Apr २४, २०१६ १५:०० Asia/Kolkata
  • दुख्तरे नारंज व तुरन्ज-5

हमने आपको बताया था कि राजकुमार ने नारंज व तोरंज को प्राप्त करने के लिए बहुत से प्रयास किये। जब वह अपने महल वापस पहुंचा तो उसने लड़की को ले जाने के लिए भूमिका प्रशस्त की।

हमने आपको बताया था कि राजकुमार ने नारंज व तोरंज को प्राप्त करने के लिए बहुत से प्रयास किये। जब वह अपने महल वापस पहुंचा तो उसने लड़की को ले जाने के लिए भूमिका प्रशस्त की। इसी बीच एक बदसूरत दासी ने नारंज व तोरंज की हत्या करके स्वयं को उसके स्थान पर पहुंचा दिया। मृतक लड़की के ख़ून से नारंगी रंग का पेड़ निकला। राजकुमार उसे अपने महल में ले गया और वहां पर उसे बोया। क्योंकि यह पेड़ बहुत तेज़ी से बढ़ रहा था, बदसूरत दासी इससे कुछ शंक में पड़ गई। उसने पेड़ को काटने का आदेश जारी किया। पेड़ की लकड़ी उसी बुढ़िया के हाथ में पहुंची जिसने पहले दिन राजकुमार के मन में नारंज व तोरंज का विचार डाला था। उसने उससे धागा बुनने का चर्खा बनाया। यह वास्तव में वही लड़की नारंज व तोरंज थी जो बुढ़िया की अनुपस्थिति में चर्खे से निकलती थी। बुढ़िया को इस बात का पता चल गया। लड़की ने अपनी पूरी कहानी बुढ़िया को सुनाई। बुढिया ने उससे कहा कि वह उसकी समस्याओं का समाधान करेगी और उसे राजकुमार से मिलवाएगी।

 

 

दूसरी ओर राजकुमार, जो दिन भर नारंज व तोरंज के ख़यालों में डूबा रहत था, इस बारे में इतनी फ़िक्र करने लगा कि वह बीमार हो गया। राजा और रानी को भी पता नहीं था कि उनके राजकुमार की मुश्किल क्या है। इसीलिए वह उसकी मुश्किल का कोई हल नहीं निकाल पा रहे थे। उन्होंने हकीम बाशी को बुलाया। हकीम बाशी आया और उसने राजकुमार की स्थिति देखी। उसके बाद वह राजा के पास गया। उसने राजा से कहा कि वह अपने बेटे के उपचार के लिए आईने की ज़ंजीर बनवाए और उसे राजकुमार के गले में डाल दे। अगर यह ज़ंजीर उसकी गर्दन में आ जाए जो वह ठीक हो जाएगा और उसकी स्थिति बदल जाएगी। यह सुनकर राजा ने अपने सभी वज़ीरों को बुलाया। उसके बाद उसने हकीम या वैध की बात उन्हें बताई। राजा के एक वज़ीर ने कहा कि यह तो कोई भी नहीं जानता कि यह ज़ंजीर कैसे बनाई जाए।

 

अच्छा यह होगा कि पहले ढ़िंढोरा पीटने वाले शहर में जाकर ढिंढोरा पीटें ताकि जो भी इस काम को अच्छी तरह से जानता हो वह आए और राजकुमार को मुश्किल से निकाले। राजा ने आदेश दिया और ढ़िंढोरा पीटने वालों ने अपना काम आरंभ किया। नारंज व तोरंज तथा बुढ़िया ने भी यह एलान सुना। नारंज व तोरंज ने बुढ़िया से कहा कि तुम जाकर कहो कि मुझको यह काम आता है किंतु इसके लिए शर्त यह है कि मुझको एक आंगन और अस्ली शीशा या आईना दिया जाए। बुढ़िया राजमहल गई और उसने कहा कि उसे शीशे की ज़ंजीर बनाना आता है और साथ ही उसने अपनी शर्त भी बताई। इत्तेफ़ाक़ की बात यह है कि राजकुमार के कमरे के पास एक आंगन था।

