Jul ०४, २०२० १९:२८ Asia/Kolkata

ईरान के दक्षिण में स्थित बंदर अब्बास नगर अपने मेहमानों का गर्मजोशी के साथ स्वागत करने के लिए मशहूर है।

वैसे यह भी हम आप को बता दें कि बंदरगाह को फार्सी में बंदर कहते हैं और भारत में जिसे बंदर कहा जाता है उसे फार्सी में मैमून कहते है। 

ईरान के हुरमुज़गान प्रान्त का केन्द्रीय नगर बंदरअब्बास, में ईरान की सब से बड़ी बंदरगाह है और इसे ईरान के बेहद अहम शहरों में गिना जाता है क्योंकि इस शहर ने अपने इतिहास में बड़े उतार चढ़ाव और रंग देखे हैं। यह नगर फार्स की खाड़ी के  तट पर स्थित है इस लिए दुनिया भर के भांति भांति के व्यपारी इस नगर में आवाजाही करते रहे है इस लिए यह नगर ईरान के अलावा, दुनिया के अन्य देशों में भी काफी मशहूर है। बंदर अब्बास की शहीद रजाई और शहीद बाहुनर बंदरगाहें ईरानी अर्थ व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी समझी जाती हैं इसके साथ ही बंदर अब्बास में बड़े बड़े कारखाने भी हैं जिनकी वजह से ईरान की अर्थ व्यवस्था में इस नगर का महत्व बहुत बढ़ जाता है। इस नगर के अधिकांश लोग मछली का शिकार , खेती बाड़ी और व्यापार करते हैं लेकिन इस नगर की ख्याति का एक कारण यहां के निवासी हैं जो बेहद मेहमान नवाज़ होते हैं। बंदर अब्बास के लोग और इस नगर के आस पास फार्स की खाड़ी में मौजूद खूबसूरत द्वीप, हर साल दसियों हज़ार पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। वैसे इस नगर का खास मौसम भी पर्यटकों को लुभाता है। विशेषकर सर्दियों में जब लगभग पूरा ईरान ठिठुर रहा होता है, बंदरअब्बास में धूप चमकती है और मौसम बेहद संतुलित होता है यही वजह है कि पूरे ईरान से लोग, दक्षिणी ईरान के इस बेहद खूबसूरत नगर का रुख करते हैं।

 

इस नगर का मौसम गर्म है और समुद्र तट पर है तो ज़ाहिर सी बात है हवा में नमी भी बहुत है। अलबत्ता गर्मी में यह नगर तपने लगता है और तापमान 52 डिग्री तक पहुंच जाता है जबकि कड़ाके की सर्दियों में इसनगर का सब से कम तापमान 2 डिग्री होता है। इस नगर की भाषा " बंदरी" है जो मूल रूप से प्राचीन फारसी भाषा का एक रुप है। वैसे यहां पर हम आप को यह भी बता दें कि बंदर अब्बास , राजधानी तेहरान ेस 1287 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है अलबत्ता पिछले हफ्ते हम जहां थे अर्थात किरमान तो वहां से इस नगर की दूरी मात्र 491 किलोमीटर है। बंदर अब्बास के कई नाम रहे हैं जिनमें से एक नाम," बंदरे गंबरून " था। 

सन 1622 ईसवी में ईरानी शासक शाह अब्बास की सेना ने इमाम क़ुली खान नामक जनरल के नेतृत्व में दक्षिणी ईरान से पुर्तगालियों को खदेड़ने में सफलता प्राप्त की और इसी विजय की याद में " बंदरे गंबरून " का नाम " बंदर अब्बास"  पड़ गया। 

 

पर्यटक कहीं भी जाते हैं तो वहां के बाज़ार उन्हें अपनी ओर  खास तौर पर आकर्षित करते हैं क्योंकि ज़ाहिर सी बात है बाज़ार किसी भी नगर और समुदाय की संस्कृति से परिचित होने का एक अच्छा तरीका होते हैं। इसी लिए हम आप को बंदर अब्बास के बाज़ार ले चलते हैं। ईरानी पर्यटकों के लिए यह बाज़ार इस लिए भी खास है क्योंकि बाज़ार में जो रंग नज़र आते हैं वह ईरान के अन्य नगरों के बाज़ार में मुश्किल से ही दिखायी देते हैं। इस बाज़ार में नगर के पारंपरिक कपड़े और पोशाक और उस पर उनका रंग बिरंगा डिज़ाइन हर देखने वाले को मोह लेता है। कपड़ों के अलावा बाज़ार में स्थानीय हस्तकला के नमूने भी नज़र आते हैं लेकिन बंदर अब्बास का मछली  बाज़ार, इस नगर के बाज़ारों में सब से अधिक मशहूर है। यह बाज़ार पूरे ईरान का सब से बड़ा मछली बाज़ार भी है। बाज़ार से थोड़ी ही दूर पर दसियों रेस्टोरेंट हैं जहां भांति भांति रूप से पकाए गये झिंगे और मछलियां मिलती हैं। नगर के केन्द्र में मॅाल भी हैं जहां आधुनिक और नये फैशन के सामान और पोशाक मिलते हैं। 

