मलिक जमशेद और अश्वमीन
कहा जाता है कि राजा ने अपने पुत्र मलिक जमशेद के लिए जो अपनी माता की औचक मौत के कारण बहुत दुखी व एकांत वासी था, एक नदी बनवाता है।
मलिक जमशेद को उससे लगाव हो जाता है और वह सारा समय वहीं गुज़ारने लगता है। मलिक जमशेद की सौतेली उसकी जान के लिए ख़तरा बन रही थी किन्तु हर बार अश्वमीन उसे विभिन्न षड्यंत्रों से सूचित करता है। सौतेली मां को जब यह पता चलता है कि अश्वमीन उसके षड्यंत्रों को फ़ाश कर देता है तो उसने अश्वमीन को रास्ते से हटाने का इरादा कर लिया। उसने बीमारी का बहान बनाया और वैध को भारी भरकम पैसा दिया ताकि वह यही बताए कि उसके रोग का एकमात्र उपचार अश्वमीन का हृदय है। नीम हकीम ने भी यही किया और राजा ने आदेश दे दिया जब मलिक जमशेद पाठशाला गया तो क़साई को बुलाया गया ताकि वह अश्वमीन का सिर, धड़ से अलग करे और महारानी को उसका दिल भून कर दे।
मलिक जमशेद हर दिन भांति पाठशाला से लौटता है और अश्वमीन के पास जाता है, वह देखता है कि अश्वमीन बहुत अधिक रो रहा है, आज तक उसने अश्वमीन को कभी इतना रोते हुए नहीं देखा। वह अश्वमीन की हालत देखकर परेशान हो गया। अश्वमीन ने उससे रुहांसे लहजे में कहा कि मालूम है क्या हुआ। तुम्हारी सौतेली मां को समझ गयी है कि मेरे बताए हुए रास्ते से तुम षड्यंत्रों से सुरक्षित रहते हो और वह मुझे अपने रास्ते से हटाना चाहती है। उसने बीमारी का बहाना कर रखा है और कहा है कि उसका एकमात्र उपचार अश्वमीन का हृदय है। तुम्हें कुछ भी नहीं बताया गया है। कल तुम जैसे ही पाठशाला जाओगे, क़साई आकर मेरा सिर धड़ से अलग कर देगा। तुम्हारे अध्यापक से भी कह दिया गया है कि उसे कल खाना खाने के लिए महल न आने देना। यह बात सुनकर मलिक जमशेद के पैरों तले ज़मीन निकल गयी, उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि अपने मित्र अश्वमीन को कैसे बचाए। मैं कल तीन बार चीख़ूंगा। पहली बार जब मुझे बाहर निकालेंगे, दूसरी बार जब मेरे हाथ पैर बाधेंगे और तीसरी बार जब क़साई मेरी गर्दन पर चाक़ू रखेगा। यदि तीसरी चीख में तुम यहां पहुंचने में सफल रहे और कोई हथकंडा अपनाने में सफल रहे तो हम दोनों राजमहल से भाग जाएंगे और यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह हमारी अंतिम भेंट होगी और फिर तुम मुझे सपने में देखोगे।
दूसरे दिन मलिक जमशेद पाठशाला जाते समय बहुत परेशान था। वह पाठशाला में तो था किन्तु उसका दिल अश्वमीन में लगा हुआ था। अध्यापक क्या कह रहा था उसकी समझ में नहीं आ रहा था। वह अभी यह सोच ही रहा था कि उसने घोड़े की पहली चीख़ सुनी। उसका हाथ पैर कांपने लगा, वह पाठशाला से फ़रार होना चाहता था कि अध्यापक ने उसे पकड़ लिया। अध्यापक ने कहा कि आज सूर्यास्त तक तुम्हें पाठशाला ही में रहना है, तुम्हें पाठशाला से बाहर जाने का कोई अधिकार नहीं है। मलिक जमशेद ने तनिक भी परेशान नहीं हुआ वह पाठशाला से भागने के प्रयास करने लगा किन्तु अध्यापक उसके मार्ग में खड़ा रहा और उसने कहा कि राजा ने उसे जाने से मना किया है और राजकुमार की बात पर ध्यान न देने को कहा है। अभी मलिक जमशेद व अध्यापक के बीच में बातें हो ही रही थी कि अश्वमीन की दूसरी चीख़ सुनाई दी। मलिक जमशेद के सामने पूरी दुनिया घूमने लगी। अचानक वह अध्यापक से हाथ छुड़ाकर भाग निकला और बिजली की भांति दौड़ने लगा। वह चाहता था कि अश्वमीन का हाथ पैर बंधने से पहले स्वयं को महल पहुंचा दे।