 

असली आईना लाकर बुढ़िया को दिया गया। बुढ़िया नारंज व तोरंज और आईने को आंगन में ले गई। दूसरी ओर राजकुमार से कहा गया कि वैध ने बताया है कि तुम्हारा इलाज, शीशे की ज़ंजीर है। अब राजमहल के आंगन में यह तुम्हारे लिए बनाई जा रही है। राजकुमार ने जब यह सुना तो वह चुपके से छत पर जाकर एक कोने में छिपकर बैठ गया। वह यह देखना चाहता था कि बुढ़िया क्या करना चाहती है। राजकुमार ने देखा कि बुढ़िया, लड़की के साथ आई। उसने बुढ़िया को पहचान लिया और लड़की भी उसे कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी। लड़की ने शीशा अपने सामने रखा फिर उसने अपनी आपबीती सुनानी शुरू की। राजकुमार ने उसे सुनना आरंभ किया।

 

उसने सोचा कि वह तो उसकी आपबीती सुना रही है कि वह नारंज और तरंज के बाग़ में कैसे घुसा था। अब वह सबकुछ भूलकर लड़की की बातें सुन रहा था। लड़की आपबीती सुनाते-सुनाते इस स्थान पर पहुंच कि एक कुरूप दासी पेड़ पर आई और उसका सिर काट दिया तथा उसे पानी में फेंक दिया। फिर उसने उसका ख़ून नदी के किनारे डाल दिया। नारंज का पेड़ हरा हो गया। बदसूरत दासी जिसे सबकुछ पता चल गया था उसने स्वयं को नारंज और तरंज की लड़की बनाकर प्रस्तुत किया और उसके बाद किस प्रकार से झूठ बोला। फिर राजकुमार महल में पेड़ लाया। जब बदसूरत दासी को पता चल गया तो उसने उसे उखाड़ने का आदेश दिया और कहा कि इससे सिंहासन बनवाया जाए। राजकुमार ने नारंज व तरंज की की सारी बातें सुनीं। उसे एकदम से चक्कर आ गया। उसे पता ही नहीं चला कि वह कैसे छत से नीचे आया। लड़की को अपने महल ले गया। फिर उसने एक नौकर से कहा कि वह उसके मां-बाप को बुला लाए। राजा और महारानी दोनो वहां पर आए।

 

 

उन्होंने वहां पर एसी सुन्दर लड़की देखी जितनी सुन्दर लड़की उन्होंने इससे पहले कभी नहीं देखी थी। राजकुमारन ने राजा और महारानी को पूरी कहानी सुनाई। जब नारंज व तोरंज की सुन्दरता की ख़बर महल में पहुंची तो महल की औरतें भी उसे देखने के लिए आईं। जो भी उसे देखता था देखता ही रह जाता था। वे देखकर यह कहती थीं कि क्या कोई सच में इतना ख़ूबसूरत हो सकता है? जब राजा ने देखा कि राजकुमार बहुत खुश है तो उन्होंने पूरे नगर को सजाने का आदेश दे दिया। शहर में सात दिन और सात रातों तक जश्न मनाए गए और सातवें दिन राजकुमार की शादी हो गई। राजकुमार ने सबसे पहले बदसूरत दासी को बुलवाया। उसने दासी से पूछा कि तुमको क्या चाहिए तेज़ तलवार या तेज़ घोड़ा? दासी ने कहा कि तेज़ धार वाली तलवार मेरे शत्रुओं के लिए है मुझको तो तेज़ गति से चलने वाला घोड़ा चाहिए। राजकुमार ने हुक्म दिया कि बिगड़ैल घोड़े की दुम में बदसूरत दासी के बाल बांधे जाएं और घोड़े को जंगल में हांक दिया जाए। उसके बाद बुढ़िया को बड़ी इज़्ज़त के साथ महल में लाया गया। उसके बाद राजकुमार अपनी राजकुमारी के साथ खुशी-खुशी ज़िंदगी करने लगा।

 

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