ईरान भ्रमण- 9
ईलाम प्रांत का क्षेत्रफल लगभग 19086 वर्ग किलो मीटर है। यह एक पहाड़ी और ऊंचा इलाक़ा है।
यह प्रांत ईरान के पश्चिम और दक्षिण पश्चिम में कबीर-कोह और ज़ागरस पर्वतीय श्रंखलाओं के बीच स्थित है। इस प्रांत के उत्तर में किरमानशाह प्रांत, दक्षिण में ख़ुज़िस्तान और इराक़ का एक भाग, पूरब में लोरिस्तान, और पश्चिम में इराक़ स्थित है।
ईलाम प्रांत में ज़ागरस पर्वतीय श्रंखला के पहाड़ स्थित हैं, जो इस पर्वतीय श्रंखला के पश्चिमी किनारे पर समानांतर रूप में स्थित हैं और उत्तर पश्चिम एवं दक्षिण पूर्व तक समानांतर रूप में फैले हुए हैं। ईलाम प्रांत के उत्तरी वं उत्तर पूर्वी इलाक़े पहाड़ी हैं जो काफ़ी ऊंचे हैं। इस प्रांत के पश्चिमी एवं दक्षिण पश्चिमी इलाक़े नीचे और कम ऊंचाई वाले हैं।
ईलाम प्रांत जलवायु की दृष्टि से ईरान के गर्म इलाक़ों में गिना जाता है। हालांकि पहाड़ों के कारण, तापमान और बारिश के अनुपात में विभिन्न इलाक़ों में काफ़ी अंतर है। इस प्रकार से कि इस प्रांत के इलाक़ों को सर्द, गर्म और संतुलित जलवायु वाले भागों में बांटा जा सकता है। प्रांत में प्रतिवर्ष काफ़ी वर्षा होने और ज़ागरोस पर्वतीय श्रंखला से निकलने वाले सोतों के कारण कई नदियां अस्तित्व में आ गई हैं। यही कारण है कि इस प्रांत में कई बांधों और नहरों का निर्माण किया गया है। इस प्रांत का केन्द्र ईलाम शहर है, जो प्राकृतिक रूप से काफ़ी सुन्दर है और ज़ागरोस की दुल्हन के नाम से प्रसिद्ध है।
ईलाम प्रांत में पर्वतीय श्रंखलाओ और बड़े बड़े जंगलों के कारण विभिन्न प्रकार के जानवर और वनस्पतियां पायी जाती हैं, जिसकी वजह से इस इलाक़े के प्राकृतिक सौंदर्य में वृद्धि हो गई है। इस इलाक़े के पहाड़ों के आंचल में हरे भरे दृश्य, बलूत के जंगल, नदियां और बड़ी संख्या में सुन्दर झरने हैं। ईलाम, ईरान के सबसे सुन्दर इलाक़ों में से एक है और यहां प्राकृतिक पर्यटन की काफ़ी संभावनाएं मौजूद हैं।
पश्चिमी ईरान के शहरों में से हर एक शहर के अपने अपने चाहने वाले हैं। ये शहर अपनी प्राकृतिक विशेषताओं ऐतिहासिक विशेषताओं अपने हस्त उद्योगों और दूसरी अन्य विशेषताओं के कारण हमेशा से पर्यटकों की प्राथमिकता का केन्द्र रहे हैं। दर्रे शहर उन शहरों में है जो ईरान के इतिहास के बारे में जानने के इच्छुक लोगों के लिए बहुत अधिक आकर्षक रहा है। यह ऐतिहासिक शहर ईलाम शहर के पश्चिम में, प्राकृतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आकर्षकों के बीच तथा पुले गावमीशान और मादाक्तो के नाम से प्रसिद्ध सीमरा शहर के खंडरों के साथ कबीरकूह नामक पर्वातांचल में अपनी सुन्दरता बिखेर रहा है।
कबीर कूह नामक पर्वत की ऊंचाई पर एक हरीभरी और सुन्दर घाटी नज़र आती है। बड़ी संख्या में वृक्षों के पाए जाने और कल कल करती नदियों की वजह से यह शहर यात्रियों और पर्यटकों के ध्यान का केन्द्र बन गया है। इस क्षेत्र की नदियां कबीर कूह से उदगम होती हैं और अपनी सुन्दर व हरे भरे क्षेत्रों से अठखेलियां करते हुए सीमरा नदी में मिल जाती हैं।
