Apr २४, २०१६ १४:२६ Asia/Kolkata
  • जोज़र और शमरदल का ख़ज़ाना-६

कहानी के पिछले भाग में हमने बताया था कि शमरदल का ख़ज़ाना प्राप्त करने के बाद जोज़र ने उसे अब्दुस्समद को दे दिया।

उसके बाद (जादूई ख़ुरजीन) के साथ अपने शहर वापस चला गया। वहां पहुंचकर उसने देखा कि उसके भाइयों ने उसकी मां से वह पैसा ले लिया जो जोज़र ने अपनी मां के लिए रखा था। वे मां को अकेला छोड़कर चले गए और भूख के कारण उनकी मां भीख मांगने पर विवश हुई। जोज़र अपनी मां को घर ले गया और उसे समझाया बुझाया। इसके बाद जादूई ख़ुरजीन से उसने मां के लिए अच्छे-अच्छे खाने मंगवाए।

 

 

    और अब आगे की कहानी। जोज़र ने ख़ूरजीन का रहस्य अपनी मां को बताया। उसने मां से कहा कि इस रहस्य को वह किसी को न बताए। जोज़र के भाइयों ने जब सारा पैसा खर्च कर दिया और वे खाली हाथ हो गए तो वे वापस घर आए। जोज़र ने पहले की तरह इस बार भी उनकी ग़लती को माफ़ कर दिया और उन्हें घर में बुलाया। जोज़र प्रतिदिन अधिक मात्रा में खाना तैयार करता और सब लोग साथ बैठकर उसे खाते थे। खाने के बाद जो भोजन बच जाता था उसे वह ग़रीबों में बांट दिया करता था। एकबार जब जोज़र सो रहा था तो उसके भाइयों ने खाने के रहस्य के बारे में अपनी मां से पूछा। उनकी मां इस रहस्य को छिपा नहीं सकी और उसने उन्हें पूरी बात बता दी।

 

  मां ने अपने बेटों से कहा कि वे इस रहस्य को अपने पास ही रखें और उसे किसी दूसरे को न बताएं। मां की बात सुनने के बाद सलीम और सालिम ने ख़ुरजीन प्राप्त करने के लिए योजना बनाई। उन्होंने नाव के मालिक से बात की कि वह रात को सोते समय वे उसके भाई को अपनी नाव में कहीं दूर ले जाए जिसके बदले में वे उसे बहुत पैसे देंगे। आधी रात को जब जोज़र गहरी नींद में सो रहा था सलीम और सालिम नाव वाले के साथी के साथ घर में आए और सोते में जोज़र को उठाकर नाव में डाल दिया और उसके मुंह पर कपड़ा बांध दिया। नाव वाले ने जोज़र को नाव में डालने के बाद अपनी यात्रा आरंभ कर दी। अगले दिन सलीम और सालिम अपनी मां के पास आए और उससे कहा कि उनका भाई जोज़र, अपने कुछ मेहमानों के साथ बाहर गया है। यह सुनकर उनकी मां बहुत दुखी हुई और रोने लगी। इसपर सलीम और सालिम ने कहा कि तुम जोज़र को हमसे अधिक प्रेम करती हो।

 

यह सुनकर मां ने कहा कि तुम भी मेरी संतान हो और तुमको भी मैं प्यार करती हूं किंतु जब से तुम्हारे पिता की मृत्यु हुई है उस समय से तुम लोग मेरे साथ दुर्वयव्हार कर रहे हो जबकि जोज़र सदैव ही मेरे साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करता है।

 

मां की यह बात सुनकर सलीम और सालिक बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने अपनी मां से झगड़ा किया और उसको मारा भी। उसके बाद उन्होंने जोज़र की दो ख़ुरजीनों को अपनी मां से लिया। उनमें से एक में सोना भरा हुआ था और दूसरे में आभूषण थे। दोनों ने उन्हें आपस में बांट लिया। इसके बाद दोनों के बीच जादूई ख़ुरजीन के लेकर झगड़ा हुआ। वे उस ख़ुरजीन के दो टुकड़े करके उसे आपस में बांटना चाहते थे। इसपर उनकी मां ने चिल्लाते हुए कहा कि हे मूर्ख बेटों! इसको काटो नहीं अन्यथा इसका असर समाप्त हो जाएगा। उसको बीच से मत काटो बल्कि एसे ही उसे अपने पास रखो। जब भी तुमको भोजन की आवश्यकता हो उससे प्राप्त करो।

 

