ईरान भ्रमण- 10
हम पश्चिमी ईरान के ठंडे इलाक़ों का सफ़र करते हुए अब दक्षिण पश्चिमी इलाक़ों की ओर जा रहे हैं जहां हम ख़ूज़िस्तान पहुंचे हैं।
यह वह इलाक़ा है जहां जागरुस पर्वत के पूर्वी आंचल का बड़ा भाग फैला हुआ है। जब हम उस मैदानी इलाक़े में पहुंचते हैं जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई बहुत कम है तब हमें ख़ूज़िस्तान की गर्मी का भरपूर तरीक़े से एहसास होता है। समुद्र तल से बहुत कम ऊंचाई, विशाल दलदली क्षेत्रों, नरकुल के बड़े बड़े जंगलों तथा पानी की बहुतायत के कारण ख़ूज़िस्तान को हूर कहा जाता है। ख़ूज़िस्तान प्रांत का वैभवशाली और और एतिहासिक शहर अहवाज़ इस प्रांत के मैदानी भाग में स्थित है। यह शहर फ़ार्स खाड़ी के तट के क़रीब होने और सऊदी अरब के रेगिस्तानी इलाक़ों की गर्मी के झोंके की वजह से ईरान के बहुत अधिक गर्म इलाक़ों में गिना जाता है।
अहवाज़ के इतिहास की बात की जाए तो इसकी प्राचीनता ईलामी सभ्यता तक पहुंचाती है, छह हज़ार साल पहले इसे तारियाना के नाम से जाना जाता था और इस का बहुत अधिक महत्व था। बाद में हख़ामनी शासन काल में डेरियस दि ग्रेट के ज़माने में इसे ख़ूजिस्तान अर्थात शकर का शहर कहा जाने लगा। अलबत्ता यह भी बताते चलें कि अलग अलग कालों में अहवाज़ के अलग अलग नाम रहे हैं। इस्लामी काल आ जाने के बाद से इस शहर का नाम अहवाज़ है।
अहवाज़ के दर्शनीय स्थल शहर में प्रवेश से पहले ही शुरू हो जाते हैं। शहर के बाहर गन्ने के बड़े बड़े खेत और उनमें गन्ने की लहलहाती फ़सलें जब नीले क्षितिज के नीचे नज़र आती हैं तो बड़ा सुंदर दृष्य उत्पन्न कर देती हैं। इसी तरह ऊंचे ऊंचे खजूर के पेड़ों से भरे विशाल बाग़ या नख़लिस्तान और उनमें पेडों पर लटके खजूर के बड़े बड़े गुच्छे पूरे वातावरण को एक अलग प्रकार की सुंदरता प्रदान करते हैं। अहवाज़ अपने इन्हीं बड़े बड़े बाग़ों की वजह से खजूर की पैदावार के महत्वपूर्ण केन्द्रों में शामिल हो गया है। अहवाज़ के साथ ही पूरा ख़ूज़िस्तान प्रांत अपने तेल के कुंओं और पीले खजूरों की वजह से काले और पीले सोने का इलाक़ा कहा जाता है। इसलिए कि इस इलाक़े में तेल के कुएं भी बहुत ज़्यादा हैं। इसके अलावा इस इलाक़े में बड़े औद्योगिक केन्द्र स्थित हैं जैसे स्टील का मशहूर कारख़ाना, इसलिए अहवाज़ को महत्वपूर्ण औद्योगिक हब के रूप में भी देखा जाता है।
आपके लिए यह जानना भी रोचक होगा कि अहवाज़ का नाम कारून नदी से जुड़ा हुआ है। अहवाज का नाम आते ही कारून नदी का नाम भी मन में आ ही जाता है। इस नदी का एक बड़ा भाग एसा है जहां नौकाएं चलती हैं। इसीलिए यहां पुराने ज़माने से ही व्यापारिक गतिविधियों का विकास होता रहा है। कारून ईरान की अधिक पानी वाली नदियों से है। इसक उद्गम बख़तियारी पहाड़ों में है। यह नदी अपने उदगम से आगे बढ़ने के बाद लहराती और बल खाती आगे बढ़ी है। इस पर अनेक बांध बनाए गए हैं और ख़ूज़िस्तान इस तरह बड़ा सुंदर मैदानी इलाक़ा बन गया है। यह नदी अहवाज़ शहर के बीच से गुज़री है। एसा लगता है कि जैसे इसने शहर के पूर्वी और पश्चिमी भागों को अपनी गोद में समेट लिया हो। बीच से गुज़रने वाली इस नदी ने शहर को बड़ा सुंदर रूप प्रदान कर दिया है।