बाज़ार के निकट ही एक पुराना मंदिर है जो बंदर अब्बास जाने वाले हर पर्यटक का ध्यान अपनी ओर खींचता है। इस मंदिर को सन 1210 हिजरी क़मरी में अर्थात लगभग दौ सौ साल पहले बंदर अब्बास के शासक मुहम्मद हसन खान सअदुल मुल्क के काल में बनाया गया था। इसे भारतीय व्यवपारियों द्वारा बनाया गया था। मंदिर की निर्माण शैली पारंपरिक मंदिरों की तरह है जो बंदर अब्बास में असाधारण रूप से हर एक का ध्यान खींचता है। 

यह मंदिर ईरान के शासक नासिरुद्दीन शाह के काल में बनना आरंभ हुआ था और मुज़फ्फरुद्दीन शाह के काल में यह मंदिर पूरा हो गया और लोग पूजा पाठ करने लगे। वास्तव में ईरान और भारत के तट एक दूसरे से निकट हैं और हुरमुज़गान के नाविक पूरी दुनिया में मशहूर थे इस लिए भारतीय व्यापारियों और इस क्षेत्र के नाविकों के मध्य निकट संबंध रहे हैं जिसकी वजह से भारतीय व्यापारियों की बंदर अब्बास आवाजाही बहुत अधिक रही है। कहते हैं कि इन्हीं में से एक धनी भारतीय व्यापारी ने बंदर अब्बास आने वाले भारतीय व्यापारियों के लिए एक मंदिर बनाने का निर्णय किया और बंदर अब्बास में मंदिरि बन गया। लेकिन इस मंदिर की एक खास बात यह है कि इसे यूं तो पारंपारिक मंदिर निर्माण शैली में बनाया गया है किंतु उसकी निर्माण शैली में इस्लामी व बौद्ध शिल्कला की झलक भी साफ नज़र आती है। वैसे ईरानी पर्यटक बड़े शौक से इस मंदिर को देखने जाते हैं क्योंकि उन्हें उसमें भारत की झलक नज़र आती है। 

वैसे बाज़ार के अलावा, किसी भी नगर का म्यूज़ियम भी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है खास तौर पर बंदर अब्बास का संग्रहालय इस नगर और इस क्षेत्र के इतिहास की गाथा सुनाता है। बंदर अब्बास में फार्स की खाड़ी का जल और जन संग्रहालय को देखे बिना बंदर अब्बास जाने वाला कोई पर्यटक वापस नहीं जाना चाहता। इस संग्रहालय की इमारत स्वंय ही दक्षिणी ईरान की विशेष शिल्पकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। 

बंदर अब्बास के संग्रहालय की इमारत, अध्ययन कर्ताओं के लिए एक खज़ाना है क्योंकि वह इस का अध्ययन करके दक्षिणी ईरान की शिल्प कला के बारे में बहुत कुछ जान और समझ सकते हैं। संग्रहालय की इमारत को दो हज़ार चार सौ वर्गमीटर में बनाया गया है और यह इमारत तीन मंज़िला है। पहले मंज़िले पर कार्यालय, लाइब्रेरी और कुछ अन्य स्थल हैं जबकि दूसरे मंज़िले पर संग्रहालय है जो मानव इतिहास  और समाज से संबंधित है। इस भाग में पारंपरिक बाज़ार गैलरी, हुरमुज़ क़िले की स्वतंत्रता और मछली के शिकार आदि से सबंधित चीज़े रखी गयी हैं। इस हिस्से में ढाई हज़ार से अधिक चीज़े रखी हैं जो इस क्षेत्र के लोगों और समाज का इतिहास बयान करती हैं। इन चीज़ों को देख कर ईरान के दक्षिणी भाग के लोगों के रहन सहन के बारे में काफी जानकारी हासिल हो जाती है। संग्रहालय का हर भाग, दक्षिणी ईरानी शिल्प कला के सिद्धान्तों के अनुसार बनाया गया है। तीसरा मंज़िला वास्तव में इस के प्राचीन इतिहास को दर्शाता है ।इस इमारत के बीचो बीच एक बड़ी लांच रखी गयी  है जिससे संग्रहालय का रूप काफी भिन्न नज़र आता है। इस  विशालकाय लांच का बादबान, संग्रहालय के तीसरे मंज़िले तक पहुंचता है। 

आप को यह तो पता ही है कि ईरान विश्व के उन देशों में शामिल हैं जहां पानी की कमी हमेशा रही है। यही वजह है कि ईरान के विभिन्न क्षेत्रों के लोग, पानी के लिए अलग अलग शैलियों का प्रयोग करते रहे हैं। यही वजह है कि हर क्षेत्र में जल संग्रहालय बनाया जाता है ताकि यह पता चल सके कि प्राचीन काल के लोग किस तरह से पानी का इंतेज़ाम करते रहे हैं। बदंर अब्बास का जल संग्रहालय सफवी काल में बनाया गया था इस में गोल  और लंबे  दो हौज़ हैं जिन्हें 210 वर्गमीटर की इमारत में बनाया गया है। इसके अलावा 1580 मीटर की खुली जगह भी है जहां पानी और उसे प्राप्त करने की शैलियों  और इतिहास को दर्शाने वाली विभिन्न चीज़ें रखी गयी हैं। यहां आप को मटके बल्कि पत्थर के बने मटके भी दिखायी देंगे। इसके अलावा विभिन्न प्रकार के बर्तनों के चित्र और बर्तन भी रखे गये हैं। इसी के साथ यह भी बताया गया है कि पुराने ज़माने में लोग कुंआ कैसे खोदते थे या भूमिगत नहरें जिसे क़नात कहा जाता है, कैसे बनाते थे?