Jun ०२, २०१९ १४:४२ Asia/Kolkata

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ईरान की इस्लामी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने और उसे कमज़ोर करने की नीति अपना रखी है चाहे वह अमेरिका का राष्ट्रपति बन जाने के बाद का समय हो या उससे पहले चुनाव प्रचार का समय रहा हो।

अमेरिका आठ मई वर्ष 2018 को एक पक्षीय रूप से ईरान के साथ होने वाले परमाणु समझौते से निकल गया था जिस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रतिक्रिया जताई गयी थी और जब से वह परमाणु समझौते से निकला है तब से उसने व्यापक रूप से ईरान पर अधिक से अधिक दबाव डालने की नीति अपना रखी है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने परमाणु समझौते से निकलने और ईरान के खिलाफ स्थगित प्रतिबंधों को दोबारा बहाल करने के बाद तेहरान के खिलाफ आर्थिक युद्ध आरंभ कर दिया है और उनके इस युद्ध का लक्ष्य ईरान में निर्धनता और असुरक्षा को विस्तृत करना है। ईरान के खिलाफ अमेरिका के स्थगित प्रतिबंधों को दो चरणों में बहाल किया गया पहले चरण को अगस्त 2018 में जबकि दूसरे चरण को नवंबर 2018 में बहाल किया गया। ये प्रतिबंध एकपक्षीय थे और इन्हें सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव नंबर 2231 का उल्लंघन समझा जाता है। अमेरिका ने ईरान के खिलाफ विशेषकर तेल के क्षेत्र में जो प्रतिबंध लगाये हैं और अमेरिकी इसे इतिहास के सबसे कठोर प्रतिबंध की संज्ञा दे रहे हैं परंतु वाशिंग्टन ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों को कड़ा से कड़ा बनाये जाने पर बल दे रहा है।

जो देश ईरान से तेल का आयात करते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने घोषणा की थी कि अमेरिका अब उन्हें माफी नहीं देगा। इसी प्रकार ट्रंप ने आठ मई को ईरान के धातु उद्योग पर भी प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। इस प्रतिबंध में लोहा, फौलाद, अल्मोनियम और तांबा शामिल है। अमेरिका के इस प्रतिबंध का लक्ष्य इन धातुओं के निर्यात से ईरान को जो आय होती है उसे कम करना है।

यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि यह प्रतिबंध जारी वर्ष के आठ मई को लगाये थे और इसी दिन पिछले वर्ष आठ मई को ही अमेरिका परमाणु समझौते से एक पक्षीय व ग़ैर कानूनी रूप से निकला था। ट्रंप ने जब ईरान के धातु उद्योग पर प्रतिबंध लगाया था तो कहा था कि अगर ईरान ने अपना रवइया नहीं बदला तो उसके खिलाफ प्रतिबंधों को और कड़ा किया जायेगा।

ईरान के संबंध में अमेरिकी क्रिया- कलाप का आधार केवल ज़ोर ज़बरदस्ती और धमकी रहा है जबकि इसके मुकाबले में गत चालिस वर्षों के दौरान ईरान सैदव अमेरिका के मुकाबले में डटा रहा है और व्यवहारिक रूप से उसने वाशिंग्टन के षडयंत्रों को निष्क्रिय व प्रभावहीन बनाया है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने नौ जनवरी 2019 को कहा था कि अमेरिकी बड़ी प्रसन्नता से कहते हैं कि इस समय ईरानी राष्ट्र के खिलाफ जो प्रतिबंध लगाये गये हैं वह इतिहास में अभूतपूर्व हैं किन्तु ईश्वर की कृपा से इस संबंध में ईरानी राष्ट्र उन्हें एसी पराजय का स्वाद चखायेगा जो इतिहास में अभूतपूर्व होगी।“

ईरान के खिलाफ अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाये हैं उसके विरुद्ध गुट चार धन एक देशों यानी रूस, चीन, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस ने दृष्टिकोण अपनाये हैं। साथ ही ट्रंप की सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद के पत्रकार इदरीस जज़ाएरी कहते हैं कि मैं इस बात से बहुत चिंतित हूं कि एक देश अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था में किस प्रकार अपने प्रभुत्व का प्रयोग कर रहा है और न केवल ईरान बल्कि परमाणु समझौते के दूसरे पक्षों को भी नुकसान पहुंचा रहा है जबकि ईरान परमाणु समझौते में अपने वचनों के प्रति कटिबद्ध रहा है।

साथ ही ईरान ने सिद्ध कर दिया है कि वह अमेरिकी प्रतिबंधों को प्रभावहीन बना और ट्रंप सरकार की शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों का मुकाबला कर सकता है। विदेशमंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ ने बल देकर कहा है कि ईरान के संबंध में ट्रंप की नीतियां विफल हो चुकी हैं। उन्होंने ट्वीट करके लिखा है कि ट्रंप हर चीज़ का सहारा ले रहे हैं ताकि ईरान के मुकाबले में अपनी विफल नीति को सफल दर्शा सकें और ईरानी कभी भी अमेरिकी दबाव के सामने घुटने नहीं टेकेंगे।

