गत 30 वर्षों के दौरान वरिष्ठ नेता का मार्गदर्शन।
वरिष्ठ नेतृत्व का चयन करने वाली परिषद ने जिस संवेदनशील समय में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई को वरिष्ठ नेता के रूप में चुना था उस समय को अब तीस वर्ष हो रहे हैं।
11 फरवरी 1979 में ईरान की इस्लामी क्रांति सफल हुई थी। क्रांति की सफलता के आरंभ से ही दुश्मन, जनता को एकजुट करने और उसके मार्गदर्शन में स्वर्गीय इमाम खुमैनी की भूमिका व क्षमता से अवगत थे और इसी बात के दृष्टिगत वे इमाम खुमैनी के देहान्त की प्रतीक्षा में थे क्योंकि वे सोच रहे थे कि इमाम खुमैनी के देहान्त के बाद सब कुछ खत्म हो जायेगा और इस संबंध में वे अफवाहें भी फैलाते रहते थे परंतु उन्हें 10 वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी और इस अवधि के दौरान स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने न केवल ईरान की इस्लामी व्यवस्था के स्तंभों को मज़बूत किया बल्कि सद्दाम और उसके समर्थकों ने ईरान पर जो आठ वर्षीय युद्ध थोप रखा था उसमें भी ईरान का सिर ऊंचा किया किन्तु चार जून वर्ष 1989 में इमाम खुमैनी का स्वर्गवास हो गया और ईरानी राष्ट्र के शत्रु इस कटु व हृदयविदारक घटना से खुश हो गये और वे ईरान की इस्लामी व्यवस्था के खत्म होने की प्रतीक्षा में थे। उस समय अमेरिकी रेडियो ने खुशी से कहा था कि निश्चित रूप से आयतुल्लाह खुमैनी का निधन ईरान में बड़ी अस्थिरता का कारण बनेगा और कुछ तो यहां तक कह रहे थे कि इस घटना से ईरान में गृहयुद्ध की आग भड़क सकती है परंतु दुश्मनों की यह शैतानी खुशी कुछ घंटों से अधिक न चल सकी।
वरिष्ठ नेतृत्व का चयन करने वाली परिषद ने इमाम खुमैनी के स्वर्गवास के तुरंत बाद बैठक की और काफी लंबी और गहन चर्चा के बाद आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई को बहुमत से वरिष्ठ नेतृत्व के लिए चुना। इस प्रकार जहां दुश्मनों के षडयंत्रों व अपेक्षाओं पर पानी फिर गया वहीं ईरानी इतिहास में नया अध्याय आरंभ हो गया।

अलबत्ता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई स्वर्गीय इमाम खुमैनी के अच्छे, निष्ठावान और उनके अनुसरणकर्ता सच्चे शिष्यों में से हैं और उनके अंदर मार्गदर्शन की जो क्षमता व योग्यता है उसकी पुष्टि स्वर्गीय इमाम खुमैनी भी करते थे। यद्यपि स्वर्गीय इमाम खुमैनी अपने इस दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से बयान नहीं करते थे परंतु उनके निकटवर्ती लोग इस बात को जानते थे। जिस समय दिवंगत आयतुल्लाह हाशेमी रफसन्जानी संसद सभापति और वरिष्ठ नेतृत्व का चयन करने वाली परिषद के सदस्य थे उस वक्त उन्होंने स्वर्गीय इमाम खुमैनी के उस कथन को बयान किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि जनाब ख़ामनेई इस्लामी क्रांति के मार्गदर्शन के लिए बेहतरीन व्यक्ति हैं। स्वर्गीय इमाम खुमैनी के छोटे बेटे अहमद खुमैनी भी अपने स्वर्गीय पिता के हवाले से कहते हैं” सच में यह यानी आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामनेई मार्गदर्शन की योग्यता रखते हैं। इन सबके बावजूद ईरानी राष्ट्र के दुश्मनों ने आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई के स्थान को महत्वहीन व कमज़ोर करने का प्रयास किया ताकि उनको हटा दिया जाये। दुश्मन यह सोचते थे कि आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई को न तो जनसमर्थन प्राप्त है और न ही उनके अंदर स्वर्गीय इमाम खुमैनी के मार्ग को जारी रखने की क्षमता है परंतु जैसे ही आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई को स्वर्गीय इमाम खुमैनी का उत्तराधिकारी बनाया गया और कांति के मार्गदर्शन की बागडोर इनके हाथों में सौंपी गयी उसी वक्त लोगों, विद्वानों, और उच्चाधिकारियों आदि ने उनके आदेशों के प्रति वचनबद्धता और उनके प्रति अपने पूर्ण समर्थन की घोषणा की। अलबत्ता इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के अंदर नेतृत्व व मार्गदर्शन की जो क्षमता है वह इनके नेतृत्व को सदृढ़ व मज़बूत बनाने में मुख्य कारक रही है।

