May २०, २०१९ ११:४२ Asia/Kolkata

पवित्र रमज़ान का महीना, मनुष्य के सामाजिक व व्यक्तिगत जीवन में बहुत अधिक प्रभाव डालता है और बहुत अधिक लाभ पहुंचाता है।

इनमें से सबसे महत्वपूर्ण वह है जैसा कि पवित्र क़ुरआन के सूरए बक़रा की आयत संख्या 183 में बयान किया गया है, ईश्वरीय भय है। हे ईमान वालों तुम्हारे ऊपर रोज़े उसी प्रकार लिख दिए गये हैं जिस प्रकार तुम्हारे पहले वालों पर लिखे गये थे शायद तुम इसी प्रकार ईश्वरीय भय रखने वाले बन जाओ।

अब यहां पर महत्वपूर्ण बात यह है कि ईश्वरीय भय उस समय पैदा होता है जब मनुष्य धार्मिक आत्मविश्वास के स्वीकार्य योग्य स्तर तक पहुंच जाए। यह आत्मविश्वास रोज़े और रमज़ान की अन्य उपासनाओं और कर्मों की छत्रछाया में बेहतरीन ढंग से पलते बढ़ते हैं। इस बात को बेहतर ढंग से समझने के लिए सबसे पहले हमें यह समझने की आवश्यकता है कि आत्म विश्वास क्या है? आत्म विश्वास को, विश्वास, क्षमताओं पर संतुष्टता, स्वयं के पास वास्तव में क्या है और इनसे लाभ उठाने की कला का नाम दिया जा सकता है।

इस प्रकार से यह निर्धारित हो जाता है कि आत्म विश्वास का हर व्यक्ति के पालन पोषण में बहुत अधिक महत्व है और यह उसकी प्रतिष्ठा, परिपूर्णता और विकास का कारण बनता है। इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जो व्यक्ति भी स्वयं को ऊंचा नहीं समझता और स्वयं को ऊंचाई पर नहीं पहुंचाता तो कोई दूसरा उसे ऊंचाई तक नहीं पहुंचाएगा।

अब यहां पर सवाल यह पैदा होता है कि धार्मिक आत्म विश्वास क्या है? आत्म विश्वास के अर्थ के दृष्टिगत, उच्च धार्मिक मूल्यों की परिधि में आत्म विश्वास के पाए जाने को धार्मिक आत्मविश्वास का नाम दिया जाता है। जो व्यक्ति धार्मिक आत्मविश्वास के चरण तक पहुंच जाता है, उसे यह विश्वास होता है कि ईश्वर अपनी समस्त सृष्टि पर नज़र रखता है, और दुनिया की समस्त संभावनओं को उसके पास समझता है ताकि अपनी बुद्धि और अपने अधिकारों का प्रयोग करके उनसे बेहतरीन ढंग से लाभ उठा सके। स्वभाविक सी बात है कि जो व्यक्ति भी इस प्रकार का विचार रखता होगा वह अधिक से अधिक आत्म विश्वास से संपन्न होगा और इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर वह अपने पालनहार ईश्वर के अतिरक्त किसी अन्य के आगे नतमस्तक नहीं होगा।

पवित्र रमज़ान का महीना, अध्यात्म, ईमान तथा धार्मिक आस्थाओं की की मज़बूती का महीना है।  इस विभूती भरे महीने में धार्मिक आत्मविश्वास में विकास और उसमें निखार के लिए बेहतरीन भूमि प्रशस्त होती है।

आत्म विश्वास के लिए ज़रूरी चीज़ों में से एक सफलता तक पहुंचने के लिए परेशानियों और कठिनाइयों को सहन करने की शक्ति से संपन्न होना है।  जिस किसी को अपनी क्षमताओं पर भरोसा है और उसे बढ़ाने का प्रयास करता रहता है वह अपने आत्मविश्वास में भी वृद्धि करता है। पवित्र रमज़ान का महीना, वैध मांगों के मुक़ाबले में प्रतिरोध का अभ्यास है जिसे ईश्वर ने रोज़े के दिनों प्रतिबंधित किया है।

