ईरान भ्रमण- 23
हमने बताया था कि ख़ुंसार में एतिहासिक इमारतों की कमी नहीं है।
इन्हीं इमारतों में से एक इमारत का नाम "शेख अबा अदनान" है। यह इमारत ख़ुंसार के "पार्क सरचश्मे" में स्थित है। इस इमारत का संबन्ध सफ़वी काल से है। शेख अबा अदनान अपने काल के महान तत्वदर्शी थे। उनका संबन्ध छठी हिजरी से था। हालांकि शेख अबा अदनान का संबन्ध छठी हिजरी से है किंतु उनके मक़बरे का निर्माण सफ़वी काल में कराया गया था। इस मक़बरे को बहुत ही साधारण ढंग से बनाया गया है। यह बारह कोणींय इमारत है। इस इमारत के अंदर कई आत्मज्ञानियों या तत्वदर्शियों की क़ब्रे हैं।
शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने ख़ुंसार की यात्रा की हो किंतु वहां के सरंक्षित क्षेत्र "गुलिस्तान कूह" को न देखा हो। इस संरक्षित क्षेत्र में वैसे तो नाना प्रकार के फूल हैं किंतु यहां पर दुर्लभ जाति के ट्यू पाए जाते हैं। गुलिस्तान कूह वास्तव में एक दर्शनीय स्थल है जो खुंसार के दक्षिण में स्थित है। ख़ुंसार नगर से इसकी दूरी केवल 10 किलोमीटर है। यह हरा - भरा क्षेत्र बहुत ही शीतल जलवायु का स्वामी है। वसंत ऋतु में गुलिस्तान कूह, रंग-बिरंगे फूलों से भरा रहता है। इस ऋतु में यहां आपको हर ओर फूल-ही फूल दिखाई देंगे। देखने से एसा लगता है जैसे यहां पर फूलों की चादर बिछा दी गयी है। गुलिस्तान कूह में पाए जाने वाले बहुत से फूल एसे भी हैं जिनसे दावाएं बनाई जाती हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि इन फूलों के भीतर औषधीय गुण पाए जाते हैं। ख़ुंसार के गुलिस्तान कूह की सुन्दरता अप्रैल तथा मई में अपने शिखर पर होती है।
हमने यह भी बताया था कि जिन चीज़ों को लोग उपहार स्वरूप ले जाते हैं उनमें शहद सर्वोपरि है। ख़ुंसार का शहद पूरे ईरान में मश्हूर है। यहां के कुछ सूखे मेवे भी मशहूर हैं जैसे बादाम, अख़रोट तथा सूखे आलूबुख़ारे आदि। ख़ुंसार का एक अन्य उपहार गज़ है जो एक प्रकार की मिठाई होती है। यह बहुत ही स्वादिष्ट मिठाई है।
ख़ुंसार में हस्तकर्धा उद्योग का भी चलन है। यहां पर क़ालीनों की बुनाई, कच्ची मिट्टी के बरतन बनाने और क़ुरैशिया का काम भी प्रचलित है। ख़ुंसार के क़ालीन को न केवल ईरान में बल्कि ईरान के बाहर भी ख्याति प्राप्त है। यहां के सबसे मशहूर क़ालीन का नाम सारूक़ है। सारूक़ नामक क़ालीन की बुनाई ख़ुंसार के एक गांव में बहुत पहले से की जाती है। इस गांव का नाम है "वीस्त" है। इस क़ालीन में कृत्रिम रंगों का प्रयोग न करके प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है। ख़ुंसार के वीस्त गांव में ढाई सौ से भी अधिक वर्षों से क़ालीन की बुनाई का काम किया जा रहा है। इस गांव के अतिरिक्त भी कई स्थानों पर क़ालीनों की बुनाई होती है किंतु सारूक़ नामक क़ालीन, वीस्त से ही विशेष है। सारूक़ क़ालीन को सन 1391 हिजरी शमसी में पंजीकृत किया जा चुका है।
इस कार्यक्रम में हम आपको ईरान के एक अन्य एतिहासिक नगर यज़्द की यात्रा पर ले चलेंगे। यह एसा नगर है जब इसकी गलियों में चलते हैं तो कच्ची ईंटों से बने घरों को बहुत अच्छी तरह देखा जा सकता है। इसी प्रकार जब हम इस नगर की पतली - पतली गलियों में चलते हैं तो एसा लगता है कि हम पूर्वजों के पद चिन्हों पर कदम रख रहे हैं। यज़्द ईरान के सुन्दर व अद्वितीय प्रांतों में से एक है। इस नगर में बहुत से सुन्दर व प्राकृतिक आकर्षण हैं जिन्हें देखने के लिए प्रतिवर्ष हज़ारों यात्री व पर्यटक यज़्द जाते हैं।