दुश्मनों की एक अपेक्षा यह थी कि आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ईश्वरीय व जन आकांक्षाओं, अन्याय से मुकाबला करने और लोगों को एकजुट करने में स्वर्गीय इमाम खुमैनी की भूमिका नहीं निभा पायेंगे और इस्लामी क्रांति अपने मुख्य मार्ग से हट जायेगी परंतु ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने आरंभ से बल देकर कहा है कि स्वर्गीय इमाम खुमैनी का रास्ता ही हमारा रास्ता है और उन्होंने अपने आरंभिक भाषण में बल देकर कहा था कि हम ईश्वर से प्रतिबद्ध हुए हैं कि हम स्वर्गीय इमाम खुमैनी के मार्ग को जारी रखेंगे कि जो इस्लाम, कुरआन और मुसलमानों की इज्ज़त का रास्ता है और जो इमाम खुमैनी की आकांक्षाएं थीं उनमें से किसी एक आकांक्षा की अनदेखी भी नहीं करेंगे और आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने अपने अमल व व्यवहार से सिद्ध कर दिया है कि वह स्वर्गीय इमाम खुमैनी के रास्ते पर चल रहे हैं और इस रास्ते में वह पूरी तरह सफल भी रहे हैं। इस प्रकार ईरान की इस्लामी क्रांति के विरोधियों की जो अपेक्षा थी कि क्रांति अपने मुख्य मार्ग से हट जायेगी या कम से कम दुश्मनों से सांठ- गांठ हो जायेगी इससे वे निराश हो गये। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई इस बारे में कहते हैं” इमाम ख़ुमैनी के स्वर्गवास के पहले ही दिन कह रहे थे कि सभी चीज़ें खत्म हो गयीं, हमारे दुश्मनों को अपेक्षा थी कि ईरान के अंदर की किसी बात या बयान को लेकर उसे मुद्दा बनायेंगे और कहेंगे कि क्रांति ने अपने मार्ग को बदल लिया है। ईश्वर की कृपा से जो आशा लगा रखी थी उससे दुश्मन निराश हो गये।“ गत 30 वर्षां का इतिहास इस बात का सूचक है कि इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने न केवल स्वर्गीय इमाम खुमैनी के मार्ग को जारी रखा बल्कि कठिनाइयों व समस्याओं के बावजूद उन्होंने स्वर्गीय इमाम खुमैनी की बहुत सी आकांक्षाओं को प्राप्त भी कर लिया है।
इस उतार- चढाव भरे काल में ईरान और इस्लामी व्यवस्था की शक्ति दिन- प्रतिदिन मज़बूत हुई है। यह शक्ति आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, व सैन्य क्षेत्रों में प्राप्त होने वाली उपलब्धियों के कारण है और यह शक्ति विशेषकर जनता की एकता व एकजुटता और उसके प्रयासों का परिणाम है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने गत तीन दशकों के दौरान जनता को इस्लामी क्रांति के मूल्यों व लक्ष्यों के प्रति एकजुट बनाये रखा। इसी प्रकार वरिष्ठ नेता ने विभिन्न दृष्टिकोणों के साथ अधिकारियों व ज़िम्मेदारों का समर्थन किया परंतु वरिष्ठ नेता ने विभिन्न तरीकों व शैलियों से अधिकारियों व ज़िम्मेदारों को उनकी गलतियों को बताया। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता जिस चीज़ पर सदैव बल देते हैं उनमें से एक देश की अर्थ व्यवस्था और उसके ढांचे में सुधार है। वरिष्ठ नेता बल देकर कहते हैं कि आर्थिक ढांचे में एसा सुधार होना चाहिये कि अर्थ व्यवस्था तेल से होने वाली आय पर निर्भर न रहे। वरिष्ठ नेता ने इस संबंध में प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था का सुझाव दिया और ज्ञान, तकनीक, न्याय, मज़बूती और विकास को प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था का आधार बताया है। अगर प्रतिरोध अर्थ व्यवस्था के उद्देश्य प्राप्त हो जायेंगे तो आर्थिक प्रतिबंधों के कारण जो नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं वे या तो निष्प्रभावी या कम से कम हो जायेंगे। अलबत्ता गत 30 वर्षों के दौरान इस्लामी गणतंत्र ईरान ने राजनीतिक दबावों और आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में ध्यान योग्य प्रगति की है परंतु वरिष्ठ नेता का मानना है कि इस विकास को और गति प्रदान की जानी चाहिये।