ईरानी संस्कृति और कला-43
ईरानी वास्तुकला की समीक्षा करते हुए हम इस देश में बने महलों और वैभवशाली इमारतों की बनावट तक पहुंचे थे।
यह इमारतें, ईरान में राजाओं के काल में बनाई गई थीं जो बाद के कालों में कला के प्रतीक के रूप में स्थापित हुईं। भवन निर्माण सामग्री की उच्च कोटि और निर्माण शैली के अच्छे मानदंडों के कारण इनमें से बहुत सी इमारतें आज भी मौजूद हैं। इन इमारतों को देखकर इनके बनाए जाने वाले काल की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक परिस्थितियों का भलिभांति अनुमान लगाया जा सकता है।
क़ाजारी शासन श्रंखला की समय अवधि लगभग 130 वर्ष थी। इस प्रकार क़ाजारियों ने ईरान पर 130 वर्षों तक राज किया। इस दौरान कई निकम्मे शासक सामने आए। क़ाजारी शासकों ने जनता की बुरी आर्थिक स्थिति, युद्धों और विभिन्न प्रकार की सामाजिक समस्याओं के बावजूद विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत किया। यही कारण है कि यह राजा अपने ऊपर तथा अपने निकटवर्तियों पर भारी संख्या में धन ख़र्च किया करते थे। क़ाजारी शासनकाल के शासक अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए मंहगे-मंहगे महल और इमारतें बनवाया करते थे। इस प्रकार की इमारतें उन्होंने ईरान की राजधानी तेहरान सहित कई नगरों में बनवाईं। सफवी शासनकाल में तेहरान एक विकसित नगर के रूप में उभरने लगा था इसलिए क़ाजार शासनकाल में तेहरान को राजधानी के रूप में चुना गया। जबसे तेहरान को ईरान की राजधानी के रूप में पेश किया गया उसके बाद से वहां पर महल और मंहगी इमारतें बनने लगीं। बाद में तेहरान का महत्व इतना अधिक हो गया कि क़ाजारियों ने तेहरान को ईरान के नगरों की दुल्हन के रूप में पेश किया।
विशेषज्ञों के अनुसार क़ाजारी शासनकाल में क़ाजारी वास्तुकला में महलों का निर्माण सर्वोपरि रहा। इस काल की वास्तुकला को तीन चरणों में विभाजित किया गया है। नासिरुद्दीन शाह से पहले की वास्तुकला, नासिरुद्दीन काल की वास्तुकला और नासिरुद्दीन काल के बाद की वास्तुकला। वास्तुकला का यह वर्गीकरण नासिरुद्दीन शाह के सत्तकाल के आधार पर किया गया है। नासिरुद्दीन शाह से पहले की वास्तुकला में नवीनता बहुत ही कम थी। इसमें अतिश्योक्ति से भरा हुआ टाइल्स का काम किया जाता था और ईंट से बनी इमारतों में रंगों का प्रयोग बहुतायत से पाया जाता था। यही इस काल की वास्तुकला की विशेषताएं थीं।
दूसरा काल नासिरुद्दीन शाह की यूरोप यात्रा से आरंभ हुआ। वे मौज-मस्ती के लिए यूरोप गए थे। उनकी इस यात्रा ने उन्हें यूरोप की वास्तुकला का दीवाना बना दिया था। नासिरुद्दीन शाह के शासनकाल में तेहरान में पुनर्जागरण काल की शैली पर आधारित इमारतें बनाई जाने लगी थीं। इस काल में ईरान की वास्तुकला में त्रिकोणीय छतें बनाए जाने की शैली आरंभ हुई। उस काल में यूरोपीय शैली के बंगलों के आधार पर क़िले और धनवान लोगों के घर बनाए जाने लगे थे। इस काल की विशेषताओं में पत्थरों पर जटिल आकृतियों को उकेरना और स्तंभों को अधिक सुन्दर बनाने के लिए उनपर प्लास्टर आफ पैरिस का प्रयोग करने जैसे काम प्रचलित था। इस दौर में ईरान की पारंपरिक वास्तुकला शैली के प्रतीक बहुत ही कम दिखाई देते थे जैसे जलपरियों और शेरों की आकृतियां तथा चूने से काम की हुई रंगारंग इमारतें बहुत ही कम दिखाई देती थीं। नासिरुद्दीन काल के बाद की वास्तुकला अर्थात तीसरे काल की वास्तुकला में विदेशी कला, ईरानियों के घरों के भीतर तक पहुंच गई। इस प्रकार से यह कला, अपने पारंपरिक तत्वों से दूर होती चली गई।
