Sep ३०, २०१९ १७:२७ Asia/Kolkata

अच्छी ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए सामाजिक संबंधों का अच्छा होना ज़रूरी है।

महान ईश्वर ने इंसान को इस प्रकार पैदा किया है कि उसकी बहुत सी शारीरिक व आत्मिक ज़रूरतें सामाजिक संबंधों से ही पूरा होती हैं। एक व्यक्ति सबसे अलग- थलग रहकर न तो ज़िदगी गुज़ार सकता है और न ही जीवन का आनंद ले सकता है। स्वाभाविक व प्राकृतिक रूप से इंसान को दूसरे इंसान के साथ संबंध रखने की ज़रूरत है और इसी कारण मित्रता अस्तित्व में आती है और समरसता व सहानुभूति बसंतऋतु की कलियों की भांति खिलती है। परिवारों, दोस्तों, सहकर्मियों और पड़ोसियों आदि के साथ संबंध इंसान के व्यक्तित्व के परिपूर्ण होने के सूचक हैं। दूसरों के साथ अच्छे संबंधों की कुंजी अच्छी व मृदुवाणी है।

दूसरों से संबंध स्थापित करने का सबसे पहला मार्ग दूसरों से वार्ता करना है। प्राचीन समय से कहते हैं कि सलाम, कलाम यानी वार्ता की और वार्ता पहचान की भूमिका है। कितनी अच्छी बात है कि इंसान दूसरों से अच्छी से अच्छी शैली में बात करें और अपनी वार्ता के दौरान अच्छे शब्दों व वाक्यों का प्रयोग करें। अलबत्ता अच्छी तरह बात करने का यह अर्थ नहीं है कि दूसरों को खुश करने वाली बातें करें और उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लें बल्कि अच्छी वह बात है जो सही हो और उसे अच्छे शब्दों में बयान किया जाये।

समस्त समाजों और आसमानी धर्मों में अच्छी और सही बात करने पर बहुत महत्व दिया गया है और उसके कुछ शिष्टाचार हैं जिनका ध्यान रखने से इंसान का मूल्य व महत्व बढ़ जाता है और अच्छी तरह बात करने से बहुत सी समस्याएं अस्तित्व में ही नहीं आती हैं जबकि अगर सही तरह से बात न की जाये तो वे समस्याएं अस्तित्व में आ सकती हैं जिनकी कल्पना भी इंसान नहीं किये होता। एक पुरानी ईरानी कहावत है कि हर बात की एक जगह होती है और बिन्दु का एक स्थान होता है। कहते हैं कि जब तक इंसान ज़बान नही खोलता तब तक उसकी कला और दोष छिपे होते हैं। जब इंसान बात करता है और अपनी बात के दौरान जिन शब्दों का प्रयोग करता है तो यह चीज़ उसके व्यक्तित्व सहित कई चीज़ों की सूचक होती है। इंसान जब तक बात नहीं करता है तब तक उसका व्यक्तित्व छिपा रहता है और जब बात करने के लिए ज़बान खोलता है तो उसकी कीमत समझ में आती है।

 

पवित्र कुरआन और इस्लामी हदीसों अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में अच्छी तरह से बात करने पर बहुत बल दिया गया है। इस संबंध में पवित्र कुरआन में महान ईश्वर कहता है" लोगों से अच्छी तरह से बात करो"

पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों ने भी अपने बहुत से मूल्यवान कथनों में अच्छी तरह बात करने पर बहुत बल दिया है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं जिस इंसान का ईमान अच्छा और मज़बूत होता है वह इंसान को निरर्थक बात करने से रोकता है क्योंकि लाभदायक बात, अच्छे ईमान की अलामत है।"

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम भी फ़रमाते हैं" जिस तरह तुम चाहते हो कि लोग तुमसे अच्छी तरह बात करें उसी तरह तुम लोगों से अच्छे अंदाज़ में बात करो।"

संतुलित व नपी- तुली बात करना, झूठ न बोलना, कम बोलना, अपशब्द न बोलना, गाली- गलौज न करना, अर्थहीन शब्दों का प्रयोग न करना और बातचीत में चाटुकारिता न करना जैसी बहुत सी चीज़ें अच्छी तरह बात करने के कुछ शिष्टाचार हैं।