ईरान के इस इलाक़े का इतिहास काफ़ी पुराना है, जिसके कारण यहां महत्वपूर्ण एवं आकर्षक चीज़ें हैं, जो प्राचीन ईरान की पौराणिक कहानियों की याद दिलाती हैं। इस प्रांत की एक अन्य सुन्दरता, यहां के सामाजिक एवं सांस्कृतिक आकर्षण हैं। इस इलाक़े की सैर के लिए सबसे उचित समय वसंत ऋतु है। वसंत में यहां सुन्दर फूल खिलते हैं और गर्मियों में नदियां बहती हैं और सुन्दर झरने गिरते हैं।
ईलाम में सासानी काल का एक दुर्ग और एक अन्निकुंड के अवशेष भी मिलते हैं जबकि जाबिर बिन अंसारी और सैयद ताजुद्दीन के मक़बरे के अवशेषों के अलावा यह क्षेत्र अपनी सुन्दर और प्राकृतिक दृश्यों के कारण आज भी पर्यटन और दर्शन की दृष्टि से अद्वितीय है।
ईलाम प्रांत में इस्लाम पूर्व के बाक़ी रह गए अग्निकुंडों में से यह अग्निकुंड सबसे अच्छी स्थिति में है, जो अद्वितीय है और पुरातत्व अध्ययन के मुताबिक़ इसका बहुत महत्व है। इस ऐतिहासिक इमारत में एक वर्गीकार हाल है जो 5x5 वर्ग मीटर है और उसकी ऊंचाई 10 मीटर है। दीवारों की चौड़ाई एक मीटर है, इसमें एक अग्निकुंड बना हुआ है और उसके ऊपरी हिस्से में छेद हैं, जो संभवतः धुंआ निकलने के लिए हैं। इस इमारत के चारों ओर एक अहाता है, जो प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक कारकों की वजह से नष्ट हो चुका है। यह इमारत पत्थर, गारे और चूने से बनाई गई है।
दर्रे शहर के पश्चिमी और दक्षिण पश्चिमी भाग में ईरान के पश्चिमी भाग के इतिहास का एक बड़ा भाग मौजूद है। यहां पर मौजूद बहुत से प्राकृतिक दृश्य तथा ऐतिहासिक अवशेष बहुत ही प्राचीन हैं और यह प्राकृतिक दृश्य व ऐतिहासिक अवशेष एक साथ मौजूद हैं जिससे इस क्षेत्र की सुन्दरता में चार चांद लग जाते हैं। जी हां मादक्तो के नाम से प्रसिद्ध सीमरा नामक ऐतिहासिक शहर कुछ इतिहासकारों के अनुसार उस काल की ओर पलटते हैं जब प्राचीनकाल में ईलामी लुरिस्तान के पर्वतों के गवर्नर थे। एयलामियों ने व्यापक क्षेत्रों पर नियंत्रण कर रखा था और उन्होंने इस स्थान को अपनी दूसरी राजधानी धोषित कर रखा था और उसी को मादक्तो का नाम दिया था। हख़ामनशी काल में इस शहर का कुछ अता पता नहीं था किन्तु सासानी शासन काल में यह शहर प्रसिद्धी के अपने चरम पर पहुंच गया था।
हख़ामनियों के दौर में यह इलाक़ा हख़ामनी साम्राज्य का भाग था। अरब मुसलमानों की ईरान पर विजय के बाद, संभव है यह इलाक़ा कूफ़ा राज्य का एक भाग बना दिया गया हो। चौथी शताब्दी के आरम्भ से छठी शताब्दी के आरम्भ तक कुर्द परिवार हुस्नूविए ने लोरिस्तान और ईलाम पर शासन किया और 570 से 1006 हिजरी तक अताबकान लोर ने लोरिस्तान और पुश्तकोह पर शासन किया। यहां तक कि शाह अब्बास प्रथम के हाथों अताबकान लोर के अंतिम शासक शाहवरदी ख़ान की हत्या के बाद, इस इलाक़े का शासन शाह अब्बास ने पुश्तकोह के वालियों के प्रथम शासक हुसैन ख़ान को सौंप दिया। ईलाम और पुश्तकोह में वालियों ने लगभग तीन शताब्दी तक शासन किया। हालांकि इलाक़े के सामाजिक जीवन के कारण, वालियों के शासन का कोई स्थायी केन्द्र नहीं था। इस प्रकार से कि शीत ऋतु के तीन महीनों में इराक़ के बाग़शाही और मेसोपोटामिया के हुसैनिया में स्थित था और गर्मी में हीलान और हुसैनाबाद में, जो वर्तमान में ईलाम कहलाता है। इस शासन श्रंखला के अंतिम शासक को 1307 में सत्ता छोड़नी पड़ी, जिसके बाद 1308 हिजरी शम्सी में हुसैनाबाद के नाम से इस इलाक़े की स्थापना की गई। शहरीवर 1314 हिजरी शम्सी में प्राचीन ईलाम की भव्य संस्कृति की याद में हुसैनाबाद गांव का नाम बदलकर ईलाम हो गया और इस गांव को शहर एवं ईलाम प्रांत के केन्द्र में परिवर्तित कर दिया गया।