अंततः उसने स्वयं को महल तक पहुंचा दिया, उसने देखा कि अश्वमीन का हाथ पैर बंधा है और बेचारगी से एक कोने में पड़ा है। राजा सोच रहा था कि उसके पुत्र को कैसे पता चला । राजकुमार मलिक जमशेद ज़मीन पर लोटने लगा और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा। वह चिल्ला चिल्लाकर कह रहा था कि उसके मित्र अश्वमीन के बच्चे को क्यों मारना चाहते हो। राजा ने पुत्र को सांत्वना दी और कहा कि तुम्हारी मां बीमार है और उसका उपचार अश्वमीन के हृदय के अतिरिक्त कुछ और नहीं है। उसने कहा कि मैं दूसरा अश्वमीन तुम्हारे लिए मंगवा दूंगा किन्तु मलिक जमशेद ने घोड़े द्वारा बताए हथकंडे पर अमल किया और कहा कि उसकी एक कामना है, शाही वस्त्र धारण करने की, शाही मूकुट सिर पर रखने की और एक थैली सोने की अशरफ़ी लेकर संसार की सैर सपाटा करने की।
अब मेरी सारी कामना हवा हो गयी। राजा ने पुत्र के सिर पर हाथ फेरकर कहा कि भाग्य में यही लिखा था, मेरी पत्नी इस घोड़े से अधिक प्रिय है। मलिक जमशेद ने जिसने राजा के मन को भलिभांति तैयार कर लिया, कहा कि मुझे अब शाही वस्त्र पहनने और घोड़े पर ज़ीन बांधने और अशरफ़ी की थैली रखने और सैर सपाटे और महल का एक चक्कर लगाने की अनुमति दें ताकि मेरी दिली कामना पूरी हो। राजा बहुत प्रसन्न था कि उसका पुत्र महल का एक चक्कर लगाने पर तैयार हो गया। उसने समस्त चीज़ों का लाने का आदेश दिया।
राजकुमार ने शाही वस्त्र पहना, घोड़े पर ज़ीन कसी, पैसा रखा और सिर पर मूकुट रखा और उसके बाद घोड़े के हाथ और पैर को खोल दिया। राजकुमार उस पर बैठा और महल का कई चक्कर काटा। राजा प्रतीक्षा में था कि अब वह घोड़े से उतरे, वह उसकी ओर बढ़ा ताकि उसे ज़बरदस्ती घोड़े से उतारे किन्तु मलिक जमशेद ने घोड़े के बाल ज़ोर से पकड़ लिए और घोड़े को एड़ लगाई। एड़ लगाते ही घोड़ा हरकत में आ गया और एक छलांग लगाते ही महल की दीवार फांद गया। घोड़ा बिजली की भांति सरपट दौड़ता रहा।
राजा और उसके दरबारी यह देखकर दंग रह गये और उनकी समझ में आ गया कि लड़के ने उन्हें मूर्ख बना दिया। महारानी महल की खिड़की से यह दृश्य देख रही थी और क्रोध से लाल पीली हो रही थी। मलिक जमशेद और उसका घोड़ा भागते भागते जंगलों और पहाड़ों को पार करते हुए एक नगर पहुंचे और उन्होंने राहत की सांस ली और उनकी समझ में आ गया कि राजा और उसके दरबारी वहां तक नहीं सकते। वह नगर के बाहर रुक गये। मलिक जमशेद घोड़े से उतर गया। घोड़े ने कहाः तुम स्वयं को ऐसा बनाना होगा कि तुम राजकुमार न लगो। चूंकि यदि लोग समझ गये कि तुम राजकुमार हो तो तुम्हारे लिए इस पराये नगर में समस्या उत्पन्न हो जाएगी। मैं भी तुम्हारे साथ नहीं चल सकता। क्योंकि तुम्हारे जैसा निर्धन लड़का इतना मूल्यवान घोड़ा नहीं रख सकता। बेहतर यही है कि मेरे कुछ बालों को काट दो और जब भी तुम समस्या में ग्रस्त हो तो इनमें से कुछ बालों को आग में डाल देना।