जोज़र और शमरदल का ख़ज़ाना-५
पुराने समय की बात है जूज़र, अब्दुस्समद के साथ यात्रा पर निकला। अब्दुस्समद के पास एक जादुई ख़ुरजी थी जिससे वह जैसा खाना चाहता था निकालता था।
उन्होंने चार दिनों में चार महीने की यात्रा की और एक नगर पहुंचे जहां शमरदल का ख़ज़ान था। वह एक भव्य घर में गये जो अब्दुस्समद का था और वहां बीस दिनों तक विभिन्न प्रकार के खानों और बेहतरीन वस्त्रों से जूज़र का स्वागत हुआ। एक्कीसवें दिन वह उस तालाब की ओर चल दिए जहां ख़ज़ाना था। अब्दुस्समद ने ख़ज़ाने तक पहुंचने के समस्त चरण जूज़र को बताए और ख़तरों से निपटने के उपाय भी उसे सिखाए। उसने कहा कि उसके बाद ख़ज़ाने का द्वार तुम पर खुल जाएगा और तुम उसमें प्रविष्ट हो जाओगे और दीवार से लटके हुए पर्दे को हटा देना। पर्दे के पीछे तुम्हें सिंहासन पर बैठा हुआ शमरदल मिलेगा। शमरदल के सिर पर एक गोल सी चमकदार चीज़ होगी जिसमें दुनिया की सारी चीज़ें दिखाई देती हैं। उसकी कमर में एक जादुई तलवार बंधी हुई है, उसके हाथ में एक अंगूठी है और उसकी गर्दन में एक ज़ंजीर पड़ी है जिसमें एक सुर्मेदानी लटक रही होगी। यह चारों चीज़ों को लेबना और ख़ज़ाने से बाहर निकल आना। मैं ख़ज़ाने के बाहर तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा। जूज़र अपने स्थान से उठा और कहने कहा कि ईश्वर के भरोसे पर निकलता हूं।
अब्दुस्समद ने आग में धूप डाली और दुआएं पढ़ने लगा। अचानक जूज़र ने देखा कि नहर सूख गयी और उसके सामने एक सोने चांदी का बना हुआ बड़ा सा द्वार प्रकट हुआ। वह उसकी ओर गया। उसने द्वार पर लगी दीरे की ज़ंजीर को पकड़कर तीन बार खटखटाया। किसी ने अंदर से कहा कौन है दरजवाज़ा खटखटा रहा है। जूज़र ने कहा कि मैं जूज़र मछुआरा हूं। द्वार खुल गया। उसने अब्दुस्समद के बताए सारे चरण अंजाम दिए। उसके बाद एक के बाद एक छह दरवाज़े खुलने लगे। जूज़र सातवें दरवाज़े के निकट पहुंचा और उसे खटखटाया। दरवाज़ा खुल गया और जूज़र ने अपनी कृपालु मां का चेहरा देखा। मां ने अपने दोनों हाथों को खोलकर उसे अपनी बांहों में लेना और चूमना चाहा, जूज़र को अब्दुस्समद की बात याद आ गयी और उसने चिल्लाकर कहा कि मुझसे दूर हो जाओ और अपने ख़ोल से बाहर आओ। मां ने कहा कि यह क्या कह रहे हो बेटे, क्या तुम भूल गये कि मैं तुम्हारी मां हूं। जूज़र ने दीवार पर टंगी तलवार उठाई और उसे मां की ओर कह कर कहने लगा, तुम मेरी मां नहीं हो, शीघ्र अपने ख़ोल से बाहर आओ नहीं तों तुम्हे मार डालूंगा। मां रोने लगी और उसने उससे कहा कि मैंने तुम्हें दूध पिलाय और पाल पोस कर बड़ा किया, तुम्हारे लिए पूरी पूरी जागती थी, कष्ट सहन किए और मेरे स्नेह का यह बदला तुम दे रहे हो। जूज़र यह सुनहर ढीला पड़ने लगा, उसके हृदय में कृपा लहरे मारने लगी। उसके हाथ से तलवार गिर गयी और उसने कहा कि मां मुझे माफ़ कर दो, आपके मेरे साथ बहुत उपकार किए हैं किन्तु अभी उसकी बात ख़त्म भी नहीं हुई थी कि एक भयावह व ख़तरनाक बुढ़िया को उसने अपने सामने खड़ा पाया। उस जादूगरनी ने कहा कि जूज़र ने ग़लती की है उसे मार डालो। अचानक खज़ाने के पहरेदार चारो ओर से जूज़र पर टूट पड़े। पहरेदारों ने उसे इतना मारा कि वह बेहोश हो गया और उसे ख़ज़ाने के बाहर फेंक दिया। ख़ज़ाने का द्वार फिर से बंद हो गया और नहर पहले की भांति जारी हो गयी। जूज़र को जब होश आया तो उसने अपने पास अब्दुस्समद को देखा। वह रोने लगा और उसके साथ जो कुछ हुआ उसने उससे बताया। अब्दुस्समद एक एक आह खींची और कहा कि मैंने तुमसे कहा था कि वह तुम्हारी मां नहीं है, उसके धोखे में मत आना।
