Jun १५, २०१९ १२:५८ Asia/Kolkata

दुनिया के विभिन्न इलाक़ों में राजाओं और शासकों द्वारा बनवाए गए महलों और क़िलों का समाज शास्त्रियों के अध्ययनों में काफ़ी महत्व है।

इसके अलावा, इन इमारतों के निर्माण में प्रयोग की गई कला की समीक्षा से बीते समय की कला की पहचान और कला पर राजनीति के प्रभाव को समझने में मदद मिल सकती है।

विभिन्न कालों में दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में बनाई गई इन इमारतों के निर्माण के लिए वास्तुकारों और कामगारों की व्यवस्था करना और उसमें प्रयोग किए गए मसालों की आपूर्ति करना इन इमारतों की संयुक्त विशेषता है। इसीलिए कहा जा सकता है कि इन इमारतों का निर्माण मज़बूत था और उनमें से अधिकांश इमारतें आज भी बाक़ी हैं। पिछली शताब्दियों में यूरोप, एशिया और अफ़्रीक़ा में बनाए गए महलों का आज भी बाक़ी रहना इस बात की गवाही देता है।

इन इमारतों का ऐतिहासिक तौर पर अध्ययन किया जा सकता है और उनसे संबंधित घटनाक्रमों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। क्षेत्रीय स्तर पर इन इमारतों के बारे में जो शोध किए गए हैं, उनसे पता चलता है कि इन इमारतों के बीच काफ़ी हद तक समानताएं पाई जाती हैं। हालांकि इन इमारतों के बारे में किसी एक विशेष दृष्टिकोण या धर्म के आधार पर भी शोध किया जा सकता है। इस शैली में निर्माण एवं वास्तुकला पर इस्लाम और ईसाई जैसे धर्मों के प्रभाव की समीक्षा की जा सकती है।

इस कार्यक्रम में हम सहस्त्राब्दियों के दौरान ईरान में बनाए गए महलों पर एक नज़र डालेंगे और हर काल की विशेषताओं का उल्लेख करेंगे। संगीत

महल आम तौर पर इमारतों के एक समूह को कहते हैं, जिसमें बड़े बड़े हॉल और विभिन्न प्रकार के कमरे होते हैं। इनमें से कुछ महल कई कई किलोमीटर के क्षेत्रफल पर भी फैले हुए होते थे। इस कॉम्पलैक्स के निर्माण में शासकों की समस्त आवश्यकताओं को मद्देनज़र रखा जाता था। महल में इन इमारतों का निर्माण राजाओं और उनके परिवारों और दरबार के अधिकारियों के रहने के लिए किया जाता था। इन में सैनिकों के निवास, हथियार रखने के भंडार, अस्तबल और कार्यालयों का निर्माण भी किया जाता था।

ईरान में महलों के निर्माण का इतिहास काफ़ी पुराना है, हालांकि विगत में महलों का अर्थ थोड़ा अलग होता था। विगत में एक अद्वितीय इमारत का निर्माण किया जाता था, जो दूसरी इमारतों से विशिष्ट होती थी, जिसका प्रयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता था। उदाहरण स्वरूप, एक समय में महलों को उपासना गृह, क़िला और शासकों के निवास के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इस प्रकार की इमारत का एक नमूना ईरान के दक्षिण पश्चिम के ख़ुज़िस्तान में स्थित चोग़ाज़ंबील उपासना गृह है। धीरे धीरे इन इमारतों की शक्ल बदलती चली गई और महलों को विभिन्न शासन श्रृंखलाओं के राजाओं के निवास के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। हख़ामनेशी काल में पर्सेपोलिस, अशकानियों के काल में आशूल महल और सासानी काल में तिसफ़ून व सरोस्तान महलों का निर्माण राजाओं के निवास के लिए करवाया गया।

हमें इस्लाम के आरम्भिक दशकों के महल या विशाल इमारतें देखने को नहीं मिलती हैं, इसलिए कि इस्लाम के आरम्भिक काल में शासक दिखावा करने से बचते थे और सादा जीवन व्यतीत किया करते थे। लेकिन उमवियों के सत्ता पर क़ब्ज़ा करने के बाद, विशाल महलों का निर्माण किया गया। इन महलों का निर्माण इस्लाम पूर्व की वास्तुकला से प्रभावित था और उन्हें ख़ूब सजाया संवारा जाता था। उनमें एक या उससे ज़्यादा हाल हुआ करते थे। एक हाल में सुल्तान लोगों से मुलाक़ात किया करता था, दूसरे में दरबारी अधिकारियों से, इसी तरह से एक हाल में विभिन्न देशों से आने वाले मेहमानों से मुलाक़ातें की जाती थीं। इन महलों की पेच खाती हुई गैलरियों में सेवक इधर से उधर आते जाते थे और किसी अजनबी को राह नहीं दी जाती थी।

