Apr २४, २०१६ १४:३९ Asia/Kolkata
  • जिस रीछ का अभी शिकार नहीं किया है उसकी खाल न बेचो

यह कहावत एक कहानी पर आधारित है।

कहते हैं कि दो मित्र थे। उनका मन चाहा कि एक रीछ का शिकार करें। उनके पास एक बंदूक़ थी। दोनों एक दिन बंदूक़ लेकर शिकार के लिए निकल पड़े किंतु कहीं कोई रीछ दिखाई नहीं दिया। दिन ढल गया और रात होने लगी। एक मित्र ने दूसरे से कहा कि अब रात होने लगी है, आओ घर चलते हैं। दूसरे ने उत्तर दिया कि हम इतना लम्बा रास्ता चलकर आए कि रीछ का शिकार करें और अब कह रहे हो के ख़ाली हाथ लौट जाएं?! उचित होगा कि यह जो गांव दिखाई दे रहा है यहीं जाकर रात गुज़ारते हैं और कल दिन निकलने के बाद दोबारा रीछ की खोज में निकलेंगे। पहले वाले मित्र ने कहा कि गांव में ठहरने के लिए कुछ खाना पीना भी तो चाहिए, सोने के जगह होनी चाहिए। जहां भी जाएंगे खाने पीने और सोने के लिए कुछ पैसे देना पड़ेंगे और हमारे पास एक टका भी नहीं है।

 

मेरी मानो तो घर लौट चलो। दूसरे मित्र ने कहा कि यह तो कोई समस्या ही नहीं है। हम जब रीछ का शिकार करेंगे तो उसकी खाल उतारकर बेच लेंगे। जो क़ीमत मिलेगी उसमें से कुछ पैसा खाने पीने और ठहरने के लिए दे देंगे। पहले मित्र ने इस पर कुछ नहीं कहा और दोनों गांव की ओर चल पड़े। गांव पहुंचकर उन्होंने एक घर का दरवाज़ा खटखटाया और उसी घर में दोनों ने खाया पिया और रात गुज़ारी। उन्होंने घर के मालिक से कहा कि हम कल रीछ का शिकार करके उसकी खाल तुमको दे देंगे। तुम खाने पीने और ठहरने का पैसा काट कर शेष पैसे हमें लौटा देना। अगले दिन दोनों शिकारी घर से निकले और पहाड़ की ओर चल पड़े। पहाड़ के आंचल में पानी का एक सोता था। दोनों ने तय किया कि सोते के निकट पेड़ के नीचे जाकर शिकार के लिए तैयार हो जाएं और घात लगाकर बैठ जाएं क्योंकि रीछ पानी पीने के लिए इस स्थान पर आएगा। दोनों ने घात लगाए हुए कई घंटे बिता दिए। भाग्य ने उनका साथ दिया और दोपहर होने से पहले ही दूर से एक रीछ आता दिखाई दिया। दोनों ने एक दूसरे को देखा और सतर्क होकर बैठ गए। रीछ और निकट आ गया। एक मित्र ने जिसके पास बंदूक नहीं थी अपने बंदूक़धारी मित्र से कहा कि इस विशालकाय रीछ को छेड़ना ठीक नहीं है।

 