ईरान की वास्तुकला में स्तंभों का निर्माण लगभग समाप्त होने लगा था किंतु क़ाजारी काल के अंत में शहरों की वास्तुकला में स्तंभ फिर से दिखाई देने लगे। इस काल में महलों, पुराने मुहल्ले के घरों, दुकानों यहां तक कि आम घरों में भी स्तभों का निर्माण प्रचलित हो गया। यह स्तंभ सामान्यतः बेलनाकार हुआ करते थे। इन बातों के दृष्टिगत हम यह कह सकते हैं कि क़ाजारी काल की वास्तुकला, पश्चिमी वास्तुकला से प्रभावित रही है। उस काल के विख्यात वास्तुकार अली मुहम्मद ख़ान सानेई जैसे वास्तुकारों ने पश्चिमी शैली के बने घरों के चित्रों के आधार पर ईरानी घर बनाने आरंभ कर दिये थे।
इस प्रकार की इमारतों में गुलिस्तान महल का नाम लिया जा सकता है। यह एसा महल है जिसके चारों ओर बहुत सी अन्य ऐतिहासिक इमारतें बनी हुई हैं। इमारतों का यह काम्पलेक्स, क़ाजारी काल में विस्तृत होता गया जो काज़ारी शासकों के प्रयोग में रहा। गुलिस्तान महल के नाम का काम्पलेक्स अपने भीतर कई इमारतें समोए हुए है जैसे शम्सुलएमारा, सलाम हाल, आईने वाला हाल, संगमरमर का सिंहासन, हीर वाला हाल, हौज़ख़ाना, रौशनदान और इसी प्रकार की कई अन्य इमारतें आदि। इस महल के इर्दगिर्द बहुत ही सुन्दर पेंटिंग को देखा जा सकता है। इन्ही सुन्दर पेंटिंग में से एक गुलिस्तान महल की कमालुल मुल्क पेंटिंग है।
यह महल ईरान के पारंपरिक घरों के अनुसार भीतरी और बाहरी दो भागों पर बंटा हुआ है। इस महल के बाहरी भाग में दारुल हुकूमत है जिसमें सरकारी कामों का विभाग सम्मिलित है। इसको चौकोर बाग़ के बीच में बनाया गया है। बाग़ के उत्तरी भाग में इसका भीतरी भाग मौजूद है। यह स्थान राजा और उसके परिवार का विश्राम स्थल था। इमारत के अगले भाग में लाल रंग का सिंहासन बना हुआ है। यह वह क्षेत्र है जहां पर सरकारी मेहमानों की आवभगत की जाती थी।
गुलिस्तान महल में कई हाल हैं जिनमे से एक, सलाम हाल है। सन 1873 ईसवी में यूरोप की यात्रा में नासिरुद्दीन शाह ने निर्णय लिया था कि वे अपने महल में उसी प्रकार का संग्रहालय बनवाएंगे जैसे यूरोप में बने हुए हैं। अपने इसी लक्ष्य को पूरा करने के उद्देश्य से उसने गुलिस्तान बाग़ के उत्तर पश्चिम में शीशे का हाल बनवाया और साथ ही सलाम हाल बनवाया जो संग्रहालय था। इसके हाल को बहुत ही ख़ूबसूरत बनाया गया था और इसकी दीवारों तथा छतों को सुसज्जित किया गया था। हालांकि इस हाल में दीवारों की साज-सज्जा, आईनेकारी तथा अन्य कामों ने उसे देखने में तो सुन्दर बना दिया है किंतु इसे देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि उसमें कौन सी वास्तुकला शैली का प्रयोग किया गया है। गुलिस्तान की इमारतों और वहां के बने हाल में स्तंभों को इतनी सुन्दरता से सजाया गया है कि इसका उदाहरण विगत में ईरानी वास्तुकला में दिखाई नहीं देता। इसमें इमारत की खिड़कियों पर घूप को रोकने के लिए जो "आफ़ताबगीर" बनाए गए हैं वे इस प्रकार से बनाए गए हैं कि धूप, कमरों के भीतर तक आती है जिसके कारण इमारत के भीतर अधिक गर्मी हो जाती है।