ऐतिहासिक और भौगोलिक दस्तावेज़ों और साहित्यों में महलों और उनमें होने वाली गतिविधियों के बारे में जानकारियां मौजूद हैं। उमवियों के महल रंगीन और बड़े गुंबद के लिए प्रसिद्ध थे। बड़े हाल, विशाल आयताकार आंगन और मेहमानों एवं अधिकारियों के एकत्रित होने के लिए स्थान भी इन महलों की विशेषताएं थीं। मुग़लों के हमले तक यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, उसके बाद हमलावर क़ौम ने इनके निर्माण को प्रभाविक किया। मुग़लों को शहरी जीवन और महलों से अधिक सरोकार नहीं रहा था, इसलिए शुरू में उन्होंने सादा इमारतों का निर्माण किया। लेकिन धीरे धीरे सुन्दर वास्तुकला में उनकी रुचि बढ़ने लगी। क्षेत्रीय वास्तुकला और धन से उन्होंने बहुत ही सुन्दर और विशाल इमारतों का निर्माण किया। मुग़लों ने समरक़ंद और ईरान के कुछ शहरों में महलों का निर्माण करवाया। लेकिन यह इमारतें अधिक मुग़लों के पतन के साथ खंडहरों में बदलकर रह गईं।

ईरान में सफ़वियों के सत्ता संभालने के बाद से महलों का निर्माण नए चरण में प्रवेश कर गया। सफ़वी शासन श्रृंखला की राजधानियों जैसे तबरेज़, क़ज़वीन और इस्फ़हान में कई महलों का निर्माण हुआ, जिनमें से अधिकांश आज भी बाक़ी हैं। इस्फ़हान में चहल सुतून, हश्त बहिश्त और आली क़ापू, बहशहर में सफ़ीआबाद, सारी में फ़रहबादा और तबरेज़ में हश्त बहिश्त सफ़वियों के विशाल और सुन्दर महलों के नमूने हैं।

टाइलिंग, प्लास्टर और आईने का काम इन सुन्दर इमारतों की विशेषताओं में से हैं। इन महलों की एक अन्य विशेषता, बाग़ों के बीच में इनका निर्माण है। उस काल में बाग़ और महल का कॉम्पलैक्स होता था और उसमें हमेशा पानी बहता रहता था। शाह के तख़्त के निकट बनाई गई नाली में बहता हुआ पानी एक प्रकार से दूसरों के लिए उसकी शक्ति का प्रतीक था। शक्ति का यह प्रतीक केवल ईरानी महलों में ही नहीं होता था। दुनिया के बड़े साम्राज्यों में बादशाह के तख़्त के निकट स्वच्छ पानी बहता रहता था।

आली क़ापू महल में राजा के हाल को ज़मीन की सतह से 25 मीटर ऊंचाई पर बनाया गया था, उसमें पानी के लिए एक हौज़ का निर्माण किया गया था, जो बादशाह की शक्ति का प्रतीक था। इसलिए कि इस समय पानी को इतनी ऊंचाई पर ले जाने का विचार किसी और के दिमाग़ में नहीं आता था। क़ाजारी शासनकाल में महलों के निर्माण में तड़क भड़क ज़्यादा थी, इनमें से कुछ महल तो थियेटर के हाल की तरह के थे।

फ़्रांसीसी शोधकर्ता जान डोमिनिक ब्रीटोली ने पूर्वी बाग़ों और ईरानी महलों का कई वर्षों तक अध्ययन किया है। उनके पीएटडी का शोध सफ़वी महलों के संबंध में था। इन दोनों शासनकालों के अंतर को वे इस तरह से बयान करते हैं, क़ाजार काल की वास्तुकला में तड़क भड़क अधिक है, सफ़वी काल की इमारतों में क्षेत्रफल और लम्बाई चौड़ाई महत्वपूर्ण थी। क़ाजारी काल के महल सीढ़ि नुमा होते थे और ऊंचाई पर फैले हुए होते थे। हालांकि सफ़वी वास्तुकला में ऊंचाई भी और लम्बाई चौड़ाई भी महत्वपूर्ण होती थी।

क़ाजारी काल के बाद वास्तुकला ने एक अलग रूप ले लिया। पहली शासन श्रृंखला ने भी दूसरे शासनों की तरह अधिक विशाल महलों का निर्माण किया। ईरान के विभिन्न इलाक़ों में इन महलों का निर्माण किया गया। इन समस्त महलों में एक संयुक्त बिंदू एक जैसा डिज़ाइन और एक अलग पहचान का न होना था। इस्लाम पूर्व यूरोपीय महलों और विभिन्न कालों के महलों की विशेषताओं से लाभ उठाने के कारण इस काल के हमलों को अपनी कोई पहचान नहीं है। पहलवी काल में बनाए गए महलों की वास्तुकला ने कोई नया उदाहरण पेश नहीं किया, इनके निर्माण से केवल उस काल के शासकों के विचारों को समझा जा सकता है। इन महलों के निर्माण में ईरान का अत्यधिक धन बर्बाद किया गया। हालांकि अधिकांश ईरानी नागरिक निर्धनता का शिकार थे, पहलवी शासन ने उनकी स्थिति पर ध्यान देने के बजाए ईरान की प्राचीन परम्पराओं को पुनर्जीवित करने पर अपना सारा ज़ोर लगाया।                         

 

 

 

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