May २१, २०१९ १४:५० Asia/Kolkata
  • ईरान भ्रमण- 11

ख़ूज़िस्तान प्रांत ईरान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित प्रांत है और इसका क्षेत्रफल लगभग 65 हज़ार वर्ग किलोमीटर है।

ख़ूज़िस्तान प्रांत के उत्तर में लुरिस्तान और ईलाम प्रांत, पश्चिम में इराक़ देश, दक्षिण में फ़ार्स की खाड़ी और पूरब में चहार महालो बख़्तियारी और कोहगीलूए व बुवैर अहमद प्रांत स्थित हैं। अहवाज़ ख़ूज़िस्तान प्रांत का केन्द्र है।

ख़ूज़िस्तान प्रांत पहाड़ी और ऊंची चौरस भूमि में बटा हुआ है। इस प्रांत का उत्तरी और पूर्वी इलाक़ा पहाड़ी है। इस प्रांत में ज़ाग्रुस पर्वत श्रंख्ला के पहाड़ हैं। ज़र्दकूह, कूहे सियाह, कूहे चाल और आब बन्दान ख़ूज़िस्तान प्रांत के मशहूर पहाड़ों के नाम हैं। ख़ूज़िस्तान प्रांत का दक्षिणी और पश्चिमी इलाक़ा ऊंची चौरस भूमि वाला है। चौरस भूमि का इलाक़ा 41 हज़ार वर्गकिलोमीटर पर फैला हुआ है। यह वह इलाक़ा है जहां से कारून, कर्ख़े और जर्राही नदियां गुज़री हैं।

ख़ूज़िस्तान प्रांत ईरान के प्रसिद्ध सुन्दर क्षेत्रों में से है। यह बहुत ही सुन्दर मैदानी इलाक़ा है जिनमें से हर एक हमारे ध्यान को ईरान के प्राचीन और सुन्दर इतिहास की आकृष्ट करा सकता है। अब हम ख़ूज़िस्तान प्रांत के प्राचीन शहर शूश चलते हैं। यह शहर उत्तरी अहवाज़ के 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शूश शहर, दुनिया में बसी प्राचीन आबादियों में से है और जिसकी स्थापना 4200 साल ईसा पूर्व ही कर दी गयी थी। बताया जाता है कि यह शहर प्राचीन ईलामी सभ्यता का केन्द्र तथा महान हख़ामनशी राजा की ठंडक की राजधानी रहा है। इसी बात से ही इस शहर की प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि जैसे ही आप इस प्राचीन शहर में प्रविष्ट होने का इरादा करते हैं तो आपको शहर के आसपास बहुत ही ऐतिहासिक अवशेष और इमारतें मिलेंगी।

शूश नामक प्राचीन शहर के दो अवशेषों या धरोहरों को वैश्विक धरोहर की सूची में पंजीकृत किया गया है। चग़ाजम्बेल उपासना स्थल, शूश के आसपास के प्राचीन स्थल और विभिन्न प्रकार के ऐतिहासिक धरोहरों को शामिल किया गया है। यह क्षेत्र स्थानीय और विदेशी पर्यटकों के हमेशा से ध्यान का केन्द्र रहा है। शूश का प्राचीन क्षेत्र या काम्लेक्स वर्ष 2015 में वैश्विक धरोहर की सूची में पंजीकृत हुआ जो दुनिया के अद्वितीय और दर्शनीय क्षेत्रों में से एक है।

शूश के इस काम्पलेक्स में शायवर महल, आपादान महल, महल का पूर्वी दरवाज़ा, हदीश द्वार, पंद्रहवां शहर, शूश की जामे मस्जिद और इस्लामी काल की इमारतें, आक्रोपूल टीले तथा फ़्रांसीसी दुर्ग भी शामिल है जिनमें से हर एक के बारे में बात करने में काफ़ी समय लग जाएगा। वास्तव में शूश दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक है, इसको शहर में रहने की पहली निशानी और इसी प्रकार बड़े क्षेत्र के व्यापार की पहली निशानी भी कहा जा सकता है। शहर के आसपास मौजूद प्राचीन टीले सात टीलों या हफ़्त तप्पे के नाम प्रसिद्ध हैं।

इन टीलों में सबसे सुन्दर चीज़, ईलामी क़ब्रिस्तान है जिसमें दुनिया का सबसे पहले अर्धगोलाकार ताक़ मौजूद है। प्राचीन काल में इन टीलों पर भव्य महले बने हुए होते थे जो बाद में मंगोलों के हमले तथा ईरान पर इराक़ द्वारा थोपे गये युद्ध के दौरान तबाह हो गये।

इन्हीं प्राचीन टीलों में से एक आक्रोपोले है। पेरिस के लूव्र संग्राहलय में मौजूद बहुत से मूल्यवान अवशेषो में आक्रोपेल टीले के भाग नज़र आते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध नामरिस्टोलन महारानी की मूर्ती, हामूराबी क़ानून पत्र का शिलालेख और शूश की कच्ची मिट्टी के बर्तन या ग्लास का नाम लिया जा सकता है। शूश की कच्ची मट्टी के ग्लास या जाम पर एक पहाड़ी बकरी की तस्वीर बनी हुई है जो बहुत ही अद्भुत व अद्वितीय नज़र आती है।

