Apr २४, २०१६ १६:१९ Asia/Kolkata
  • सफ़ेद पक्षी-३

इससे पहले हमने बताया कि ईश्वर ने एक राजा को, जिसकी कोई संतान नहीं होती थी, एक पुत्र प्रदान किया। उसके मंत्री ने, जो अत्यंत दुष्ट व्यक्ति था, उसकी हत्या करके शासन अपने हाथ में ले लिया और आदेश दिया कि रानी और उसके बच्चे की भी हत्या कर दी जाए।

 सिपाहियों ने रानी की तो हत्या कर दी किंतु बच्चे को नहीं मार पाए क्योंकि उसकी मां ने उसे एक घाटी में डाल दिया था और सिपाही उसे मरा हुआ समझ कर वहां से चले गए। बच्चा एक शेर के यहां पला बढ़ा और एक दिन उसके चाचा ने, जो दुष्ट मंत्री के विरुद्ध लड़ने के लिए अपने एक गुट के साथ उस घाटी तक पहुंचा था, उसे खोज लिया तथा उसका नाम शेरज़ाद रखा। राजा बन चुके मंत्री ने शेरज़ाद और उसके चाचा को मारने की बहुत कोशिश की किंतु वह विफल रहा और अंततः शेरज़ाद और उसके चाचा ने उसे पराजित करके शहर को अपने नियंत्रण में ले लिया। शेरज़ाद ने सत्ता अपने चाचा को दे दी किंतु उसके दोनों चचेरे भाई उससे ईर्ष्या करने लगे। वे उसकी हत्या का षड्यंत्र रचने लगे। शेरज़ाद के चाचा को जब उनके षड्यंत्र के बारे में पता चला तो उसने शेरज़ाद से कहा कि वह अपने साहस का प्रदर्शन करे। उसने कहा कि जो भी मेरे लिए उस स्थान से, जहां अब तक मेरा घोड़ा नहीं गया है, कोई ऐसी चीज़ ले आए जो मैंने अब तक न देखी हो तो वही सही अर्थ में वीर होगा।

 

 

राजा का बड़ा बेटा यात्रा पर निकल पड़ा और एक लाल याक़ूत यह सोच कर ले आया कि उसके पिता ने उसे नहीं देखा होगा। राजा ने अपने बेटे का माथा चूमा और उसे एक चाबी दे कर कहा कि शहर के किनारे एक पहाड़ के आंचल में एक गुफा है। उस गुफा में मेरे चालीस कमरे हैं। इस लाल याक़ूत को ले जाओ और ग्यारहवें कमरे में रख दो। बड़ा बेटा जब गुफा में पहुंचा तो उसने एक कमरा देखा जिसमें उस जैसे याक़ूत भरे पड़े थे। इसके बाद राजा के दूसरे बेटे की बारी आई और वह भी तीन महीने तक इधर-उधर भटकने के बाद एक जंगल में पहुंचा और देखा कि पेड़ों की शाखाओं पर बड़े अच्छे फल लगे हुए हैं। वह पेड़ों के निकट पहुंचा और उसने फल खाने चाहे तो देखा कि सभी फल सोने के हैं। उसने अपना थैला उन फलों से भर लिया और लौट आया। जब वह दरबार में पहुंचा तो राजा ने उसका माथा भी चूमा और उससे कहा कि इन फलों को गुफा के 21वें कमरे में रख आओ। जब वह वहां पहुंचा तो उसने देखा कि कमरा, वैसे ही सोने के फलों से भरा हुआ है। अब शेरज़ाद की बारी थी।

 

उसने राजा के सिंहासन के चारों कोनों को चूमा और घुटने टेक कर कहा, क्या आप मुझे अनुमति देते हैं कि आपके घोड़े पर बैठ कर इस यात्रा पर जाऊं। राजा ने आदेश दिया कि उसका घोड़ा शेरज़ाद को दे दिया जाए। शेरज़ाद उस घोड़े पर बैठ कर चल पड़ा। वह थोड़ी ही दूर गया था कि उसने घोड़े की लगाम छोड़ दी ताकि वह स्वयं जहां जाना चाहे, जाए। घोड़े ने इधर-उधर नहीं देखा और सीधा चलता चला गया। इसी प्रकार छः महीने बीत गए और सातवें महीने अचानक घोड़ हिनहिना कर एक जगह रुक गया और उसने अपने खुर ज़मीन पर मारे। इसके बाद उसने पीछे देखा और फिर हिनहिना कर अपने शरीर को थोड़ा सा समेटा। शेरज़ाद समझ गया कि घोड़ा यहां से आगे नहीं गया है। उसने घोड़े को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया, घोड़ा थोड़ी ही दूर गया था कि अचानक शेरज़ाद ने देखा कि ज़मीन पर कोई चीज़ जल रही है, उसने घोड़ा रोक दिया और उतर पड़ा। उसने देखा कि एक दिया है जो बिना तेल के जल रहा है और उसके प्रकाश से आस-पास की चीज़ें प्रकाशमान हैं। उसने वह दिया उठा लिया। उस पर लिखा हुआ था। हे वह व्यक्ति जिसने इस दिए को खोजा है, संसार में ऐसे कुल दो ही दिए हैं। शेरज़ाद ने सोचा कि शायद उसके चाचा को इसका जोड़ मिल चुका हो और यही सोच कर उसने कहा कि जब तक मुझे इसका जोड़ा नहीं मिल जाता मैं वापस नहीं लौटूंगा।

