Apr २४, २०१६ १४:०४ Asia/Kolkata
  • राजा और सुनार

पुराने समय की बात है एक शहर में एक सुनार रहता था।

 वह हर दिन सूर्योदय से पहले अपनी दुकान पर पहुंच जाता था। उसकी दुकान शासक के महल के सामने थी। वह अपनी दुकान खोलने से पहले अपने हाथ और चेहरे को आसमान की तरफ़ करता और कहता थाः हे तत्वदर्शी, हे आजीविका देने वाले, तेरी शक्ति असीम है और तू हर चीज़ की क्षमता रखता है। यदि कोई चीज़ समुद्र की गहराई में हो तो उसे ख़ुश्की पर लौटाने की ताक़त रखता है। यह कहने के बाद वह अपनी दुकान का दरवाज़ा खोलता था। जिस समय सोनार ईश्वर से दुआ करता उस समय शासक बिस्तर पर होता था और उसके कमरे की खिड़की खुली रहती थी। सोनार की दुआ को शासक अपनी मीठी नींद में विघ्न समझता था। एक दिन सोनार की दुआ की आवाज़ से शासक की आंख खुल गयी और उसने चिल्लाकर कहाः यह कौन है जो हर सुबह मुझे अपनी आवाज़ से कष्ट देता है और मेरे सुकून व मीठे स्वप्न में बाधा बनता है।

 

 

शासक ने सेवकों को पुकारा और उनसे पूछा तो समझ गया कि वह एक सोनार है जिसकी दुकान उसके महल के ठीक सामने है। शासक ने अपनी नींद को भंग करने वाले सोनार को पाठ सिखाने की ठान ली। शासक ने वज़ीर को बुलाया और अपनी हीरे की अंगूठी ली और उसके साथ महल से निकल कर सोनार की दुकान की ओर बढ़ा।

 

 

सोनार शासक को अपनी दुकान के सामने देख कर अवाक रह गया। शासक ने अपनी मूल्यवान अंगूठी सोनार को दिखाई और कहाः यह हीरे की अंगूठी है जिसकी क़ीमत हज़ारों सोने के सिक्के हैं। मैं इसके गुम होने की ओर से डरता हूं। इसलिए तुम्हारे पास आया हूं ताकि एक रंगीन शीशे की अंगूठी बिल्कुल इस जैसी मेरे लिए बनाओ ताकि उसे पहनूं और क़ीमती अंगूठी को केवल महत्वपूर्ण सभाओं में पहनूं। इसके बाद शासक ने अपनी अंगूठी सोनार को दी और उससे इसकी रक्षा करने के लिए कहा।

 

 

सोनार ने अंगूठी ली और उसे एक छोटे से संदूक़ में रखा और फिर उसे तिजोरी में रख दिया। इससे पहले कि सोनार तिजोरी के पट को बंद करता शासक ने उससे एक गिलास पानी मांगा। सोनार उसी समय पानी लेने चला गया। जैसे ही सोनार पानी लेने के लिए निकला शासक तेज़ी से उठा और उसने तिजोरी का पट खोल कर उसमें से अंगूठी निकाली और अपने जेब में रख ली। उसी समय सोनार भी पहुंच गया और शासक को उसने पानी का गिलास दिया। शासक ने सोनार से कहा कि उसके जाने से पहले तिजोरी को बंद करे। सोनार ने वैसा ही किया। शासक ने कहाः मैं तुम्हें तीन दिन का समय देता हूं नई अंगूठी बनाने के लिए। चौथे दिन की सुबह नई और असली अंगूठी मुझे चाहिए। अंगूठी को सुरक्षित रखना यदि ग़ाएब हो गयी तो तुम्हारा गर्दन मरवा दूंगा। यह कह कर शासक अपने वज़ीर के साथ समुद्र के तट की ओर बढ़ गया। तट पर पहुंच कर शासक एक नाव पर सवार हुआ और काफ़ी दूर जाने के बाद उसने बीच समुद्र में अंगूठी गिरा दी और फिर महल लौट गया।

 

 

सोनार ने अपनी दुकान बंद की ओर तेज़ी से अपने घर गया। घर जाकर सोनार ने सारी बात अपनी बीवी को बतायी। बीवी ने कहाः तुरंत दुकान जाइये। नई अंगूठी बनाने से पहले शासक की अंगूठी को यूंही नहीं छोड़ना चाहिए। क्या शासक ने आपसे यह नहीं कहा कि अगर अंगूठी गुम हुयी तो गर्दन मार दी जाएगी। जल्दी जाइये और एक क्षण के लिए अंगूठी को अपने पास से अलग मत कीजिए।

