Jun १८, २०१९ १३:३८ Asia/Kolkata

हमने पांचवी हिजरी क़मरी शताब्दी बराबर दसवीं शताब्दी ईस्वी के महान ईरानी साहित्यकार मसूद सलमान के बारे में चर्चा की थी।

अगले कुछ कार्यक्रमों में हम उनकी रचनाओं के संबन्ध में विस्तार से चर्चा करेंगे।  जैसाकि हमने बताया था कि "सईदुद्दौला अबुन्नज्म मसूद सअद सलमान हमदानी", ग़ज़नवी शासनकाल के जानेमाने कवि हैं जिन्होंने अपना समय भारत में गुज़ारा।  वे मूलरूप से ईरानी थे और उनका संबन्ध हमदान से था।  सन 1033 से 1046 तक मसूद सलमान के पिता ने ग़ज़नवी दरबार में अपनी सेवाएं दीं।  उनके पिता और पूर्वजों की गणना, अपने काल के विद्वानों में होती थी।  "सईदुद्दौला अबुन्नज्म मसूद सअद सलमान हमदानी" या मसूद सलमान का जन्म लाहौर में हुआ था।  मसूद ने लाहौर में रहकर जहां विद्वानों से शिक्षा अर्जित की वहीं पर उन्होंने घुडसवारी, तीरअंदाज़ी और तलवार चलाने की भी शिक्षा प्राप्त की।  इस प्रकार से उनके भीतर निपुर्णता पाई जाती थी।  उनको साहित्य से बहुत अधिक लगाव था।  मसूद सलमान शेर भी कहा करते थे लेकिन अधिकतर वे क़सीदे या चौपाइयां कहा करते थे।  वे सुल्तान इब्राहीम के कहने पर सैफुद्दीन महमूद के साथ भारत गए थे।  सैफुद्दौला महमूद के निकट मसूद सलमान का बहुत महत्व था।  हालांकि तत्कालीन शासक के निकट मसूद सलमान को विशेष स्थान प्राप्त था किंतु किंतु दरबारी चुग़लख़ोरों के द्वेष के कारण उन्हें अपने इस महत्व की क़ीमत दूसरे रूप में चुकानी पड़ी।  इब्राहीम ग़ज़नवी के आदेश पर मसूद सलमान को सैफुद्दौला के साथ गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया।  मसूद सलमान ने अपने जीवन के लगभग 20 वर्ष जेल में गुज़ारे।  इस दौरान उन्होंने जो शेर कहे हैं उनमें कारावास की कठिनाइयों और बीवी बच्चों से दूरी का उल्लेख किया गया है।  जेल से आज़ादी के बाद मसूद सलमान ने फिर दरबार का रुख़ नहीं किया और वे ख्याति के पीछे नहीं गए किंतु वे दरबार से पूरी तरह से कटे भी नहीं रहे।  अपने जीवन के अन्तिम समय तक मसूद सलमान, मसूद ग़ज़नवी के बहुत बड़े पुस्तकालय के प्रमुख के रूप में सांस्कृतिक गतिविधियां करते रहे।  सन 1121 या 1122 ईसवी में "सईदुद्दौला अबुन्नज्म मसूद सअद सलमान हमदानी" का ग़ज़नी में निधन हो गया।

मसूद साद सलमान की गणना फ़ार्सी के महान साहित्यकारों में होती है।  वे एसे साहित्यकारों में हैं जो अपनी विशेष शैली के कारण साहित्य में चमके और मश्हूर हुए।  वे बड़ी ही सुन्दरता एवं दक्षता के साथ शब्दों का प्रयोग किया करते थे।  उनकी काल्पनिक उड़ान बहुत ऊंची थी।  वे किसी एक विषय को अलग-अलग ढंग से प्रस्तुत करने की क्षमता रखते थे।  मसूद सलमान के बारे में यह मश्हूर है कि उन्होंने अपनी कविताओं और रचनाओं में विदेशी शब्दों का बहुत ही कम प्रयोग किया है।

"लुबाबुल अलबाब" पुस्तक के लेखक "औफ़ी" लिखते हैं कि मसूद सलमान के तीन काव्य संकलन थे जो फारसी, अरबी और हिंदी भाषा में थे।  वे कहते हैं कि वर्तमान समय में मसूद सलमान का जो काव्य मौजूद है वह फारसी भाषा में है या फिर कुछ रचनाएं अरबी भाषा में हैं।  उनका कहना है कि मसूद सलमान के हिंदी भाषा की रचनाए इस समय उपलब्ध नहीं हैं।  फ़ारसी भाषा के उनके काव्य में साहित्य के हर रूप को देखा जा सकता है।  कहते हैं कि मसूद सलमान को कविता की जिस शैली में ख्याति मिली उसे "हबसियात" कहते हैं।  फ़ारसी साहित्य में हबसियात, उन कविताओं को कहा जाता है जिन्हें जेल या कारावास में कहा गया हो।