यज़्द नगर यज़्द प्रांत का केन्द्रीय नगर है। यह कच्ची ईंटों से बना ईरान का पहला नगर है जबकि इटली के वेनिस नगर के बाद यह विश्व का दूसरा एतिहासिक नगर है। साथ ही यज़्द ईरान का पहला नगर है जिसका नाम यूनिस्को के सांस्कृतिक नगरों की सूची में है। यज़्द के अंदर कला, संस्कृति और सभ्यता के ख़ज़ाने हैं। धार्मिक व पवित्र इमारतें, मस्जिदें, इमामबाड़े, पार्सियों के दर्शनीय स्थल, एतिहासिक मकान, जलभंडार,एतिहासिक बाग़, वायु की निकासी के विशेष चैनल और बाज़ारों की ओर संकेत किया जा सकता है। इस नगर में मौजूद सुन्दर आकर्षणों के दृष्टिगत इसकी कुछ प्रसिद्ध उपाधियां भी हैं। जैसे बादगीरों का नगर, दारुल इबादत, दारुल इल्म, दारुल अमल, साइकलों का नगर, मीठाइयों का नगर, भूमिगत नहरों का नगर और इसी प्रकार आग और सूरज का नगर भी यज्द नगर की एक उपाधि है।
यज़्द नगर का भ्रमण, नगर के एतिहासिक चौराहे अमीर चख़माक़ से आरंभ कर रहे हैं। इस नगर की जो विभिन्न बाज़ार, मस्जिदें, इमाम बाड़े, जलभंडार, दूसरी एतिहासिक व धार्मिक इमारते हैं उनमें इस चौराहे को महत्वपूर्ण और एतिहासिक स्थान समझा जाता है। इसी प्रकार इस चौराहे को यज़्द नगर का महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल समझा जाता है। यज़्द की जिन इमारतों का उल्लेख किया गया उनमें से हर एक की अपनी विशेष विशेषताएं हैं जो इन इमारतों के मूल्यों में वृद्धि कर देती हैं और इसी कारण इन समस्त इमारतों का पंजीकरण ईरान की राष्ट्रीय धरोहर की सूची में किया जा चुका है।
अमीर चखमाक़ चौराहा नवीं हिजरी क़मरी और ईरान पर तैमूरियों के शासन काल का चिन्ह है और इसका निर्माण अमीर जलालुद्दीन चखमाक़ ने कराया था। अमीर जलालुद्दीन चखमाक़ शाहरुख तैमूरी शासक थे। जब यज़्द का शासन उन्हें सौंपा गया तो उन्होंने अपनी पत्नी फातेमा खातून के सहयोग से इमाम बाड़े, चौराहे, सार्वजनिक स्नानगृह, सराय, भूमिगत नहरों और ठंडे पानी के कुओं का निर्माण कराया। अमीर चख़माक़ नाम का जो चौराहा है इसके आस- पास की जो इमारतें हैं उनमें समय के साथ- साथ बहुत परिवर्तन हुए हैं परंतु आज जो कुछ नज़रों के सामने हैं वे एतिहासिक अवशेष हैं जो हर दर्शक का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करते हैं।
अमीर चखमाक़ चौराहे की एक देखने वाली चीज़ इसके पूरब में स्थित एक बहुत बड़ा नख्ल है। यह नख्ल हैदरियों के नाम से मशहूर है। यह नख्ल लकड़ी का बहुत बड़ा ताबूत है और मोहर्रम के महीने में बहुत से लोग एक दूसरे के साथ मिकलकर इसे अपने कंधों पर उठाते और घुमाते हैं। समय के प्रसिद्ध साहित्यकार, शायर और लेखक अब्दुल हुसैन का कहना है कि इसके अतीत का संबंध 450 हिजरी कमरी और सफवी काल से है और 1229 हिजरी कमरी से यह यज़्द के अमीर चखमाक़ चौराहे पर है।
मोहर्रम के पहले 10 दिनों में यह ताबूत काले और हरे कपड़े से ढ़का रहता है और शेष दिनों में वह मस्जिदों और इमाम बारगाहों में रखा रहता है। इस ताबूत की लंबाई पांच बटा आठ वर्गमीटर और ऊंचाई भी इतनी है। यह यज़्द प्रांत का सबसे बड़ा ताबूत है। यह जालीदार ताबूत है और इसमें लकड़ी के बड़े- बड़े टुकड़े लगे हुए हैं और देखने में वह सर्व के पेड़ जैसा प्रतीत होता है जो आज़ादी का प्रतीक है।