 

 

सोनार तेज़ी से दुकान लौटा। तिजोरी खोल कर उसमें से उस छोटे डिब्बे को निकाला जिसमें अंगूठी रखी थी किन्तु क्या देखता है कि डिब्बा ख़ाली है। आश्चर्य में पड़ गया कि अंगूठी कैसे गुम हो गयी। उसी समय सोनार की बीवी पति के लिए खाना लेकर दुकान पहुंची तो क्या देखती है कि उसका पति दुखी है। पति ने बीवी से कहा कि अंगूठी गुम हो गयी है। बीवी ने मुंह पीट लिया और पूरा दिन पति के साथ अंगूठी ढूंढती रही किन्तु ढूंढना बेकार था।

 

 

तीन दिन गुज़र गए। राजा ने सोनार की आवाज़ न सुनी। राजा ने वज़ीर को बुलाया और कहाः मेरी चाल सफल रही। सोनार ने वह दुआ पढ़ना छोड़ दी जिसके द्वारा वह हर रोज़ मुझे नींद से उठाता था किन्तु चौथे दिन राजा फिर सोनार की दुआ की आवाज़ से उठा। राजा ग़ुस्से में सोनार की दुकान पहुंचा। राजा का नौकर भी तलवार लिए उसके पीछे दुकान पहुंचा। राजा, सोनार को प्रसन्न देख कर ग़ुस्से से पागल हो गया और चिल्ला कर कहने लगाः तीन दिन बीत गए और वादे का समय आ पहुंचा। तुरंत दोनों अंगूठियां दो वरना सेवक तुम्हारी गर्दन उड़ा देंगे। सोनार ने बड़े संयम से तिजोरी खोली और छोटे डिब्बे को बाहर निकाला और उसमें से दो अंगूठियां निकालीं और राजा के हवाले कीं जैसे ही राजा ने अपनी असली और नक़ली दोनों अंगूठियों को देखा को चिल्लाकर कहाः यह नहीं हो सकता। मेरी अंगूठी कैसे मिली। किस प्रकार तुम मेरी अंगूठी जैसी दूसरी अंगूठी बना सके। मैने तो स्वयं इसे समुद्र में फेंका था।

 

 

सोनार ने कहाः जब मैं और मेरी बीवी अंगूठी के मिलने की ओर से निराश हो गए तो मुझमें काम पर आने का साहस नहीं था और मैं बहुत दुखी होकर घर बैठ गया। दो दिन गुज़र गए मैंने खाने पानी को हाथ न लगाया। मेरी बीवी मछली बाज़ार गयी और वहां से उसने एक बड़ी मछली ख़रीदी। जब उसका पेट चीरा तो उसमें से गंदगी से अटा हुआ एक मज़बूत छल्ला निकला। बीवी ने उसे धोया तो देखा कि वह एक अंगूठी है और उसे मुझे दिखाया। मैंने चिल्ला कर कहाः यह तो राजा की अंगूठी है। उसे लेकर मैं तुरंत अपनी दुकान पर आया और काम करने लगा। सुबह तक काम किया यहां तक कि जैसी अंगूठी आपने मुझसे कही थी उसे बनाकर तय्यार कर दिया। जब मेरा काम पूरा हो गया तो मैंने अपनी दुकान के सामने खड़े होकर वही दुआ पढ़ी जिसे आपने सुना।

 

 

राजा को अपने कान पर विश्वास नहीं हो रहा था। हतप्रभ था। हाथ बढ़ा कर सोनार को गले लगा लिया और उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर दबाते हुए कहाः पवित्र है ईश्वर! तुम वास्तव में सदाचारी हो। तुम्हारे हक़ में मैंने जो अत्याचार किया है उसकी ओर से क्षमा चाहता हूं। राजा ने अपने सेवक को आदेश दिया कि जाकर दस हज़ार दीनार लाकर सोनार को दे। उसके बाद राजा ने सोनार से कहाः मैं तुम्हें आदेश देता हूं कि हर रोज़ सुबह के समय अपनी श्रद्धापूर्ण दुआ से मुझे उठाओ। वही दुआ जो तुम पढ़ते हो कि हे बुद्धि बढ़ाने वाले और हे आजीविका देने वाले! तेरी शक्ति अपार है और तू हर चीज़ की क्षमता रखता है। यदि कोई चीज़ समुद्र की गहराई में हो तो तू उसे धरती पर वापस लाने की शक्ति रखता है।