Jun १५, २०१९ १६:१२ Asia/Kolkata

हमने ज़ाग्रोस पर्वत श्रंख्ला के दामन में स्थित कुर्द शहर से आपको परिचित कराया था जो चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत का केन्द्र है।

आपको यह बताया था कि शहरे कुर्द इस प्रांत का केन्द्र है और यह ईरान के सबसे ठंडे शहरों में से एक है। यह शहर समुद्र तल से 2033 मीटर ऊपर बसा है और इसे ईरान की छत कहा जाता है। इस प्रांत में जिसे मनुष्य के रहने के प्राचीनतम क्षेत्रों का नाम दिया जा सकता है, ऐतिहासिक धरोहरें, पर्यटन के आकर्षण की चीज़ें और अनेक प्रकार की सुन्दर प्राकृतिक चीज़ें पाई जाती हैं। आपको यह भी बताया कि शहरे कुर्द से बीस किलोमीटर की दूरी पर हफ़शन्जान शहर के प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों और प्राचीन टीलों से मिलने वाले पत्थरों से बने उपकरणों और मिट्टी के बर्तनों से पता चलता है कि यह शहर सात सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में बसा हुआ था। इससे पता चलता है कि चहार महाल बख़्तियारी शहर 9 हज़ार साल पुराना है।

आपको यह भी बताया कि ज़ागरूस पर्वत श्रंखला की चोटियों पर बर्फ़ का भंडारण और इन बर्फ़ के टीलों के पिघलने से ऊंचाई पर रहने वालों के लिए प्राप्त होने वाले पानी के कारण कारून, ज़ायंदे नदी और देज़ नामक नदियां इस प्रांत के ही पर्वतों से ही निकली हैं। यह नदियां ईरान के केन्द्र और दक्षिण पश्चिम क्षेत्रों में बहती हैं। शाहबलूत या ओक के पेड़ के जंगल, विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां और झाड़ियां, झरने, तालाब, गुफाएं, पानी से भरे हुए सोते, संरक्षित क्षेत्र और भी कई अनेक सुन्दर व मनमोहक दृश्य, इस क्षेत्र के सुन्दर दृश्य शुमार होते हैं। इन्हीं चीज़ों ने इस प्रांत को प्रकृति के सुन्दर स्वर्ग में बदल दिया है।

इसी तरह आपको कुर्द शहर के ऐतिहासिक अवशेष से परिचित कराया था। आज हम आपको कुर्द शहर से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सामान शहर के बारे में बताने जा रहे हैं। यह नगर प्राकृतिक आकर्षण से संपन्न होने के साथ साथ ऐतिहासिक दृष्टि से भी अहमियत रखता है।

सामान शहर अच्छी जलवायु से संपन्न छोटा शहर है। यह शहर दहक़ान सामानी और ओमान सामानी जैसे बड़े शायरों की जन्म स्थली भी है। इस शहर में ज़ायंदे रूद जैसी अहम नदी बहती है। यह नदी इस शहर के लिए जीवन रेखा की अहमियत रखती है। हालांकि ज़ायंदे रूद नदी का नाम आते ही इस्फ़हान शहर और उसके मशहूर पुल सीयो से का नाम मन में आता है लेकिन यह जानना भी आपके लिए रोचक होगा कि जायंदे रूद का उद्गम चहार महाल व बख़्तियारी है। इसी प्रांत से यह नदी पहाड़ का सीना चीर कर, घाटियों से होते हुए इस्फ़हान पहुंचती है।

ज़ायंदे रूद नदी पर बहुत से पुल बने हैं जिनकी ऐतिहासिक अहमियत है। इस नदी पर बने एक ऐतिहासिक पुल का नाम ज़मान ख़ान है जिसके ज़रिए नदी के दोनों तट के लोग एक दूसरे से आसानी से मिलते हैं। यह पुल नदी में जिस जगह पर बना है वहां की जलवायु बहुत ही अच्छी है। शहर के निकट स्थित इस पुल के आस-पास फलों के बाग़ हैं। इसी तरह इस इलाक़े में मनोरंजन के साधन और होटल वग़ैरह की सुविधा ने भी इस इलाक़े को चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत में पर्यटन का केन्द्र बना दिया है। हर साल बड़ी संख्या में देशी व विदेशी पर्यटक इस ऐतिहासिक पुल को देखने और इस इलाक़े की सुंदर प्रकृति से आनंदित होने के लिए सामान शहर का भ्रमण करते हैं।    

