Apr २४, २०१६ १५:५१ Asia/Kolkata
  • “माह पीशानी”

प्राचीन समय में एक व्यक्ति था उसके पास एक पत्नी थी जिसे वह बहुत चाहता था उसके पास शहरबानो नाम की एक बच्ची भी थी जो बहुत सुन्दर थी और माता-पिता इस बच्ची को देख कर बहुत प्रसन्न होते थे।

समय बीतता गया यहां तक कि शहरबानो सात साल की हो गयी। बाप ने उसे एक महिला शिक्षक के पास भेजा ताकि वह उससे शिक्षा ग्रहण करे। जहां महिला शिक्षा देती थी वह एक मदरसा था और वहां कई दूसरी बच्चियां भी पढ़ती थीं। जब बच्चियां महिला शिक्षक के लिए कोई उपहार लेकर जाती थीं तो महिला शिक्षक यह देखती थी कि जो चीज़ शहरबानो लेकर आती है वह दूसरी बच्चियों से उत्तम व बेहतर होता है उसे बच्ची पर संदेह हो गया कि आखिर इसकी वजह क्या है? उसने कई बार बच्ची से कड़ाई से पूछा कि उसका बाप क्या करता है? बेचारी शहरबानो को पता ही नहीं था कि महिला शिक्षिका ने उसके लिए क्या योजना बनाई है। 

 

 

उसने अपने बाप की जिन्दगी और उससे संबंधित सारी बातें बता दीं। शिक्षिका एक दो दिन में समझ गयी कि शहरबानों की ज़िन्दगी में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। उसने एक योजना बनाई और उस दिन से स्वयं को बच्ची के और नज़दीक किया और वह उस बच्ची के लिए मां से भी अधिक प्रेम करने वाली महिला बन गयी। उसने बच्ची के दिल में इतनी जगह बना ली कि अगर वह कहती कि दही काली है तो वह किसी प्रकार की आपत्ति के बिना विश्वास कर लेती और कहती कि दही काली है। एक दिन शिक्षिका ने शहरबानो को एक प्याला दिया और कहा कि इसे अपनी मां को दे देना और उसको मेरा सलाम कहना। शिक्षिका ने कहा था कि यह प्याला अपनी मां को देने के बाद कहना कि इसे सिरके से भरकर मदरसे के लिए भेज दे।

 

 

उसने शहरबानो से यह भी कहा कि जब तुम्हारी मां घर के भीतर भंडार कक्ष में जाये तो तुम भी उसके पीछे जाना और कहना कि हमारी शिक्षिका ने कई वर्षीय पुराना सिरका मांगा है और उसे सातवें घड़े के अतिरिक्त किसी और मटके से सिरका न लेने देना। बच्ची की मां जैसे ही सातवें मटके से सिरका लेने गयी वह झुकी ताकि उसके अंदर से सिरका निकाले। शिक्षिका ने बच्ची को यह भी समझा रखा था कि उसकी मां जैसे सिरका लेने के लिए झुके उसके पैर उठाकर सातवें घड़े में डाल कर उसके ढक्कन को बंद कर देना। बच्ची ने वैसा ही किया जैसाकि उसकी शिक्षिका ने समझाया था।

 

रात को जब उसका बाप आया तो देखा कि शहरबानो अकेले है। उसे बडा क्रोध आया। उसने शहरबानो से पूछा कि तुम्हारी मां कहां है? उसने कहा कि नहीं पता कि वह कहां है शहरबानो ने कहा कि जब वह मदरसे से आई तो घर में नहीं थी। अगले दिन शहरबानो मदरसे आई और उसने जो कुछ किया था वह शिक्षिका को बताया था। शिक्षिका बच्ची की बातों को सुनकर बहुत प्रसन्न हुई और शहरबानो को खुशी से गले लगा लिया। उसे चूमा और उसके सिर पर हाथ फिराया। जब कई दिन बीत गये तो शहरबानो की शिक्षिका ने उसे एक मुट्ठी ख़ाकेशीर दिया और उससे कहा कि जब वह घर पहुंच जाये तो उन्हें अपने सिर पर डाल ले और जब उसका बाप BRAZIER के सामने बैठेगा तो अपने सिर को हिला देगी और जब उसके सिर में मौजूद ख़ाकेशीर आग में गिरेंगे तो उनसे तड़ तड़ की आवाज़ आयेगी। इस पर बाप पूछेगा कि यह आवाज़ कैसी है? तो तुम कह देना कि हमारे सिर में जूं पड़ गयी हैं और कोई है भी नहीं जो मेरे बालों को साफ करे, मेरे बिस्तर को धुले और उसे हम्माम ले जाये। अब तो हमारी मां भी नहीं है अगर बाबा के पास कोई दूसरी पत्नी होती तो हमारी यह दशा न होती और उसकी हालत बेहतर होती। उसके बाद बच्ची ने रोना शुरू कर दिया और कहा कि बाबा अब आप को पत्नी लाना ही होगा जो हमारी देखभाल और उसका खयाल रखे। शहरबानो की शिक्षिका ने उसे समझा रखा था कि अगर बाप पूछे कि किससे विवाह करूं तो तुम कह देना कि एक दिल और एक जिगर घर के दरवाज़े पर लटका दो और जो महिला पहले आयेगी और उसका सिर इससे टकरा जायेगा उसी से विवाह करो। शहरबानो फिर अपनी पाखंडी शिक्षिका की बातों में आ गयी।

 

 