मसूद सलमान ने अपने जीवन के कई वर्ष जेल में बिताए और इस दौरान उन्होंने बहुत सी कविताएं कहीं।  यही कारण है कि उनके काव्य में बहुत से शेर और कविताएं ऐसी हैं जिनका संबन्ध उनके जेल के जीवन से है।  मसूद सलमान के साहित्य का वह भाग जो उनके कारावास के जीवन से संबन्धित है उसमें कठिनाइयों और समस्याओं का उल्लेख है।  उनके उस काल के शेर वास्तव में अद्वितीय हैं।  कहते हैं कि जो लोग अधिक संवेदनशील होते हैं वे मसूद सलमान के उस काव्य से बहुत प्रभावित होते हैं जो उन्होंने जेल में लिखा या कहा।  "चहार मक़ाले" नामक पुस्तक के लेखक नेज़ामी अरूज़ी ने मसूद सलमान के काव्य की समीक्षा करने के बाद कहा है कि उन्होंने जब-जब मसूद के शेर पढ़े उनको रोना आ गया।

ईरान के एक समकालीन धोशकर्ता डाक्टर "अब्दुल हुसैन ज़र्रीनकूब" जिन्होंने फारसी साहित्य और फारसी भाषा के कवियों पर गहन शोध किया है, मसूद सलमान के उन शेरों पर बहुत काम किया जो उन्होंने जेल में कहे थे।  वे कहते हैं कि मसूद के शेरों से करावास में रहने वाले के बारे में स्पष्ट रूप में पता चलता है और उनके यह शेर बहुत ही रोचक एवं प्रभावित करने वाले हैं।

बहुत से शोधकर्ताओं का कहना है कि करावास में विभिन्न प्रकार की कठिनाइयां और यातनाएं सहन करने के बावजूद मसूद सलमान ने कहीं पर भी किसी से सहायता नहीं मांगी और किसी से सामने हाथ नहीं फैलाया।  इस दौरान उन्होंने जेल के अधिकारियों का मज़ाक़ भी उड़ाया है।  उन्होंने जेल के कहे जाने वाले अपने शेरों में जेल की कठिनाइयों का उल्लेख किया है।  इन शेरों में उन्होंने जेल के जीवन को बहुत ही अच्छे ढंग से प्रदर्शित किया है।  मसूद सलमान ने कारावास के जीवन को इतने सही ढंग से प्रदर्शित किया है कि बहुत से समाज शास्त्रियों ने ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी में न्यायपालिका की कार्यवाहियों की समीक्षा करने के लिए उनके शेरों का सहारा लिया है।

मसूद सलमान ने कारावास के दौरान के शेरों में केवल कारावास की कठिनाइयों और वहां की जटिल परिस्थिति का ही उल्लेख नहीं किया है बल्कि उन्होंने उस काल में पाठ लिया है उसका भी उल्लेख किया है।  इसका मुख्य कारण यह है कि मसूद का मानना है कि यह समस्याएं और कठिनाइयां, क्षमताओं के निखरने का कारण बनती हैं।

ग़ज़नवी शासनकाल के कई शासकों के दौरान में मसूद सलमान कारावास में रहे।  कुछ जानकारों का कहना है कि उन्होंने ग़ज़नवी श्रंखला के लगभग छह शासकों का काल कारावास में बिताया।  इस दौरान उन्होंने जो कठिनाइयां सहन कीं उनके कारण मसूद सलमान को एक संघर्षकर्त कवि की उपाधि दी गई।  वे पूरी क्षमता और निडर होकर अपने शेर कहा करते थे।  इस मामले में वे किसी से भयभीत नहीं होते बल्कि कहीं-कहीं पर उन्होंने जेलर या जेल के अधिकारियों के विरुद्ध भी शेर कहे हैं।

अफ़ग़ानिस्तान के एक साहित्यकार "अब्दुल अली फ़कूरी" का मानना है कि मसूद सअद सलमान ने वास्तव में कारावास में बहुत कठिन जीवन गुज़ारा था।  जब वे जेल से आज़ाद हुए तो उन्होंने भविष्य में इस प्रकार की समस्या से बचने के लिए ग़ज़नवी शासकों की प्रशंसा करनी शुरू कर दी थी जिसके कारण वे ग़जनवी दरबार में बहुत लोकप्रिय हो गए थे। हालांकि यह बात ही सही है कि मसूद सलमान के उस काल के शेरों को वह स्थान प्राप्त नहीं है जो उन्होंने शासकों की प्रशंसा मे लिखे बल्कि उनके उन शेरों को बहुत अधिक ख्याति मिली जो उन्होंने जेल में रहते हुए कहे थे।  मसूद सलमान की स्मरण शक्ति बहुत ही सशक्त थी।  कारावास के दौरान कहे गए उनके शेरों में निराशा, दुख, शिकायत और इसी प्रकार की बातों को देखा जा सकता है किंतु उनकी विशेष बात यह थी कि उन्होंने अन्तिम समय तक संघर्ष जारी रखा।

 

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