किंतु सलीम और सालिम ने अपनी मां की बात नहीं सुनी। सुबह होने तक उनके बीच ख़ुरजीन को लेकर झगड़ा होता रहा। संयोग की बात है कि उनके पड़ोस में राजा का एक सिपाही आया हुआ था। वह पड़ोसी का मेहमान था। उसने सलीम और सालिम की सारी बातों को सुन लिया जिससे उसे ख़ुरजीन के जादूई होने का पता चल गया था। अगले दिन वह राजा के पास गया और उसने रात में जो कुछ सुना था वह उसे बताया। यह सुनकर राजा ने आदेश दिया कि सलीम और सालिम को उसकी सेवा में उपस्थित किया जाए। राजा के सिपाही दोनों भाइयों को पकड़कर उसके पास लाए। उनको राजा के सिपाहियों ने इतना मारापीटा कि अंततः उन्होंने सारी बातें स्वीकार कर लीं।

 

  राजा ने उनसे जादुई ख़ुरजीन लेली और दोनों को जेल में डलवा दिया।

इस घटना को एक वर्ष बीत गया। सलीम और सालिम अब भी जेल में बंद थे। उधर जोज़र पानी के जहाज़ पर काम करता था। एकबार समुद्र में तूफ़ान आया। जहाज़ पानी में डूब गया। जोज़र के अतिरिक्त जहाज़ पर सवार सारे लोग डूब गए। वह तैरता हुआ समुद्र के तट पर पहुंचा। वहां वे उसने पैदल चलना शुरू किया। चलते-चलते वह एक कारवा तक पहुंचा जो अरब जा रहा था। इस कारवां का मालिक एक व्यापारी था जो बहुत कृपालू था।

 

उसने जब जोज़र की आपबीती सुनी तो उससे कहा कि वह उसके साथ रहकर काम करे। जोज़र ने व्यापारी की बात मान ली और वह उसके साथ हो लिया। वे लोग जद्दा नगर पहुंचे। संयोग से वह समय हज का था। व्यापारी ने हज का निर्णय किया और अपने साथ जोज़र को भी ले लिया। वे दोनों मक्का पहुंचे। जिस समय जोज़र मक्के की परिक्रमा कर रहा था उस दौरान उसकी दृष्टि एक व्यक्ति पर पड़ी जो उसे जाना पहचाना लग रहा था। जब उसने ध्यान से देखा तो समझ गया कि वह तो अब्दुस्समद है। वह उसके निकट गया और उसे सलाम किया। जोज़र को देखकर अब्दुस्समद बहुत खुश हुआ।

 

उसने जोज़र को गले लगाया और पूछा कि तुम यहां कैसे? जोज़र ने अपनी सारी आपबीती उसे सुनाई। अब्दुस्समद उसे अपने घर ले गया। घर जाकर उसने जोज़र से कहा कि मेरा यह मानना है कि अब तुम्हारे लिए अच्छे दिन आने वाले हैं। हज पूरी करने के बाद तुम मेरे साथ चलो। जोज़र ने व्यापारी से विदा ली और वह अब्दुस्समद के साथ हो लिया। अब्दुस्समद ने चांदी की एक अंगूठी जोज़र को दी जो उसने शमरदल के ख़ज़ाने से प्राप्त की थी। उसने जोज़र को अंगूठी देते हुए कहा कि जब भी तुमको किसी चीज़ की आवश्यकता हो तो तुम इस अंगूठी के नग पर हाथ रखना और उसी समय अंगूठी का सेवक उस्थित होगा जिसका नाम रअद है। वह तुम्हारी ज़रूरत पूरी कर देगा। यह कहते हुए अब्दुस्समद ने अंगूठी के नग पर हाथ रखा। उसी समय रअद उपस्थित हुआ। अब्दुस्समद ने रअद से जोज़र को परिचित कराते हुए कहा कि अबके बाद से तुम्हारा स्वामी जोज़र है। यह सुनकर रअद ने कहा कि मैं सदैव आपकी सेवा के लिए तैयार हूं। यह सुनकर जोज़र ने रअद से कहा कि तुम मुझको मेरे घर पहुंचा दो। यह कहकर उसने अब्दुस्समद से विदा ली।

 

उसने अंगूठी पहनी और रअद के कांध पर सवार होकर चल पड़ा। काफ़ी देर तक वे आसमान में उड़ते रहे। आधी रात के समय रअद, जोज़र को उसके घर के आंगन में लेकर उतरा। उसने जोज़र को आंगन में उतारा और ग़ाएब हो गया।

कहानी का आगे का हिस्सा अगले कार्यकर्म में।