रोज़ेदार व्यक्ति यह सीखते हैं कि सफलता और कल्याण के मार्ग में उसे अस्थाई रूप से दिल बहलाने वाली कुछ चीज़ों से आंख बंद करनी होगी, रोज़ा इंसान के इरादों को मुश्किलों के मुक़ाबले में बढ़ाते हैं। जो लोग, अपनी क्षमताओ पर पहले से अधिक भरोसा पैदा करते हैं, उनमें आत्म विश्वास अधिक पैदा होता है किन्तु रोज़े में महत्वपूर्ण बिन्दु, ईश्वर पर आस्था और उसके ईमान को मज़बूत करना है।

जो व्यक्ति धार्मिक आस्थाओं के मार्ग पर क़दम बढ़ाता है, इसका व्यवहारिक होना, ईश्वर पर आस्था और उसके आदेशों पर अमल किए बिना संभव नहीं है। यही कारण है कि जो व्यक्ति पूरे दिन सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की प्रसन्नता हासिल करने के लिए खाने पीने और कुछ दूसरे कर्मों से, भारी कठिनाइयों के साथ, दूर रहता है, स्पष्ट रूप से पता चलता है कि ईश्वर पर आस्था, उसके आत्मविश्वास और स्वयं पर भरोसे का केन्द्र है क्योंकि ईश्वर पर ईमान और मज़बूत आस्था, उसके लिए मज़बूत सहारा है जो उसके लिए शांति का उपहार लाता है। इसी प्रकार सूरए राद की आयत संख्या 28 में ईश्वर कहता है कि यह वह लोग हैं जो ईमान लाए हैं और उनके दिलों को अल्लाह की याद से संतुष्टि हासिल होती है और अवगत हो जाओ कि संतुष्टि ईश्वर की याद से ही प्राप्त होती है।

ईश्वर की महत्वपूर्ण उपासनाओं में सबसे महत्वपूर्ण ईश्वरीय किताब क़ुरआन की तिलावत है। पवित्र रमज़ान के महीने में पवित्र क़ुरआन की तिलावत पर बहुत अधिक बल दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि मुसलमानों इस महीने में अधिक से अधिक क़ुरआन पढ़ो। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का भी यह कहन है कि हर चीज़ की एक बहार है और क़ुरआन की बहार, पवित्र रमज़ान का महीना है।

पवित्र क़ुरआन, ईश्वर का दिल में उतर जाने वाला बोल है और इसको पढ़ने से मनुष्य में सुख व शांति की भावना पैदा होती है और उसमें धार्मिक आत्मविश्वास बढ़ता है। ईश्वर का यह चमत्कार बारम्बार बल देकर कहता हे कि मनुष्य का भविष्य उसके ही हाथ में है, वही है जो अपना सौभाग्य और दुर्भाग्य स्वयं ही लिखता है। सूरए मुदस्सिर की आयत संख्या 38 में आया है कि व्यक्ति अपने कर्मों में फंसा हुआ है। इस आधार पर एक मुस्लिम को पता है कि वह स्वयं अपने प्रयास और कोशिशों से सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ता है। दूसरी ओर ईश्वर ने मनुष्यों को वचन दिया है कि उनके भले और नेक काम के पुण्य, उनकी ग़लतियों और पापों से अधिक हैं। सूरए अनआम की आयत संख्या 160 में ईश्वर फ़रमाता है कि जो व्यक्ति भी नेकी करेगा उसे दस गुना पारितोषिक मिलेगा और जो बुराई करेगा उसे केवल उतनी ही सज़ा मिलेगी और कोई अत्याचार न किया जाएगा।

ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरए ज़ारियात की 55वीं आयत में अपने पैग़म्बर को आदेश देता है कि लोगों को उपदेश दें क्योंकि उपदेश मनुष्य के लिए बहुत ही लाभदायक है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने स्वयं भी लोगों के मार्गदर्शन के लिए इस शैली का प्रयोग किया और लोगों को भी उपदेश की सभाओं के आयोजन के लिए प्रेरित करते थे। वे लोगों को संबोधित करते हुए कहते थे कि हे लोगो होशियार हो जाओ कि बुद्धिजीवियों और ज्ञानियों की सभाएं स्वर्ग के बाग़ों में से एक बाग़ है, इस अवसर से लाभ उठाओ कि विभूतियां और क्षमायाचना वर्षा की भांति उस सभा पर पड़ती है और पापों को धो देती है और जब तक आप उनके पास बैठे रहेंगे, फ़रिश्ते आप के लिए पापों की क्षमा याचना करते रहेंगे, ईश्वर भी उस ओर देखता है और ज्ञानी, छात्र, दर्शक और उसके दोस्तों को क्षमा कर देता है।