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता द्वारा ज्ञान और तकनीक पर बल दिया जाना इस बात का कारण बना है कि उनके मार्गदर्शन के काल में ज्ञान, विज्ञान और छात्रों को विशेष महत्व व स्थान प्राप्त हो गया है और ईरान ने चिकित्सा, नैनो ओर , परमाणुप्रौद योगि की, स्टेम सेल, और स्पेस सहित बहुत से क्षेत्रों में ध्यान योग्य प्रगति कर ली है। रोचक बात यह है कि इनमें से अधिकांश सफलताएं वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई के प्रोत्साहन और समर्थन के कारण प्राप्त हुई हैं।
साथ ही गत 30 वर्षों के दौरान ईरान को विभिन्न कठिनाइयों व समस्याओं का सामना रहा है और इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने अपनी दूरदर्शिता से इन समस्याओं का समाधान किया। इस संबंध में वर्ष 2009 में ईरान में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों और उसके दौरान होने वाले राजनीतिक मतभेदों व विवादों की ओर संकेत किया जा सकता है। वर्ष 2009 में ईरान में राष्ट्रपति के जो चुनाव हुए थे उसमें मतदान के दौरान धांधली होने के दावे कर दिये गये और इसी निराधार दावे को पश्चिमी सरकारों ने बहाना बनाकर ईरान की इस्लामी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का प्रयास किया। इसके लिए पश्चिमी सरकारों ने राजनीतिक, प्रचारिक और आर्थिक आदि संसाधनों का प्रयोग किया पंरतु इसके बावजूद वे अपने लक्ष्य न साध सकीं। इसका मुख्य कारण इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई का दूरदर्शी व विवेकपूर्ण मार्गदर्शन था जिसने दुश्मनों के खतरनाक षडयंत्र को विफल बना दिया।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने सशस्त्र सेना के सर्वोच्च कमांडर के रूप में गत 30 वर्षों के दौरान अपने मार्गदर्शन से ईरान की सेना को विश्व की शक्तिशाली सेना बना दिया। इस समय ईरान विभिन्न प्रकार की मिसाइलों, ड्रोन विमानों, पनडुब्बियों, टैंकों और विमानों आदि का निर्माण कर रहा है और रोचक बात यह है कि इन चीज़ों का निर्माण ईरानी विशेषज्ञ कर रहे हैं। इसके अलावा ईरान ने लाखों सैनिकों का प्रशिक्षण कर रखा है जिसके कारण दुश्मन ईरान पर हमला करने का दुस्साहस नहीं कर पा रहा है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने कुछ चीज़ों जैसे इज्ज़त और तत्वदर्शिता को ईरान की विदेशी नीति का आधार करार दिया है और ईरानी अधिकारी इन बातों को ध्यान में रखते हैं। इसी प्रकार ईरान की एक नीति अत्याचार से संघर्ष और पीड़ित लोगों का समर्थन है। इसी नीति के परिप्रेक्ष्य में ईरान, फिलिस्तीन, यमन, लेबनान, इराक, सीरिया, अफ़गानिस्तान और बहरैन सहित विश्व के दूसरे क्षेत्रों की जनता का समर्थन करता है।
इस प्रकार इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई गत 30 वर्षों से ईरान और ईरानी राष्ट्र का मार्गदर्शन उसी मार्ग में कर रहे हैं जिसका निर्धारण स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने किया था और इस्लामी क्रांति ने अपनी सफलता की 40वीं वर्षगांठ एसी स्थिति में मनाई है जब ईरान क्षेत्र और विश्व की बड़ी व प्रभावी शक्ति बन चुका है।