तेहरान में एक महल का नाम नेयावरान है। नेयावरान, प्राचीनकाल में अर्थात क़ाजारी काल में एक गांव था जो तेहरान के निकट था। यह बहुत ही हराभार क्षेत्र था। यहां की जलवायु बहुत ही अच्छी थी। फ़तेहअली शाह ने इस क्षेत्र की जलवायु से प्रभावित होकर नेयावरान क्षेत्र को अपने नियंत्रण में कर लिया। उसने वहां पर बनी इमारतों को तुड़वा दिया और वहां पर दो मंज़िला इमारत बनाई। इस इमारत में की गई आईनाकारी पूरे ईरान में अदवितीय है। इस इमारत के चारों ओर कुछ बिल्डिंग बनी हुई है जिसमें शाह से संबन्धित लोग रहते हैं। यहां पर सैनिक और भोजनालय भी है। इस महल के प्रवेश द्वार क्रिसेंट के आकार के बने हुए हैं।
इतना सुन्दर महल बनवाने के बाद भी नासिरुद्दीन शाह ने महलों के निर्माण का काम नहीं छोड़ा बल्कि अपने सत्ताकाल में साहेब क़रानिये नामक अन्य महल बनवाया। यह महल मेहमानों के लिए बनवाया गया था। इसके अतिरिक्त एक अन्य महल भी है जिसका नाम है सल्तनताबाद। इसमे भी कई इमारते बनी हुई हैं। इसमें फव्वारों वाला सुन्दर स्वीमिंगपूल है। इससे मिली हुई चार मंज़िला एक इमारत है जिसका भूमिगत भाग नौकरों से विशेष है। इसको भी बहुत ही सुन्दर ढंग से सजाया गया है। इसी के साथ क़ाजारी शासनकाल में तेहरान के ही भीतर कई अन्य इमारतें और महल बनवाए गए जिनके नाम इस प्रकार हैं, सअदाबाद काम्पलेक्स, इशरताबाद महल, फ़ीरूज़े महल, सुलैमानिया महल और बहारिस्तान महल आदि। जिस काल में तेहरान में यह महल बनवाए गए उस काल में तेहरान इतना विस्तृत एवं व्यापक नहीं था जितना इस समय है। यहां पर इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि पश्चिमी वास्तुकला की अंधी तक़लीद के कारण क़ाजारिया शासनकाल में कला का अर्थ ही बदल गया।
क़जारी शासन काल के बारे में ईरान के मामलों में इटली के एक विशेषज्ञ Gain Roberto Scarcia लिखते हैं कि इस काल की इमारतों विशेषकर महलों की वास्तुकला में यह ढूंढना बहुत कठिन है कि ईरानी वास्तुकला शैली कहां से शुरू होती है और यूरोपीय वास्तुकला शैली कहां पर समाप्त होती है। इस काल में यूरोपीय वास्तुकला की शैली की ईरान में बहुत कापी की गई। बाद में केन्द्रीय एशिया और क़फ़क़ाज़ के रास्ते यूरोपीय एवं रूसी वास्तुकला का मिश्रित स्वरूप ईरान में प्रविष्ट हुआ। क़ाजारी काल के अंत और पूरे पहलवी काल में पश्चिमी वास्तुकला की अंधी तक़लीद ने ईरान की पारंपरिक वास्तुकला को भुला दिया गया। इस काल में प्राचीनकाल की बहुत सी धर्मशालाओं तथा अन्य इमारतों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया। नष्ट की जाने वाली इमारतों के स्थान पर आधुनिक शैली की इमारतें बनाई गईं। यह इमारतें कला की दृष्टि से अपनी कोई पहचान नहीं रखती थीं बल्कि यहां की भौगोलिक परिस्थितियों के भी अनुकूल नहीं थीं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि उस काल की बनाई गईं इमारतें ईरान की पारंपरिक वास्तुकला शैली से बहुत दूर हो चुकी थीं।