दूसरों से अच्छा संबंध स्थापित करने और अपनी मांगों व ज़रूरतों को बयान करने और कुल मिलाकर अच्छी ज़िन्दगी के लिए, बात- चीत के शिष्टाचार को सीखना चाहिये और साथ ही यह सीखना चाहिये कि अगर सही तरह से बात नहीं किये तो बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मिसाल के तौर पर इंसान को यह सीखना व सोचना चाहिये कि अगर बात- चीत में बुरे शब्दों का प्रयोग करेगा, बातचीत में अतिवाद से काम लेगा और दूसरे का अपमान करेगा तो इससे बड़ी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं और इन चीज़ों को ज़बान की विपत्ति समझा जाता है। कभी- कभी एसा भी होता है कि एक असंतुलित बात, अपमान या दिल को कष्ट पहुंचाने वाली बात, पुरानी से पुरानी दोस्ती को खत्म कर देती है और कभी –कभी वह दोस्ती दुश्मनी में बदल जाती है।

दूसरों के रहस्यों की सुरक्षा और उन्हें फाश न करना एक परिपूर्ण इंसान का चिन्ह है और उसे बात करने का शिष्टाचार समझा जाता है। जिन लोगों के पेट में कोई बात नहीं पचती है और अवसर मिलते ही वे दूसरों के रहस्यों को लोगों के सामन उगल देते हैं ऐसे इंसानों पर कोई भरोसा नहीं करता है और ऐसे व्यक्ति से दोस्ती करने से हर इंसान भागता है। दूसरे शब्दों में उसकी छवि खराब हो जाती है और उसका व्यक्तित्व समाप्त हो जाता है। कभी एसा भी होता है कि हम अपनी बातों से दूसरों के खिलाफ अफवाह फैलाते हैं और जब अफवाह फैलाने लगते हैं तो एक प्रकार का झूठ भी बोलने लगते हैं और यह वह चीज़ है जिसे किसी भी धर्म में न केवल पसंद नहीं किया गया है बल्कि उसकी निंदा व आलोचना भी की गयी है और उसे पाप बताया गया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस संबंध में फरमाते हैं" हर वह बात लोगों से मत कह दो जो कुछ तुम सुनते हो"

फ्रांसीसी जीव विज्ञानी लामार्क कहते हैं" जब बोलने के लिए कुछ न हो तो सुनो ताकि दूसरे बोलें"

जी हां! बोलना हमेशा लाभप्रद नहीं है बल्कि कभी सुनने, चुप रहने, और कम बोलने से इंसान का मूल्य व महत्व बहुत बढ़ जाता है। जब इंसान कम बोलता है और चुप रहता है तो वह अपने अंदर ध्यान देता है और उसे बेहतर बनाने के बारे में सोचता है। कम बोलने और चुप रहने से इंसान के बहुत से दोष छिपे रहते हैं और इंसान लज्जित व शर्मिन्दा होने से बच जाता है।

अधिक बोलने की निंदा करते हुए हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं" जो इंसान अधिक बोलता है वह ग़लतियां भी अधिक करता है और जिसकी ग़लतियां अधिक होंगी उसका दिल मर जायेगा और जिसका दिल मर जायेगा उसका ठिकाना नरक होगा।"

जब इंसान बोलना आंरभ करता है तो बेहतर है कि इंसान बोलने से पहले सोच ले और उसके परिणाम के बारे में विचार कर ले। प्राचीन समय के लोग बड़ी अच्छी बात कहते थे कि बात को भी खाने की तरह अच्छी तरह पकना चाहिये जब पक जाये तब बयान करना चाहिये। बात के पकने का अर्थ यह है कि बोलने से पहले इंसान को सोचना चाहिये कि क्या बोलने जा रहा है। जो इंसान पहले सोचता है फिर बोलता है वह बहुत सी ग़लतियों व समस्याओं से बचा रहता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं ज़बान एक जानवर है अगर उसे छोड़ दिया जाये तो फाड़ खाये।"

जब कभी कोई बात सोचे- समझे बिना मुंह से निकल जाती है तो उसका जो परिणाम होगा उसे नहीं रोका जा सकता। कभी इंसान के मुंह से ऐसी बात निकल जाती है जो द्वेष का कारण बनती है और कभी- कभी यह भी वह होता है कि उससे गलत निष्कर्ष निकाला जाता है और उससे समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। उस वक्त जिस इंसान के मुंह से यह बात निकली होती है वह शर्मिन्दा होता है और दिल ही दिल में यह कहता है कि काश कि यह बात न कही होती और यह बात कहने से पहले थोड़ा सोच लिया होता किन्तु इस पछतावे का कोई फायदा नहीं है और बात मुंह से निकल चुकी है। इसलिए इंसान को चाहिये कि बोलने से पहले थोड़ा सोच ले दूसरे शब्दों में सोच, ज़बान का ब्रेक है और यह ब्रेक ज़बान से न तो अप्रिय बात निकलने देगा और न ही इंसान को पछताने का अवसर देगा।

