ईरान भ्रमण- 17
हमने चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत की सैर में आपको इस प्रांत के बंजारों से परिचित कराया था और बताया था कि बख़्तियारी बंजारे सर्दी का मौसम पूर्वी ख़ूज़िस्तान के मैदानी क्षेत्रों में और गर्मी का मौसम चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत के पश्चिमी क्षेत्रों में बिताते हैं।
वे हर साल उर्दीबहिश्त महीने के अंतिम दिनों अर्थात मई के मध्य में पांच विभिन्न मार्गों से इस क्षेत्र में पहुंचते हैं। इसके लिए उन्हें प्रकृति की अनेक कठिनाइयां सहन करनी पड़ती हैं, नदियों को पार करना होता है, घाटियों से गुज़रना पड़ता है और ज़र्दकूह पहाड़ को पीछे छोड़ना पड़ता है।
हमने आपको इसी तरह इस इलाक़े के लालाहाये वाजेगून या उलटे ट्यूलिप से भरे हुए सुंदर मैदान के बारे में बताया था जो अपनी ओर बड़ी संख्या में सैलानियों को आकर्षित करता है। यह मैदान चेलगर्द से 12 किलो मीटर की दूरी पर बेनवास्तेकी नामक गांव के निकट स्थित है। इस पूरे ज़िले में लगभग तीन हज़ार चार सौ हेक्टेयर ज़मीन पर लाल व पीले रंग के उलटे ट्यूलिप के पौधे उगाए जाते हैं जिन्हें देखने के लिए पर्यटक खिंचे चले आते हैं। इसी तरह स्थानीय लोग भी छुट्टियों के दिनों में व अवकाश के समय इन क्षेत्रों में जा कर आंनदित होते हैं।
चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत की सैर के अंत में हमने चेलगर्द से 25 किलो मीटर की दूरी पर शैख़ अली ख़ान गांव के निकट इस क्षेत्र की सबसे विचित्र गुफाओं में से एक चमा गुफा की सैर कराई थी और बताया था कि इस गुफा की छत में लटकी बर्फ़ के विभिन्न आकारों की क़िंदीलें देखी जा सकती हैं। इस गुफा की बर्फ़ के नीचे ठंडे पानी का सोता बहता है जो कूहरंग बांध तक पहुंचता है। इस स्थान का गहरी घाटी में स्थित होना और इसमें कई वर्षों की बर्फ़ का इकट्ठा होना इस बात का कारण बना है कि इस गुफा की क़िंदीलें पूरे साल अपने मूल रूप में बाक़ी रहें। चहार महाल व बख़्तियारी प्रांत की सैर समाप्त हुई और अब हम अत्यंत सुंदर शहर इस्फ़हान की यात्रा आरंभ कर रहे हैं, कृपया हमारे साथ रहें।
इस्फ़हान प्रांत के केंद्रीय नगर का नाम भी इस्फ़हान ही है। यह ईरान के सबसे मशहूर, सुंदर व सबसे बड़े पर्यटन स्थलों में से एक है। इस्फ़हान प्रांत में असंख्य ऐतिहासिक अवशेष हैं जिनमें से 1850 राष्ट्रीय स्तर पर और सात अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यूनेस्को में पंजीकृत हो चुके हैं। इस्फ़हान को ईरान के प्रांतों में विशेष स्थान प्राप्त है और इसका केंद्रीय नगर इस्फ़हान, इस्लामी सभ्यता की सांस्कृतिक राजधानी माना जाता है। इस्फ़हान का संसार के अनेक देशों के अहम शहरों के साथ मुंह बोले भाई का रिश्ता है जिनमें चीन का शियान, मलेशिया का कुआलालम्पुर, इटली का फ़्लोरेंस, रूस का सेंट पीटर्ज़बर्ग, स्पेन का बारसिलोना, जर्मनी का फ़्राइबर्ग, क्यूबा का हवाना, पाकिस्तान का लाहौर और सेनेगाल के डाकार नगर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
इस्फ़हान का इतिहास बहुत उतार-चढ़ाव भरा रहा है। विभिन्न कालों में इसे बहुत अधिक क्षति पहुंची लेकिन इसने पुनः प्रगति की। इस शहर के अधिकतर अवशेष इस्लाम के बाद के काल विशेष रूप से सलजूक़ी व सफ़वी काल के हैं। इन अवशेषों में मस्जिदें, सराएं, चौराहे, पुल और सड़कें शामिल हैं। इस्फ़हान शहर में वास्तुकला की विभिन्न शैलियों के उत्तम नमूने देखे जा सकते हैं। इसी तरह इस शहर के ऐतिहासिक अवशेषों में विभिन्न प्रकार के गुंबद, टाइलों के काम, चूने के काम और सुलेखन इत्यादि दिखाई देते हैं। फ़्रांस के प्रख्यात लेखक आंद्र मालरो के अनुसार इस्फ़हान की तुलना केवल दो शहरों बीजिंग व फ़्लोरेंस से की जा सकती है।
