ईरान भ्रमण- 14
पश्चिमी ईरान की अपनी यात्रा और ज़ागरूस पर्वत श्रंखला की सैर करते हुए हम चहार महाल व बख़्तियारी पहुंचे।
यह ईरान के सुन्दर क्षेत्रों में से एक है जिसके आसपास कई हज़ार वर्षीय प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरें और अनछुए प्राकृतिक आकर्षण पाए जाते हैं। इन आकर्षणों में से कुछ अज्ञात हैं जैसे गंजी नेहान।
शहरे कुर्द इस प्रांत का केन्द्र है और यह ईरान के सबसे ठंडे शहरों में से एक है। यह शहर समुद्र की सतह से 2033 मीटर ऊपर बसा है और इसे ईरान की छत कहा जाता है। इस प्रांत में, जिसे मनुष्य के रहने के प्राचीनतम क्षेत्रों का नाम दिया जा सकता है, ऐतिहासिक धरोहरें, पर्यटन के आकर्षण की चीज़ें और अनेक प्रकार की सुन्दर प्राकृतिक चीज़ें पाई जाती हैं। शहरे कुर्द से बीस किलोमीटर की दूरी पर हफ़शन्जान शहर के प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों और प्राचीन टीलों से मिलने वाले पत्थरों के उपकरणों और मिट्टी के बर्तनों से पता चलता है कि यह शहर सात सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में बसा हुआ था। इससे पता चलता है कि चहार महाल व बख़्तियारी शहर 9 हज़ार साल पुराना है।
ज़ागरूस पर्वत श्रंखला की चोटियों पर बर्फ़ का भंडारण और इन बर्फ़ के टीलों के पिघलने से ऊंचाई पर रहने वालों के लिए प्राप्त होने वाले पानी के कारण कारून, ज़ायंदे रूद नदी और देज़ नामक नदियां इस प्रांत के पर्वतों से ही निकली हैं। यह नदियां ईरान के केन्द्र और दक्षिण पश्चिम क्षेत्रों में बहती हैं। शाहबलूत या ओक वृक्ष और Crataegus के जंगल, विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां और झाड़ियां, झरने, तालाब, गुफाएं, पानी से भरे हुए सोते, संरक्षित क्षेत्र और भी अनेक सुन्दर व मनमोहक दृश्य, इस क्षेत्र के सुन्दर दृश्य शुमार होते हैं और इन्हीं चीज़ों ने इस प्रांत को प्रकृति के सुन्दर स्वर्ग में बदल दिया है।
चहार महाल व बख़तियारी प्रांत के प्राकृतिक आकर्षण केवल तालाब व सोतों तक सीमित नहीं हैं बल्कि इस प्रांत में बहने वाली नदियां भी पर्यटन आकर्षण के समान हैं जिनसे इस उद्योग के विस्तार की संभावना इस प्रांत में पायी जाती है। चहार महाल व बख़तियारी प्रांत में जहां जहां भी ज़ायंदे रूद नदी बहती है वे क्षेत्र इस प्रांत के मुख्य पर्यटन आकर्षण समझे जाते हैं। ज़ायंदे रूद नदी का लगभग 40 किलोमीटर मार्ग एक दर्रे में पड़ता है जिसके दोनों ओर फलों के बाग़, चिनार, और विलो सहित नाना प्रकार के वृक्ष और कुछ क्षेत्रों में धान के खेत और हरे भरे टीले हैं। यह क्षेत्र ग्रीष्म ऋतु में अपने संतुलित व सुहावने मौसम के कारण हर वर्ष हज़ारों की संख्या में स्थानीय व ग़ैर स्थानीय पर्यटकों का मेज़बान बनता है।
चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत की जनता को दो भागों चहारमहाली और बख्तियारी में विभाजित किया जा सकता है। चहारमहाली लोग सामान्य रूप से फ़ार्सी और तुर्की भाषा में बातें करते हैं जबकि उनका अपना विशेष लहजा होता है जबकि बख़्तियारी लोग, बख़्तियारी लहजे में बात करते हैं जो लुरी भाषा के लहजे से निकली हुई होती है। बख़्तियार क्षेत्र प्राचीन काल से ही महान बख़्तियारी जाति के पलायन का केन्द्र रहा है और है।