काश मेरे पास भी बंदूक़ होती तो दोनों मिलकर उसे गिरा लेते। मुझे तो डर ही लग रहा है। बंदूक़धारी मित्र ने उत्तर दिया कि भय, मृत्यु के बराबर है। जब तुम इतने डरपोक हो तो शिकार के लिए क्यों चले आए? और कल रात भी तुमने घर लौटने से रोक दिया और कहा कि रीछ का शिकार करके उसकी खाल बेचेंगे और पैसा अदा करेंगे। तो तुम जहां हो वहीं जमकर बैठे रहो और मेरी ओर ध्यान रखो ताकि मैं इस रीछ का शिकार कर लूं। उसने उत्तर दिया कि ठीक है किंतु जब रीछ और भी निकट आ गया तो उसका डर इतना बढ़ गया कि अपने बंदूक़धारी मित्र को बताए बिना दबे पांव पीछे हटते हुए पेड़ के पास पहुंचा और पेड़ पर चढ़कर पत्तियों के बीच छिप गया। रीछ सोते के निकट आता जा रहा था। बंदूक़धारी शिकारी ने अपनी आंखें रीछ पर गाड़ रखी थीं। उसने बंदूक़ की बट अपने कांधे से सटाई और रीछ का निशाना लिया। उसकी उंगली ट्रेगर पर पर थी। अचानक उसके मन में एक विचार आया कि कहीं कोई दूसर रीछ पीछे से आकर मुझ पर आक्रमण न कर दे। उसने अपने मित्र से कहा कि पीछे का ध्यान रखना कहीं कोई रीछ पीछे से न आ जाए। मित्र ने पत्तियों के पीछे से उत्तर दिया कि तुम निश्चिंत रहो मैं पूरी चौकसी बरत रहा हूं। शिकारी ने जब देखा कि आवाज़ पेड़ के ऊपर से आ रही है तो वह समझ गया कि उसका मित्र उसे अकेला छोड़कर पेड़ पर चढ़ गया है। अकेले होने का आभास हुआ तो उसे भी डर लगने लगा।

 

उसने अपने मित्र को बुरा भला कहा और रीछ का शिकार करने के लिए पूरी तरह तैयार हो गया। रीछ सोते के निकट पहुंचा। उसने शिकारी को भी देख लिया किंतु डरे बग़ैर आगे बढ़ता रहा। जब शिकारी ने रीछ को इतना निश्चिंत देखा तो उसका डर और भी बढ़ गया। अब उसमें रीछ पर फ़ायर करने का साहस नहीं बचा था। उसके हाथ पांव कांपने लगे। अचानक उसकी उंगली से घोड़ा दब गया और फ़ायर हो गया किंतु हाथ कांपने के कारण गोली रीछ को नहीं लगी। बंदूक़ की आवाज़ सुनकर रीछ बिदक गया और ग़ुस्से में शिकारी की ओर दौड़ पड़ा। शिकारी को अचानक याद आया कि रीछ मरे हुए इंसान पर आक्रमण नहीं करता। उसने बंदूक़ फेंकी और मुर्दे की भांति ज़मीन पर गिर पड़ा। रीछ उसके पास आया। उसके चारों ओर चक्कर काटा और उसका चेहरा और सिर सूंघने लगा। रीछ को लगा कि यह तो कोई मुर्दा पड़ा है। रीछ पुनः सोते की ओर चला गया और पानी पीकर अपने रास्ते पर निकल गया।

 

 

जब रीछ शिकारी के पास घूम रहा था तो वह शिकारी भी और पेड़ पर बैठा उसका मित्र भी बहुत बुरी दशा में थे। जो पेड़ पर बैठा था उसने अपनी आंखें बंद कर ली थीं कि रीछ उसके मित्र के टुकड़े करने जा रहा है। और जो ज़मीन पर पड़ा था वह तो अपने जीवन के अंतिम क्षण गिन रहा था। जीवित बच जाने की आशा नहीं थी। जब रीछ चला गया तो मानों दोनों को नया जीवन मिल गया हो। पेड़ पर चढ़ा हुआ मित्र तेज़ी से नीचे उतरा और कांपती हुई आवाज़ में बोला कि आज तो बस ईश्वर ने बचा लिया।

 

 

ज़मीन पर पड़ा शिकारी जिसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह जीवित बच गया है डरते हुए पूछा कि रीछ गया? मित्र ने उसका डर भगाने के इरादे से कहा कि अच्छा यह तो बताओ कि रीछ ने तुम्हारे कान में क्या कहा। शिकारी उठा और उसने अपने बंदूक़ उठाई और बोला कि रीछ ने मेरे कान में दो बातें कहीं। एक तो यह कि कायरों से मित्रता न करो और दूसरे यह कि जिस रीछ का अभी शिकार नहीं किया है उसकी खाल न बेचो।