यदि तुमने उसके जादू की काट कर दी होती तो तुम ख़ज़ाने में प्रविष्ट हो गये होते। अब हमें लौटना होगा और एक दो वर्ष प्रतीक्षा तक इस दिन की प्रतीक्षा करनी होगी। तब तक तुम मेरे पास रहो। जूज़र और अब्दुस्समद शहर लौट आए। जूज़र एक वर्ष तक अब्दुस्समद के पास रहा। अंततः जिस की वह प्रतीक्षा कर रहे थे वह दिन आ गया। वह एक साथ नहर के पास गये। नूज़र छह दरवाज़ों से गुज़र गया और उसने मार्ग में आने वाले सारे जादूओं की काट कर दी। सातवें दरवाज़े को उसकी मां ने खोला। उसने दीवार पर टंगी तलवार उठाई। मां ने गिड़गिड़ाते हुए जूज़र से कहा कि अपने फ़ैसले को बदल किन्तु वह धोखे में नहीं आया और उसे अपनी ख़ोल से बाहर आने को विवश कर दिया। जादूगरनी ज़मीन पर गिर गयी और उसका खूंख़ार चेहरा सामने आया और उसके सारे जादूओं की काट हो गयी। जूज़र आगे बढ़ा और ख़ज़ाने की ओर बढ़ा उसने ख़ज़ाने का द्वार खोला और अंदर प्रविष्ट हो गया और उसने वहां से तलवार, अंगूठी, सुर्मेदानी और गोल शीशे का यंत्र उठाया और बहुत तेज़ी से ख़ज़ाने की ओर दौड़ा। हर तरफ़ से ढोल बजने की आवाज़ें आने लगी। ख़ज़ाने के पहरेदार ढोल पीट रहे थे और कह रहे कि हे जूज़र यह ख़ज़ाना तुम्हें मुबारक हो। जूज़र ख़ज़ाने से बाहर आया। अब्दुस्समद उसकी ओर दौड़ा और उसे अपनी बांहों में भर लिया। जूज़र जो चार वस्तुएं खज़ाने से लाया था उसे जूज़र के हवाले कर दिया और उसके साथ नगर वापस लौट गया। घर पहुंच कर उन्होंने खाना खाया और रास्ते की थकावट दूर की। उसके बाद अब्दुस्समद ने जूज़र से कहा कि जूज़र तुमने मेरे कारण इतना कष्ट उठाया अब तुम बताओ के तुम्हें इसके बदले में क्या चाहिए। जूज़र ने कहा कि मैं ईश्वर के अतिरिक्त किसी से कुछ नहीं चाहता किन्तु यदि तुम अपनी जादूई खुरजी मझे दे दो तो मैं तुम्हारा आभारी रहूंगा।
अब्दुस्समद ने उसे जादूई ख़ुरजी दे दी और कहा कि काश कोई महत्त्वपूर्ण वस्तु मांगते। यह ख़ुरजी तुम्हारि खाने पीने का प्रबंध करेगी और अब ध्यान से सुनो अब मैं तुम्हें खुरजी के सही प्रयोग का मार्ग बताता हूं। तुम ख़ुरजी में हाथ डालकर कहना हे खुरजी के सेवक तुम्हें इस ख़ुरजी में लिखे नामों की सौगंध देता हूं कि मेरे लिए अमुक खाने का प्रबंध करो। ख़ुरजी का सेवक वह खाने ले आएगा जो तुमने मांगा होगा। किन्तु मैं तुम्हें इस ख़ुरजी के अतिरिक्त एक और ख़ुरजी देता हूं जो सोने चांदी और हीरे जवाहेरात से भरी हुई है। उसके बाद उसने अपने दो सेवकों को बुलाया और कहा कि जूज़र के लिए एक सोने से और एक चांदी से ख़ुरजी देकर आओ और उसे गधे पर लादो और उन्हें घर पहुंचा कर गधों को ले आना। जूज़र यह सब माल लेकर गधे पर सवार हुआ, उसके साथ अब्दुस्समद के नौकर भी चल रहे थे। दूसरे दिन सुबह वह अपने नगर पहुंच गया। रास्ते में उसने अपनी मां को देखा जो भीख मांग रही थी। उसे आश्चर्य हुआ, उसने गधे को एक ओर किया और दौड़ता हुआ अपनी मां की ओर दौड़ा। उसे अपनी बाहों में भर कर रोने लगा। जूज़र ने अपनी मां को गधे पर सवार किया और घर की ओर चल दिया। उसकी मां ने उसे बताया कि वह पैसे जो तुम मुझे देकर गये थे वह तुम्हारे भाईयों ने धोखे से हड़प लिया। जूज़र ने उसे सांत्वना दी और कहा कि प्यारी मां परेशान न हो मैं तुम्हारे साथ हूं। उसके बाद उसने रंगीन दस्तरख़ान बिछाया।