उसने वही सब किया जो उसकी शिक्षिका ने उसे सिखाया था। उसका बाप सुबह सवेरे बाज़ार गया और एक दिल व एक यकृत ले आया और उसे घर के दरवाज़े पर टांग दिया। जो कुछ हो रहा था शहरबानो की शिक्षिका उस पर नज़र रखे हुए थी और वह किसी बहाने से शहरबानो के घर आयी। उसने जान बूझ कर अपना सिर दिल और जिगर से टकरा दिया और दिखावे के लिए कहना शुरू कर दिया कि अरे अरे हो यह क्या हो गया उसका कपड़ा और सिर गन्दा हो गया? महिला की आवाज़ जैसे ही ऊंची हुई शहरबानो का बाप घर से बाहर निकला और उसने महिला से क्षमा मांगी और उसे पूरी बात बतायी। शिक्षिका तो पहले से ही विवाह करना चाह रही थी। उसका बाप महिला को एक धर्मगुरू के पास ले गया और वहां उसने शहरबानो की शिक्षिका से विवाह कर लिया और इसके बाद दोनों घर लौट आये।

 

 

शहरबानो की शिक्षिका के पास भी एक बच्ची थी जो शहरबानो के विपरीत सुन्दर नहीं थी। वह बच्ची भी अपनी मां के साथ शहरबानो के पिता के घर आई। शिक्षिका दो- तीन दिनों तक घर की सफाई में लगी रही । उसके बाद वह घर के भंडार कक्ष में गयी ताकि देखे कि सातवें घड़े में क्या है। जैसे ही उसने घड़े का ढक्कन हटाया उससे पीली गाय बाहर निकली। शिक्षिका हतप्रभ रह गयी उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या देख रही है। उसने समझा कि कहीं एसा तो नहीं है कि यह गाय शहरबानो की मां है। जल्दी से गाय को तबेले में ले गयी और उस दिन से धीरे- धीरे शहरबानों से दुर्व्यवहार करना आरंभ कर दिया और घर का जितना सख्त काम था जैसे बर्तन धुलना, पानी लाना आदि सबका सब शहरबानो के हवाले कर दिया और हर काम में दोष निकालती थी ताकि शहरबानों को सता सके और उसे मारने में भी संकोच से काम नहीं लेती थी। दूसरी ओर खाने- पीने और कपड़े आदि में भी बहुत कड़ाई करने लगी और अपनी लड़की के पुराने कपड़ों को शहरबानो को पहनाती थी।

 

 

शहरबानो अपनी शिक्षिका व सौतेली मां से इतना भयभीत रहती थी कि वह डर के मारे मुंह खोलने का साहस नहीं करती कि कुछ अपने बाप से कहे। कुछ दिन बीते थे कि शहरबानो की सोतेली मां ने उसे सताने का दूसरा रास्ता अपनाया और शहरबानो से कहा कि कल से सूरज निकलने से पहले पूरे घर और प्रांगड़ में झाडू लगा जाना चाहिये और बर्तन भी धुलो। इसके बाद एक गठरी रूई लेकर धागा तैयार करो और गाय को शाम तक चराने के बाद घर ले आना और उसके बाद रूई के धागे को हमारे हवाले करना और उसके बाद घर के जो काम रह गये हों उन्हें अंजाम देना। शहरबानो के अंदर इंकार करने का साहस नहीं था इसलिए उसकी शिक्षिका ने, जो अब उसकी सौतेली मां बन चुकी थी, जो कुछ कहा शहरबानो ने उसे स्वीकार कर लिया और अगले दिन सुबह शहरबानो ने हर वह कार्य अंजाम दिया जिसे उसकी सौतेली मां ने कहा था। गाय को भी चराने के लिए बाहर ले गयी। जब वह गाय चराने जा रही थी तो रोती जाती और स्वयं से कहती जाती थी कि हे ईश्वर दो नहीं अगर मेरे पास दस हाथ भी हो जायें तब भी मैं इतनी रूई का धागा नहीं बुन सकती अगर यह कार्य नहीं कर पाई तो शाम को अपनी सौतेली मां का जवाब क्या दूंगी?

 

 

शहरबानो गाय को लेकर मरुस्थल पहुंच गयी और उसने गाय को चरने के लिए छोड़ दिया और एक पत्थर पर बैठकर रूई बुनना शुरू किया। दिन डूबने का समय निकट आ गया और शहरबानो ने देखा कि अभी तो आधी रूई भी नहीं बुन पायी। वह बहुत दुःखी हुई और अपने हाल पर रोने लगी। इतना रोयी कि उसका चेहरा भीग गया है। अचानक देखा कि गाय उसके समक्ष आकर खड़ी है और उसने शहरबानो को दिलासा दिया और उसकी सहायता आरंभ कर दी। शहरबानो प्रसन्न हो गयी। उसने धागों को एकत्रित किया और सबको गठरी में रख लिया और गाय को आगे करके रास्ता चलने लगी। कुछ देर के बाद वह घर आ गयी और रूई के धागों को अपनी सौतेली मां के हवाले कर दिया। उसकी सौतेली मां ने धागों को ले लिया और कहा जाओ घर के शेष कार्यों को अंजाम दो। जब शहरबानो ने घर के कार्यों को पूरा कर लिया तो उसकी सौतेली मां ने उसे खाने के लिए रोटी का सूखा टुकड़ा दिया। शहरबानो ने पानी में भिगाकर रोटी खाई और रोते हुए एक कोने में सो गयी।

 

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