माह पीशानी-5
पिछले कार्यक्रम में हमने कहा कि प्राचीन समय में एक आदमी अपनी पत्नी और बेटी शहरबानो के साथ बहुत अच्छी तरह रह रहा था कि एक दिन शहरबानो ने अपने मदरसे की शिक्षिका “मुल्लाजी” के उकसावे में आकर अपनी मां को सिरके के घड़े में डाल दिया और उसके बाद मुल्लाबाजी उसकी सौतेली मां बन कर उसके घर आ गयी और उसके बाद से उसने शहरबानो से नौकरानी की भांति काम लेना आरंभ कर दिया।
एक दिन जब वह अपनी सौतेली मां के आदेश से ढेर सारी रूई लेकर मरुस्थल गयी थी और उसकी सौतेली मां ने उससे कहा था कि इन रूईयों का धागा बनाओ तो उसकी एक दैत्य से भेंट हो गयी थी और उसने शहरबानो की बहुत सहायता की थी तथा अंत में उसने शहरबानो से कहा था कि वह अपने चेहरे को नदी में धो ले।
यह कार्य करने के बाद शहरबानो के माथे से एक चांद और उसकी ठुड्डी से एक तारा निकल आया था जिससे वह बहुत ही सुन्दर हो गयी थी। मुल्लाबाजी को जब सारी बात पता चली और उसने जब यह दृश्य अपनी आंखो से देखा तो उसने भी अपनी लड़की को शहरबानो के साथ दैत्य के पास भेजा ताकि वह भी सुन्दर हो जाये पंरतु चूंकि उसकी लड़की ने दैत्य के साथ बुरा व्यवहार किया था इसलिए उसके चेहरे पर सांप और बिच्छू निकल आया। मुल्लाबाजी की एक पड़ोसन ने उसे विवाह समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था और उसने विवाह समारोह में जाने का निर्णय किया। मुल्लाजी ने अपनी बेटी को नया कपड़ा पहनाया और बहुत सारे आभूषणों से उसे सुसज्जित किया तथा रेशम के रूमाल से उसके माथे एवं ठुड्डी को बांध दिया ताकि कोई सांप और बिच्छू को न देख सके। स्वयं उसने भी अच्छा वस्त्र धारण किया और नाना प्रकार के आभूषण धारण किये। शहरबानो एक कोने में खड़ी इस दृश्य को हसरत भरी नज़रों से देख रही थी। बहरहाल अंत में वह भी विवाह में गयी। दैत्य ने उसे जो वस्त्र दिया था उसे धारण करके वह विवाह में गयी थी। दैत्य ने जो कुछ उससे कहा था उसने अंजाम दिया और घर लौटते समय युवराज उसके पीछे पीछे आ रहा था परंतु वह शहरबानो तक नहीं पहुंच सका और शहरबानो के एक पैर की जूती लेकर महल लौट गया।
यह वे बातें हैं जिन्हें आप पिछले कार्यक्रम में चुन चुके हैं अब सुनिये कि शहरबानो की सौतेली मां मुल्लाबाजी और उसकी बेटी ने क्या किया। मां -बेटी दोनों बहुत ही क्रोध में थीं वह क्रोध की स्थिति में विवाह समारोह से निकल कर तेज़ी से घर आयीं ताकि विवाह समारोह में शहरबानो ने उनके साथ जो कुछ किया था उसका बदला ले सकें। अभी सही तरह से उन्होंने घर में कदम भी नहीं रखा था कि मुल्लाबाजी ने ज़ोर से शहरबानो को बुलाया और कहा शहरबानो यहां आओ देखें कि तुमने प्याले को अपने आंसू से भरा या नहीं? शहरबानो प्याला लेकर आयी जो विदित में आंसू से भरा हुआ था और उसे मुल्लाजी को दे दिया। मुल्लाजी ने एक बूंद अपनी ज़बान पर रखा ताकि देखे कि वह पानी है या आंसू। वह खारा था मुल्लाजी ने अच्छी तरह प्याले को देखा वह समझी कि सच का आंसू है।
उसके बाद उसने पूछा कि तूने दानों का क्या किया? शहरबानो ने कहा कि समस्त दानों को चुनकर अलग कर दिया है। इसके बाद वह मुल्लाबाजी का हाथ पकड़ कर अलग किये गये दानों के पास ले गयी। मुल्लाबाजी ने देखा कि दाने भी सच में अलग हो गये हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने स्वयं से कहा कि अगर कोई ठीक ठाक हो तो भी एक महीने में यह कार्य नहीं कर सकता। यही नहीं शहरबानो ने आंसूओं से किस प्रकार प्याला भरा? और आधे दिन में इतना सारा कठिन कार्य अंजाम दे दिया? यह सब देखने के बाद मुल्लाजी ने शहरबानो को घर साफ करने के लिए भेज दिया और स्वयं से कहा मेरी समझ से बाहर है यह लड़की क्या है। मुल्लाबाजी की लड़की ने भी कहा कि किसी ने इसकी सहायता ज़रूर की है। मुल्लाजी ने कहा कि लगता है कि यह गाय इसकी मां है और यही शहरबानो की सहायता करती है और जब तक यह गाय ज़िन्दा है तब तक इस लड़की का कुछ नहीं हो सकता। फिर मुल्लाबाजी ने गाय को ख़त्म करने का निर्णय किया। उसने अपना कपड़ा बदला और उठकर वैद्य हकीमबाशी के पास जा पहुंची। हकीमबाशी से बातचीत के बाद तय यह हुआ कि मुल्लाजी बीमार होने का ढोंग करेगी और जब हकीमबाशी उसके घर आयेगा तो यह कहेगा कि मुल्लाबाजी की बीमारी का उपचार पीली गाय का मांस है। यह सब तय तमाम होने के बाद मुल्लाजी तुरंत घर लौट आयी और रात को अपने पति के आने से पहले बीमारी का बहाना बनाकर सो गयी। फिर चीखना- चिल्लाना आरंभ कर दिया। कभी कहती थी कि हाय-हाय मेरी कमर- हाय हाय मेरा पेट, हे ईश्वर पीड़ा से मर गयी कोई है जो मेरी सहायता करे।
