ईरान भ्रमण- 18
हमने इस्फ़हान प्रांत के केंद्रीय नगर इस्फ़हान की यात्रा शुरू की थी।
इस्फ़हान ईरान के सबसे मशहूर, सुंदर व सबसे बड़े पर्यटन स्थलों में से एक है। इस्फ़हान प्रांत में असंख्य ऐतिहासिक अवशेष हैं और इसे इस्लामी सभ्यता की सांस्कृतिक राजधानी माना जाता है। हमने बताया था कि इस्फ़हान का इतिहास बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहा है और विभिन्न कालों में इसे बहुत अधिक क्षति पहुंची लेकिन इसने पुनः प्रगति की। फ़्रांस के प्रख्यात लेखक आंद्र मालरो के अनुसार इस्फ़हान की तुलना केवल दो शहरों बीजिंग व फ़्लोरेंस से की जा सकती है।
अशकानियों के शासन काल में इस्फ़हान को शासन के केंद्र के रूप में दृष्टिगत रखा गया था। इस्फ़हान की केंद्रीय भौगोलिक स्थिति और पश्चिम में दमिश्क़ व हलब और पूर्व में समरक़ंद व बुख़ारा जैसे प्राचीन व्यापारिक राजमार्गों पर स्थित होने के कारण और इसी प्रकार इस शहर में ज़ायंदे रूद नदी के बहने की वजह से इस्फ़हान को विभिन्न शासन कालों में प्रांतीय राजधानी या केंद्रीय शासन की राजधानी के रूप में चुना गया था।
इस्फ़हान शहर अपने अत्यधिक आकर्षणों के साथ ईरान में पर्यटन का ध्रुव माना जाता है। इसी तरह इस शहर की अर्थव्यवस्था, इसके आस पास के क्षेत्रों में कृषि व पशुपालन के काम से प्रभावित है। इस्फ़हान में मधुमक्खी पालन और मत्स्य पालन का भी काफ़ी प्रचलन है। इस्फ़हान की अर्थव्यवस्था में उद्योगों की भी काफ़ी अहम भूमिका है। इस्फ़हान में पर्यटकों की बड़ी संख्या के आने के कारण इस शहर में हस्तकला उद्योग भी काफ़ी विस्तृत हुआ है। यहां हस्तकला उद्योग के कलाकार अंगूठी बनाने, मीनियेचर, मीनाकारी, क़ालीन बुनने, पेंटिंग और चांदी के काम में विशेष दक्षता रखते हैं। हस्तकला उद्योग इस्फ़हान के लोगों की आय का एक अहम स्रोत बन चुका है।
इस्फ़हान शहर विभिन्न कालों की बची हुई अनेक मूल्य धरोहरों के कारण इतिहास के संग्रहालय में बदल चुका है और हर साल यहां दसियों लाख ईरानी व विदेशी पर्यटक सैर के लिए आते हैं। इनमें से अधिकतर लोग बसंत ऋतु में और विशेष रूप से नौरोज़ के दिनों में इस्फ़हान की सैर करते हैं। इस्फ़हान को सुंदर इस्लामी वास्तुकला, अनेक सुंदर सड़कों, छतदार पुलों, महलों, मस्जिदों और बेजोड़ मीनारों के कारण ईरानी संस्कृति में निस्फ़े जहान या आधा संसार कहा जाता है।
इस्फ़हान में मूल्यवान ऐतिहासिक अवशेष बहुत अधिक हैं और उन सभी के परिचय का समय नहीं है अतः हम उनमें से सबसे अहम व प्रख्यात अवशेषों का ही परिचय कराएंगे। हमें आशा है कि इस्फ़हान के इन सुंदर अवशेषों के बारे में जान कर आप इस नगर की यात्रा के लिए प्रोत्साहित होंगे और इस्फ़हान की यात्रा करके इसके मूल्यवान अवशेषों को निकट से देखेंगे।
इस्फ़हान के ऐतिहासिक अवशेषों की सैर में बेहतर होगा कि मैदान इमाम से, जिसे मैदाने नक़्शे जहान भी कहा जाता है, शुरुआत की जाए। इसे यूनेस्को ने वैश्विक धरोहर के रूप में पंजीकृत किया है। मैदान इमाम या इमाम स्क्वायर एक बड़ा आयताकार मैदान है जिसकी लम्बाई 500 मीटर से अधिक और चौड़ाई 165 मीटर है। इस मैदान के हर तरफ़ सफ़वी शासन काल में बनाई गई इमारतें हैं। स्क्वायर के बीच में एक बड़ा हौज़ है जिसमें लगे हुए सुंदर फ़व्वारे बहुत दर्शनीय हैं।
शाह अब्बास सफ़वी के शासन काल में इस मैदान की आधार शिला रखी गई थी। पहले इसे चोगान या पोलो के मैदान के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इस समय भी इस स्क्वायर के उत्तरी व दक्षिणी छोरों पर चोगान के दोनों पोल के खम्बे मौजूद हैं। मैदान इमाम के चारों ओर जो इमारतें हैं उनमें आली क़ापू इमारत, मस्जिदे इमाम या मस्जिदे शाह, मस्जिदे शैख़ लुत्फ़ुल्लाह और क़ैसरिया द्वार उल्लेखनीय हैं। इन इमारतों ने इमाम स्क्वायर की सुंदरता में चार चांद लगा दिए हैं। इन इमारतों के साथ यह ऐतिहासिक मैदान, एक नगों वाली अंगूठी की तरह विश्व स्तर पर ख्याति रखता है।