अमेरिका एक ओर जहां कड़ा से कड़ा आर्थिक प्रतिबंध ईरान पर लगाये हुए है वहीं उसने तेहरान को सैन्य हमले देने की नीति भी अपना ली है। इसी परिप्रेक्ष्य में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जान बोल्टन ने 5 मई 2019 को एक विज्ञप्ति में ईरान को सैन्य हमले की धमकी दी। बोल्टन ने इस विज्ञप्ति में कहा कि अमेरिका कुछ चिंताजनक धमकियों और चेतावनियों की प्रतिक्रिया में जंगी बेड़ा यूएसएस अब्रहम लिंकन और कुछ युद्धक विमान मध्यपूर्व में भेज रहा है ताकि ईरान को स्पष्ट संदेश दिया जा सके कि अगर अमेरिका या उसके घटकों के हितों पर हमला हुआ तो उसका करारा जवाब दिया जायेगा। साथ ही बोल्टन ने दावा किया था कि अमेरिका ईरान से युद्ध नहीं चाहता है परंतु ईरानी सेना की ओर से हमले का जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार है।

अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन ने 10 मई को एक रिपोर्ट दी थी जिसमें कहा गया था कि अमेरिकी सेना ईरान की ओर से बढ़ते खतरों का मुकाबला करने के लिए पश्चिम एशिया में और अधिक पेट्रियाट मीसाइल रक्षा प्रणाली तैनात करेगी।

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जान बोल्टन ने ईरान को जो धमकी दी है टीकाकार उसकी व्याख्या ईरान को रोब में लेना बता रहे हैं। जान बोल्टन इस प्रकार का बयान देकर ईरान को डराने के प्रयास में हैं। जान बोल्टन का मानना है कि ईरान को सैन्य धमकी देने से वह डर जायेगा जबकि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने बारमबार बल देकर कहा है कि वह किसी से भी युद्ध नहीं चाहता है परंतु अगर अमेरिका या क्षेत्र के उसके किसी भी घटक की ओर से अतिक्रमण हुआ तो उसे कड़ी प्रतिक्रिया का सामना होगा। अमेरिका की प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नेन्सी पेलोसी ने 8 मई को वाइट हाउस की तनाव बढ़ाने वाली और ईरान विरोधी नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि अगर ट्रंप ईरान के खिलाफ सैन्य कार्यवाही की सोच में हैं तो कांग्रेस की अनुमति प्राप्त किये बिना वह कदापि एसा नहीं कर सकते।

महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जान बोल्टन युद्धक बेड़ा USS अब्रहम लिंकन को एसी स्थिति में क्षेत्र में भेजने की बात कर रहे हैं जब टीकाकारों का कहना है कि इस युद्धक बेड़े को क्षेत्र में रवाना करने का संबंध बोल्टन की धमकियों से नहीं है बल्कि पहले से तैयार कार्यक्रम के परिप्रेक्ष्य में अब्रहम लिंकन को फार्स की खाड़ी में रवाना किया जा रहा है। इसी संबंध में अमेरिकी सरकार के एक पूर्व अधिकारी इलन गोल्डन बर्ग ने लिखा है कि एक युद्धक बेड़े को सेन्ट्रल कमान क्षेत्र में भेजना कोई सामान्य बात नहीं है और संभवतः उसे पहले से तैयार कार्यक्रम के अंतर्गत भेजा रहा है। वास्तव में युद्धक बेड़ा USS अब्रहम लिंकन को फार्स की खाड़ी में रवाना करने के बारे में जो पहली विज्ञप्ति जारी की गयी थी उसका संबंध एक महीना पहले से है। युद्धक बेड़ा अब्रहम लिंकन अप्रैल 2019 में भूमध्य सागर में था। इसी प्रकार चार बम वर्षक युद्धक विमान 52-बी को कतर की अलअदीद हवाई छावनी में जो तैनात किया गया है वह पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार था। अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन के राजनीतिक विश्लेषक डेविड रोड ने एक रिपोर्ट में कहा कि मध्यपूर्व में जो अमेरिकी बेड़े को रवाना किया जा रहा है वह बोल्टन की ईरान विरोधी नीति के परिप्रेक्ष्य में रवाना किया जा रहा है परंतु इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ईरान पर दबाव डालने की नीति का कोई प्रभाव व फायदा नहीं है।