वर्तमान समय में इस शहर के खंडहर, सासानियों के शहर निर्माण की शैली की गाथा सुनाते हैं। इस कांप्लेक्स में वॉच टॉवर, सड़कें, पानी सप्लाई का सिस्टम और गटर सिस्टम को देखा जा सकता है। जब हम पत्थरीली चट्टानों और उसके बचे हुए अर्ध भाग की ओर चलते हैं तो हमको इस काल की वास्तुकला की सूक्ष्मता को पूरी तरह से दिखाई देता है। आपको यह कल्पना करते हुए कितना अच्छा लगेगा कि सीमरा नदी के किनारे एक सुन्दर शहर बसा हुआ हो। आप इस क्षेत्र में चहलक़दमी करते हुए दुनिया की अन्य सुन्दरताओं की भी कल्पना कर सकते हैं। इस क्षेत्र की सुन्दरता को इस प्रकार बयान किया जा सकता है कि एक चटियल मैदान व मरुस्थल के सीने पर कल कल करती बहती हुई नदी। इस प्राचीन शहर में पाए जाने वाले अन्य अवशेषों में ज़मीन के नीचे से बरामद होने वाली एक मस्जिद है जिसका संबंध इस्लाम के आरंभिक काल से है। इस इमारत में प्रयोग होने वाले मसाले पत्थर और चूने हैं। इसी प्रकार इस इमारत के प्रवेश द्वार पर बने हुए ताक़, पालने की भांति दिखते हैं। इस मस्जिद में हॉल और प्रागड़ में बहुत ही सुन्दर ढंग से चूने का प्रयोग और इनसे बनी डिज़ाइनों को भलिभांति देखा जा सकता है।
इन सब सुन्दरताओं के साथ ही गावमीश नामक सुन्दर पुल को देखा जा सकता है जो सीमरा नदी पर बना हुआ है। यह पश्चिमी ईरान का प्राचीनतम, सुन्दरतम और प्रसिद्धतम पुल है। वर्तमान समय में सीमरा नदी काफ़ी सिमट गयी है और इस पुल के दो स्तंभों से होकर गुज़रती है कि जिसके ताक़ टू गये हैं किन्तु पुल के बाक़ी सोते अब भी सुरक्षित हैं।
दर्रे शहर की यात्रा के दौरान बहराम चूबीन नामक स्ट्रेट भी अवश्य देखना चाहिए। इस काम्पलेक्स में बाक़ी बचे अवशेष में दीवार और सैन्य छावनियों के हिस्से हैं जिसे चूबीन दुर्ग भी कहा जाता है, सैन्य प्रतीकों से भरे हुए हैं। इस स्ट्रेट को बहराम चूबीन की शिकारगाह भी कहा जाता है क्योंकि इस जलडमरू के भीतर और उसके बाहर अनेक प्रकार के पक्षियों और जानवरों की उपस्थिति के लिए अनूछुआ वातावरण पाया जाता है। बहराम इस घाटी में शिकार करता था।
ईलाम की अर्थव्यवस्था भी अक्सर पहाड़ी इलाक़ों की भांति कृषि और पशुपालन पर आधारित है।
प्रांत के अधिकांश इलाक़ों में पारम्परिक रूप से कृषि होती है। प्रांत का सबसे महत्वपूर्ण कृषि उत्पाद गेंहू है। इस प्रांत में भविष्य में कृषि और पशु पालन की काफ़ी संभावनाएं पायी जाती हैं। वर्तमान समय में भी प्रांत के लोगों की आय का मुख्य स्रोत पशुपालन और कृषि है। विविध जलवायु, पहाड़ों, जंगलों, चरागाहों और वसंत एवं गर्मियों में विभिन्न प्रकार के फूल खिलने के कारण इस प्रांत में मधु मक्खी पालन के लिए अच्छी संभावनाएं हैं। (AK)