कारून नदी की सुंदरता उस समय और मन को मोह लेती है जब हम उसके सातवें पुल पर पहुंच जाएं और वहां से धीरे धीरे चहल क़दमी करते हुए आगे बढ़ें। नदी के किनारे किनारे बने कृत्रिम झरनों के पास से गुज़रते वक़्त आस पास के दृष्यों में हमें यह नज़र आता है कि जैसे रोशनी और रंगों का मुक़ाबला चल रहा है। वहां पहुंच कर इंसान अपने आप को भूल जाता है। सातवां पुल एसा है कि उस पर धनुषाकार किनारियां बनाई गई हैं और इसके इस रूप ने इस पुल को ईरान के अति सुंदर पुलों में शामिल कर दिया है। यह पुल शहर के पुराने भाग को नए भाग से जोड़ता है। इस पुल को सभय्ताओं के संवाद पुल के नाम से ख्याति प्राप्त हुई है। सातवां पुल हमें अहवाज़ की चहल पहल से भरी रातों का सुंदर नज़ारा करवाता है मगर इसके साथ ही दूसरे भी कई पुल हैं जहां यही रौऩक दिखाई देती है। यह अर्ध वृत्ताकर पुल है इसे दो अर्ध वृत्ताकर फौलादी प्लेटों से बनाया गया है। यह कारून नदी के बड़े सुंदर और वैभवशाली पुलों में है। कारून नदी के तट पर खड़े होकर पुल को देखने में बड़ा आनंद आता है और पुल का वैभव और भी स्पष्ट हो जाता है।
एक और पुल भी है जिसे आठवां पुल कहा जाता है, इसे केबल पुल के नाम से भी ख्याति प्राप्त है। यह कारुन नदी के अन्य पुलों से काफ़ी अलग है। यह मोटे मोटे केबल से बना हुआ पुल है जिसके लिए नीचे कोई स्तंभ नहीं बनाया गया हैं। इस पुल पर गाड़ी चलाना विशेष रूप से रात के समय गाड़ी से इस पुल गुज़रना बहुत आनंददायक होता है।
अहवाज़ का सफ़र तब और भी रोचक हो जाता है जब हम इस शहर के पारम्परिक और आधुनिक बाज़ारों से गुज़रते हैं। अब्दुल हमीद बाज़ार अहवाज़ का सबसे पुराना बाज़ार है। इस बाज़ार में ईंटों से बनी छोटी छोटी दुकानें काजारिया दौर की हैं। यहां विभिन्न प्रकार के रंगारंग कपड़े, खाने पीने की चीज़ें तथा ज़रूरत की दूसरी वस्तुएं बहुत उचित दाम में आसानी से मिल जाती हैं। अलबत्ता पुराने ज़माने में यह बाज़ार राजाओं और दौलतमंदों का बाज़ार हुआ करता था। मुईनुत्तुज्तार इमारत या वही ख़ज़अल सराए भी इसी बाज़ार में है जिसे बहुत अधिक ख्याति प्राप्त है। काजारिया दौर में इस इमारत में बड़ी चहल पहल हुआ करती थी। चार बड़े बड़े दालानों वाली इस इमारत के भीतर ईंटों से बने विशाल मेहराबी कमरों से इस इमारत के वैभवशाली अतीत का आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अहवाज़ की पुरानी सरायों में टहलने का एक अलग ही आनंद है। कभी अगर आपका अहवाज़ जाना हो तो वहां अजम नामक सराय को देखना हरगिज़ न भूलिए। ईंटों की बनी एक मंज़िला इमारत जिसके फ़र्श पर पत्थर बिछाए गए हैं, इसके खंभे पत्थरों के हैं, अनेक कमरे बने हुए हैं। यह सराए अतीत में यहां रहने वाली ज़िंदगी की रौनक़ की हज़ारों कहानियां अपनी गोद में समेटे हुए है और हर देखने वाले को अतीत में बहुत दूर ले जाती है। कुछ क्षणों के लिए हम भूल ही जाते हैं कि हम इस काल में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
