Apr २४, २०१६ १४:०० Asia/Kolkata
  • शिकारी, हिरन जंगली सुअर और भेड़िये

एक दिन एक शिकारी धनुष हाथ में लिए हुए जंगल में जा रहा था। थका हुआ था और उसके चेहरे से पसीना टपक रहा था।

वह रुका, धनुष और बाणों को उसने ज़मीन पर रखा और अपने चेहरे से पसीना पोंछा। चारो ओर देखा। दूर दूर तक कोई शिकार नहीं था यहां तक कि आसमान में कोई पक्षी भी पर नहीं मार रहा था। वह बड़बड़ाया और कहा: आज दिन अच्छा नहीं है। यह सब शिकार कहां चले गए? उसने वापस लौटने का निर्णय किया। अचानक झाड़ियों से उसने एक आवाज़ सुनी। उसने ज़मीन से धनुष उठाया और एक कोने में छिप गया। उसने कान लगाकर सुना। फिर से घास पर चलने की आवाज़ सुनी। कुछ देर बाद झाड़ियों के पीछे से एक सुन्दर हिरन बाहर निकला। हिरन अपनी दुनिया में खोया हुआ था, अपने चारो ओर उसका कोई ध्यान नहीं था। धीमे धीमे मस्ती भरी चाल में चल रहा था। शिकारी के होंटो पर मुस्कराहट आ गई, उसने ख़ुद से कहा, क्या शिकार है? मेरे हाथ से निकलना नहीं चाहिए। धीमे से बाण धनुष में लगाया। 

थोड़ी सी आवाज़ भी शिकार को हाथ से निकाल देती। धनुष उठाकर निशाना लगाया और पूरी शक्ति से बाण चलाया। बाण हिरन के हृदय में घुस गया। बेचारा हिरन बिना हिले ज़मीन पर ढेर हो गया। शिकारी हिरन के पास गया, उसने हिरन के शरीर से तीर बाहर निकाला। हिरन को कांधे पर डाला और गुनगुनाता हुआ घर की ओर चल दिया। उसका घर अधिक दूर नहीं था। उसके हाथ अच्छा शिकार लगा था और अब उसे थकन का एहसास नहीं था। इसी तरह क़दम आगे बढ़ाता हुआ घर की ओर जा रहा था। उसे सरसराहट सुनाई दी। खड़े होकर अपने चारों ओर देखने लगा और ख़ुद से कहा: संभव है एक और हिरन हो। अच्छा होगा कि शोर शराबा नहीं करुं। पहले उसने सोचा कि दूसरे शिकार की अब आवश्यकता नहीं है।

 

लेकिन तुरंत उसका इरादा बदल गया और उसने स्वयं से कहा, इस दूसरे का शिकार कर लेता हूं, इसे बेच दूंगा और उसके पैसों से जिन वस्तुओं की आवश्यकता है ख़रीद लूंगा। उसने शिकार को धीमे से ज़मीन पर रखा और तीर व धनुष को तैयार किया। पुनः आवाज़ सुनी। वह दूसरे हिरन के हृदय को निशाना बनाने के लिए तैयार था, लेकिन उसने अचानक एक बड़े जंगली सूअर को अपने सामने पाया कि जो दौड़कर उसकी ओर आ रहा था। तेज़ी से तीर से जंगली सूअर का निशाना लिया। तीर जंगली सूअर की गर्दन में घुस गया। लेकिन वह नहीं गिरा और गर्दन से ख़ून बहने के बावजूद वह उसी तरह दौड़ रहा था। लेकिन अब क्रोधित और अधिक ख़तरनाक हो गया था, शिकारी ने धनुष में दूसरा तीर लगाया। संभवतः इस बार जंगली सूअर को गिरा सके। लेकिन जब तक जंगली सूअर उसके पास तक पहुंच चुका था। शिकारी ने अचानक अपने ऊपर भारी जंगली सूअर को पाया। कुछ देर झड़प के बाद, दोनों घायल होकर ज़मीन पर गिर पड़े। दोनों के शरीर से काफ़ी ख़ून बह चुका था और दुर्बल एवं कमज़ोर हो गए थे।

 

शिकारी और जंगली सुआर के घाव इतने गहरे थे कि कुछ देर बाद ही दोनों हिरन की बग़ल में गिर कर मर गए। तीर और धनुष उसी तरह शिकारी के हाथ में चलने के लिए तैयार थे।

एक दर्दनाक दृश्य था। तीन शव कि जो कुछ देर पहले जीवित थे और सांस ले रहे थे एक दूसरे से कुछ ही दूरी पर ज़मीन पर पड़े हुए थे। उसी समय, एक भूखा भेड़िया वहां पहुंच गया। उसे ख़ून और मास की सुंगध आई। सुंगध की ओर गया तो उसकी आंख तीन शवों पर पड़ी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था तीन अच्छे शिकार एक साथ, इतना मास देखकर जोश में आ गया और झूमने लगा। बग़ैर किसी मेहनत के इतना खाना जो हाथ आ गया था। ज़ोर से हंसा और कहा, हे भूखे अभाग्य भेड़िए, तुझे भोजन मिल गया। खा और मौज कर। उसके बाद उसके दिमाग़ में एक विचार आया, अच्छा होगा आज उनमें से केवल एक को खा लूं और दूसरे दो को छिपा दूं। इस प्रकार कुछ दिन तक शिकार करने से बच जाऊंगा। इनके छिपाने के लिए कोई स्थान खोजूं ताकि कोई इन्हें खा नहीं सके। पहले आज का भोजन कर लूं बाद में दो को छिपा दूंगा।

 

भेड़िया शिकारी के शव को खाने गया। अभी उसने खाना भी शुरू नहीं किया था कि उसका मूंह शिकारी के हाथ में तैयार धनुष और तीर से टकरा गया, तीर धनुष से छूटा और भेड़िए को लग गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है? डगमगाकर कुछ क़दम आगे बढ़ा और उन तीन शवों से थोड़ी सी दूर जाकर ज़मीन पर गिर पड़ा और उस मास को खाने की इच्छा उसके दिल में ही रह गई।