इन इमारतों के अलावा इमाम स्क्वायर के चारों तरफ़ दो मंज़िला 200 कमरे बने हुए हैं जो प्रायः इस्फ़हान के हस्तकला उद्योग की वस्तुओं की बिक्री के लिए दुकान के रूप इस्तेमाल होते हैं। इस स्क्वायर में विभिन्न रास्ते हैं जो इसके चारों ओर स्थित बाज़ारों की ओर जाते हैं। मैदान के चारों तरफ़ चार बाज़ार स्थित हैं जो दुकानों के माध्यम से मैदान से जुड़ जाते हैं। सफ़वी शासन काल में इनमें से हर बाज़ार किसी विशेष काम से जुड़ा हुआ था।
आज इस मैदान के पश्चिम में स्थित बाज़ार में तांबा उद्योग से संबंधित काम होते हैं। उत्तरी बाज़ार में क़ालीन और गालीचों की बिक्री होती है। पेरिस के कॉन्कर्ड स्क्वायर की तुलना में इस्फ़हान के नक़्शे जहान स्क्वायर को ऐतिहासिक दृष्टि से श्रेष्ठता प्राप्त है और यह बीजिंग के त्यान आनमेन स्क्वायर के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्क्वायर माना जाता है। यह मैदान अपने निर्माण की शैली में पाए जाने वाले समन्वय के कारण शताब्दियों से इसे देखने वाले लोगों को अचरज में डालता आ रहा है।
नक़्शे जहान स्क्वायर के पश्चिमी छोर पर आली क़ापू महल की इमारत है जो छः मंज़िला है और लगभग 1800 वर्ग मीटर पर बनी हुई है। मैदान के तल से इस महल की ऊंचाई 34 मीटर है और इसकी हर मंज़िल पर किसी विशेष कला की साज सज्जा दिखाई देती है। इस इमारत की अहम विशेषताओं में से एक प्रवेश द्वार पर ध्वनि की विशेष प्रतिक्रिया, अत्यंत सुंदर रिसेप्शन हाल, संगीत का मुख्य हाल और बैठक, मुलाक़ात, मंत्रीमंडल की बैठक और राजदूतों व अतिथियों के रहने के लिए बनाए गए 53 कमरे हैं। इस इमारत का मुख्य बोझ दीवारों और लकड़े के मोटे मोटे खम्बों पर है।
मस्जिदे इमाम भी, नक़्शे जहान या इमाम स्क्वायर की अत्यंत वैभवशाली मस्जिदों में से एक है जो स्क्वायर के दक्षिणी छोर पर स्थित है। यह मस्जिद, मस्जिदे सुलतानी, मस्जिदे जामे और मस्जिदे शाह के नाम से भी मशहूर है। मस्जिदे इमाम का निर्माण शाह अब्बास सफ़वी के शासन के 24वें साल में किया गया और इसमें टाइलों के अत्यंत सुंदर काम किया गया है। इस मस्जिद का हौज़, वैभवशाली गुंबद, सतरंगी टाइलें और एक ही आकार व कोण के बने हुए ताक़ अत्यंत दर्शनीय हैं।
इमाम स्क्वायर में स्थित एक अन्य दर्शनीय इमारत, मस्जिदे शैख़ लुत्फ़ुल्लाह है जो इसके पूर्वी छोर पर आली क़ापू महल के ठीक सामने स्थित है। यह धार्मिक स्थल शाह अब्बास सफ़वी के आदेश पर शैख़ लुत्फ़ुल्लाह अलमीसी को श्रद्धांजली अर्पित करने के लिए 17 साल में बन कर तैयार हुआ। 11वीं शताब्दी हिजरी में वास्तुकला व टाइलों के काम के उत्कृष्ट नमूने इस मस्जिद में देखे जा सकते हैं। इस मस्जिद की वास्तुकला में प्रकाश व रंगों का अत्यंत रोचक संगम देखा जा सकता है। इस मस्जिद की छत पर अन्य मस्जिदों के विपरीत कोई मीनार नहीं है और इसी तरह इसमें आंगन भी नहीं है। यह मस्जिद अपनी बेजोड़ वास्तुकला और 32 मीटर ऊंचे गुंबद के साथ हर देखने वाले को मंत्रमुग्ध कर देती है। इस वैभवशाली इमारत के वास्तुकार उस्ताद मुहम्मद रज़ा इस्फ़हानी थे। मस्जिद का प्रवेश द्वार सफ़वी काल के प्रख्यात सुलेखक अली रज़ा अब्बासी द्वारा सुल्स लीपि में लिखे गए शिलालेख से सुसज्जित है।
मैदाने नक़्शे जहान की एक अन्य सुंदर व ऐतिहासिक इमारत क़ैसरिया है जो इस्फ़हान के बड़े बाज़ार का मुख्य प्रवेश द्वार है। यह इमारत अतीत में तीन मंज़िला थी जिसमें से एक मंज़िल नक़्क़ारख़ाने की थी जो क़ाजार शासन काल में तबाह हो कर पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसकी पहली मंज़िल पर कुछ दुकानें थीं जहां से लोग ख़रीदारी किया करते थे और दूसरी मंज़िल पर दफ़्तरी काम और पत्राचार हुआ करता था। नक़्क़ारख़ाने में लोगों को समय बताया जाता था। इस मुख्य द्वार के ऊपरी भाग पर रज़ा अब्बासी के हाथों बनाई गई कुछ पेंटिंग्स दिखाई देती हैं।