उसका पति यह दृश्य देखकर परेशान हो गया। उसने उसके लिए मुलैठी का काढ़ा तैयार करके उसे पिलाया परंतु मुल्लाजी यही कहती रही कि उसका दर्द ठीक नहीं हुआ। अगले दिन सुबह मुल्लाबाजी ने अपने चेहरे पर थोड़ी हल्दी मल ली और अपनी तकिया के नीचे सूखी रोटी रख ली। जब वह इधर से उधर करवट बदलती थी तो जो सूखी रोटी उसने अपनी तकिया के नीचे रख रखा था वह टूटती थी और मुल्लाबाजी चीख पुकार करती थी और कहती थी कि पीड़ा से हड्डी भी चटख रही है। पति बिल्कुल बौखला गया वह सीधा हकीमबाशी वैद्य के पास पहुंचा और उसे अपनी पत्नी के पास ले आया।
हकीमबाशी ने मुल्लाबाजी की नब्ज़ पकड़ी और अच्छी तरह जांच की और अंत में कहा कि इसे एक एसी बीमारी हो गयी है जिसका उपचार केवल पीली गाय का मांस है। अगर आज या कल तक इसे मांस नहीं मिला तो इसके दफन, कफन के बारे में सोचना। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और उसने कहा कि ईश्वर का धन्यवाद कि पीली गाय घर में ही है। कल सुबह उसे हलाल करके उसका मांस को अपनी पत्नी को खाने के लिए देंगे। यह बात जैसे ही शहरबानो के कान में पड़ी वह बहुत दुःखी व चिंतित हो गयी। उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे क्योंकि गाय वास्तव में उसकी मां थी। उसने बहुत सोचा कि किस तरह अपनी मां को बचाये उसने बहुत सोचा लेकिन उसकी कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करे।
अंत में उसने सोचा कि दैत्य के पास चलते हैं और उससे कोई रास्ता पूछते हैं। उसी रात को जब शहरबानो को विश्वास हो गया कि सब सो गये हैं वह धीरे से उठी और दबे पांव घर से बाहर चली गयी, वह उस कुएं के अंदर गयी जिसमें दैत्य रहता था। उसने दैत्य को सलाम किया और सारी बात उसे बतायी। दैत्य ने शहरबानो से कहा इसमें परेशान होने की क्या बात है? यह तो कोई काम ही नहीं है। जल्दी से घर जाओ और पीली गाय को लाकर उसे मरुस्थल में छोड़ दो और मैं तुम्हें उस जैसी दूसरी पीली गाय देता हूं उसे घर ले जाओ और घर के तबेले में उसे बांध दो। शहरबानो जल्दी से घर आयी और उसने वही किया जो दैत्य ने कहा था। उससे दैत्य ने यह भी कहा था कि जब गाय काट दी जाये और उसका कबाब भूनकर लाया जाये तो तुम उसे हाथ नहीं लगाना और उसकी हड्डी तबेले में ले जाकर दफ्न कर देना।
शहरबानो उस पीली गाय को घर लायी जिसे दैत्य ने दिया था और उसे अपनी मां की जगह पर बांध दिया। सुबह की अज़ान में दो- तीन घंटे का समय बचा था कि वह सो गयी। उसका बाप सुबह सवेरे कसाई के पास गया और उसे बुला कर ले आया। कसाई ने भी पीली गाय को तबेले से बाहर निकाला और बगीचे में ले जाकर उसे ज़िबह कर दिया। उसके बाद उसके मांस का कबाब बनाकर खाया गया परंतु शहरबानो से जितना भी कहा गया कि वह भी कबाब खाये परंतु उसने कबाब को हाथ नहीं लगाया। जब उचित अवसर मिला तो उसने उस गाय की हड्डी को तबेले में ले जाकर दफ्न कर दिया। मुल्लाबाजी पीली गाय का मांस खाने के कुछ देर बाद सही हो गयी और धीरे धीरे रास्ता भी चलने लगी। क्योंकि वह यह सोच रही थी कि अब वह शहरबानो की मां को खा चुकी है और अब दुनिया में कोई नहीं है जो उसकी सहायता करेगा परंतु उसे इस बात की खबर नहीं थी कि युवराज ने जब से शहरबानो को देखा है तब से उसका प्रेमी हो गया है और रातों को उसके एक पैर की जूती को अपने सिर के नीचे रखता है और उसके पैरों की धूल का अपनी आंखों में सुरमा लगाता है।
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