Jul १०, २०१९ १५:२८ Asia/Kolkata

जापाना के ओसाका नगर में 28 और 29 जून को जी-20 का शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ।

वर्ष 1999 में जर्मनी के कोलोन शहर में संसार के सात बड़े औद्योगिक देशों की बैठक में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए जी-20 के गठन का विचार पेश किया गया था और वर्ष 2008 में इस गुट की पहली बैठक वॉशिंग्टन में आयोजित हुई थी। इस बैठक के घोषणापत्र में हर प्रकार की सब्सिडी से दूर मुक्त व्यापार पर बल दिया गया। जी-20 संसार की बड़ी आर्थिक ताक़तों और आर्थिक दृष्टि से कुछ अहम देशों तथा यूरोपीय संघ पर आधारित है। यह समूह संसार के सकल घरेलू उत्पाद के 85 प्रतिशत और कुल अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देन के 75 प्रतिशत का स्वामी है। अर्जनटाइना, दक्षिणी अफ़्रीक़ा, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, अमरीका, इटली, ब्राज़ील, ब्रिटेन, तुर्की, चीन, रूस, जापान, सऊदी अरब, फ़्रान्स, कनाडा, दक्षिणी कोरिया, मेक्सिको, भारत और यूरोपीय संघ जी-20 के सदस्य हैं।

जी-20 के सदस्यों के व्यापक भौगोलिक क्षेत्रफल और अपार आर्थिक क्षमता के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय हल्क़ों की ओर से इस गुट की बहुत आलोचना होती रहती है। इसके सदस्यों की चयन शैली पर भी नाइजीरिया व मलेशिया समेत अनेक देशों को आपत्ति है और उनका मानना है कि जी-20 के सदस्यों का चयन उनकी क्षमता व आर्थिक प्रगति के आधार पर किए जाने के बजाए संसार के सात बड़े औद्योगिक देशों विशेष कर अमरीका के राजनैतिक दृष्टिकोण के आधार पर किया जाता है और इसी लिए आरंभ से ही यह समूह अंतर्राष्ट्रीय हालात और परिस्थितियों पर प्रभाव डालने में विफल रहा है।

जी-20 पर दूसरी बड़ी आपत्ति जो स्वयं इसके आधे से अधिक सदस्यों की ओर से की जाती है, इस गुट के लक्ष्यों व कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के संबंध में अमरीका व यूरोप के औद्योगिक देशों के क्रियाकलाप व दृष्टिकोण से संबंधित है। भारत, तुर्की और इंडोनेशिया समेत जी-20 के कुछ सदस्य देशों का कहना है कि इस समूह के गठन का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर औद्योगिक व विकासशील देशों का प्रभाव और उनकी समस्याओं का समाधान है लेकिन पिछले एक दो बरसों में व्यवहारिक रूप से यह समूह संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के दो स्थायी सदस्य देशों यानी अमरीका व चीन के बीच टकराव और एक दूसरे से बदला लेने का मंच बन गया है और द्विपक्षीय मामलों में उनके मतभेदों ने जी-20 की बैठकों को प्रभावित कर रखा है।

अमरीका व चीन समेत सदस्यों के द्विपक्षीय मतभेदों के साथ ही विश्व व्यापार, पलायन, मौसम के परिवर्तन और अमरीका के एकपक्षवाद जैसे मामले भी इस बात का कारण बने हैं कि जी-20 अपने सदस्यों के बीच समरसता को मज़बूत बनाने और संसार की आर्थिक समस्याओं व कठिनाइयों को हल करने में मदद कर सके। जापान के उद्योग मंत्री हीरोशीगे सेको ने जी-20 के ऊर्जा व पर्यावरण मंत्रियों की हालिया बैठक में इस बात पर बल देते हुए कहा कि ऊर्जा व मौसम के परिवर्तन के बारे में इस गुट के सदस्यों के विचार भिन्न-भिन्न हैं और इस मामले में एकमत होना आसान नहीं है।

वैसे जी-20 के शिखर सम्मेलन के अवसर पर इस गुट के सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय व त्रिपक्षीय बैठकें भी होती हैं जो काफ़ी लाभदायक रहती हैं। इस प्रकार की बैठकें जहां देशों के आपसी सहयोग व समरसता को मज़बूत बनाती हैं वहीं अमरीका की एकपक्षवादी नीतियों के सामने रुकावट भी खड़ी करती हैं। उदाहरण स्वरूप ओसाका सम्मेलन के अवसर पर भारत, चीन व रूस के राष्ट्राध्यक्षों ने बैठक की और आपसी हितों के विषयों के अलावा कई वैश्विक मुद्दों पर भी बात की। इस बैठक के अवसर पर भारत के प्रधामनंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा।

निश्चित रूप से जी-20 के सदस्यों देश अपनी परिस्थितियों, आर्थिक हालात और भौगोलिक स्थिति के दृष्टिगत इस समूह के सम्मेलन में उपस्थिति से कुछ आशाएं रखते हैं। अमरीका, फ़्रान्स, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जी-20 की पश्चिमी शक्तियों के रूप में एक मोर्चे में हैं और उनकी कोशिश है कि प्रगतिशील देशों को संसार की आर्थिक समस्याओं के समाधान में साथ मिला कर उन्हें समस्याओं में इस तरह जकड़ दें कि यह बात पश्चिमी देशों के लिए लाभदायक सिद्ध हो।

