क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-753
क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-753
يَا بُنَيَّ أَقِمِ الصَّلَاةَ وَأْمُرْ بِالْمَعْرُوفِ وَانْهَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَاصْبِرْ عَلَى مَا أَصَابَكَ إِنَّ ذَلِكَ مِنْ عَزْمِ الْأُمُورِ (17)
हे मेरे बेटे! नमाज़ स्थापित करो और (लोगों को) भलाई का आदेश दो व बुराई से रोको और जो भी मुसीबत तुम पर पड़े उस पर धैर्य से काम लो कि निःसंदेह यह उन कामों में दृढ़संकल्प के लिए अपरिहार्य बातों में से है। (31:17)
وَلَا تُصَعِّرْ خَدَّكَ لِلنَّاسِ وَلَا تَمْشِ فِي الْأَرْضِ مَرَحًا إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُورٍ (18)
और (घमंड से) अपना रुख़ लोगों की ओर से न फेरो और न धरती में इतरा कर चलो कि निश्चय ही ईश्वर किसी अहंकारी और घमंडी को पसन्द नहीं करता। (31:18)
وَاقْصِدْ فِي مَشْيِكَ وَاغْضُضْ مِنْ صَوْتِكَ إِنَّ أَنْكَرَ الْأَصْوَاتِ لَصَوْتُ الْحَمِيرِ (19)
और अपनी चाल में संतुलन बनाए रखो और अपनी आवाज़ धीमी रखो। निःसंदेह सबसे बुरी आवाज़ गधों की आवाज़ होती है। (31:19)