रमज़ान क्षमा के स्वीकार होने और ईश्वर की ओर पलटकर जाने का महीना है। जिन लोगों ने अपने जीवन में पाप किए हैं, वे रोज़े द्वारा अपना शुद्धिकरण कर सकते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के अनुसार, इस महीने में पाप माफ़ कर दिए जाते हैं और यह उन लोगों के लिए बड़ी शुभ सूचना है जिनसे ग़लतियां हुई हैं। निःसंदेह जो पापी अपने पापों पर शर्मिंदा है अगर वह इस महीने में ईश्वर के लिए रोज़ा रखे और अपने कृत्यों के लिए तोबा करे तो ईश्वर उसके पापों को माफ़ कर देगा।

पवित्र क़ुरआन उन लोगों पर चीख़ता चिल्लाता है जो अपनी ग़लतियों को दूसरों की गर्दन पर डालने का प्रयास करते हैं बल्कि उसे अपनी ज़िम्मेदारियां स्वीकार करनी चाहिए। इसीलिए सूरए असरा की आयत संख्या 15 में आया है कि जो व्यक्ति भी मार्गदर्शन हासिल करता है वह अपने लाभ के लिए करता है और जो पथभ्रष्टता अपनाता है वह भी अपना ही नुक़सान करता है और कोई किसी का बोझ उठाने वाला नहीं है और हम तो उस समय तक प्रकोप करने वाले नहीं हैं जब तक कोई रसूल न भेज दें।

इस्लाम धर्म में विशेषकर रमज़ान के महीने में एक मुसलमान यह सीखता है कि वह अपना वास्तविक मूल्य पहचाने क्योंकि ईश्वर ने उसका सम्मान किया है और ईश्वर की मेहमान नवाज़ी की उसको कृपा प्रदान की है। उसको यह अवसर मिला है ताकि वह अपने ईश्वर से अधिक से अधिक निकट हो सके। इस्लाम धर्म में मनुष्य को यह संभावना रहती है कि वह ईश्वर का उतराधिकार बन जाए। इसके लिए शर्त यह है कि उसे अपनी क्षमताओं पर विश्वास हो और उसे अपने मार्ग दर्शन और सफलता के मार्ग में प्रयोग करे।

इसी प्रकार इस्लाम धर्म मनुष्यों को सचेत करता है कि पाप, उसके मानवीय मूल्यों को कम कर देते हैं और जो धार्मिक आस्थाओं तक पहुंचना चाहता है तो उसे वह काम अंजाम देने चाहिए जिससे अल्लाह ख़ुश होता है और उसे काम से बचना चाहिए जिससे अल्लाह अप्रसन्न होता है। इसी संबंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मनुष्य के बंदे न बनो कि ईश्वर ने तुम्हें स्वतंत्र पैदा किया है। पवित्र क़ुरआन मुसलमानों को यह विश्वास दिलाते हुए सूरए तलाक़ में कहता है कि जो भी अल्लाह पर भरोसा करता है तो अल्लाह उसके लिए काफ़ी है।

पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया है, रमज़ान मुबारक में ईश्वर पापियों के इतने पापों को क्षमा कर देता है कि उसके अलावा कोई और उसका हिसाब नहीं जानता है और रमज़ान की अंतिम रात जितने पापों को उसने पूरे महीने में क्षमा किया होता है उतने ही लोगों को नरक से मुक्ति प्रदान करता है और जो कोई रमज़ान में रोज़ा रखता है और जिन चीज़ों को ईश्वर ने हराम किया है उनसे परहेज़ करता है तो स्वर्ग को उसके लिए अनिवार्य कर देता है।(AK)

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