इसी टीले पर शूश का प्रसिद्ध दुर्ग बना हुआ है जो वास्तव में वर्ष 1897 ईसवी में फ़्रांसीसी पुरातन वेत्ताओं द्वारा मध्ययुगीन शैली में बनाई गया है। कच्ची ईंट के बने इस दुर्ग की डिज़ाइन एक दूसरे में गुत्थम गुत्था व विषम चतुर्भुज तथा सेन्ट बैसिल कैथेड्रियल की वास्तुकला की भांति दिखाई पड़ती है।  

खेद की बात यह है कि यह दुर्ग, आपादाना महल की ईंटों और अन्य महलों के बाक़ी बची चीज़ों से जो आसपास पड़ी हुई थीं, बनाया गया है। इसमें लगी हुई ईंटों पर कीलाक्षर डिज़ाइनें बनी हुई है। यह प्राचीनकला में एक प्रकार का बदलाव समझा जाता है। खेद की बात यह है कि इस दुर्ग की इमारत, चोरी और इसके अवशेषों को यहां से चुरा कर विदेशों में ले जाकर बेच देने के कारण पूरी तरह तबाह हो गयी है।

फ़्रांसीसी शोधकर्ता सुश्री जान दियालाफ़ॉय और जैक डी मोर्गन के अध्ययन यह दर्शाते हैं कि ईलामी लगभग 8 हज़ार ईसापूर्व वर्ष में इस इलाक़े में रहते थे और शायद वह पहली जाति थी जिसने इस इलाक़े में एक स्वाधीन शासन की स्थापना की थी। ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार, 13 शताब्दी ईसापूर्व तक ख़ूज़िस्तान प्रांत को ईलाम कहा जाता था और बाद में ईलामी शिलालेखों में इसका नाम इन्शान सूसिन्का अर्थात इन्शान और शूश की भूमि इसे कहा गया है।

हख़ामनेशी शासन लगभग 640 ईसावर्ष पूर्व इस इलाक़े पर क़ब्ज़े के बाद इसे इन्ज़ान कहते थे। किन्तु आशूरी शासन इसे ईलाम कहते थे। हख़ामनेशी और सलूकी शासन काल के यूनानी इतिहासकारों जैसे हेरोडट और गज़न्फ़ून ने ख़ूज़िस्तान को सूज़ियाना कहा है। सूज़ियाना की उत्पत्ति शूश शब्द से हुयी है।

ख़ूज़िस्तान प्रांत गन्ने की बहुतायत के लिए मशहूर था यही कारण है कि इसे तीसरी और चौथी हिजरी क़मरी शताब्दी के बाद ख़ूज़िस्तान कहा जाने लगा जिसका मतलब होता है शकर की भूमि।

अब हम इस दुर्ग को देखने के बाद आपादाना महल की ओर चलते हैं। यह महल महान दारयूश के काल की है और तख़्तेजमशीद के महल की भांति इसको भी विश्व ख्याति प्राप्त है। महल की कच्ची ईंट की दीवारों से लेकर उसके पत्थर के स्तंभ सिक्दर के हमले की वजह से ज़्यादा कुछ नहीं बचे किन्तु अभी भी जितनी चीज़ बची है उससे इस की भव्यता और उसके आलीशान होने का पता चलता है। इसके मुख्य स्तंभ जो दो बैठी हुई गाय के रूप में नज़र आते हैं बहुत ही अद्भुत नज़र पेश करते है। अलबत्ता महल की दीवारों को जो अंरक्षक, बबर शेर और नीलगाय की डिज़ाइन से सुसज्जित सुन्दर इंटों से बनी हुई, महल के पास बने संग्राहलय में देखा जा सकता है और अपने पूर्वजों की वास्तुकला और उनके कला की वैभवता का पूरा आनंद लिया जा सकता है।

यहां पर ही शूश की राजनैतिक और कलात्मक शक्ति समाप्त नहीं होती बल्कि जब आप अहवाज़ से शूश की ओर जाते हैं तो आपको कयि ड्रल या बड़े गिरजाघर की वास्तुकला के नमूने नज़र आएंगे। यह इमारत प्राचीन प्रसिद्ध ज़ीगूरात या ज़क़ूतरात शैली पर बनी हुई है जो मेसोपोटामिया और पश्चिमी ईरान में ऊंची सतह पर विशाल इमारतें हैं। यें एक सीढ़ीदार पिरामिड की शक्ल में हैं।

एक इमारत पांच मंज़िला है जो पिरामिड की शक्ल में है। इसका हर मंज़िला 100 मीटर बाई सौ मीटर है, यह ज़मीन की सतह से ऊपर बना हुआ है। इस इमारत के अवशेष धार्मिक और राजनैतिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसे अंतर्राष्ट्रीय संग्राहलयों में देखा जा सकता है। हमारे लिए यह जानना बहुत आवश्यक है कि चग़ाज़म्बेल ज़िगूरात को वर्ष 1979 में यूनेस्को की अंतर्राष्ट्रीय धरोहर की सूची में शामिल किया गया है।