 

 

वह पुनः घोड़े पर सवार हुआ और आगे बढ़ता गया। शेरज़ाद बहुत ज़्यादा थक गया था किंतु वह आगे बढ़ता ही रहा, यहां तक कि एक शहर तक जा पहुंचा। वह उसने एक सराय में कमरा लिया ताकि कुछ दिन आराम कर सके। एक दिन सराय के मालिक ने एक दूसरे यात्री को उसके कमरे में भेजा। शेरज़ाद ने देखा कि उस यात्री ने एक दिया अपने थैले से बाहर निकाला और उसे जला दिया। वह दिया बिल्कुल उस दिए जैसा था जो उसे मिला था। शेरज़ाद ने उससे दोस्ती का प्रयास किया और उसकी सराहना आरंभ की। फिर उससे कहा कि तुम अपना दिया मुझे बेच दो। यात्री ने कहा कि मैं दिया तुम्हें दे दूंगा किंतु तुम्हें भी इसके बदलें में मुझे कुछ देना होगा। शेरज़ाद ने कहा कि जो कुछ तुम चाहो मैं देने के लिए तैयार हूं। उसने कहा कि यहां से देवों के दुर्ग का फ़ासला एक महीने का है। उनके पास बड़े अच्छे कबूतर हैं, अगर तुम मेरे लिए नर व मादा कबूतर का एक जोड़ा ला दो तो मैं यह दिया तुम्हें दे दूंगा। शेरज़ाद ने उसकी बात मान ली और रास्ता पूछ कर वहां जाने के लिए तैयार हो गया। अगले दिन वह सुबह सवेरे निकल पड़ा। वह मैदानों, घाटियों और मरुस्थलों से गुज़रता हुआ उस दुर्ग के निकट पहुंचा। उसने पहाड़ के आंचल में एक आवाज़ सुनी। देखा तो एक सफ़ेद पक्षी पहाड़ पर बैठा हुआ था और उसे पुकरा रहा था। शेरज़ाद रुक गया, पक्षी ने उससे पुछाः हे युवक किसने तुम्हें मौत की ओर भेजा है? ये देव उन कबूतरों को अपने पिताओं से भी अधिक चाहते हैं। ख़ैर तुम आधी रात तक रुको और जब वो सब गहरी नींद में सो जाएं तब दुर्ग के अंदर चले जाना।

 

 

शेरज़ाद घोड़े से उतर आया और आधी रात होने की प्रतीक्षा करने लगा। जब रात आधी हो गई तो वह दुर्ग की दीवार तक पहुंचा। तभी उस सफ़ेद पक्षी की आवाज़ आई। शेरज़ाद, लोभ मत करना और एक जोड़ी से अधिक मत लेना। शेरज़ाद दीवार से ऊपर चढ़ा और उस तरफ़ उतर गया, फिर सीने के बल चलता हुआ कबूतरों तक पहुंचा। जब वह वहां पहुंचा तो उसने देखा कि वे बहुत अधिक सुंदर हैं, इतने सुंदर की आदमी घंटों बैठ कर उन्हें देखता रहे। उसने कबूतरों की एक जोड़ी ली किंतु वह अपने आपको न रोक सका और एक जोड़ी और ले ली। कबूतर शायद इसी क्षण की प्रतीक्षा में थे। उन्होंने ऐसा हंगामा मचाया कि देव जाग गए और उन्होंने शेरज़ाद को पकड़ लिया। शेरज़ाद ने उन्हें अपनी पूरी राम कहानी कह सुनाई। देवों ने कहा कि हम तुम्हें कबूतरों की एक जोड़ी दे देंगे किंतु उसकी शर्त यह है कि तुम यहां से देवों के एक अन्य दुर्ग में जाओ और वहां से हमारे लिए अंगूर लेकर आओ। उनके अंगूर बड़े स्वादिष्ट होते हैं।(HN)

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