इस्फ़हान, ईरान की राजधानी तेहरान के 435 किलो मीटर दक्षिण में स्थित है और समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1570 मीटर है। ज़ायंदे रूद नदी, जिसका उद्गम ज़र्दकूह से होता है, इस शहर के अस्तित्व में आने व प्रगति का एक मुख्य कारण है। इस्फ़हान उन शहरों में से एक है जो ईरान के पठार में स्थित हैं। अनेक विशेषज्ञों का कहना है कि पीशदादियान शासन श्रंखला के तीसरे शासक तहमूरिस ने इस शहर की आधारशिला रखी थी। जब सिकंदर ने ईरान पर हमला किया था उस समय इस्फ़हान गाबीव जाति का केंद्र था। हख़ामनेशी शासन काल में, मुख्य राजमार्गों के चौराहे पर स्थित होने और इसमें राजशाही महल स्थित होने के कारण इस्फ़हान, अहम शहरों में से एक समझा जाता था यहां तक कि यूनान के प्रख्यात भुगोलशास्त्री स्ट्रावबोन ने इस शहर को ईरान का केंद्र बताया था।
अशकानियों के शासन काल में इस्फ़हान को शासन के केंद्र के रूप में दृष्टिगत रखा गया था। इस्फ़हान की केंद्रीय भौगोलिक स्थिति और पश्चिम में दमिश्क़ व हलब और पूर्व में समरक़ंद व बुख़ारा जैसे प्राचीन व्यापारिक राजमार्गों पर स्थित होने के कारण और इसी प्रकार इस शहर में ज़ायंदे रूद नदी के बहने की वजह से इस्फ़हान को विभिन्न शासन कालों में प्रांतीय राजधानी या केंद्रीय शासन की राजधानी के रूप में चुना गया थ।
सलजूक़ी शासन काल में बड़ी संख्या में कलाकार इस्फ़हान की ओर आकृष्ट हुए। उन्होंने इस शहर में मस्जिदों, सरायों और पुलों जैसी अनेक इमारतों का निर्माण किया। यद्यपि मंगोलों के हमले के कारण इस्फ़हान भी ईरान के अन्य शहरों की तरह उजड़ने लगा था लेकिन शाह अब्बास ने वर्ष 977 हिजरी में इस शहर को सफ़वी शासन की राजधानी के रूप में चुन कर इसे पुनः आबाद कर दिया। शाह अब्बास ने कुछ ही बरसों में इस्फ़हान को भव्यता के शिखर पर पहुंचा दिया और उसे एक अंतर्राष्ट्रीय राजधानी के रूप में परिवर्तित कर दिया जहां यूरोप और सुदूर पूर्व के प्रतिनिधि और व्यापारी पहुंचने लगे। आज इस्फ़हान, तेहरान व मशहद के बाद ईरान का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर है। इसी तरह पर्यटकों की दृष्टि से यह नगर मशहद के बाद दूसरा और औद्योगिक दृष्टि से तेहरान के बाद दूसरा बड़ा शहर है।
इस्फ़हान शहर अपने अत्यधिक आकर्षणों के साथ ईरान में पर्यटन का ध्रुव माना जाता है। इसी तरह इस शहर की अर्थव्यवस्था, इसके आस पास के क्षेत्रों में कृषि व पशुपालन के काम से प्रभावित है। इस्फ़हान में मधुमक्खी पालन और मत्स्य पालन का भी काफ़ी प्रचलन है। इस्फ़हान की अर्थव्यवस्था में उद्योगों की भी काफ़ी अहम भूमिका है। इस शहर में लोहा पिघलाने के कारख़ाने, मुबारका स्टील मिल, पोली एक्रिल के कारख़ाने, सैन्य उद्योग, खाद्य उद्योग, प्लास्टिक के कारख़ाने और इसी तरह कपड़ा मिलों को इसके प्रमाण के रूप में पेश किया जा सकता है।
उद्योग के साथ ही साथ इस शहर के आस पास मौजूद खदानों ने भी इस्फ़हान की अर्थव्यवस्था पर अत्यंत सकारात्मक प्रभाव डाला है। इन खदानों में पत्थर, सोने और सीसे की खदानों की ओर संकेत किया जा सकता है। इस्फ़हान में पर्यटकों की बड़ी संख्या के आने के कारण इस शहर में हस्तकला उद्योग भी काफ़ी विस्तृत हुआ है। यहां हस्तकला उद्योग के कलाकार अंगूठी बनाने, मीनियेचर, मीनाकारी, क़ालीन बुनने, पेंटिंग और चांदी के काम में विशेष दक्षता रखते हैं। हस्तकला उद्योग इस्फ़हान के लोगों की आय का एक अहम स्रोत बन चुका है।
इस्फ़हान के अधिकतर लोग इस्लाम धर्म व शिया मत से संबंध रखते हैं लेकिन यहां ईसाई, यहूदी और पारसी लोग भी रहते हैं। इस्फ़हान के लोग अपने विशेष लहजे में फ़ारसी बोलते हैं जो सुनने में बहुत भली लगती है।