जैसाकि नाम से पता चलता है कि चहारमहाल व बख़्तियारी दो भागों में बंटा हुआ है। चहारमहाल जहां पर शहरी और ग्रामीण दोनों प्रकार की आबादी पाई जाती है लार, केयार, मीज़दिज तथा गंदुमान जैसे क्षेत्रों पर आधारित है। बख़्तियारी पर्वतीय क्षेत्र है जो पलायन करने वाली जाति बख़्तियारी का निवास स्थल है। पिछली एक शताब्दी के दौरान यहां पर होने वाले परिवर्तनों, सामाजिक बदलाव तथा राजनैतिक परिवर्तनों आदि की समीक्षा चहारमहाल व बख़्तियारी क़बीले के परिप्रेक्ष्य में ही की जानी चाहिए। बख़्तियारी क़बीले का संबन्ध लोर जाति के एक भाग से है जिसे लोरे बोज़ोर्ग के नाम से जाना जाता है। “लोर” शब्द का अर्थ होता है ऊंचाई पर स्थित वृक्षों से भरी धरती। आज भी बख़्तियारी और लोरिस्तान प्रांतों में टीलों तथा पेड़ों से छिपे क्षेत्रों को लोर ही कहा जाता है। बख्तियारी बंजारों की संस्कृति पशुपालन पर आधारित है जो साधारण होते हुए भी जटिल है। यही कारण है कि उनकी कुछ विशेषताएं, वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल नहीं हैं। हालांकि क्षेत्र के सांस्कृतिक विकास में बंजारों की कुछ परंपराओं की प्रभावी भूमिका है।
मस्जिदे जामे या मस्जिद ख़ान शहरे कुर्द की प्राचीन मस्जिद है जो इस शहर के केन्द्र में स्थित है। यह मस्जिद तेरहवीं शताबदी हिजरी क़मरी की हे जो शहरे कुर्द के धार्मिक व ऐतिहासिक इमारतों में है। इस इमारत को हाजी मुहम्मद रज़ा ख़ान सतूदे के आदेश पर 2500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बनाया गया है। इस मस्जिद के तीन प्रविष्ट द्वार हैं। उत्तरी, पूरब और पश्चिम में।
सात रंग की टाइल्स और सुन्दरता ने इसकी ख़ूबसूरती पर चार चांद लगा दिया है। ध्यान योग्य बात यह है कि यह इमारत इतनी सुन्दर है कि पर्यटक स्वयं ही इसकी ओर खिंचे चले आते हैं। इस मस्जिद में एक बड़ा प्रांगड़, चार हाल, अनेक कमरे, मिनार, गर्मी और सर्दी के विशेष बरामदे शामिल हैं। इसको वर्ष 1356 में ईरान की राष्ट्रीय धरोहरों की सूची में पंजीकृत कर लिया गया था।
शहरे कुर्द की जामे मस्जिद के दक्षिण पश्चिम में हम्माम ख़ान है जिसे वर्ष 1270 हिजरी क़मरी में मस्जिद के निर्माण के समय ही निर्मित किया गया था। इस ऐतिहासिक इमारत को भी मुहम्मद रज़ा ख़ान ने ही बनवाया था और यह ईरान की सुन्दर इमारतों में समझी जाती है। इस इमारत की अपनी कुछ विशेषता है। इस इमारत के जामे मस्जिद के निकट होने से जामेअ मस्जिद की सुन्दरता में चार चांद लग गये।
पुरातनविदों द्वारा की गयी खुदाई से चहार महाल व बख़तियारी प्रांत के कुछ क्षेत्रों में ईसापूर्व सभ्यता के अस्तित्व का पता चला है। इन अवशेषों में कुर्द नगर के पांच किलोमीटर दक्षिण में गुरकानी तप्पे नामक टीला भी है जो इस क्षेत्र में छह सहस्त्राब्दी ईसापूर्व मानव जीवन का पता देता है। शहरे कुर्द के पर्यटन स्थलों में से एक इस शहर का प्राचीन संग्राहलय है जिसमें विशेष प्रकार के प्राचीन काल के बर्तन और अनेक प्रकार की सामग्रियां मौजूद हैं।
