इस्लामी क्रांति की उपलब्धियों और उसके मूल्यों की रक्षा के लिए हर प्रकार की कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते थे। जब सद्दाम की अतिक्रमणकारी सेना ने ईरान पर हमला किया तो उन्होंने ख़ुज़िस्तान प्रांत के केन्द्रीय नगर अहवाज़ में अतिक्रमणकारी सेना से मुकाबले हेतु छापामार युद्ध के लिए इकाई का गठन किया। डाक्टर मुस्तफा चमरान ने अपनी रणनीति और खुज़िस्तान प्रांत की रक्षा के लिए आये लोगों की सहायता से अतिक्रमणकारी सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया। यही नहीं कुछ क्षेत्रों में अतिक्रमणकारी सेना को पीछे भी ढकेल दिया। उन दिनों डाक्टर मुस्तफा चमरान के साथ एक जानी पहचानी हस्ती ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई थे।
उन दिनों वरिष्ठ नेता ईरान की इस्लामी संसद शूराये इस्लामी में सांसद और क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी के आदेश से तेहरान के इमाम जुमा और उच्च सुरक्षा परिषद में इमाम खुमैनी के प्रतिनिधि थे।