यूनानी दार्शनिक अरस्तू से पूछा गया कि बेहतरीन बात क्या है? तो उन्होंने कहा कि जो बात बुद्धि के अनुसार हो, उनसे फिर पूछा गया कि उसके बाद कौन सी बात अच्छी है? तो कहा कि वह बात जिसे सुनने वाला स्वीकार करे। फिर पूछा गया कि उसके बाद कौन सी बात अच्छी है? तो उन्होंने कहा कि वह बात जिसके अंजाम से हम इस बात से निश्चिंत हों कि इससे हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। फिर पूछा गया कि उसके बाद कौन सी बात अच्छी है तो उसके जवाब में उन्होंने कहा कि वह बात जिसके अंदर इन विशेषताओं में से कोई विशेषता न हो तो वह चौपाये की आवाज़ है!"

ऐसा बहुत देखा गया है कि जब एक इंसान बहुत क्रोध में होता है परंतु सामने वाला व्यक्ति बहुत ही ठंडे और अच्छे अंदाज में उससे बात करता है तो उसका क्रोध ठंडा हो जाता है। जो इंसान अच्छे अंदाज़ में बात करता है वह दूसरों को भी अच्छी तरह बात करने का तरीक़ा सिखा सकता है यानी वह दूसरों के लिए आदर्श बन सकता है। जब हम दूसरों के क्रोध, अपमान, गाली- गलौज या कटाक्ष आदि के सामने चुप रहते हैं या इसके विपरीत प्रेम के साथ अच्छे अंदाज़ में उसका जवाब देते हैं तो इसका उस पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और एक प्रकार से हमने उसके व्यवहार को अच्छा व बेहतर बना दिया।

विनम्र और प्रेमपूर्ण शैली में बात करना उस मीठे पवन की भांति है जो आत्मा को शांति प्रदान करता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं" अपनी ज़बान को नर्मी से बात करने और सलाम करने का आदी बनाओ ताकि तुम्हारे दोस्त अधिक हों और दुश्मन कम हों।"

पैग़म्बरे इस्लाम की एक जीवन शैली यह थी कि जब कोई आपसे कुछ मांगता था तो आप उस मांग पूरा कर देते थे या उससे नर्मी और अच्छी शैली का व्यवहार करते थे।

इंसान की बात उसके व्यक्तित्व की सूचक होती है। जो इंसान सभ्य व शालीन होता है वह कभी भी अपने मुंह से बुरे शब्द नहीं निकालता। चाहे सामने वाला पक्ष अभद्र शब्दों से उसका अपमान ही क्यों न करे। अच्छे इंसान हमेशा अच्छी वाणी बोलते हैं और अपनी बात- चीत में सदैव अच्छे व उचित शब्दों का प्रयोग करते हैं। यही नहीं जो सभ्य इंसान होते हैं वे बात-चीत में आवाज़ और कहने के अंदाज़ को भी ध्यान में रखते हैं। बातचीत में अंदाज़ और विनम्रता का बहुत अधिक महत्व व प्रभाव है। कभी- कभी ऐसा भी होता है कि अगर बात-चीत अच्छे और नर्म अंदाज में होती है तो कहने और सुनने वाले के मध्य मधुर संबंध स्थापित हो जाते हैं और यह मधुर संबंध जिगरी दोस्ती में बदल जाते हैं।

कभी- कभी यह भी होता है कि अगर बात चीत का अंदाज़ अच्छा नहीं होता है तो कहने वाले का इरादा न भी हो तब भी बात का ग़लत अर्थ निकाल लिया जाता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं" इंसान अपनी ज़बान के नीचे छिपा होता जब वह बोलता है तो पहचाना जाता है।"

बहरहाल अगर हम अच्छी बात की विशेषता बयान करना चाहें तो कुछ बिन्दुओं की ओर संकेत कर सकते हैं। अच्छी बात की बहुत विशेषताएं हैं। अच्छी बात की एक विशेषता यह है कि झूठ न बोला जाये। अच्छी बात की एक विशेषता यह है कि वह नर्मी और प्रेमपूर्ण शैली में बयान की जाये। तीसरी विशेषता यह है कि इंसान की करनी और करनी में विरोधाभास न हो यानी वह बात इंसान के कर्म के खिलाफ न हो। अच्छी बात की चौथी विशेषता यह है कि बात थका देने वाली न हो बल्कि कम, अर्थपूर्ण और संतुलित हो इस प्रकार से कि वह कहने वाले के स्थान को कम न करे। अच्छी बात की पांचवी विशेषता यह है कि वह तार्किक व संतुलित हो यानी उसका आधार तर्क हो और वह सबकी समझ में आये और सुन्दर व अच्छे शब्दों में बयान की जाये।

 

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