यज़्द प्रांत की सुन्दर व एतिहासिक इमारतों में से एक मस्जिदे अमीर चख़माक़ है। यह मस्जिद अमीर चख़माक़ चौराहे के दक्षिण में स्थित है और उसके निर्माण का कार्य 841 हिजरी कमरी में पूरा हो गया।
इस मस्जिद में दो बड़े- बड़े हाल हैं। एक शीतऋतु के लिए जबकि दूसरा ग्रीष्मऋतु के लिए। जिस हाल का निर्माण गर्मी के मौसम के लिए किया गया है उसके मेहराब के ऊपर एक बहुत सुन्दर हवा की निकासी का मार्ग है जबकि ठंडक के मौसम के लिए निर्मित हाल के संबंध में ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि इस हाल के दोनों सिरों से इसमें प्रवेश किया जा सकता है और उसके अंदर मरमर के जो पत्थर लगे हुए हैं उन्हीं से उसके प्रकाश की आपूर्ति होती है।
इसी प्रकार इस मस्जिद के ऊपर एक टेढ़ा और चटख़ा हुआ गुंबद है जो सुन्दर टाइलों से सुसज्जित है और इस गुंबद के चारों ओर कूफी लीपि में पवित्र कुरआन की आयतें लिखी हुए हैं।
इसी प्रकार मस्जिद का जो अस्ली मेहराब है उसे सुन्दर टाइलों से सजाया गया है और इसी प्रकार उसके मध्य मरमर के पत्थर को तराश कर बहुत ही सुन्दर ढंग से लगाया गया है। इस मस्जिद का जो गर्म खाना या जमाअत ख़ाना है उसमें लकड़ी दो दरवाज़ें हैं और दरवाज़ों के दोनों पटों पर ला इलाहा इल्लल्लाह, मोहम्मदुर्रसुल्लल्लाह व अलीयुन अलीउल्लाह नस्ख़ लीपि में लिखा हुआ है।
अमीर चख़माक़ चौराहे के पूरब में एक बाज़ार है। इस बाज़ार की इमारतों का निर्माण नेज़ामुद्दीन हाजी कंबर जहांशाही ने कराया है। जब वह जहांशाह क़रेअ कूबुनलू के आदेश से सत्ता में पहुंचे तो उन्होंने यज़्द में बहुत सी इमारतों का निर्माण कराया और उनमें से एक हस्त उद्योग की वस्तुओं के क्रय- विक्रय के लिए इमारतों का निर्माण है और आज उसे बाज़ारे हाजी कंबर के नाम से जाना जाता है।
13वीं हिजरी क़मरी में इस बाज़ार से पहले इमाम बाड़े की भांति एक सुन्दर व ऊंची इमारात का निर्माण किया गया था और इसे टाइलों के काम से सुसज्जित किया गया है। इसी प्रकार इस इमारत को यज़्द नगर का प्रतीक समझा जाता है।
इस बाज़ार में कपड़ों की बिक्री के अलावा सोने और फर्श की भी दुकानें हैं। साथ ही इस बाज़ार में मेंहदी के पत्तों को कूटा व पीसा जाता है और उससे प्राकृतिक रंग हासिल किया जाता है। इसी प्रकार तिल से हल्वा बनाने और ऊनी व काटन के धागों को रंगने की दुकाने भी हैं जिनकी वजह से बाज़ार की सुन्दरता व आकर्षण में चार चांद लग गया है।
चख़माक चौराहे के उत्तर में बी बी फातेमा ख़ातून की समाधि है। बी बी फातेमा खातून अमीर चखमाक की पत्नी हैं। उन्होंने एक मस्जिद और इस चौराहे का निर्माण कराया है। उन्होंने क्षेत्र के विकास की दिशा में बहुत प्रयास किया है। नवीं हिजरी कमरी में उनका देहांत हो गया और लोग उनकी सेवाओं की वजह से उन्हें याद करते हैं। उनकी समाधि एक कमरे के अंदर है जिस पर शंकुआकार गुंबद बना है और उस गुंबद को हरे रंग की टाइलों से सजाया गया है। कमरे के आंतरिक भाग पर चूने का काम किया गया है और कमरे के अंदर और बाहर कुछ सुन्दर व विशेष टाइलों के जो काम किये गये हैं उसने बीबी फातेमा खातून की समाधि पर बनी इमारत को विशेष सुन्दरता प्रदान कर दी है।
अमीर चख़माक़ ने जिन चीज़ों का निर्माण कराया है उनमें जलभंडार भी हैं। एक जलभंडार फातेमा खातून की समाधि के सामने है और आज उसका प्रयोग प्राचीन व पारमंपरिक ईरानी व्यायामशाला के रूप में होता है। एक अन्य जलभंडार बाज़ार के पास स्थित है और आज उसे यज़्द वाटर संग्रहालय का एक भाग समझा जाता है।