शहरे कुर्द के उपनगरीय क्षेत्र में चार सहस्त्राब्दी ईसापूर्व चित्रकारी का शिलालेख इस प्रांत के प्राचीन इतिहास का एक भाग को स्पष्ट करता है। इस शिलालेख के निकट जो जहान बीन नामक पहाड़ की एक चिकनी चट्टान पर उकेरा गया है, पत्थर की ईंटों द्वारा चुने गए मार्ग के अवशेष हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यह इस क्षेत्र में ईरान के दक्षिण पश्चिम में स्थित शूश व दश्ते ख़ूज़िस्तान की संस्कृति व सभ्यता को स्थानांतरित करने का संभवतः पहले संपर्क मार्ग का अवशेष है। इसके अतिरिक्त बाज़ुफ़्त क्षेत्र में ईलामी काल की मनुष्य की मूर्तियों सहित इस्लाम से पूर्व के ऐतिहासिक अवशेष और खुदाई के दौरान मिलने वाले सामानी काल के अनेक सिक्के इस क्षेत्र में प्राचीन सभ्यता का एक दूसरा साक्ष्य है। चार महाल व बख़तियारी प्रांत के कुछ क्षेत्रों में पांचवी हिजरी के इस्लामी सिक्के मिलने के पश्चात सांस्कृतिक धरोहर के विशेषज्ञों का मानना है कि उस समय चहार महाल व बख़तियारी प्रांत में सिक्के ढाले जाते थे। यह बिन्दु भी महत्वपूर्ण है कि इस क्षेत्र की ऐतिहासिक इमारतें प्रायः इस्लामी काल और विशेष रूप से क़ाजारी काल की हैं। इनमें से कुछ इमारतें धार्मिक महत्व की हैं जैसे मस्जिदें और पैग़म्बरे इस्लाम के वंश से महापुरुषों के रौज़े हैं।
जी हां श्रोताओ आइये इस शहर के एक अन्य ऐतिहासिक और सुन्दर शहर की सैर करते हैं। यह शहर चालेशतर है। यह शहर कुर्द शहर से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह भी ईरान की प्राचीन और मूल्यवान धरोहरों में समझा जाता है। यह इमारत चालेशतर दुर्ग के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस इमारत में प्रयोग की गयी वास्तुकला को यूरोपीय और काजारी वास्तुकला का मिश्रण कहा जा सकता है।
ख़ानए सतूदे चालेशतर, चालेशतर दुर्ग का ही भाग है जिसे क़ाजारी शासन काल के अंतिम दिनों में बनाया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि 14वीं हिजरी क़मरी के आरंभ में तथा 1323 हिजरी क़मरी में इस दुर्ग का मुख्य भाग बना जिससे बहुत ही सुन्दर तरीक़े से सजाया गया है। इस दुर्ग पर बनी सुन्दर डिज़ाइनें, जिसको कलाकारों ने दुर्ग की दीवारों और पत्थरों पर उकेर कर बनाया है, बहुत ही मूल्यवान और धरोहर हैं। इस ऐतिहासिक इमारत में तीन संग्राहलय मौजूद हैं जिसमें काम और जीवन संग्राहलय, एंथ्रोपोलोजी संग्राहलय तथा पत्थर की धरोहरों के संग्राहलय का नमा लिया जा सकता है।
इस प्रांत में बहुत से ऐतिहासिक दुर्ग हैं जिनमें से 14 दुर्ग अभी भी मौजूद हैं और इन्हीं दुर्गों में अमीर मुफ़ख़्ख़म बख़तियारी नामक दुर्ग है जो कुर्द नगर के 35 किलोमीटर दक्षिण में देज़क गांव में स्थित है। यह दुर्ग वास्तुकला, डीज़ाइन और सजावट की दृष्टि से इस प्रांत में मौजूद दुर्गों में बहुत आकर्षक है। देज़क गांव में स्थित अमीर मुफ़ख़्ख़म बख़तियारी दुर्ग दो मंज़िला है और इसके उत्तरी व दक्षिणी भाग में खंबो वाले बरामदे वास्तुकला, कला व इतिहास की दृष्टि से विशेष महत्व रखते हैं। यह दुर्ग बहुत सी घटनाओं का साक्षी रहा है जिनमें सबसे महत्वपूर्ण संविधान क्रांति के दौरान इसकी भूमिका रही है। (AK)