दूसरी और अर्जनटाइना, दक्षिणी अफ़्रीक़ा, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, तुर्की, मेक्सिको और भारत जैसे देशों को जी-20 की बैठकों से आशा होती है कि आर्थिक शक्तियों के साथ सहयोग के माध्यम से मुक्त व्यापार के लिए इन देशों की मंडियों तक उनकी पहुंच बनेगी और विभिन्न तकनीकों समेत उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लाभ हासिल होंगे। ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी कोरिया और जापान, जी-20 में शामिल अमरीका के घटकों में से हैं। यद्यपि ये देश विशेष कर जापान, पर्यावरण और मौसम के परिवर्तन के संबंध में अमरीका से मतभेद रखते हैं लेकिन अंततः वे इस गुट के खेल में अमरीका के पाले में ही रहते हैं।

सऊदी अरब औद्योगिक दृष्टि से आर्थिक प्रगति के हिसाब से जी-20 के सदस्य अन्य देशों की तुलना में बहुत कमज़ोर पोज़ीशन में है और उसकी अर्थ – व्यवस्था आय के मुख्य स्रोत तेल की बिक्री पर निर्भर हैं। इस आधार पर जी-20 में सऊदी अरब की सदस्यता पूरी तरह से राजीनति से जुड़ी हुई है और इसका उद्देश्य वैश्विक आलोचनाओं के मुक़ाबले में सऊदी शासकों का समर्थन है। इस आधार पर सऊदी अरब भी, सम्मेलन में सीट भरने और जी-20 की बैठकों में अमरीका की नीतियों के समर्थन के लिए भाग लेता है। यह ऐसी स्थिति में है कि रूस और चीन इस समूह के 18 अन्य सदस्यों की तुलना में बहुत अच्छी स्थिति में है और वे जी-20 पर काफ़ी प्रभाव डाल सकते हैं।

बहरहाल जी-20 का सम्मेलन ऐसी स्थिति में जापान के ओसाका शहर में आयोजित हुआ कि अमरीका ने इस समूह के सदस्यों पर वाशिंग्टन की नीतियों के अनुसरण के लिए दबाव डालने के लिए ऊर्जा के स्थानांतरण में असुरक्षा के संकट व अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों की सुरक्षा जैसे मामले पेश किए ताकि इस समूह में चिंता पैदा करके, जो तेल आयात करने वाले मुख्य देशों का समूह है, इन देशों को वाइट हाउस की ज़ोर-ज़बरदस्ती वाली नीतियों को मानने पर विवश कर दे। ट्रम्प का यह बयान कि तेल आयात करने वाले देश अपने तेल टैंकरों की सुरक्षा को स्वयं ही सुनिश्चित करें, यह दर्शाता है कि वे मनचाहा वातावरण बना कर अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने की कोशिश में हैं।

ट्रम्प ने यह बयान ऐसी स्थिति में दिया कि फ़ार्स की खाड़ी और ओमान सागर की सुरक्षा को हमेशा ही ईरान की नौसेना ने सुनिश्चित बनाया है और वैश्विक मंडियों तक तेल के स्थानांतरण में छोटी सी भी कठिनाई नहीं आई है। इस आधार पर केवल अमरीका ही है जो ऊर्जा के स्थानांतरण की सुरक्षा को ख़तरे में डाल रहा है और वह सुरक्षा का व्यापारीकरण करने की कोशिश में है। इसके अलावा अमरीका ने यह भी दर्शाया है कि वह क्षेत्र को अशांत दिखा कर फ़ार्स की खाड़ी के दक्षिणी तटवर्ती अरब देशों को दुधारू गाय की तरह दूहते रहना चाहता है।

अमरीका के आर्थिक दबावों के मुक़ाबले में चीन के प्रतिरोध के दृष्टिगत इस बात को मानना मुश्किल है कि ट्रम्प ओसाका सम्मेलन में चीन के ख़िलाफ़ अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने में सफल हुए होंगे। चीन के मुक़ाबले में ट्रम्प का पीछे हटना और चीनी वस्तुओं पर नए टैक्स न लगाने का फ़ैसला इस बात का स्पष्ट चिन्ह है कि चीन के सामने अमरीका के हाथ बंधे हुए हैं। इस सम्मेलन से पहले ट्रम्प ने धमकी दी थी कि अमरीका, चीन से आयात होने वाली सभी वस्तुओं पर टैक्स लगाएगा लेकिन इस सम्मेलन के अवसर पर चीनी राष्ट्रपति से मुलाक़ात में वे अपने इस फ़ैसले से पीछे हट गए।

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने चीन के राष्ट्रपति से मुलाक़ात के बाद पत्रकार सम्मेलन में कहाः इफ़ेक्ट

कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि इस साल जी-20 का सम्मेलन इस दृष्टि से भिन्न रहा कि इसके अधिकांश सदस्य अमरीका के मुक़ाबले में एकमत दिखाए दिए। अलबत्ता सच्चाई यह है कि अगले साल के राष्ट्रपति चुनाव के लिए डोनल्ड ट्रम्प की कोशिशों और इस बात के दृष्टिगत की उनकी सरकार विदेश नीति में कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं कर सकी है, जी-20 के दो दिवसीय सम्मेलन में ट्रम्प का व्यवहार, रणनैतिक परिवर्तन से अधिक ज़रूरत लिए परिवर्तन समझा जा रहा है। बहरहाल इस साल भी जी-20 का शिखर सम्मेलन विभिन्न विषयों के बारे में सदस्य देशों के अलग-अलग दृष्टिकोण समेत अनेक कारणों से, पिछली बैठकों की तरह ही विफल रहा है। (HN)