अहवाज़ में कई सुंदर प्राचीन बाज़ार हैं। इन में एक बाज़ार का नाम है पाकिस्तानियों का बाज़ार है। यह बड़ा सुंदर बाज़ार है। बाज़ार में पहुंचते ही चारों तरफ़ रंग बिरंगे कपड़े आपको नज़र आएंगे। कपड़ों के अलावा आपको इस बाज़ार में अहवाज़ की सौग़ात अर्थात विभन्न प्रकार की खजूरें भी मिल जाएंगी। खजूर की स्वादिष्ट रोटियां भी आप यहां ले सकते हैं। स्थानीय वस्त्र भी आपको यहां मिल जाएंगे। अहवाज़ में आप कावे पारम्परिक बाज़ार को भी देखकर आनंदित हो सकते हैं। यहां आपको हर प्रकार की खाने पीने की चीज़ें, गोश्त, मछलियां, और झींगे मिल जाएंगे।
अहवाज़ में इमाम ख़ुमैनी बाज़ार भी दर्शनीय स्थलों में है। यह बाज़ार शहर के केन्द्रीय भाग में स्थित है। यह ईरान के सबसे बड़े छत दार बाज़ारों में से एक है। ख़रीदारों के आने जाने के लिए जो रास्ता बना है उस पर गुंबद रूपी छत बनाई गई है और रास्ते के दोनों ओर लाइन से दुकानें बनी हैं। दुकानों की छतें भी गुंबद रूपी हैं और दुकानों का अगला भाग मेहराब रूपी है। बाज़ार का प्रवेश द्वार भी बड़ी सुंदरता से सजाया गया है। ईरान के अनेक शहरों में इस प्रकार के पारम्परिक बाज़ार हैं और अच्छी बात यह है कि इन प्राचीन बाज़ारों को उसी पुराने रूप में सुरक्षित रखा गया है। ज़रूरत पड़ने पर बाज़ारों की मरम्मत तो की जाती है लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाता है कि उनका पारम्परिक पुराना प्रारूप सुरक्षित रहे।
ईरान के शहरों की एक और विशेषता यह है कि अधिकतर शहरों में कोई न कोई ज़ियारत गाह भी ज़रूर है और अहवाज़ भी इससे अपवाद नहीं है। अहवाज़ में पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम के साथी और मुसलमानों के महान धर्मगुरू अली इब्ने महज़ियार का मज़ार है। यह इस शहर की प्राचीन धार्मिक इमारतों में से एक है। अहवाज़ जाने वालों का यहां तांता लगा रहता है।
अहवाज़ में जहां एक तरफ़ पारम्परिक और एतिहासिक इमारतें हैं वहीं अनेक आधुनिक शापिंग माल भी बने हुए हैं अतः जिस प्रकार की जगह देखने और जिस प्रकार का सामान ख़रीदने का इरादा है वह इस शहर में आसानी से उपलब्ध है। यही कारण है कि बहुत से लोग जब अहवाज़ घूमने जाते हैं तो घूमने के साथ ही अपनी ख़रीदारी भी कर लेते हैं। अहवाज़ में आपको प्रचीन काल की झलक भी नज़र आएगी और आधुनिकता के दृष्य भी आपको आकर्षित करेंगे। अहवाज़ में अगल अलग जातियां आबाद हैं। यहां अरब भी रहते हैं, यहां फ़ार्स भी रहते हैं, यहां लुर भी रहते हैं मगर सबसे रोचक बात यह है कि सबके सब बड़े भाईचारे के साथ रहते हैं। आपस में शादी विवाह भी होता है। जिस समय ईरान पर इराक़ की सद्दाम सरकार ने हमला किया था उस समय हर जाति और हर संस्कृति के लोगों ने मिलकर देश की रक्षा की थी। वास्तव में ईरान में अलग अलग जातियों, अलग अलग संस्कृतियों और अलग अलग धर्मों तथा संप्रदायों के बीच जो समन्वय और एकता व एकजुटता है वह उदाहरणीय है।