Apr २४, २०१६ १४:४९ Asia/Kolkata
  • दीगरान काश्तन्द व मा ख़ूरदीम, मा बेकारीम दीगरान बेख़ुरन

पुराने समय की बात है।

नौशेरवान नाम का एक राजा था जो अपने चतुर और बुधिमान मंत्री बुज़ुर्गमेहर के साथ शिकार खेलने जंगल गया। अभी राजा और उसका मंत्री जंगल की ओर जा ही रहे थे कि उनकी दृष्टि एक बूढ़े व्यक्ति पर पड़ी जो ज़मीन पर बैठा गड्ढ़ा खोद रहा था ताकि उसमें पौधा बोए। बूढ़े व्यक्ति की आयु लगभग 80 वर्ष थी। राजा ने उसको और उसके कार्य को देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसके मंत्री बुज़ुर्गमेहर ने कहा कि चलिए देखते हैं यह व्यक्ति क्या कर रहा है। उन्होंने अपने घोड़े को एड़ लगायी और बूढ़े व्यक्ति की ओर चल पड़े। उन्होंने उस व्यक्ति को सलाम किया और हालचाल पूछने के बाद राजा ने बूढ़े व्यक्ति से कहा कि चाचा आप क्या कर रहे हैं? बूढ़ा व्यक्ति मुस्कुराया और कहने लगा, कुछ नहीं बस अख़रोट का पेड़ बो रहा हूं। राजा को बहुत आश्चर्य हुआ और उसने कहाः अख़रोट? सच बात यह है कि मैं आपके बुढ़ापे और आप के कार्य और आप के विश्राम न करने पर मुझे आश्चर्य हुआ। 

 

अब आप यह कह रहे हैं कि अख़रोट का पौधा बो रहा हूं इस पर मुझे बहुत अधिक आश्चर्य हुआ। बूढ़े व्यक्ति ने कहा कि मैं किसान हूं और मेरा काम ही बोना काटना है और ईश्वर की कृपा से हट्टा कट्टा हूं और कार्य करने में सक्षम हूं। मेरा कार्य करना और पौधे बोना आश्चर्य की बात नहीं है। किन्तु मुझे यह नहीं पता कि अख़रोट के पौधे बोने पर आप ने आश्चर्य क्यों किया। राजा ने कहा कि आप स्वयं इस बात को जानते हैं कि अख़रोट का पेड़ इतनी जल्दी बड़ा नहीं होता और लगभग छः या सात वर्षों में यह वृक्ष बड़ा और फल देने योग्य होता है। मेरे आश्चर्य का कारण यह है कि तुम्हारी इतनी आयु हो गयी है और तुम्हें आशा है कि इस वृक्ष के फल खाने के लिए तुम जीवित रहोगे। राजा की बात निराश करने वाली थी और बूढ़ा व्यक्ति अपने मरने के बारे में सोचने लगा। वह राजा की बात से क्रोधित नहीं हुआ और उसने कहा कि जब मैं छोटा था तो यहां सैकड़ो अख़रोट के वृक्ष थे। हम उन वृक्षों के ऊपर चढ़ते और अख़रोट खाते। मुझे यह मालूम ही नहीं कि इन वृक्षों को किसने बोया है। यदि मैं जीवित नहीं रहूंगा तो कोई तो अवश्य होगा जो इस वृक्ष के अख़रोट खाए। दूसरों ने बोया हमने खाया और हम बोते हैं ताकि दूसरे खाएं

 

 

     राजा बूढ़े व्यक्ति के सही उत्तर से प्रसन्न हुआ और कहने लगा कि शाबाश, जैसे ही राजा के मुंह से ये शब्द निकले उसके मंत्री ने घोड़ पर बंधी हुई एक पोटली में से पौसों की एक थैली निकाली और बूढ़े व्यक्ति को दे दी। ये उनकी परंपरा थी। यदि राजा एक बार शाबाश कहता तो उसका मंत्री उस व्यक्ति को पैसे की एक थैली दे देता था जिससे वह बात कर रहा होता। यदि राजा दो बार शाबाश कहता तो मंत्री दो थैली निकाल कर दे देता।

 

     बूढ़े व्यक्ति ने थैली खोली और थैली में पड़े पैसों को देखने के बाद राजा से कहा कि देखिए छः सात वर्षों से पहले ही मेरे पेड़े ने फल दे दिया। मुझे यह थैली अख़रोट का पौधा लगाने के कारण मिली है। राजा को किसान की यह बात भी मन भा गयी उसने दो बार कहा शाबाश, शाबाश, तभी मंत्री ने पैसों की दो थैली निकाल कर किसान को दे दी। बूढ़ा किसान बहुत प्रसन्न हुआ और उसने कहा कि बैठिए। राजा का इस अनुभवी बूढ़े के पास बैठने और उसकी बातें सुनने को बहुत दिल चाह रहा था। वह अपने घोड़े से उतरना ही चाह रहा था कि उसके मंत्री ने उसकी ओर संकेत किया और कहा कि महाराज बहुत अधिक कार्य हैं और हमें बहुत लंबा मार्ग तय करना है। उचित है विश्राम न करें।

 

 

     राजा मंत्री की बात का उद्देश्य समझ नहीं पाया और उसने कहा नहीं भय्या एक घंटे तक रूकेंगे तो समस्या नहीं आ जाएगी। बुज़ुर्गमेहर ने बूढ़े व्यक्ति का ध्यान रखे बिना कहा कि जी हां विदित रूप से कोई समस्या नहीं होगी किन्तु मुझे डर है कि ये बूढ़ा व्यक्ति अपनी चिकनी चुपड़ी बातों द्वारा आपको शाबाश कहने पर विवश कर देगा और उसके मुझे एक के बाद एक थैली देनी पड़ेगी और उसके बाद हम रास्ते ही में पड़े रहेंगे और हमारे समस्त पैसे ख़त्म हो चुके होंगे। इसीलिए मैं यहां से जल्दी से निकलने की बात कर रहा हूं। यह बात सुनकर राजा और बूढ़ा व्यक्ति दोनो ठहाके मार कर हंसने लगे।

 

     उसके बाद से जो व्यक्ति उस कार्य को अंजाम देता है जिसके प्रतिफल के लिए उसे वर्षो की प्रतिक्षा करनी पड़ती है तो उसके बारे में यह कहावत कही जाती है। " दीगरान काश्तन्द व मा ख़ूरदीम, मा बेकारीम दीगरान बेख़ुरन अर्थात "दूसरों ने बोया और हमने खाया और हम बोते हैं ताकि दूसरे खाएं"