प्राचीन शूश शहर की बाहरी सुन्दरता को निहारने के बाद अब हम शहर के भीतर चलते हैं। इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी लगता है कि लगातार सदियों तक ख़ूज़िस्तान प्रांत की अहमियत और शान इस प्रांत में बहने वाली नदियों की देन है। सबसे ज़्यादा पानी वाली नदी कारून और सबसे लंबी नदी कर्ख़े इसी प्रांत में मौजूद हैं। महत्वपूर्ण नदियों के बहने के कारण यह उपजाऊ इलाक़ा सदियों तक सरकारों और लोगों के ध्यान का केन्द्र बना रहा।

ख़ूज़िस्तान प्रांत अच्छी मिट्टी और पानी से समृद्धता के मद्देनज़र ईरान के कृषि प्रधान इलाक़ों में गिना जाता है। ईरान में नदियों और नहरों के रूप में जारी पानी का एक तिहाई भाग अकेले ख़ूज़िस्तान में बहता है। शाक सब्ज़ियों तथा तरकारियों की पैदावार की नज़र से भी ख़ूज़िस्तान प्रांत ईरान के महत्वपूर्ण इलाक़ों में गिना जाता है। इस प्रांत में गन्ने की भी खेती होती है और खजूरों के विशाल बाग़ भी बहुत अहमियत रखते हैं। ख़ूज़िस्तान प्रांत की जलवायु और विशेष प्रकार की मिट्टी के कारण इस प्रांत के कुछ इलाक़ों में जंगल, बेल, झाड़ियां और चरागाहें पायी जाती हैं। जाड़े के मौसम में ख़ूज़िस्तान प्रांत में थोड़े वक़्त के लिए मूल्यवान चारे उगते हैं। ख़ूज़िस्तान प्रांत की चरागाहें मुख्यरूप से ठंडे क्षेत्रों में उगने वाली चरागाहें हैं कि इसके कुछ भाग में ईल बख़्तियारी बंजारे अपने जानवरों को चराते हैं जब वे पड़ोसी प्रांतों से ख़ूज़िस्तान के इस इलाक़े की ओर पलायन करते हैं।

कर्ख़े नदी के दक्षिणी तट पर सासानी काल के शहर के भव्य अवशेष दिखाई पड़ते हैं जिससे शापूर सासानी ने बनाया था। इसको कर्ख़े का प्रांगड़ कहा जाता है। आपके लिए यह भी जानना रोचक कि सासानी काल के पारंपरिक ताक़ों की वास्तुकला विशेषकर कर्ख़े प्रागड़ के ताक़ों की वास्तुकला के प्रभाव, पूर्वी यूरोप के चर्चों की वास्तुकला में दिखाई पड़ता है। कर्ख़े की सुन्दरता यहीं पर समाप्त नहीं होती, कर्ख़े नामक नदी सुन्दर जंगली पार्क के बीच से होकर बहती है और उसके आसपास उठी सुन्दर वनस्पतियां और झाड़ियां, नदी की नमी और गर्मी के वजह से बहुत ही सुन्दर दृश्य पेश करती हैं। यहां पर पीले बारह सिंगे जीवन व्यतीत करते हैं।

ख़ूज़िस्तान प्रांत में विभिन्न प्रकार के शिकार योग्य जानवर भी पाये जाते हैं। विगत में ख़ूज़िस्तान हिरन के महत्वपूर्ण जीवन स्थलों में था। अब इस प्रांत में हिरन की संख्या बहुत कम हो गयी है। इन दिनों हिरनों की देखभाल ख़ूज़िस्तान प्रांत के संरक्षित पार्कों में की जा रही है। ख़ूज़िस्तान प्रांत के दलदली इलाक़ों में विभिन्न प्रकार की मुर्ग़ाबियां, लंबी चोंच वाली मुर्ग़ी, मुर्ग़े सक़ा और तीतर पाये जाते हैं। इसी प्रकार लोमड़ी, सियार, लकड़बग्घा, भेड़िया और जंगली सूअर ख़ूज़िस्तान प्रांत के पहाड़ी और जंगली इलाक़ों में पाए जाते हैं। ख़ूज़िस्तान प्रांत के इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि यह इलाक़ा प्राचीन समय में ईलाम नामक एक स्वाधीन शासन के अधीन था।

शूश में प्रसिद्ध शीया शायर देअबल ख़ज़ाई की क़ब्र भी है। यह अब्बासी शासन काल के प्रसिद्ध शायर थे। वर्षों तक इनकी क़ब्रों को शीया मुसलमानों ने छिपाए रखा। जिस चीज़ ने इस क़ब्रिस्तान की वास्तुकला पर चार चांद लगा दिया वह इसमें बना जनाग़ीश प्रांगड़, इसका गुंबद और इस पर बनी सुन्दर डिज़ाइनें हैं। आपके लिए यह भी बताना आवश्यक लगता है कि शूश के हस्तउद्योग भी बहुत प्रसिद्ध हैं जो ख़जूर की टहनियों से बनते हैं। इनको कपूबाफ़ी कहा जाता है। (AK)