ज़मान ख़ान पुल 32 मीटर लंबा और साढ़े 4 मीटर चौड़ा है। यह पुल नदी की सतह से 12 मीटर की ऊंचाई पर बना है। इसे सफ़वी शासन काल में ज़मान ख़ान नफ़र ईल बीगी नामक एक क़बीले के सरदार ने बनवाया था ताकि ज़ाग्रोस इलाक़े के क़बीलों को पलायन में आसानी हो। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जिस जगह पर मौजूदा पुल है वहां पर सासानी शासन काल में एक पुल बना हुआ था। ज़मान ख़ान पुल में धुनष के आकार के दो दहाने हैं। यह पुल पत्थर के तीन खंबों पर टिका है। इसका बीच का खंबा नदी के बीचों बीच में है जिसके ऊपरी भाग में एक खाली खिड़की बनी हुयी है। यह खिड़की पुल के वज़्न को कम करने के लिए बनायी गयी है। यह पुल ईंट का बना है। इसे बनाने में खड़िया को मसाले के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। ज़मान ख़ान पुल कई सौ साल के बाद आज भी टिका हुआ है और अपनी मज़बूती का जलवा बिखेर रहा है। यह पुल हवा, बारिश और ज़ायंदे रूद नदी की धारा के दबाव से अभी तक सुरक्षित है। ज़मान ख़ान पुल 1744 पंजीकरण नंबर के साथ ईरान के राष्ट्रीय धरोहर की सूचि में पंजीकृत है।

चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत के भ्रमण में प्रकृति और समकालीन ईरान के इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए पीर ग़ार पर्यटन स्थल को देखना भी एक यादगार अनुभव होता है। यह लाइमस्टोन अर्थात चूना पत्थर की गुफा है।चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत की अछूती प्रकृति वाले इस सुंदर पर्यटन स्थल को देखने के लिए "दह चश्मे" नामक गांव से गुज़रता हुआ हैं। इस गुफा के बग़ल में पत्थर का शिलालेख है जिस पर समकालीन इतिहास की कुछ अहम बातों का उल्लेख है।

पीरग़ार पर्यटन स्थल दह चश्मे नामक गांव के दक्षिण में एक चोटी पर स्थित है। यह गुफा फ़ारसान शहर से 6 किलोमीटर दूर और क़ुर्द शहर से 38 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इस पर्यटन स्थल के सामने पत्थर की चट्टान के एक भाग पर नस्तालीक़ लीपि में 3 शिलालेख उकेरे हुए हैं। ये शिलालेख क़बायली सरदार ख़ुसरो ख़ान के आदेश पर उकेरे गए। इन शिलालेखों पर बख़्तियारी क़बीलों की इस्फ़हान और तेहरान पर चढ़ाई का उल्लेख है। इसी तरह संविधान क्रान्ति के समय, क़ाजारी शासक द्वारा राष्ट्रीय संसद पर तोप से गोलाबारी तथा एक साल के तानाशाही के दौर और मोहम्मद अली शाह के शासन को गिराने की घटना का भी उल्लेख है। शिलालेख के नीचे लाइमस्टोन की गुफा है और उसके आस-पास की ज़मीन से सोते बहते हैं। गुफा के ऊपर से बहुत ही सुंदर व ऊंचा झरना गिरता है। दह चश्मे गांव की अहम सौग़ात शहद, दुग्ध उत्पाद, सूखे मेवे और ट्राउट मछली है। सुंदर प्रकृति, हरे-भरे बाग़, चट्टान पर उकेरे हुए शिलालेखों के साथ पीरग़ार मनोरंजन स्थल, ख़ान क़िला और गांव में शेर की पत्थर की मूरत इन सब चीज़ों से दह चश्मे गांव चहार महाल व बख़्तियारी का बहुत ही आकर्षक गांव बन गया है जिसे हर दिन सैकड़ों की संख्या में पर्यटन देखने जाते हैं। आपको यह भी बता दें कि पीरग़ार का शिलालेख 1377 हिजरी शम्सी में राष्ट्रीय धरोहर की सूचि में शामिल हुआ है।

चहार महाल व बख़्तियारी से बहुत सी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुयी हैं। यह इलाक़ा अपने पारंपरिक रीति रिवाजों के लिए जाना जाता है। इस प्रांत के एक भाग में बख़्तियारी क़बीला हफ़्त लंग रहता है। बख़्तियारी ईरान में बसी अनेक क़ौमों में सबसे बड़ी व स्थानीय क़ौम है। बख़्तियारी नस्ल की दृष्टि से लुर जाति का हिस्सा हैं और उनकी बोली भी फ़ारसी भाषा की सबसे पुरानी बोलियों में से एक हैं। मानवशास्त्र के बहुत से विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं का मानना है कि बख़्तियारी जाति का मूल स्थान ईरान है। भाषा, कुछ आदतें और रीति रिवाजों से इस दावे की पुष्टि होती है।

बख़्तियारी जाति के लोगों के विशेष शिष्टाचार व रीति रिवाज हैं। इस समय चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत में कूहरंग, फ़ारसान, अर्दल और लोर्दगान ज़िले बख़्तियारी इलाक़े समझे जाते हैं। बख़्तियारी इलाक़ा प्राचीन समय से विशाल बख़्तियारी क़बीले के पलायन का स्थल था और आज भी है।

बख़्तियारी क़बीला अपनी विशेष जीवन शैली व रीति रिवाजों के साथ इस इलाक़े का अद्वितीय आकर्षण समझा जाता है। देश विदेश के पर्यटकों के लिए क़बायली जीवन अपनी विशेष रीति रिवाजों के लिए बहुत आकर्षण रखता है।