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जान बोल्डन का नाम युद्धोन्मादियों की सूची में सर्वोपरि है जिन्हें इस समय “गुट बी” के नाम से याद किया जाता है। इस गुट का प्रयास है कि जिस तरह से भी संभव हो ट्रंप सरकार को ईरान के साथ सैन्य टकराव के लिए उकसाया  व तैयार किया जाये। इस संबंध में ईरान के विदेशमंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने फाक्स न्यूज के साथ साक्षात्कार में कहा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप युद्ध से बचने पर आधारित अपने चुनावी वादे पर बाकी रहना चाहते हैं परंतु “गुट बी” उन्हें ईरान से युद्ध करने के लिए उकसाना चाहता है। ज्ञात रहे कि गुट बी में इस्राईल के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतेनयाहू, अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जान बोल्टन, सऊदी युवराज मोहम्मद बिन सलमान भी शामिल हैं। अमेरिका ने वर्ष 2017 में होने वाली स्ट्रैटेजिक संधि के परिप्रेक्ष्य में ईरान को नियंत्रित करने और मध्यपूर्व में उसके व्यवहार व नीति को बदलने के लक्ष्य से व्यापक पैमाने पर प्रयास किये हैं और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसने एक क्षेत्रीय घटक बनाने की भी चेष्टा की है। इस समय सऊदी अरब और इस्राईल से मिलकर यह गठबंधन बना है। साथ ही अमेरिका ईरान को नियंत्रित करने के लिए अरब नैटो बनाने के प्रयास में है।

क्षेत्र में अमेरिका की सैन्य गतिविधियों में वृद्धि के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भी नौ मई को एक बार फिर वार्ता में ईरानी अधिकारियों से वार्ता करने की इच्छा जताई और यहां तक दावा किया कि ईरान में अमेरिकी हितों की रक्षा करने वाले स्वीट्ज़रलैंड के दूतावास को टेलीफोन नंबर दिया गया है ताकि ईरानी अधिकारी उनसे संपर्क करें। ट्रंप ने कहा था कि वह ईरानी अधिकारियों के फोन की प्रतीक्षा में हैं ताकि एक न्यायपूर्ण समझौते के बारे में उनसे वार्ता कर सकें।  अमेरिकी अधिकारी एसी स्थिति में ईरान से वार्ता करने की आवश्यकता और एक समझौता करने की बात कर रहे हैं जब पिछले वर्ष आठ मई को ग़ैर कानूनी ढंग से और एक पक्षीय रूप से परमाणु समझौते से निकल गये थे जबकि यह परमाणु समझौता कई वर्षों की बातचीत का परिणाम है।

अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पोम्पियो ने भी एक विज्ञप्ति में बल देकर कहा था कि ट्रंप ईरानी अधिकारियों से वार्ता और उनसे एक समझौता करना चाहते हैं।

ट्रंप सरकार जो ईरान से वार्ता करना चाहती है उसका लक्ष्य वाशिंग्टन की उन 12 शर्तों व मांगों को तेहरान के सामने रखना है जिसकी घोषणा मई 2018 में माइक पोम्पियो ने की थी और वह यह चाहते हैं कि ईरान इन शर्तों को स्वीकार कर ले। ईरान की ओर से इन शर्तों के मान लेने का अर्थ अमेरिका के सामने नतमस्तक हो जाना है। परमाणु कार्यक्रम और मिसाइल कार्यक्रम को पूरी तरह बंद कर देना अमेरिका की 12 शर्तों में शामिल है। इसी प्रकार अमेरिका चाहता है कि ईरान क्षेत्र में अपनी भूमिका से पीछे हट जाये। दूसरे शब्दों में अमेरिका ईरान को हर प्रकार की शक्ति व प्रभाव से दूर व अलग कर देना चाहता है। इस आधार पर कहना चाहिये कि अमेरिका जो ईरान से वार्ता करना चाहता है और साथ ही उस पर यथासंभव दबाव डाले हुए है तो उसका वास्तविक लक्ष्य ईरान को घुटने टेक देने पर बाध्य कर देना है। ईरान एक्शन ग्रुप के अध्यक्ष ब्रायन हुक ने नो मई को अलअरबिया टीवी चैनल से वार्ता में कहा था कि अमेरिका ईरान से नया समझाता करना चाहता है। इसी प्रकार उन्होंने बल देकर कहा था कि समझौता हो जाने की स्थिति में उसके परिणाम को एक समझौते के रूप में कांग्रेस में पेश किया जायेगा।

अगर अमेरिका वास्तव में ईरान से वार्ता करना चाहता है तो उसे चाहिये कि तेहरान पर अधिक से अधिक दबाव डालने और सैन्य धमकी के बजाये परस्पर सम्मान के आधार पर अपनी बातों को तेहरान के सामने रखता परंतु ट्रंप वार्ता के नाम पर ईरान को झुकाना चाहते हैं और इसलिए वह तेहरान के खिलाफ अधिक से अधिक दबाव डालने की नीति अपनाये हुए हैं। स्वाभाविक है कि ईरान के  संबंध में ट्रंप की इस प्रकार की नीति का कोई प्रभाव नहीं निकलेगा। ईरान से अमेरिका की शत्रुतापूर्ण नीतियों और उसके लक्ष्यों से पूरी दुनिया अच्छी तरह अवगत है। ज़ोर- ज़बरदस्ती और वर्चस्व पर आधारित अमेरिकी नीति जब तक जारी रहेगी तब तक ईरान अतीत की भांति अदम्य साहस के साथ डटकर उसका मुकाबला करता रहेगा।